भ्रामक शिक्षाओं के
स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (7) - पवित्र आत्मा की
निन्दा करने का पाप (1)
हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि
बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता
से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक
शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और
ज्योतिर्मय स्वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि
भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु
साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं।
जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2
कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि
कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे,
जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले;
जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार
जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”,
इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः
तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई
को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है,
कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने,
जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने
के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है।
पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा
देने वाले लोगों के द्वारा, प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को
देखने के बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः
बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखना
आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी के नया जन्म या
उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही
परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है,
और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं
जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना या पवित्र आत्मा से
बपतिस्मा पाना भी कहते हैं। वचन स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना या उससे
बपतिस्मा पाना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, वरन
उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास करना ही है।
इन गलत शिक्षकों की एक और बहुत प्रचलित और बल पूर्वक कही जाने वाले बात है
“अन्य-भाषाओं” में बोलना, और उन लोगों के द्वारा “अन्य-भाषाओं” को अलौकिक भाषाएं बताना, और परमेश्वर के वचन के
दुरुपयोग के द्वारा इससे संबंधित कई और गलत शिक्षाओं को सिखाना। इसके बारे में भी
हम देख चुके हैं कि यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार
नहीं है। प्रेरितों 2 अध्याय में जो अन्य भाषाएं बोली गईं,
वे पृथ्वी ही की भाषाएं और उनकी बोलियाँ थीं; कोई
अलौकिक भाषा नहीं। हमने यह भी देखा था कि वचन में इस शिक्षा का भी कोई आधार या
समर्थन नहीं है कि “अन्य-भाषाएं” प्रार्थना
की भाषाएं हैं। इस गलत शिक्षा के साथ जुड़ी हुई इन लोगों की एक और गलत शिक्षा है कि
“अन्य-भाषाएं” बोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त
करने का प्रमाण है, जिसके भी झूठ होने और परमेश्वर के वचन के
दुरुपयोग पर आधारित होने को हमने पिछले लेख में देखा है। पिछले लेख में हमने यह भी
देखा था कि उन लोगों के सभी दावों के विपरीत, न तो प्रेरितों
2:3-11 का प्रभु के शिष्यों द्वारा अन्य-भाषाओं में बोलना
कोई “सुनने” का आश्चर्यकर्म था,
न ही अन्य भाषाएं प्रार्थना करने की गुप्त भाषाएँ हैं, और न ही ये किसी को भी यूं ही दे दी जाती हैं, जब तक
कि व्यक्ति की उस स्थान पर सेवकाई न हो, जहाँ की भाषा बोलने
की सामर्थ्य उसे प्रदान की गई है। एक और दावा जो ये पवित्र आत्मा और अन्य-भाषाएँ
बोलने से संबंधित गलत शिक्षाएं देने वाले करते हैं, वह है कि व्यक्ति अन्य-भाषा बोलने के
द्वारा सीधे परमेश्वर से बात करता है। इसके तथा कुछ संबंधित और बहुत महत्वपूर्ण
बातों के बारे में हम पिछले दो लेखों में देख चुके हैं कि उनका यह दावा भी वचन की
कसौटी पर बिलकुल गलत है, अस्वीकार्य है।
पवित्र आत्मा की
निन्दा क्या है, और क्यों इस क्षमा न हो सकने वाला पाप कहा गया है?
आज हम पवित्र आत्मा से संबंधित एक और
बहुत गलत और भ्रामक शिक्षा के बारे में देखना आरंभ करेंगे, जिसका दुरुपयोग ये गलत
शिक्षाएं फैलाने वाले लोग अपने आप को प्रश्न पूछे जाने तथा अपनी आलोचना होने से
बचाए रखने के लिए करते हैं; और इसे कुछ विस्तार से, तीन भागों में देखेंगे।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि परमेश्वर
के वचन बाइबल में, स्वयं
प्रभु यीशु मसीह ही के द्वारा “पवित्र आत्मा की निन्दा
या निरादर” को “कभी न क्षमा होने वाला
पाप” कहा गया है (मत्ती 12:31; मरकुस 3:29;
लूका 12:10)। किन्तु वर्तमान में यह भी एक
तथ्य है कि प्रभु की इस बात को लेकर मसीही विश्वासियों, मसीही
या ईसाई समाज के लोगों में बहुत सी ग़लतफ़हमियाँ भी हैं, जिसके
कारण प्रभु की इस बात का दुरुपयोग भी किया जाता है। यह निंदनीय है कि बहुत से
प्रचारक तथा शिक्षक, विशेषकर वे लोग जो पवित्र आत्मा के
संबंध में गलत शिक्षाएं सिखाते और फैलाते हैं, वचन की बातों
को अनुचित रीति से, संदर्भ से बाहर, और
तोड़-मरोड़ कर लोगों के सामने प्रस्तुत करके, इस बात का
दुरुपयोग लोगों के मनों में अनुचित भय जागृत करने के लिए करते हैं। वे ऐसा इसलिए
करते हैं जिससे कोई उनसे, उनके कार्यों और शिक्षाओं के लिए
प्रश्न न कर सके। ऐसा करके ये लोग, प्रश्न करने वालों पर
“पवित्र आत्मा का निरादर/निन्दा” करने का भय एवं आरोप
लगाने के द्वारा, उन गलत शिक्षकों की बहुत सी सैद्धांतिक एवं
विश्वास संबंधी गलत शिक्षाओं के विषय, तथा उन लोगों के
जीवनों में पाए जाने वाले अनुचित व्यवहार के प्रति उन से प्रश्न करने वाले लोगों के मुंह बंद करते हैं।
यह समझने के लिए कि यह “निरादर” या “निन्दा” वास्तव में है क्या, और यह क्यों केवल परमेश्वर पवित्र आत्मा ही के विरुद्ध ही क्षमा नहीं हो सकता है, हमें परमेश्वर के वचन में से कुछ तथ्यों एवं शिक्षाओं को देखना होगा।
इसे केवल परमेश्वर पवित्र आत्मा के विरुद्ध पाप ही क्यों कहा गया है?
