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गुरुवार, 15 सितंबर 2011

लुभावने विचार

   एक युवक, अपने निज जीवन के रुख से परेशान होकर सहायता के लिए अपने पादरी के पास गया। थोड़ी देर तक उस युवक की छोटी-मोटी बुराईयों और लालसाओं की सूचि सुनने के बाद पादरी को लगा कि वह अपने विवरण में पूरी तरह से ईमानदार नहीं है, इसलिए पादरी ने उससे पूछा, "क्या वास्तविकता में बस इतना ही है?" युवक बोला, "जी हाँ, परेशानी की बस यही बातें हैं।" पादरी ने फिर पूछा, "तुम्हें पूरा निश्चय है कि तुम किन्ही अपवित्र बातों और विचारों से नहीं खेल रहे हो?" युवक ने कहा, "नहीं नहीं, मैं तो उनसे नहीं खेल रहा, वे ही मेरा मन बहला रहे हैं।"

   कुछ लोगों की धारणा रहती है, "प्रलोभनों से बच कर भागने में मुझे कोई आपत्ति नहीं है, बशर्ते मैं उन के लिए अपना पता छोड़ के भाग सकूँ।" यदि हम सच्चे होंगे तो यह अवश्य स्वीकार करेंगे कि पाप पहले विचारों में उत्पन्न होता है, उसके बाद ही जीवन में कार्यकारी हो कर प्रगट होता है।

   प्रलोभन पाप नहीं है। प्रलोभन के पाप में परिवर्तित हो पाने के लिए हमें उसका स्वागत करके अपने मन में बसाना होता है, उसे समय देना होता है, उसके साथ मज़ा लेना होता है। उदाहरण स्वरूप यदि किसी ने हमारा कुछ बिगाड़ा है तो उससे बदला लेने का पाप हम तब ही कर पाते हैं जब पहले बदला लेने के बारे में सोचना आरंभ करें, फिर उस व्यक्ति को किन बातों से और कैसे कैसे नुकसान हो सकता है, यह विचार करने लगें, तब ही योजना बना कर बदले की भावना से हम उसका नुकसान पहुँचा सकते हैं।

   इन बातों को आरंभ में ही रोक देने और पाप तथा नुकसान की हद तक न पहुँचने देने के लिए प्रेरित पौलुस उपाय देता है, "सो हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊंची बात को, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है, खण्‍डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद कर के मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं" (२ कुरिन्थियों १०:५)।

   जब हम गलत विचारों को अपने मन में स्थान बनाने देते हैं, तो उन के दुषप्रभावों से बचने का मार्ग है कि उन्हें परमेश्वर के सामने पाप के रूप में स्वीकार कर लें, क्षमा मांगें और परमेश्वर से मांगें के वह हमारी सहायता करे; फिर भले विचारों तथा परमेश्वर के वचन से अपने मन को भर लें।

   जब हम परमेश्वर की आधीनता में होकर शैतान का सामना करते हैं, तो वह हमारे सामने टिक नहीं सकता और उसके लुभावने विचार हमें पाप में गिरा नहीं सकते। - डेव एग्नर

जो मन में होता है वही चरित्र में भी आ जाता है।

सो हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊंची बात को, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है, खण्‍डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद कर के मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं। - २ कुरिन्थियों १०:५
 
बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों १०:१-६
    2Co 10:1  मैं वही पौलुस जो तुम्हारे साम्हने दीन हूं, परन्‍तु पीठ पीछे तुम्हारी ओर साहस करता हूं; तुम को मसीह की नम्रता, और कोमलता के कारण समझाता हूं।
    2Co 10:2  मैं यह बिनती करता हूं, कि तुम्हारे साम्हने मुझे निर्भय होकर साहस करना न पड़े, जैसा मैं कितनों पर जो हम को शरीर के अनुसार चलने वाले समझते हैं, वीरता दिखाने का विचार करता हूं।
    2Co 10:3  क्‍योंकि यद्यपि हम शरीर में चलते फिरते हैं, तौभी शरीर के अनुसार नहीं लड़ते।
    2Co 10:4  क्‍योकि हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढा देने के लिये परमेश्वर के द्वारा सामर्थी हैं।
    2Co 10:5  सो हम कल्पनाओं को, और हर एक ऊंची बात को, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है, खण्‍डन करते हैं; और हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देते हैं।
    2Co 10:6  और तैयार रहते हैं कि जब तुम्हारा आज्ञा मानना पूरा हो जाए, तो हर एक प्रकार के आज्ञा न मानने का पलटा लें।
 
एक साल में बाइबल: 
  • नीतिवचन २२-२४ 
  • २ कुरिन्थियों ८