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निर्गमन 12:8-10 (5) - प्रभु की मेज़ - परमेश्वर के लोगों के छुटकारे का स्मरण
प्रभु की मेज़, या प्रभु भोज, जिसे प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों के साथ फसह के पर्व को मनाते हुए, फसह की सामग्री के द्वारा स्थापित किया था, पर हमारे ज़ारी अध्ययन में हम निर्गमन 12 में दिए गए फसह से संबंधित परमेश्वर के निर्देशों का उपयोग करते हुए प्रभु की मेज़ से संबंधित तथ्यों को सीखते और समझते आ रहे हैं, क्योंकि फसह प्रभु भोज का प्ररूप है। अब क्योंकि लोग परमेश्वर के वचन का अध्ययन करने और सीखने के प्रति बेपरवाह हो गए हैं, और उन्हें जो भी पुल्पिट से बता और सिखा दिया जाता है, बिना पहले परमेश्वर के वचन बाइबल से उसे परखे और उसकी पुष्टि करे, उसे स्वीकार करने और पालन करने वाले बन गए हैं, इसलिए शैतान भी अपनी गलत शिक्षाओं, झूठे सिद्धांतों, और बाइबल की शिक्षाओं से संबंधित उसकी शैतानी, भ्रष्ट व्याख्याओं को लोगों तथा कलीसियाओं में घुसाने पाया है। क्योंकि शायद ही कोई होता है जो उसकी युक्तियों को परमेश्वर के वचन से परखता है और उसकी गलत बातों को चुनौती देता है, इसलिए उसकी गलत शिक्षाएं और अनुचित व्याख्याएँ ईसाई या मसीही समाज में इतनी गहराई से बैठ गई हैं कि लोग अब परमेश्वर के वचन की खरी शिक्षाओं पर संदेह करने लगे हैं, किन्तु शैतान के धोखे को स्वीकार करने और मानने में संतुष्ट और प्रसन्न रहते हैं। इसी प्रकार से शैतान ने प्रभु भोज को भी बिगाड़ दिया है, और लोगों को भरमा दिया है जिससे वे यह मानने लगे हैं कि किसी भी रीति से, जैसे भी उनके समुदायों और डिनॉमिनेशन में वह मनाया जाता है, उसे मना लेने से वे धर्मी, परमेश्वर को स्वीकार्य, और स्वर्ग में प्रवेश करने के लिए योग्य हो जाते हैं - जो बाइबल के बिल्कुल विपरीत ऐसी बात है, जिसने बहुतेरों को अनंत विनाश के मार्ग पर डाल दिया है। इसका केवल एक ही समाधान है कि लोग परमेश्वर के वचन का अध्ययन आरंभ करें, प्रत्येक बात को पहले बाइबल से सत्यापित करें तब ही स्वीकार करें, और परमेश्वर तथा उसके वचन के आज्ञाकारी बनें, न कि मनुष्यों के; अर्थात, मनुष्यों को नहीं किन्तु परमेश्वर को प्रसन्न करने वाले बनें, चाहे कोई भी कीमत चुकानी पड़े।
पिछले चार लेखों से हम निर्गमन 12:8-10 से वहाँ दिए गए विभिन्न प्रतीकों और चिह्नों, तथा प्रभु यीशु के विषय उनके प्रयोग के द्वारा प्रभु की मेज़ के अर्थ, महत्व, और उसमें भाग लेने के बारे में समझते और सीखते आ रहे हैं। पिछले लेख में हमने देखा था कि मेज़ में भाग लेते समय “प्रभु के दुखों को याद करने” का वास्तविक अभिप्राय क्या है, और किस प्रकार से शैतान ने उसे एक व्यर्थ, महत्वहीन परंपरा बना दिया है, जिसमें लोग एक औपचारिकता निभाने के लिए भाग लेते रहते हैं, और फिर भी यही समझते तथा मानते हैं कि वे सही कर रहे हैं, परमेश्वर की दृष्टि में सही हैं। आज भी हम इसी भाग, निर्गमन 12:8-10 से इससे आगे की बातों को देखेंगे और अपने विषय के बारे में और सीखेंगे।
निर्गमन 12:9-10 में लिखा है कि संपूर्ण मेमने को आग पर पकाया और फिर खाया जाना था; और प्रातः होने तक यदि कुछ रह भी जाए तो उसे जला देना था। हम पिछले लेख में सीधे आग पर पकाने के अर्थ और तात्पर्य को देख चुके हैं। आज हम संपूर्ण मेमने के पकाए जाने और प्रातः होने पर उसके शेष बचे भाग को जला देने के बारे में देखेंगे। उस समय पर इस्राएलियों को यह नहीं पता था कि मिस्र को छोड़कर निकल जाने की पुकार कब आ जाएगी, लेकिन उन्हें जब भी जाना पड़ता, जाने से पहले उन्हें शेष बचे हुए मेमने को जला देना था।
हमने पिछले लेख में देखा था कि समस्त मानवजाति के सारे पापों को अपने ऊपर लेकर उनका प्रायश्चित करने के लिए, प्रभु यीशु को परमेश्वर ने पाप ठहरा दिया (2 कुरिन्थियों 5:21), अर्थात साकार पाप - अपनी संपूर्णता में, अन्दर-बाहर, प्रभु यीशु पाप ठहराया गया था। उसका साकार पाप होना, बलि के मेमने को उसकी संपूर्णता में आग पर पकाए जाने का एक कारण था। क्योंकि समस्त मानवजाति के सभी पापों को अपने ऊपर ले लेने के कारण यीशु संपूर्णता में पाप ठहराया दिया गया, इसीलिए उसके शरीर के प्रत्येक भाग को परमेश्वर के प्रकोप की ज्वाला को सहना था। संपूर्ण मेमने का आग पर पकाया जाना परमेश्वर के मेमने को अपनी संपूर्णता में मानव-जाति के पापों के प्रायश्चित के लिये, परमेश्वर के प्रकोप की अग्नि को सहने का प्रतीक था। पाप के प्रति परमेश्वर के प्रकोप को उसके हर अंग पर आना था।
