जब एक ४ वर्षीय बच्चा स्कूल में शरारत के लिए पकड़ा गया तो उसकी माँ ने उससे पूछा कि उसने क्या गलती की? बच्चे ने अपनी सफाई दी, "मैं अपने साथ के एक बच्चे से क्रोधित हुआ, किंतु क्योंकि आपने मुझे किसी को पीटने के लिए मना कर रखा है इसलिए मैंने अपने एक मित्र द्वारा उसे पिटवा दीया!" एक छोटे से बच्चे ने यह कहाँ से सीखा होगा? परमेश्वर का वचन बाइबल हमें सिखाती है कि उसे यह कहीं से सीखने की आवश्यकता नहीं है, हर मनुष्य पाप करने के इस स्वभाव के साथ ही पैदा होता है और पाप करना हमारे लिए स्वाभाविक प्रक्रीया है; ज़ोर तो पाप करने से अपने आप को रोकने और बचाए रखने में लगता है। किंतु फिर भी प्रत्यक्ष रूप में नहीं तो अप्रत्यक्ष रूप से, यदि कर्मों से नहीं तो मन-ध्यान-विचारों में, पाप सभी से होता रहता है - हमारी पाप करने की स्वाभाविक प्रवृति अपना प्रभाव दिखाती ही रहती है।
लेकिन प्रत्येक मसीही विश्वासी को पाप करने की इस प्रवृति पर विजय पाने का साधन उपलब्ध है, वह इस पापी स्वभाव के अनुसार कार्य करने को मजबूर नहीं रहा। प्रेरित पौलुस ने स्मरण दिलाया: "क्योंकि हम जानते हैं कि हमारा पुराना मनुष्यत्व उस[यीशु] के साथ क्रूस पर चढ़ाया गया, ताकि पाप का शरीर व्यर्थ हो जाए, ताकि हम आगे को पाप के दासत्व में न रहें" (रोमियों ६:६)। हम एक नई सृष्टि हैं (२ कुरिन्थियों ५:१७) और पाप की आधीनता से छुड़ाए जाकर अब परमेश्वर की आधीनता में हो गए हैं (रोमियों ६:२२)।
यद्यपि मसीही विश्वासी होने के बावजूद भी हम अपने शरीर और उसकी पापमय प्रवृति के साथ संघर्ष में रहते हैं (रोमियों ७:१८-१९), तो भी, क्योंकि अब हम परमेश्वर के लिए मसीह यीशु में जीवित हैं इसलिए अब हम परमेश्वर को आदर देने वाला जीवन जीने में सक्षम हैं (रोमियों ६:११)।
उस छोटे बालक के समान किसी ना किसी रीति से अपना बदला लेने और मनमानी करने में भी अपने आप को न्यायसंगत दिखाने की बजाए अब हमें रोमियों ६:१३ के निर्देष का पालन करना चाहिए: "और न अपने अंगो को अधर्म के हथियार होने के लिये पाप को सौंपो, पर अपने आप को मरे हुओं में से जी उठा हुआ जान कर परमेश्वर को सौंपो, और अपने अंगो को धर्म के हथियार होने के लिये परमेश्वर को सौंपो।"
मसीह यीशु में मिले नए जीवन की अपनी ज़िम्मेदारियों और गरिमा के प्रति सदा चेतन रहें। - सी. पी. हीया
पाप में आनन्द लेने की बजाए जब हम मसीह के जीवन को जीना चुनते हैं तो पाप करने की प्रवृति पर विजयी रहते हैं।
ऐसे ही तुम भी अपने आप को पाप के लिये तो मरा, परन्तु परमेश्वर के लिये मसीह यीशु में जीवित समझो। - रोमियों ६:११
बाइबल पाठ: रोमियों ६:१-१४
Rom 6:1 सो हम क्या कहें क्या हम पाप करते रहें, कि अनुग्रह बहुत हो?
Rom 6:2 कदापि नहीं, हम जब पाप के लिये मर गए तो फिर आगे को उस में क्योंकर जीवन बिताएं?
Rom 6:3 क्या तुम नहीं जानते, कि हम जितनों ने मसीह यीशु का बपतिस्मा लिया तो उस की मृत्यु का बपतिस्मा लिया?
Rom 6:4 सो उस मृत्यु का बपतिस्मा पाने से हम उसके साथ गाड़े गए, ताकि जैसे मसीह पिता की महिमा के द्वारा मरे हुओं में से जिलाया गया, वैसे ही हम भी नए जीवन की सी चाल चलें।
Rom 6:5 क्योंकि यदि हम उस की मृत्यु की समानता में उसके साथ जुट गए हैं, तो निश्चय उसके जी उठने की समानता में भी जुट जाएंगे।
Rom 6:6 क्योंकि हम जानते हैं कि हमारा पुराना मनुष्यत्व उसके साथ क्रूस पर चढ़ाया गया, ताकि पाप का शरीर व्यर्थ हो जाए, ताकि हम आगे को पाप के दासत्व में न रहें।
Rom 6:7 क्योंकि जो मर गया, वह पाप से छूटकर धर्मी ठहरा।
Rom 6:8 सो यदि हम मसीह के साथ मर गए, तो हमारा विश्वास यह है, कि उसके साथ जीएंगे भी।
Rom 6:9 क्योंकि यह जानते हैं, कि मसीह मरे हुओं में से जी उठ कर फिर मरने का नहीं, उस पर फिर मृत्यु की प्रभुता नहीं होने की।
Rom 6:10 क्योंकि वह जो मर गया तो पाप के लिये एक ही बार मर गया; परन्तु जो जीवित है, तो परमेश्वर के लिये जीवित है।
Rom 6:11 ऐसे ही तुम भी अपने आप को पाप के लिये तो मरा, परन्तु परमेश्वर के लिये मसीह यीशु में जीवित समझो।
Rom 6:12 इसलिये पाप तुम्हारे मरणहार शरीर में राज्य न करे, कि तुम उस की लालसाओं के अधीन रहो।
Rom 6:13 और न अपने अंगो को अधर्म के हथियार होने के लिये पाप को सौंपो, पर अपने आप को मरे हुओं में से जी उठा हुआ जान कर परमेश्वर को सौंपो, और अपने अंगो को धर्म के हथियार होने के लिये परमेश्वर को सौंपो।
Rom 6:14 और तुम पर पाप की प्रभुता न होगी, क्योंकि तुम व्यवस्था के आधीन नहीं वरन अनुग्रह के आधीन हो।
एक साल में बाइबल:
- यहेजकेल १४-१५
- याकूब २