ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शनिवार, 6 अक्टूबर 2012

यात्रा


   अपनी पुस्तक The First Man में लेखक जेम्स हैन्सन ने चन्द्रमा पर उतरने वाले प्रथम मनुष्य नील आर्मस्ट्रौंग की इस चन्द्रमा यात्रा का विवरण लिखा है। लेखक बताता है कि इस यात्रा के अन्त में प्रत्येक अन्तरिक्ष यात्री को अपनी यात्रा के बारे में एक विवरण भरकर देना था। इस विवरण में उनकी यात्रा के आरंभ स्थान टैक्सस स्थित ह्युस्टन से फ्लोरिडा स्थित केप कैनावरल जाना, फिर अंत्रिक्ष यान द्वारा चन्द्रमा तक, और वहां से वापसी करके प्रशांत महासागर में उतरना; फिर हवाए द्वीप समूह ले जाया जाना और अन्त में लौट कर फिर टैक्सस स्थित ह्युस्टन वापस पहुँचने का सारा ब्यौरा लिखा गया था। यह विवरण उस एतिहासिक यात्रा और उससे संबंधित गन्तव्य स्थानों की कैसी अद्भुत सूची है!

   मानव इतिहास में एक और यात्रा का विवरण दर्ज है; ऐसी यात्रा जो अन्य सभी यात्राओं से बिलकुल भिन्न और जिसका उद्देश्य अद्भुत है। यह यात्रा है जगत के उद्धारकर्ता प्रभु यीशु की यात्रा, जो स्वर्ग से आरंभ हुई, जिसका पहला गन्तव्य स्थान इस्त्राएल के बेतलेहम की एक गौशाला में स्थित चरनी और यात्रा का माध्यम कुँवारी कन्या से जन्म था; फिर वहां से, दुश्मनों से बचने के लिए, मिस्त्र देश को प्लायन हुआ। फिर मिस्त्र से लौटकर इस्त्राएल के छोटे से कस्बे नाज़रथ में बढ़ई बनकर रहना, लगभग ३० वर्ष की आयु में परमेश्वरीय सेवाकाई का आरंभ और इसके लिए इस्त्राएल के इलाकों में परमेश्वर के राज्य और उद्धार के सुसमाचार का प्रचार और लोगों को चंगा करते हुए पैदल घूमना। लगभग साढ़े तीन साल की सेवकाई के बाद झूठे इलज़ाम में फंसाया जाना, कलवरी के क्रूस पर बलिदान होना, तीन दिन कब्र में दफन रहकर तीसरे दिन मृतकों से जी उठना, ४० दिन तक लोगों और चेलों के समक्ष रहना और उनके देखते हुए वापस स्वर्ग पर उठा लिया जाना और पिता परमेश्वर के दाहिने हाथ जा बैठना। इस यात्रा का उद्देश्य: समस्त मानव जाति को पापों से क्षमा और उद्धार का मार्ग देना।

   परमेश्वर के वचन बाइबल में फिलिप्पियों को लिखी पौलुस प्रेरित की पत्री में समस्त संसार को उद्धार का मार्ग प्रदान करने वाली इस यात्रा से संबंधित बातें लिखी मिलती हैं। एक बाइबल टीकाकार ने इस खंड को आराधना और स्तुति का गीत कहा है जो उस दुख उठाने वाले आज्ञाकारी सेवक की प्रशंसा में लिखा गया जिसने अपनी स्वर्ग की महिमा छोड़ी और इस संसार में आ गया कि समस्त मानव जाति के लिए दुख उठाए और उन्हें पापों से मुक्ति का मार्ग दे। परमेश्वर द्वारा निर्धारित इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए वह क्रूस की अपमानित तथा अति पीड़ादायक मृत्यु सहने तक आज्ञाकारी रहा। इस कारण परमेश्वर ने भी उसे सर्वोच्च कर दिया।

   हमारे उद्धारकर्ता की इस अद्भुत यात्रा और इस यात्रा के विवरण से हमारे मन उसके प्रति श्रद्धा, आदर और भक्ति के साथ समर्पण, आराधना और धन्यवाद से भर जाने चाहिएं। - डेनिस फिशर


परमेश्वर ने अन्तता से मानव इतिहास की सीमाओं में प्रवेश किया जिस से कि मनुष्यों को उन सीमाओं से निकल कर उसके साथ अन्तता में स्थान मिल सके।

जैसा मसीह यीशु का स्‍वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्‍वभाव हो। - फिलिप्पियों २:५

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों २:१-११
Php 2:1  सो यदि मसीह में कुछ शान्‍ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करूणा और दया है। 
Php 2:2  तो मेरा यह आनन्‍द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो। 
Php 2:3  विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्‍छा समझो। 
Php 2:4  हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्‍ता करे। 
Php 2:5  जैसा मसीह यीशु का स्‍वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्‍वभाव हो। 
Php 2:6  जिस ने परमेश्वर के स्‍वरूप में होकर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्‍तु न समझा। 
Php 2:7  वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्‍वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया। 
Php 2:8   और मनुष्य के रूप में प्रगट होकर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली। 
Php 2:9  इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्‍ठ है। 
Php 2:10 कि जो स्‍वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे हैं वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें। 
Php 2:11  और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।

एक साल में बाइबल: 
  • यशायाह २६-२७ 
  • फिलिप्पियों २