यह बिलकुल स्वाभाविक है कि हमारे मनों में कभी संदेह उत्पन्न हो, या हमें भय लगे। प्रश्न जैसे, "यदि स्वर्ग वास्तविकता और सत्य ना हुआ तो?"; "क्या वास्तव में प्रभु यीशु ही परमेश्वर तक पहुँचने का एकमात्र मार्ग है?"; "क्या अन्त में जाकर इसका कोई महत्व होगा कि मैंने अपना जीवन कैसा व्यतीत किया है?" इत्यादि, सभी के मन में कभी ना कभी उठते हैं और इन प्रश्नों के उत्तर जल्दबाज़ी में या घिसे-पिटे तरीके से देने से पहले यह देख लेना चाहिए कि परमेश्वर के वचन बाइबल में इस संबंध में क्या शिक्षाएं दी गईं हैं।
प्रभु यीशु मसीह का संसार से परिचय करवाने वाले यूहन्ना बप्तिस्मा देने वाले के मन में, उसे मृत्यु दण्ड दिए जाने से कुछ पहले, ऐसे ही प्रश्न उठे थे, जब वह जेल की कोठरी में पड़ा था (लूका 7:19)। उसने अपने चेलों को प्रभु यीशु के पास भेजा, यह सुनिश्चित करने के लिए कि वास्तव में यीशु ही वह प्रतीक्षित मसीह था कि नहीं और कहीं यूहन्ना की सेवकाई व्यर्थ तो नहीं हो गई थी।
जब यूहन्ना के चेले प्रभु यीशु के पास यह प्रश्न लेकर आए तो जैसे प्रत्युत्तर प्रभु यीशु ने दिया वह हम सभी मसीही विश्वासियों के लिए अनुकरणीय है, प्रश्नकर्ताओं के लिए सान्तवना देने वाला है। प्रभु यीशु ने ना तो यूहन्ना की और ना ही उसके चेलों की इस बात को लेकर आलोचना करी, और ना ही इस बात के लिए लोगों के सामने उनकी भर्त्सना करी। प्रभु यीशु ने उनका ध्यान उन आश्चर्यकर्मों की ओर खींचा जो वह कर रहा थ और जिन्हें देख कर वे चेले अपने गुरू यूहन्ना को अपनी आंखों देखा विवरण बयान कर सकते थे; प्रभु यीशु ने परमेश्वर के वचन के पुराने नियम खण्ड से अपने बारे में यशायाह भविष्यद्वक्ता द्वारा दी गई भविष्यवाणियों के शब्दों को उद्धरण किया, क्योंकि यूहन्ना के लिए वे बातें जानी-पहचानी थीं; फिर भीड़ की ओर मुड़कर यूहन्ना की प्रशंसा करी और उसे सभी भविष्यद्वक्तओं में से सर्वश्रेष्ठ ठहराया, जिससे किसी के मन में कोई संदेह ना रह जाए कि प्रभु यीशु यूहन्ना के संदेह के कारण उससे क्षुब्ध था।
संदेह और प्रश्न दोनों ही स्वाभाविक मानवीय प्रक्रियाएं हैं जिन्हें आलोचना के रूप में नहीं वरन अवसर के रूप में देखना चाहिए जिससे हम सत्य को भली भांति सीख सकें, सिखा सकें, परमेश्वर की बातों को स्मरण कर सकें, उन बातों से आश्वस्त हो सकें तथा जो अनिश्चितताओं से ग्रसित हैं उन्हें सांत्वना दे सकें, उनकी आशंकाओं का समाधान कर सकें। - रैण्डी किलगोर
जब हम अपने संदेहों पर अविश्वास और अपने भरोसे पर विश्वास करते हैं तो आश्वासन स्वयं ही आ जाता है।
पर मसीह को प्रभु जान कर अपने अपने मन में पवित्र समझो, और जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, तो उसे उत्तर देने के लिये सर्वदा तैयार रहो, पर नम्रता और भय के साथ। - 1 पतरस 3:15
बाइबल पाठ: लूका 7:19-28
Luke 7:19 तब यूहन्ना ने अपने चेलों में से दो को बुलाकर प्रभु के पास यह पूछने के लिये भेजा; कि क्या आनेवाला तू ही है, या हम किसी और दूसरे की बाट देखें?
Luke 7:20 उन्होंने उसके पास आकर कहा, यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने हमें तेरे पास यह पूछने को भेजा है, कि क्या आनेवाला तू ही है, या हम दूसरे की बाट जोहें?
Luke 7:21 उसी घड़ी उसने बहुतों को बीमारियों; और पीड़ाओं, और दुष्टात्माओं से छुड़ाया; और बहुत से अन्धों को आंखे दी।
Luke 7:22 और उसने उन से कहा; जो कुछ तुम ने देखा और सुना है, जा कर यूहन्ना से कह दो; कि अन्धे देखते हैं, लंगड़े चलते फिरते हैं, कोढ़ी शुद्ध किए जाते हैं, बहिरे सुनते हैं, मुरदे जिलाये जाते हैं; और कंगालों को सुसमाचार सुनाया जाता है।
Luke 7:23 और धन्य है वह, जो मेरे कारण ठोकर न खाए।
Luke 7:24 जब यूहन्ना के भेजे हुए लोग चल दिए, तो यीशु यूहन्ना के विषय में लोगों से कहने लगा, तुम जंगल में क्या देखने गए थे? क्या हवा से हिलते हुए सरकण्डे को?
Luke 7:25 तो तुम फिर क्या देखने गए थे? क्या कोमल वस्त्र पहिने हुए मनुष्य को? देखो, जो भड़कीला वस्त्र पहिनते, और सुख विलास से रहते हैं, वे राजभवनों में रहते हैं।
Luke 7:26 तो फिर क्या देखने गए थे? क्या किसी भविष्यद्वक्ता को? हां, मैं तुम से कहता हूं, वरन भविष्यद्वक्ता से भी बड़े को।
Luke 7:27 यह वही है, जिस के विषय में लिखा है, कि देख, मैं अपने दूत को तेरे आगे आगे भेजता हूं, जो तेरे आगे मार्ग सीधा करेगा।
Luke 7:28 मैं तुम से कहता हूं, कि जो स्त्रियों से जन्मे हैं, उन में से यूहन्ना से बड़ा कोई नहीं: पर जो परमेश्वर के राज्य में छोटे से छोटा है, वह उस से भी बड़ा है।
एक साल में बाइबल:
- भजन 145-147