इसका एक और कारण यह भी था कि बलि के मेमने को आग पर लाने से पहले काट कर उसके कुछ भागों को अलग करके फेंका और फिर शेष बचे भागों को आग पर नहीं ले जाया जा सकता था, क्योंकि इससे यह तात्पर्य निकलता कि परमेश्वर के मेमने में कुछ अपूर्णताएं थीं, उसके कुछ भाग अनुपयोगी और व्यर्थ थे, वह पूर्णतः सिद्ध नहीं था। किन्तु प्रभु यीशु सिर से पाँव तक, अन्दर-बाहर, हर रीति से सिद्ध था। इब्रानियों 10:5 “इसी कारण वह जगत में आते समय कहता है, कि बलिदान और भेंट तू ने न चाही, पर मेरे लिये एक देह तैयार किया” पर ध्यान कीजिए, प्रभु यीशु मरियम के गर्भ में मनुष्यों की सामान्य रीति से नहीं आए थे। परमेश्वर ने उनके लिए एक देह तैयार की थी और उसे मरियम के गर्भ में रखा, जिसमें होकर वे किसी भी अन्य सामान्य मानव-शिशु के समान विकसित हुए, हर शिशु, सामान्य रीति से जन्म लेते समय जिन बातों को सहन करता है प्रभु ने भी उन्हें सहा और जन्म लिया, और फिर बड़े हुए। सो, इस प्रकार से सिद्ध परमेश्वर के लिए उनके मानव देह भी पूर्णतः सिद्ध और बिना किसी विकार अथवा त्रुटि की थी। उनके किसी भी भाग को अपूर्ण अथवा अनुपयोगी कहकर फेंका नहीं जा सकता था।
जैसा हम पहले देख चुके हैं, इस्राएलियों की मिस्र की बंधुवाई परमेश्वर के लोगों की पाप की बंधुवाई का प्रतीक है; और उनका मिस्र से छुड़ाया जाना परमेश्वर के लोगों का पाप और शैतान के चंगुल से छुड़ाए जाने का प्रतीक है। इस्राएलियों के लिए उनका फसह का मेमना उनके छुटकारे के कर्ता का सदृश्य रूप था, जिसके लहू के द्वारा इस्राएली मृत्यु से बचाए गए; मृत्यु का दूत उनके घरों पर लगे लहू को देख कर उन्हें लांघ गया, और मिस्र के शेष सभी घरों के पहलौठे मार डाले गए; और उसकी देह को खाने के द्वारा उनके लिए प्रावधान हुआ कि वे मिस्र से निकलकर एक सुरक्षित दूरी तक जाने की सामर्थ्य प्राप्त कर सके, जहां जाकर छावनी डालें और अपने आप को आगे की यात्रा के लिए तैयार करें। इस छुटकारे के प्रतीक का कोई भी भाग पीछे नहीं छोड़ा जा सकता था, कहीं ऐसा न हो कि अपनी घोर ताड़ना से खिसियाए हुए मिस्री, छुटकारे के इस प्रतीक को अपवित्र तथा अपमानित करें। इस्राएली इस बात से अनभिज्ञ थे कि परमेश्वर की योजना में वह मेमना परमेश्वर के पुत्र, संसार के पापों के प्रायश्चित के लिए परमेश्वर के बलि के मेमने का प्रतीक है, और उसे किसी भी रीति से शैतानी शक्तियों और उद्धार न पाए हुए पापी मनुष्यों, जिन्होंने परमेश्वर के पुत्र की बजाए शैतानी शक्तियों के साथ जाने का निर्णय लिया है, के द्वारा अपवित्र तथा अपमानित किए जाने के लिए पीछे नहीं छोड़ा जा सकता है।
प्रातः, रात्रि के अंत की सूचक है; तथा रात्रि और अंधकार पाप और शैतानी शक्तियों के प्रतीक हैं; और प्रभु यीशु मसीह परमेश्वर का वचन है जो देह-धारी हुई और हमारे मध्य डेरा किया (यूहन्ना 1:1, 14)। जब नया जन्म पाए हुए परमेश्वर के संतान, कोई नामधारी, डिनॉमिनेशन की परंपराओं और रीतियों के अनुसार चलने वाले ईसाई या मसीही नहीं, इस पापमय संसार से छुड़ाए जाएंगे, अर्थात, उनका स्वर्गारोहण होगा, तब मसीह-विरोधियों के द्वारा अपवित्र और अपमानित किए जाने के लिए कुछ भी शेष नहीं होगा। परमेश्वर का वचन उठा लिया जाएगा (आमोस 8:11; 2 थिस्सलुनीकियों 2:7); लोग परमेश्वर के वचन को खोजेंगे, किन्तु उन्हें नहीं मिलेगा; और ठीक भी है, क्योंकि जब वह उन्हें उपलब्ध था, उनके हाथों में था, तब उन्होंने उसकी कोई परवाह नहीं की, उसका आदर नहीं किया। प्रभु भोज लोगों को यह स्मरण कराता है कि परमेश्वर के लोगों के छुटकारे का समय निकट है। वह उन्हें अपने आप को जाँचने और औपचारिकता, परंपराओं, और डिनॉमिनेशन की “मसीहियत” से निकलने, जिसके कारण वे अनंत विनाश के मार्ग में हैं और अग्रसर हैं, का अवसर देता है; ताकि वे परमेश्वर के साथ अपने जीवन को सही कर सकें, उसके वचन को आदर देते हुए उसका अध्ययन करें और हर कीमत पर उसका पालन करें, इससे पहले कि बहुत देर हो जाए और उनके लिए परिस्थिति अपरिवर्तनीय हो जाए।
