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रविवार, 17 फ़रवरी 2013

परिवर्तन


   जिन लोगों की heart-bypass अर्थात हृदय की अवरोधित नाड़ियों के खोलने या अवरोध से पार रक्त प्रवाह पुनः स्थापित करने का ऑपरेशन हुआ है उन्हें यह कहा जाता है कि वे अपने जीवन शैली में परिवर्तन लाएं अन्यथा इस ऑपरेशन का कोई विशेष लाभ नहीं होगा और वे शीघ्र ही पुनः मृत्यु के कगार पर आ जाएंगे। ऐसे ऑपरेशन हुए मरीज़ों के अध्ययन से यह बात सामने आई है कि इतने गंभीर और खर्चीले ऑपरेशन तथा उससे संबंधित चेतावनी के बावजूद ९०% मरीज़ अपनी जीवन शैली में कोई परिवर्तन नहीं लाते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि लोग परिवर्तन की बजाए मृत्यु को अधिक पसन्द करते हैं।

   जैसे डॉक्टर स्वस्थ रहने और मृत्यु से अधिक से अधिक समय तक बचे रहने के लिए भौतिक जीवन शैली में परिवर्तन का संदेश देते हैं, उसी प्रकार प्रभु यीशु के लिए मार्ग तैयार करने वाला - यूहन्ना बप्तिस्मादेनेवाला आत्मिक मृत्यु से बचने के लिए मन परिवर्तन या मन फिराव का सन्देश लेकर आया था; उसने कहा, "मन फिराओ; क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है" (मत्ती ३:२)। वह प्रभु यीशु के लिए, उनकी सेवकाई को आरंभ करने के लिए, लोगों को तैयार कर रहा था जिससे वे प्रभु यीशु में पापों की क्षमा तथा उद्धार का सन्देश ग्रहण कर सकें। प्रभु यीशु ने भी अपनी सेवकाई के आरंभ में इसी बात को दोहराया: "यूहन्ना के पकड़वाए जाने के बाद यीशु ने गलील में आकर परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार प्रचार किया। और कहा, समय पूरा हुआ है, और परमेश्वर का राज्य निकट आ गया है; मन फिराओ और सुसमाचार पर विश्वास करो" (मरकुस १:१५)। प्रभु यीशु के स्वर्गारोहण के बाद से प्रभु यीशु के अनुयायियों के प्रचार का आधार भी यही मन-फिराव की अनिवार्यता रही है।

   मन फिराव का अर्थ है परमेश्वर की पवित्रता के सामने अपने मन की भावनाओं और अपने आचरण का विशलेषण करके अपनी जीवन शैली और अपने आचरण को परमेश्वर की इच्छाओं तथा आज्ञाओं के अनुरूप करना। यह व्यक्ति के अन्दर, उसके मन, उसकी आत्मा में परिवर्तन की बात है, उसके बाहरी स्वरूप, बाहरी आचरण अथवा किसी धर्म-परिवर्तन की नहीं। इस मन परिवर्तन के लिए सर्वप्रथम उस व्यक्ति के अन्दर अपने पापों का बोध होना, फिर उनके लिए पश्चातापी होना, तत्पश्चात उन पापों को केवल भले अथवा ’धर्म के कार्यों’ से छिपा या ढांप भर देने अथवा ’भले-बुरे का हिसाब बराबर लेने’ की नहीं वरन उन्हें जीवन से पूर्ण्तया निकाल देने की लालसा होना अनिवार्य है। जब तक मनुष्य के अन्दर उसका पाप-स्वभाव बना रहता है, मनुष्य अपने प्रयासों और कार्यों से अपने अन्दर अपने पाप स्वभाव के प्रति स्थाई तथा सच्चा परिवर्तन नहीं ला पाता। अपनी इच्छा शक्ति और प्रयासों से कुछ परिवर्तन अवश्य संभव हैं किंतु वे ना तो स्थाई होते हैं और ना ही परिपूर्ण, कहीं ना कहीं कोई ना कोई बात रह ही जाती है; और कुछ नहीं तो अन्य लोगों से भला, सिद्ध और धर्मी बन पाने का घमण्ड और अन्य लोगों से इस धार्मिकता के स्तर की पहचान और आदर पाने पाने की भावना ही उस अहम और शेष पाप-स्वभाव की उपस्थिति को दर्शाते रहते हैं। यह स्थाई परिवर्तन मनुष्य के जीवन से पाप स्वभाव के हटाए जाने के बाद ही संभव है, और पाप-स्वभाव को स्वयं अपने प्रयासों से हटा पाना मनुष्य के लिए असंभव है। संसार का इतिहास गवाह है कि किसी भी धर्म, नियम या कानून ने आज तक कभी किसी एक भी जन को पाप से मुक्ति नहीं दी है। प्रत्येक धर्म पाप के सागर में डूबते हुए मनुष्य को तैर कर बाहर आने की विधि तो बताता है किंतु उसे पाप से निकलने के लिए सक्षम नहीं करता। केवल प्रभु यीशु ही है जो पाप-सागर में जाकर मनुष्य को बाहर लेकर आता है और फिर स्वयं उसे शुद्ध करता है: "यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है" (१ युहन्ना १:९)। केवल प्रभु यीशु ही है जिसने कहा कि वह पापियों का उद्धार करने आया है, उन्हें नाश करने नहीं (मत्ती ९:१३)।

