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सोमवार, 7 फ़रवरी 2022

प्रभु यीशु की कलीसिया के कार्यकर्ता और उनकी सेवकाई (6)

 

उपदेशक / शिक्षक


पिछले कुछ लेखों में हम इफिसियों 4:11 से देखते आ रहे हैं कि प्रभु ने अपनी कलीसिया के कार्यों के लिए, कलीसिया में कुछ कार्यकर्ताओं, कुछ सेवकों को नियुक्त किया है। मूल यूनानी भाषा में इन सेवकों और उनकी सेवकाई के संबंध में प्रयोग किए गए शब्द दिखाते हैं कि ये सेवकाइयां कलीसिया में परमेश्वर के वचन की सेवकाई से संबंधित हैं। आज हम इफिसियों 4:11 में दी गई सूची में प्रभु यीशु द्वारा नियुक्त किए जाने वाले, प्रभु यीशु की कलीसिया के पाँचवें कार्यकर्ता, उपदेशक, के बारे में देखेंगे। मूल यूनानी भाषा के जिस शब्द का अनुवाद “उपदेशक” किया गया है, उसका शब्दार्थ है “शिक्षक” या “वचन की शिक्षा देने वाले”। परमेश्वर के वचन बाइबल की बातों और शिक्षाओं का प्रचार करने में, और उनके आधार पर कोई संदेश देने में, और वचन को सिखाने में अंतर है; प्रचार करना और शिक्षा देना भिन्न सेवकाइयां हैं, जैसा 1 कुरिन्थियों 12:28-29 से भी पता चलता है। प्रभु यीशु की पृथ्वी की सेवकाई के दिनों में यहूदी धर्म के अगुवे उन्हें परमेश्वर की ओर से भेजा गया एक शिक्षक मानते थे (यूहन्ना 3:2); अनन्त जीवन पाने की लालसा रखने वाले धनी जवान ने भी प्रभु को “उत्तम गुरु/शिक्षक” कहकर संबोधित किया (मरकुस 10:17); और सुसमाचारों में अनेकों स्थानों पर लोग, विशेषकर यहूदी अगुवे प्रभु को “रब्बी”, जिसका अर्थ होता है शिक्षक, कहकर संबोधित किया करते थे। प्रभु यीशु के लिए यह संबोधन उचित और सही भी था, क्योंकि प्रभु लोगों को सिखाता था (मत्ती 13:54; मरकुस 1:21; 2:13), परमेश्वर के राज्य की बातें भी बता था, और साथ ही सुसमाचार भी सुनाता था (मरकुस 1:15; लूका 4:43; लूका 8:1; लूका 20:1), और लोगों को जगत के अंत तक की भविष्यवाणी की बातें भी बताईं और सिखाईं।  


हमें इन सेवकाइयों के संदर्भ में एक और तथ्य का भी ध्यान रखना है; यद्यपि इफिसियों 4:11 में पाँच प्रकार के सेवक और सेवकाइयां दी गई हैं, किन्तु यह आवश्यक नहीं कि अलग-अलग व्यक्ति ही कलीसिया में इन अलग-अलग सेवकाइयों को करें। प्रभु यीशु के समान ही, एक ही व्यक्ति, भिन्न समयों पर, आवश्यकतानुसार, इन भिन्न सेवकाइयों का निर्वाह कर सकता था, और करता भी था, जैसा हमने ऊपर प्रभु यीशु के जीवन से देखा है। पौलुस ने लिखा, कि वह भिन्न सेवकाइयों को करता था: “मैं सच कहता हूं, झूठ नहीं बोलता, कि मैं इसी उद्देश्य से प्रचारक और प्रेरित और अन्यजातियों के लिये विश्वास और सत्य का उपदेशक ठहराया गया” (1 तीमुथियुस 2:7); “जिस के लिये मैं प्रचारक, और प्रेरित, और उपदेशक भी ठहरा” (2 तीमुथियुस 1:11)। याकूब ने, पतरस ने, यूहन्ना ने, नए नियम के सभी लेखकों ने, अपनी रचनाओं में सुसमाचार प्रचार भी किया, शिक्षाएं भी दीं, और भविष्य के समय से संबंधित भविष्यवाणियाँ भी लिखीं, तथा कलीसियाओं की अगुवाई भी की और उन के द्वारा हम कलीसिया के लोगों की देखभाल और रखवाली के बारे में भी देखते हैं। अर्थात, एक ही व्यक्ति एक या अधिक प्रकार की सेवकाइयां कर सकता है; सेवक की कार्य के लिए नियुक्ति नहीं, अपितु, कलीसिया में इन पाँचों प्रकार की सेवकाइयों का किया जाना, वचन की इन बातों का निर्वाह होना ही कलीसिया और मसीही जीवन की उन्नति के लिए आवश्यक है। 