ये सभी बातें स्पष्ट दिखाती हैं कि प्रभु भोज में भाग लेना उनके लिए नहीं है जो इसे एक धार्मिक रीति या औपचारिकता के समान लेते हैं, किन्तु उनके लिए है जिन्होंने स्वेच्छा से प्रभु के योग्य जीवन बिताने उसकी आज्ञाकारिता में चलने का निर्णय लिया है, और इसके लिए कीमत चुकाने के लिए भी तैयार है। अगले लेख में हम निर्गमन 12 में से यहीं से आगे देखेंगे। यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, और प्रभु की मेज़ में भाग लेते रहे हैं, तो कृपया अपने जीवन को जाँच कर देख लें कि आप वास्तव में पापों से छुड़ाए गए हैं कि नहीं? क्या आप ने अपना जीवन प्रभु की आज्ञाकारिता में जीने के लिए उस को समर्पित किया है कि नहीं? तथा क्या आप प्रभु में एक नई सृष्टि बन गए हैं कि नहीं? क्या आप कलीसिया में विभाजनों और गुटों में बांटने में नहीं किन्तु एकता के साथ रहने में प्रयासरत रहते हैं कि नहीं? तथा क्या आप प्रभु की मेज़ में उसी प्रकार से भाग ले रहे हैं जैसे परमेश्वर ने निर्देश दिये हैं, प्रभु के प्रति पूर्ण समर्पण और प्रतिबद्धता के साथ, बड़ी गंभीरता से मेज़ के महत्व पर मनन करते हुए; या फिर आप किसी डिनॉमिनेशन की परंपरा अथवा किसी के मनमाने विचारों के अनुसार भाग ले रहे हैं? अपने आप को जांच कर देखें कि क्या आप प्रभु के सामने खड़े होकर अपने जीवन का हिसाब देने के लिए तैयार हैं कि नहीं? आपके लिए यह अनिवार्य है कि आप परमेश्वर के वचन की सही शिक्षाओं को जानने के द्वारा एक परिपक्व विश्वासी बनें, तथा निरंतर परिपक्वता में बढ़ते जाएं। साथ ही सभी शिक्षाओं को वचन की कसौटी पर परखने, और बेरिया के विश्वासियों के समान, लोगों की बातों को पहले वचन से जाँचने और उनकी सत्यता को निश्चित करने के बाद ही उनको स्वीकार करने और मानने वाले बनें (प्रेरितों 17:11; 1 थिस्सलुनीकियों 5:21)। अन्यथा शैतान द्वारा छोड़े हुए झूठे प्रेरित और भविष्यद्वक्ता मसीह के सेवक बन कर (2 कुरिन्थियों 11:13-15) अपनी ठग विद्या और चतुराई से आपको प्रभु के लिए अप्रभावी कर देंगे और आप के मसीही जीवन एवं आशीषों का नाश कर देंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
होशे 5-8
प्रकाशितवाक्य 2
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Exodus 12:8-10 (5) - The Lord’s Table - A Reminder of the Deliverance of God’s People
In our ongoing study of the Lord’s Table, or, the Holy Communion, which was established by the Lord Jesus, while observing the Passover with His disciples, using the elements of the Passover, we are using God’s instructions about the Passover, the antecedent of the Holy Communion, given in Exodus 12, to understand and learn the Biblical truths about the Lord’s Table. Since people have become disinterested in studying and learning God’s Word, and are content with accepting everything told and taught to them from the pulpit, and following it, without first verifying it from God’s Word the Bible, Satan has been able to infiltrate many wrong teachings, false doctrines, and his devious, corrupt interpretations of God’s Word amongst the people and the Church. Since hardly anyone bothers to cross-check his ploys through God’s Word, and challenge him for the false things he says, therefore his misinterpretations and false teachings have become so firmly entrenched in Christendom, that people now doubt the true teachings from God’s Word, but are comfortable to accept Satan’s deceptions and follow them. Satan has similarly corrupted the Holy Communion as well, and has made people think that by participating in it in any manner, as practiced in their sects and denominations, they become righteous, acceptable to God, and worthy of being admitted to heaven - a totally unBiblical belief, which has put many onto the path of eternal destruction. The only way to rectify is to study God’s Word, verify everything from the Bible before accepting it, become obedient to God and His Word, not man; i.e., strive to be and live as a God-pleaser, not as men-pleasers, at any cost.
