ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

रविवार, 15 मार्च 2020

प्रकट



      लड़कपन में मैंने अपने पिता को उन खेतों में जुताई करते हुए देखा था, जिन्हें पहले कभी जोता नहीं गया था। पहली बार जब वहाँ हल चलता था तो बड़े-बड़े पत्थर निकल कर आते थे, जिन्हें मेरे पिताजी उठाकर फेंक देते थे। वे दुबारा, फिर तिबारा, बारंबार हल से मिट्टी को पलटते रहते थे, उसे और गहरा तोड़ते रहते थे। हर बार हल चलाए जाने पर और पत्थर प्रकट होते थे, जो उनसे पहले वालों से छोटे होते थे। पिताजी तब तक हल चलाते रहते थे जब तक कि कंकर पत्थर निकल नहीं जाते थे और मिट्टी नरम नहीं हो जाती थी।

      परमेश्वर के अनुग्रह में बढ़ना बहुत कुछ ऐसा ही होता है। जब हम मसीही विश्वासी बनते हैं, तो हमारे कुछ “बड़े” पाप प्रकट होते हैं; हम उन्हें परमेश्वर के सम्मुख स्वीकार करते हैं, उनके लिए परमेश्वर से क्षमा मांगते हैं, और उन्हें अपने जीवनों से बाहर निकालते हैं। समय के साथ, जैसे-जैसे हम परमेश्वर के वचन बाइबल को अपने में होकर निकलने देते हैं, परमेश्वर का पवित्र आत्मा हमारे अन्य “छोटे” पापों को भी प्रकट करता जाता है। हमारे सामने, हमारे जीवनों की वे बातें भी प्रकट होने लगती हैं जिन्हें हम महत्वहीन और नज़रंदाज़ करने वाली मानते रहे हैं, किन्तु अब मसीही परिपक्वता में बढ़ने के साथ ही हम उन्हें पाप पहचानने लगते हैं, उनके बदसूरत और विनाशकारी स्वरूप को पहचानने लगते हैं – जैसे कि घमंड, कुड़कुड़ाना, तुच्छ देखना, ईर्ष्या रखना, स्वार्थी होना आदि।

      परमेश्वर हम पर हमारे इन पापों को प्रकट करता जाता है जिससे की हम उसे उन्हें हमारे जीवनों से निकालकर फेंक लेने दें। इसीलिए जब भी हमारे कोई भी हानिकारक रवैये हमारे समक्ष प्रकट हों, हमें भजनकार दाऊद के सामान परमेश्वर से प्रार्थना करनी चाहिए, “हे यहोवा अपने नाम के निमित्त मेरे अधर्म को जो बहुत हैं क्षमा कर” (भजन 25:11)।

      नम्र कर देने वाले अनुभव चाहे दुखदायी भी हों, फिर भी आत्मिक जीवन की उन्नति के लिए भले होते हैं। ऐसे अनुभव परमेश्वर के तरीके होते हैं जिन के द्वारा वह हमें सिखाता है और सही मार्गो में हमारा मार्गदर्शन करता है, और हमारे छिपे हुए पापों को प्रकट करता है ताकि हम अंश-अंश करके उसके स्वरूप में ढलते चले जाएं। - डेविड एच. रोपर

प्रभु यीशु, जैसे हम हैं, हमें वैसा ही स्वीकार करता है, 
और फिर अपने स्वरूप में बनाता चला जाता है।

परन्तु जब हम सब के उघाड़े चेहरे से प्रभु का प्रताप इस प्रकार प्रगट होता है, जिस प्रकार दर्पण में, तो प्रभु के द्वारा जो आत्मा है, हम उसी तेजस्‍वी रूप में अंश अंश कर के बदलते जाते हैं। - 2 कुरिन्थियों 3:18 

बाइबल पाठ: भजन 25: 1-11
Psalms 25:1 हे यहोवा मैं अपने मन को तेरी ओर उठाता हूं।
Psalms 25:2 हे मेरे परमेश्वर, मैं ने तुझी पर भरोसा रखा है, मुझे लज्जित होने न दे; मेरे शत्रु मुझ पर जयजयकार करने न पाएं।
Psalms 25:3 वरन जितने तेरी बाट जोहते हैं उन में से कोई लज्जित न होगा; परन्तु जो अकारण विश्वासघाती हैं वे ही लज्जित होंगे।
Psalms 25:4 हे यहोवा अपने मार्ग मुझ को दिखला; अपना पथ मुझे बता दे।
Psalms 25:5 मुझे अपने सत्य पर चला और शिक्षा दे, क्योंकि तू मेरा उद्धार करने वाला परमेश्वर है; मैं दिन भर तेरी ही बाट जोहता रहता हूं।
Psalms 25:6 हे यहोवा अपनी दया और करूणा के कामों को स्मरण कर; क्योंकि वे तो अनन्तकाल से होते आए हैं।
Psalms 25:7 हे यहोवा अपनी भलाई के कारण मेरी जवानी के पापों और मेरे अपराधों को स्मरण न कर; अपनी करूणा ही के अनुसार तू मुझे स्मरण कर।
Psalms 25:8 यहोवा भला और सीधा है; इसलिये वह पापियों को अपना मार्ग दिखलाएगा।
Psalms 25:9 वह नम्र लोगों को न्याय की शिक्षा देगा, हां वह नम्र लोगों को अपना मार्ग दिखलाएगा।
Psalms 25:10 जो यहोवा की वाचा और चितौनियों को मानते हैं, उनके लिये उसके सब मार्ग करूणा और सच्चाई हैं।
Psalms 25:11 हे यहोवा अपने नाम के निमित्त मेरे अधर्म को जो बहुत हैं क्षमा कर।

एक साल में बाइबल: 
  • व्यवस्थाविवरण 26-27
  • मरकुस 14:27-53