परमेश्वर का वचन बाइबल हमारे प्रभु
परमेश्वर को त्रिएक परमेश्वर दिखाती है, परमेश्वर पिता, परमेश्वर पुत्र –
प्रभु यीशु मसीह, और परमेश्वर पवित्र आत्मा। ये तीनों हर
प्रकार से और हर बात में पूर्णतः एक और समान हैं, इन तीनों
में कोई भी, किसी भी प्रकार की भिन्नता नहीं है – पवित्र
त्रिएक परमेश्वर – एक परमेश्वर तीन व्यक्तित्वों में। तो जबकि तीनों हर रीति से
समान और बराबर हैं, तो फिर ऐसा क्यों है कि केवल “पवित्र आत्मा के निरादर” के लिए ही इतने कठोर परिणाम
दिए गए हैं; जबकि ऐसे ही दुष्परिणामों का न तो कोई संकेत और न ही कोई दावा
परमेश्वर पिता, या
परमेश्वर पुत्र – प्रभु यीशु के विरुद्ध किए गए निरादर के लिए कहा गया है; जबकि तीनों ही
परमेश्वर के समान स्वरूप हैं?
इसे समझने के लिए त्रिएक परमेश्वर के
तीन व्यक्तित्वों के संबंध में कुछ बारीकियों को देखना होगा। परमेश्वर पुत्र –
प्रभु यीशु मसीह, जब
पृथ्वी पर हमारे उद्धारकर्ता बन कर आए, तो वे अपनी स्वर्गीय
महिमा, वैभव, स्वरूप, और स्थान को छोड़कर आए थे। बाइबल बताती है कि मानव स्वरूप में उन्होंने
अपने आप को स्वर्गीय महिमा से शून्य कर लिया और वे स्वर्गदूतों से थोड़ा कम किए गए
थे (फिलिप्पियों 2:5-8; इब्रानियों 2:9)। इस मानवीय स्वरूप में, वे संसार के पाप उठाने और
संसार के छुटकारे के लिए बलिदान होने के लिए आए थे। इसके लिए उनका, तुच्छ समझा जाना, उनके विरुद्ध बोला जाना, उनका दुःख और ताड़ना सहना, और संसार के लोगों से तिरस्कृत
एवं निरादर होना, पूर्व-निर्धारित था (यशायाह 53)। उन्हें भी वही सब अनुभव करना और सहना था जिसमें होकर संसार के लोग निकलते
हैं; उन्हें किसी भी अन्य मनुष्य के समान जीवन जीना था
(इब्रानियों 4:15; 5:7-8), और अंततः क्रूस की श्रापित मृत्यु
सहन करनी थी। उनके इस मानवीय स्वरूप और अस्तित्व के सन्दर्भ में, मृत्यु सहने के लिए स्वर्गदूतों से कुछ कम किए जाने से, उनका यह शारीरिक या मानवीय स्वरूप उनके त्रिएक परमेश्वरीय स्वरूप से कुछ
“कम” था। इसलिए उनके मानवीय स्वरूप की निंदा
या निरादर का दोष, जिसे उन्हें सहना ही था, परमेश्वर पवित्र आत्मा के निरादर से कुछ कम और भिन्न होता। क्योंकि हमारे
प्रभु को हमारे उद्धार का मार्ग प्रदान करने की अपनी सेवकाई के दौरान अपमान और तिरस्कार
सहना निर्धारित किया गया था, इसलिए उनके (अर्थात उनके
शारीरिक/मानव स्वरूप के) विरुद्ध कही गई, या कही जाने वाली
निंदनीय बातों को क्षमा न हो सकने वाला पाप कहना उनके पृथ्वी पर आने के उद्देश्य
को ही विफल कर देता, और संसार को छुटकारे के स्थान पर नाश
में भेज देता। इसलिए परमेश्वर पुत्र की निंदा को क्षमा न हो सकने वाला पाप नहीं
कहा जा सकता था।
परमेश्वर पिता के संदर्भ में, ध्यान करें कि शब्द
“परमेश्वर” और “पिता”
सभी संस्कृतियों और धर्मों में सामान्यतः प्रयोग किए जाने वाले शब्द
हैं, जिन्हें नास्तिक और धर्म को न मानने वाले भी प्रयोग
करते रहते हैं; बहुधा सौगंध खाने और अपशब्दों के साथ भी,
जैसे कि, “अरे मेरे परमेश्वर/या ख़ुदा”
“परमेश्वर नाश करे,” “परमेश्वर के श्रापित,”
“परमेश्वर की सौगंध” आदि। संसार के किसी भी
व्यक्ति द्वारा इन अपमानजनक या निंदनीय शब्दों का प्रयोग करने का यह अर्थ नहीं है
कि वह इन्हें मसीही विश्वास के पवित्र त्रिएक परमेश्वरत्व में से पिता परमेश्वर के
लिए ही प्रयोग कर रहा है। इसी प्रकार से शब्द “पिता” भी संसार भर में अनेकों अभिप्रायों के साथ प्रयोग किया जाता है, और इसे भी बहुधा अपशब्दों और सौगंध लेने में भी प्रयोग किया जाता है।