 यह रोचक बात है कि इस पद में प्रभु यीशु द्वारा की गई सेवकाइयों में से उन सेवकाइयों के लिए जिन से अपने आप को प्रमुख, या महत्वपूर्ण, या विशिष्ट दिखाया जा सके, जैसे कि प्रेरित, भविष्यद्वक्ता और भविष्यवाणी करना, वर्तमान में उनके लिए तो सामान्यतः लोग बहुत लालसा रखते हैं, उन्हें उपाधियों के समान प्रयोग करते हैं। किन्तु आज अपने आप ही या मनुष्यों और संस्थाओं द्वारा कलीसियाओं में उच्च पद और आदरणीय स्थानों पर आसीन होने की लालसा रखने वाले और उससे सांसारिक लाभ अर्जित करने वाले इन लोगों में सुसमाचार प्रचारक और शिक्षक होने के लिए सामान्यतः कोई रुचि नहीं होती है। आज शायद ही कोई ऐसा जन मिलेगा जो अपने आप को सुसमाचार प्रचारक या वचन का शिक्षक कहता हो। ऐसा संभवतः इसलिए है क्योंकि इन सेवकाइयों के सच्चाई और खराई से निर्वाह के लिए परमेश्वर के साथ बैठना और बहुत समय बिताना पड़ता है, लोगों के मध्य बड़े धैर्य के साथ परिश्रम करना पड़ता है, किन्तु तब भी इन से समाज में वह प्रशंसा और आदर का स्थान नहीं मिलता है जो प्रेरित और भविष्यद्वक्ता कहलाने से मिलता है। वरन, बहुधा यह भी देखा जाता है कि सामान्य लोगों को उनकी पापी होने की दशा का बोध होना, उनकी अपनी धारणाओं के स्थान पर परमेश्वर के वचन की वास्तविकता और उसकी खरी बातें सुनना रास नहीं आता है, इसलिए इन सेवकाइयों को करने वालों को संसार तथा समाज में आदर, ओहदा, और उच्च स्थान तो कम ही मिलते हैं, किन्तु तिरस्कार और विरोध अधिक मिलता है। संभवतः इसीलिए आज के मसीही विश्वासियों में इन सेवकाइयों के लिए चाह बहुत कम है। 


प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को सचेत किया कि लोग खरे उपदेश और शिक्षा के स्थान पर अपनी पसंद के लुभावने उपदेश और शिक्षा देने वालों को एकत्रित कर लेंगे। ऐसे में उसे सुसमाचार प्रचार करने के लिए, लोगों को वचन की सही शिक्षा देने के लिए बहुत परिश्रम करना पड़ेगा, साथ ही दुख भी उठाना पड़ेगा (2 तिमुथियुस 4:1-5)। पतरस ने भी अपने पाठकों को चिताया कि मसीही विश्वासियों और कलीसियाओं में झूठे उपदेशक या शिक्षक भी उठ खड़े होंगे और नाश करने वाले पाखण्ड तथा विनाश की बातों को छिप-छिप कर कलीसियाओं में फैलाएंगे (2 पतरस 2:1)। प्रभु यीशु मसीह ने पहले से ही अपने शिष्यों को उनके मध्य ऐसे लोगों के आ जाने के विषय सचेत कर दिया था, और उन्हें यह भी बात दिया था कि इन गलत शिक्षा देने और प्रचार करने वाले लोगों को कैसे पहचानें - उनके “फलों” से; अर्थात, उन लोगों के जीवन की गवाही, उनकी शिक्षाओं के प्रभाव (वास्तव में दुष्प्रभाव) से पता चल जाएगा कि कौन सही उपदेशक है और कौन नहीं (मत्ती 7:16-20; लूका 6:43-45)।


यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, और यदि प्रभु परमेश्वर ने आपको अपनी कलीसिया के लोगों के मध्य वचन की शिक्षा देने ज़िम्मेदारी दी है, तो आपकी उन्नति और आशीष अपने मसीही जीवन तथा प्रभु परमेश्वर द्वारा सौंपी गई ज़िम्मेदारी को भली भांति निभाने और परमेश्वर को प्रसन्न करने वाली सही रीति से उसका निर्वाह करते रहने से ही है। परमेश्वर के वचन के सच्चाइयों को सीखने और सिखाने में समय लगाएं, शैतान द्वारा गलत शिक्षाओं को फैलाने वाले झूठे प्रेरितों और भविष्यद्वक्ताओं की गलत शिक्षाओं को समझने, जाँचने-परखने और उनसे बच कर चलने, तथा औरों को सचेत करने में संलग्न रहें। आप जितना अधिक समय परमेश्वर और उसके वचन के साथ बिताएंगे, उसकी आज्ञाकारिता में चलेंगे, वचन को उतनी गहराई से परमेश्वर पवित्र आत्मा आपको सिखाएगा, और उतना अधिक प्रभावी बनाकर प्रयोग करेगा। 


यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।  


एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • लैव्यव्यवस्था 1-3      

  • मत्ती 24:1-28