For the past four articles we have been studying the various symbolisms given in Exodus 12:8-10, and their application to the Lord Jesus, and how it helps us understand about the meaning, significance, and participation in the Lord’s Table. In the previous article we saw what it means to “remember the Lord’s sufferings” while partaking of the Table, and how Satan has taken away the very heart of the remembrance and turned it into a vain, inconsequential ritual, in which people participate perfunctorily, and yet believe that they are doing the right thing, are okay with God. We will carry on from here, and using the same portion, Exodus 12:8-10, learn further about the subject.
It says in Exodus 12:9-10, that the whole of the sacrificial lamb was to be roasted on fire, and eaten; and anything that remained by morning was to be burnt up. We have seen the significance and implication of directly roasting on the fire in the previous article. Today we will see about the whole lamb being used, and its remaining portion being burnt by morning. At that time the Israelites did not know, when the call to leave Egypt will come, but before they left, they had to burn up the remining portion of the sacrificial lamb.
We saw in the previous article that in taking all the sins of entire mankind upon Himself and atoning for them, Jesus was made sin by God (2 Corinthians 5:21), i.e., sin personified - all of Him, inside-out was made sin. His becoming sin personified was one reason that the whole of the Passover sacrificial lamb had to be roasted on fire; since, in taking the sins of all of mankind upon Himself, the whole of the Lord Jesus became sin, and therefore every part of Him had to endure the fire of God’s wrath. The roasting of the entire lamb signified that the whole of God’s sacrificial Lamb, for atoning the sin of mankind, had to suffer the heat of God’s wrath upon sin. Every part of Him had to bear the heat of God’s wrath for sin.
Another reason that the lamb could not be cut and certain parts discarded before being put on fire, while the rest were roasted on fire was that this would have implied that God’s sacrificial Lamb too had some imperfections, some discardable or unnecessary parts, that could be removed and thrown away. Lord Jesus, His whole self, head to toe, inside out, was perfect in every manner. Consider Hebrews 10:5, “Therefore, when He came into the world, He said: "Sacrifice and offering You did not desire, But a body You have prepared for Me.” The Lord Jesus was not conceived in Mary’s womb in the natural manner of mankind. God prepared a body for Him and placed it within Mary’s womb to grow and be born as just any other baby and suffer the same things that every baby suffers in its natural birth and then growing up. So, in essence, His was a perfect body, for the perfect God; absolutely sinless and flawless in every conceivable aspect. No part of His body could be called imperfect or unnecessary, and discarded.