इसलिए शब्द “पिता” तथा शब्द “परमेश्वर” का, जिन्हें किसी भी
मत अथवा धर्म में किसी भी आदरणीय अथवा आराध्य के लिए प्रयोग किया जा सकता है,
किसी भी प्रकार से दुरुपयोग करना, यदि उसे
यहोवा परमेश्वर के निरादर की परिभाषा से पृथक नहीं रखा जाता, तो स्वतः ही शब्दों का इस प्रकार से प्रयोग करने वाला व्यक्ति, तुरंत ही सदा काल के लिए दोषी ठहराया जाता, और उसके
पास फिर कभी उद्धार पाने का कोई अवसर नहीं रहता। इसलिए ये दोनों शब्द “पिता” एवं “परमेश्वर” के दुरुपयोग को भी कभी क्षमा न हो सकने वाले पापों में सम्मिलित नहीं किए
जा सकता था।
अब पवित्र त्रिएक परमेश्वरत्व में केवल
परमेश्वर पवित्र आत्मा ही शेष रहा। यहां पर एक बहुत ही महत्वपूर्ण ध्यान देने
योग्य बात यह है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा का विचार केवल मसीही और यहूदी धर्म की
विचारधारा में ही पाया जाता है; संसार के अन्य किसी भी धर्म या विश्वास में यह विद्यमान
नहीं है। क्योंकि पवित्र आत्मा के बारे में पुराने नियम के समय में भी लोगों को
भली-भांति पता था (उदाहरण के लिए, उत्पत्ति 1:2; भजन 104:30; 139:7 आदि) – जो कि वह पवित्र शास्त्र
है जिसे फरीसी, सदूकी, और शास्त्री पढ़ा
करते थे, तथा लोगों को सिखाते भी थे, इसलिए
वे फरीसी, सदूकी, और शास्त्री किसी भी
प्रकार से परमेश्वर पवित्र आत्मा के विषय अनभिज्ञ होने का दावा नहीं कर सकते थे,
और न ही पवित्र आत्मा के त्रिएक परमेश्वर का अभिन्न एवं समतुल्य भाग
होने से अपने आप को अनजान होने को कह सकते थे। इसलिए, परमेश्वर
पिता तथा परमेश्वर पुत्र के विषय में उपरोक्त बातों को ध्यान में रखते हुए,
मूलतः, परमेश्वर पवित्र आत्मा के विरुद्ध कही
गई निरादर की कोई बात ही वास्तविकता में एकमात्र सच्चे परमेश्वर की निंदा मानी जा
सकती है।
पवित्र परमेश्वर के विरुद्ध बात करना
वही पाप है जिसके कारण लूसिफर गिराया गया (यशायाह 14:12-14; यहेजकेल 28:12-15), और शैतान बन गया – सदा काल के लिए परमेश्वर और उससे संबंधित किसी भी बात का विरोधी। लूसिफर ने परमेश्वर की
महिमा और महानता के विरुद्ध बलवा किया और बातें कीं। लूसिफर ने परमेश्वर को उसके
समस्त महिमा, वैभव,
महानता, अधिकार और सामर्थ्य में भली-भाँति
जानने के बावजूद; परमेश्वर के विषय सारी जानकारी रखते हुए भी
जानबूझकर किया गया उसका यह विद्रोह लूसिफर के लिए क्षमा न होने वाला पाप बन गया,
और उसे स्वर्ग से निष्कासित कर दिया गया। वह शैतान बन गया, तथा उसे और उसके अनुयायियों को अनन्तकाल तक दण्ड भोगने के लिए ठहरा दिया गया
(मत्ती 25:41, 46)।
अगले लेख में हम देखेंगे कि लूसिफर का
पाप क्यों क्षमा नहीं हो सकता था; और यह भी समझेंगे कि वचन के अनुसार निन्दा (blasphemy)
शब्द का वास्तव में क्या अर्थ और अभिप्राय होता है।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना
और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं
में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न
ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और
लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत
शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को
जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के
पालन को अपना लें।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- गिनती
23-25
- मरकुस 7:14-37