ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

पूर्व और पश्चात


   किसी कठिन परीक्षा से निकलने के पश्चात मसीही विश्वास के जीवन में क्या परिवर्तन आते हैं? मैं इस बारे में सोचने लगा जब मैंने जमाइका निवासी एक पिता की त्रासदी से निकलने की घटना पढ़ी; उस पिता ने घर में घुसपैठ करने वाले लोगों से अपने परिवार कि रक्षा करते हुए गलती से अपनी ही 18 वर्षीय पुत्री को गोली से मार दिया। समाचार पत्रों के अनुसार, इस दुर्घटना के अगले दिन भी वह अपनी आदत के अनुसार चर्च गया, दुःख से बदहाल, परन्तु फिर भी परमेश्वर से सहायता लेने। उसके मसीही विश्वास ने इस दुर्घटना से पूर्व भी उसका मार्गदर्शन किया था, और वह जानता था कि इस दुर्घटना के पश्चात भी उसका मार्गदर्शन वैसे ही और वहीं से ही आएगा।

   इस बात को लेकर मैं अपने जीवन के बारे में सोचने लगा क्योंकि मैंने भी अपनी एक बेटी मेलिस्सा को उसकी किशोरावस्था में खोया है। यह देखने के लिए कि अपनी बेटी की मृत्यु से पहले मैं जीवन और विश्वास के प्रति क्या दृष्टिकोण रखता था, और क्या इस कठिन परीक्षा से होकर निकलने के कारण अब परमेश्वर के प्रति में मेरे विश्वास में कोई परिवर्तन हुआ या नहीं, मैंने अपने कंप्यूटर में संजोए हुए अपने लिखे पुराने लेखों को खोला, और जून 2002 में मेलिस्सा की मृत्यु से पूर्व लिखे गए अपने एक लेख को पढ़ने लगा। उस वर्ष के मई महीने में जो लेख मैंने लिखा, उसमें लिखा था: "दाऊद साहस से परमेश्वर के पास जाने और उससे अपने मन की बात कहने से नहीं हिचकिचाया...हमें भी अपने मन की बात परमेश्वर से कहने से कभी नहीं डरना चाहिए।"

   कठिन समयों से निकलने से पहले मैं परमेश्वर के पास जाया करता था और वह मेरे मन की बात सुनता था; मैंने यह भी पाया कि अब भी मैं परमेश्वर के पास वैसे ही जाता हूँ और वह मेरे मन की बात पहले के समान ही सुनता भी है। इसलिए मैं विश्वास के साथ परमेश्वर से प्रार्थना करता हूँ।

   कठिन समयों और परीक्षाओं से होकर निकलने पर भी हमारा मसीही विश्वास ना केवल सुदृढ़ रहता है वरन और बढ़ता तथा मज़बूत होता है क्योंकि हमारा परमेश्वर हर घटना के पूर्व और पश्चात वही और वैसा ही रहता है। - डेव ब्रैनन


परमेश्वर के वचन बाइबल से हम जो परमेश्वर के बारे में जानने पाते हैं वह हमें उन परिस्थितियों में भी प्रोत्साहित करता है कि उसमें विश्वास बनाए रखें जिनके बारे में हम कुछ नहीं जानते।

परन्तु मैं तो परमेश्वर को पुकारूंगा; और यहोवा मुझे बचा लेगा। सांझ को, भोर को, दोपहर को, तीनों पहर मैं दोहाई दूंगा और कराहता रहूंगा। और वह मेरा शब्द सुन लेगा। - Psalms 55:16-17

बाइबल पाठ: भजन 55:1-8
Psalms 55:1 हे परमेश्वर, मेरी प्रार्थना की ओर कान लगा; और मेरी गिड़गिड़ाहट से मुंह न मोड़! 
Psalms 55:2 मेरी ओर ध्यान देकर, मुझे उत्तर दे; मैं चिन्ता के मारे छटपटाता हूं और व्याकुल रहता हूं। 
Psalms 55:3 क्योंकि शत्रु कोलाहल और दुष्ट उपद्रव कर रहें हैं; वे मुझ पर दोषारोपण करते हैं, और क्रोध में आकर मुझे सताते हैं।
Psalms 55:4 मेरा मन भीतर ही भीतर संकट में है, और मृत्यु का भय मुझ में समा गया है। 
Psalms 55:5 भय और कंपकपी ने मुझे पकड़ लिया है, और भय के कारण मेरे रोंए रोंए खड़े हो गए हैं। 
Psalms 55:6 और मैं ने कहा, भला होता कि मेरे कबूतर के से पंख होते तो मैं उड़ जाता और विश्राम पाता! 
Psalms 55:7 देखो, फिर तो मैं उड़ते उड़ते दूर निकल जाता और जंगल में बसेरा लेता, 
Psalms 55:8 मैं प्रचण्ड बयार और आन्धी के झोंके से बचकर किसी शरण स्थान में भाग जाता। 

एक साल में बाइबल: 
  • निर्गमन 39-40
  • मत्ती 23:23-39