As we have seen earlier, the Egyptian bondage of the Israelites is indicative of the bondage of God’s people to sin; and their deliverance from Egypt, as representative of deliverance from sin and Satan. To the Israelites, this Passover lamb was the visible form of the agent of their deliverance, through whose blood the Israelites were “passed over”, or, escaped being killed by the Angel of death going through the land of Egypt and killing the firstborns in all the houses where the sign of the blood was not found; and their eating of it’s body gave them the sustenance for strength to move out of Egypt, till a safe distance, to set up camp and prepare themselves for the journey ahead to the Promised Land. No part of this symbol of deliverance could be left behind, lest it be desecrated by the Egyptians smarting under the terrible impact of God’s retribution on them. The Israelites were not aware that in God’s plan of things, it was the symbolic representation of the Son of God, the Sacrificial Lamb of God for atoning the sins of mankind, and could not be left behind to be desecrated by the satanic forces and the unredeemed, sinful mankind who have chosen to follow Satan, instead of the Son of God.
Morning signifies the end of the night; night and darkness are symbols of sin and satanic forces; and the Lord Jesus Christ, is the Word of God that became flesh and dwelt amongst us (John 1:1, 14). When the Born-Again children of God, the actual Christian Believers, not the nominal, denominational, ritualistic “christians”, are delivered from this world of sin, i.e., are raptured, there will be nothing left in this world for the anti-Christ to desecrate. The Word of God will be taken away (Amos 8:11; 2 Thessalonians 2:7); people will search for God’s Word but will not find it; rightly so, since they never bothered to honour, study, and obey it while it was in their hands. The Holy Communion reminds people that the time of deliverance for God’s people is at hand. It gives people the opportunity to examine their lives, step out of the perfunctory, ritualistic, denominational “christianity”, move away from the way of eternal destruction that they are living and traversing upon, and set things right with God, honor, study, and obey His Word at any cost, before it is too late and the situation turns irretrievable for them.
All these things show that participating in the Holy Communion is not for those who take it as a religious ritual or formality to be carried out perfunctorily, but is for those who willingly have chosen to live worthy of the Lord, in obedience to His Word, and are willing to pay the price for doing so. In the next article we will carry on from here and see more from these verse, Exodus 12:8-10. If you are a Christian Believer, and have been participating in the Lord’s Table, then please examine your life and make sure that you are actually redeemed from your sins, have submitted and surrendered your life to the Lord Jesus to live in obedience to Him and His Word, are a new creation for the Lord. That you strive for unity, not divisions and factionalism in the Church, and have been participating as the Lord has instructed to be done, participating with full allegiance to the Lord, in all seriousness, and pondering over its significance; instead of doing it in any presumptive manner, or simply as a denominational ritual; and are ready and prepared to stand before the Lord and answer for your life. It is also necessary for you to be spiritually mature, learn the right teachings of God’s Word. You should also always, like the Berean Believers first check and test all teachings you receive from the Word of God, and only after ascertaining the truth and veracity of the teachings brought to you by men, should you accept and obey them (Acts 17:11; 1 Thessalonians 5:21). If you do not do this, the false apostles and prophets sent by Satan as ministers of Christ (2 Corinthians 11:13-15), will by their trickery, cunningness, and craftiness render you ineffective for the Lord and cause severe damage to your Christian life and your rewards.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord Jesus, then to ensure your eternal life and heavenly rewards, take a decision in favor of the Lord Jesus now. Wherever there is surrender and obedience towards the Lord Jesus, the Lord’s blessings and safety are also there. If you are still not Born Again, have not obtained salvation, or have not asked the Lord Jesus for forgiveness for your sins, then you have the opportunity to do so right now. A short prayer said voluntarily with a sincere heart, with heartfelt repentance for your sins, and a fully submissive attitude, “Lord Jesus, I confess that I have disobeyed You, and have knowingly or unknowingly, in mind, in thought, in attitude, and in deeds, committed sins. I believe that you have fully borne the punishment of my sins by your sacrifice on the cross, and have paid the full price of those sins for all eternity. Please forgive my sins, change my heart and mind towards you, and make me your disciple, take me with you." God longs for your company and wants to see you blessed, but to make this possible, is your personal decision. Will you not say this prayer now, while you have the time and opportunity to do so - the decision is yours.
Through the Bible in a Year:
Hosea 5-8
Revelation 2