   प्रभु यीशु ने समस्त संसार के हर जन के पापों को अपने ऊपर ले लिया और उन पापों का दण्ड क्रूस पर अपने बलिदान द्वारा चुकाया, तथा मृतकों से पुनरुत्थान के द्वारा अपने परमेश्वरत्व को प्रमाणित कर दिया। अब जो कोई स्वेच्छा से प्रभु यीशु से अपने पापों को अंगीकार करके उनकी क्षमा मांगता है और अपना जीवन प्रभु यीशु को समर्पित करता है प्रभु यीशु उसके मन से पाप स्वभाव को हटाकर अपनी धार्मिकता उसे दे देता है - उसका मन पाप से परमेश्वर की ओर परिवर्तित हो जाता है। क्योंकि परमेश्वर ना किसी धर्म विशेष का है और ना ही परमेश्वर का कोई धर्म है, और क्योंकि यह परिवर्तन परमेश्वर के समक्ष और परमेश्वर के प्रति है, इसलिए यह किसी धर्म के निर्वाह अथवा परिवर्तन की नहीं केवल उस मनुष्य और परमेश्वर के बीच की बात है और इसमें किसी अन्य मनुष्य अथवा धर्म का कोई हस्तक्षेप नहीं है। यह ना किसी दबाव, ना किसी भय, ना किसी लालच और ना किसी के प्रभावित किए जाने इत्यादि के द्वारा संभव है - क्योंकि परमेश्वर प्रत्येक मनुष्य की किसी बाहरी बात को नहीं वरन मन की वस्तविक दशा को जाँचता है और उसे कोई धोखा नहीं दे सकता। ना ही यह परिवर्तन किसी रीति-रिवाज़ के पालन अथवा क्रीया-अनुष्ठान के माध्यम से संभव है, क्योंकि परमेश्वर ना तो मनुष्यों के रीति-रिवाज़ों और क्रिया-अनुष्ठानों से बन्धा है और ना ही उनके आधीन है और इन बातों के द्वारा सच्चे और जीवते परमेश्वर को कोई किसी बात के लिए बाध्य नहीं कर सकता। यह प्रत्येक व्यक्ति का पापों से हट कर परमेश्वर के साथ पवित्रता में चलने का स्वेच्छा से लिया गया निर्णय है। इस मन फिराव की सच्चाई एवं सार्थकता बोलने भर से नहीं वरन उस व्यक्ति के जीवन, व्यवहार और विचारों में आए परिवर्तन द्वारा विदित एवं प्रमाणित होती है (मत्ती ३:८)।

   यही सुसमाचार है - पाप-स्वभाव तथा पाप के दासत्व से निकलकर परमेश्वर के साथ पवित्रता का जीवन प्रभु यीशु में संभव है और संसार के सभी लोगों के लिए सेंत-मेंत उपलब्ध है, और इसी मन-फिराव के लिए परमेश्वर आज भी पृथ्वी के समस्त लोगों को सुसमाचार प्रचार द्वारा बुला रहा है - आप को भी। - मार्विन विलियम्स


मन-फिराव का अर्थ पाप से इतनी घृणा करना है कि पाप-स्वभाव से पलट जाने की लालसा जीवन में सर्वोपरी हो जाए।

और यरूशलेम से ले कर सब जातियों में मन फिराव का और पापों की क्षमा का प्रचार, उसी [यीशु] के नाम से किया जाएगा। - लूका २४:४७

बाइबल पाठ: मत्ती ३:१-१२
Matthew 3:1 उन दिनों में यूहन्ना बपतिस्मा देनेवाला आकर यहूदिया के जंगल में यह प्रचार करने लगा। कि
Matthew 3:2 मन फिराओ; क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आ गया है।
Matthew 3:3 यह वही है जिस की चर्चा यशायाह भविष्यद्वक्ता के द्वारा की गई कि जंगल में एक पुकारने वाले का शब्द हो रहा है, कि प्रभु का मार्ग तैयार करो, उस की सड़कें सीधी करो।
Matthew 3:4 यह यूहन्ना ऊंट के रोम का वस्‍त्र पहिने था, और अपनी कमर में चमड़े का पटुका बान्‍धे हुए था, और उसका भोजन टिड्डियां और बनमधु था।
Matthew 3:5 तब यरूशलेम के और सारे यहूदिया के, और यरदन के आस पास के सारे देश के लोग उसके पास निकल आए।
Matthew 3:6 और अपने अपने पापों को मानकर यरदन नदी में उस से बपतिस्मा लिया।
Matthew 3:7 जब उसने बहुतेरे फरीसियों और सदूकियों को बपतिस्मा के लिये अपने पास आते देखा, तो उन से कहा, कि हे सांप के बच्‍चों तुम्हें किस ने जता दिया, कि आने वाले क्रोध से भागो?
Matthew 3:8 सो मन फिराव के योग्य फल लाओ।
Matthew 3:9 और अपने अपने मन में यह न सोचो, कि हमारा पिता इब्राहीम है; क्योंकि मैं तुम से कहता हूं, कि परमेश्वर इन पत्थरों से इब्राहीम के लिये सन्तान उत्पन्न कर सकता है।
Matthew 3:10 और अब कुल्हाड़ा पेड़ों की जड़ पर रखा हुआ है, इसलिये जो जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में झोंका जाता है।
Matthew 3:11 मैं तो पानी से तुम्हें मन फिराव का बपतिस्मा देता हूं, परन्तु जो मेरे बाद आने वाला है, वह मुझ से शक्तिशाली है; मैं उस की जूती उठाने के योग्य नहीं, वह तुम्हें पवित्र आत्मा और आग से बपतिस्मा देगा।
Matthew 3:12 उसका सूप उस के हाथ में है, और वह अपना खलिहान अच्छी रीति से साफ करेगा, और अपने गेहूं को तो खत्ते में इकट्ठा करेगा, परन्तु भूसी को उस आग में जलाएगा जो बुझने की नहीं।

एक साल में बाइबल: 
  • लैव्यवस्था २१-२२ 
  • मत्ती २८