मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा का प्रमाण
- धार्मिकता के लिए कायल करना (यूहन्ना 16:10).
पिछले लेखों में हमने देखा है कि मसीही सेवकाई
में, परमेश्वर पवित्र आत्मा
अपने कार्य और सामर्थ्य को प्रभु यीशु के शिष्यों, अर्थात
मसीही विश्वासियों में होकर करता है, और उनमें होकर संसार के
लोगों के समक्ष मसीही जीवन के उदाहरण तथा वचन की शिक्षाओं को प्रत्यक्ष करता है।
इस प्रकार से परमेश्वर पवित्र आत्मा मसीही विश्वासी यानि कि प्रभु यीशु के शिष्य
बनने वालों के जीवनों, मनोदशा, और
विचारधारा में आए परिवर्तन का प्रत्यक्ष एवं व्यावहारिक प्रमाण प्रदान करता है।
साथ ही यह प्रत्यक्ष एवं व्यावहारिक प्रमाण औरों को भी प्रोत्साहित करता है कि
जैसा औरों के जीवन में हुआ है, वैसे ही मेरे भी जीवन में भी
इसी प्रकार का परिवर्तन और परमेश्वर के लिए उपयोगिता संभव है। यूहन्ना 16:8
में पवित्र आत्मा ने तीन बातें लिखवाई हैं, जिनके
विषय वह प्रभु यीशु के शिष्यों में होकर संसार को दोषी ठहराता है। ये तीन बातें
हैं - पाप, धार्मिकता, और न्याय। और
फिर पद 9, 10, और 11 में इन तीनों के
विषय टिप्पणी दी है। इनमें से पहली बात, पाप के विषय कायल
करना को हम यूहन्ना 16:9 से पिछले लेख में देख चुके हैं। आज
हम दूसरी बात, धार्मिकता के बारे में कायल करने के
बारे में हम यूहन्ना 16:10 से
कुछ शिक्षाएं लेंगे।
मूल यूनानी भाषा के लेख में जिस शब्द का
प्रयोग किया गया है, जिसे
यहाँ ‘धार्मिकता’ अनुवाद किया गया है,
उसका अर्थ होता है चरित्र एवं व्यवहार में दोष रहित होना। अर्थात,
यहाँ पर धार्मिकता का अर्थ धार्मिक बातों, प्रथाओं,
और रीति-रिवाजों का निर्वाह तथा धार्मिक अनुष्ठानों की पूर्ति के
आधार पर व्यक्ति का ‘धर्मी’ समझा जाना
नहीं है। यह एक बहुत आम बात है, जिससे सभी भली-भांति अवगत
हैं, कि बाहरी रीति से सब कुछ करने के बावजूद, सामान्यतः व्यक्ति अंदर से और व्यवहार से फिर भी
पापमय लालसाएँ और गुप्त में पापमय व्यवहार रखते हैं। उनकी यह बाहरी ‘धार्मिकता’ एक दिखावा है, उनके मन अभी भी पाप के विचार और
व्यवहार के दोषी हैं। बाइबल के अनुसार इसीलिए मसीही विश्वास की शिक्षा धर्म
परिवर्तन की नहीं, बल्कि मन परिवर्तन करने की है। यह मन
परिवर्तन मनुष्य अपने किसी धर्म के कामों से नहीं करने पाता है, नहीं तो संसार भर में इतने धर्मों और धार्मिक अनुष्ठानों, और कार्यों के द्वारा, अब तक संसार से पाप की समस्या
कब की मिट चुकी होती। यह मन परिवर्तन केवल प्रभु यीशु मसीह में लाए गए विश्वास और
पापों के पश्चाताप के द्वारा ही संभव है।
बाइबल यह भी सिखाती है कि मन की इस
पवित्रता के बिना, जब
कोई भी प्रभु को देख भी नहीं सकता है “सब से मेल मिलाप
रखने, और उस पवित्रता के खोजी हो जिस के बिना कोई प्रभु को
कदापि न देखेगा” (इब्रानियों 12:14), तो फिर उसके साथ संगति और निवास कैसे करेगा? किन्तु
प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास लाने के द्वारा, प्रभु यीशु मसीह
के द्वारा समस्त मानव जाति के उद्धार के लिए क्रूस पर बहाए गए लहू के द्वारा
मनुष्य परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी ठहरता है, उसका
मेल-मिलाप परमेश्वर के साथ हो जाता है, और वह पाप के दण्ड से
बच जाता है : “सो जब हम विश्वास से धर्मी ठहरे, तो अपने प्रभु यीशु मसीह के द्वारा परमेश्वर के साथ मेल रखें”
(रोमियों 5:1); “सो जब कि हम, अब उसके लहू के कारण धर्मी ठहरे, तो उसके द्वारा
क्रोध से क्यों न बचेंगे? क्योंकि बैरी होने की दशा
में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ फिर मेल हो
जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे?” (रोमियों
5:9-10)।
प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास लाना, और ईसाई धर्म का निर्वाह
करना, दो बिलकुल भिन्न बातें हैं; और ईसाई धर्म का निर्वाह व्यक्ति को
परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी नहीं बनाता है। व्यक्ति किसी भी धर्म को माने, किसी भी परिवार में जन्म
ले, सभी के लिए परमेश्वर की आज्ञा पापों से पश्चाताप करने की
है “इसलिये परमेश्वर अज्ञानता के समयों में आनाकानी कर के,
अब हर जगह सब मनुष्यों को मन फिराने की आज्ञा देता है।
क्योंकि उसने एक दिन ठहराया है, जिस में वह उस मनुष्य के
द्वारा धर्म से जगत का न्याय करेगा, जिसे उसने ठहराया है और
उसे मरे हुओं में से जिलाकर, यह बात सब पर प्रमाणित कर दी है”
(प्रेरितों 17:30-31)। प्रेरितों 2 अध्याय में, पतरस का पहला प्रचार यरूशलेम में
धार्मिक रीतियों और अनुष्ठानों को निभाने आए हुए “भक्त
यहूदियों” के मध्य किया गया था (प्रेरितों 2:5)। पतरस द्वारा उन “भक्त यहूदियों” को किए गए प्रचार को सुनकर “तब सुनने वालों के
हृदय छिद गए, और वे पतरस और शेष प्रेरितों से पूछने लगे,
कि हे भाइयो, हम क्या करें? पतरस ने उन से कहा, मन फिराओ, और
तुम में से हर एक अपने अपने पापों की क्षमा के लिये यीशु मसीह के नाम से बपतिस्मा
ले; तो तुम पवित्र आत्मा का दान पाओगे” (प्रेरितों के काम 2:37-38)। जैसे तब उन “भक्त यहूदियों” के लिए धार्मिकता और व्यवस्था के
निर्वाह के बावजूद पश्चाताप और समर्पण अनिवार्य था, उसी
प्रकार आज ईसाई धर्म का निर्वाह करने वालों के लिए भी अनिवार्य है।
प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास लाने के
द्वारा धर्मी ठहरने, परमेश्वर
से मेल-मिलाप हो जाने, पाप के दण्ड से बच जाने की इस पूरी
प्रक्रिया को समझने; तथा परमेश्वर की दृष्टि में पाप क्या है,
और पाप और उसके निवारण तथा समाधान किस प्रकार संभव है, आदि के विषयों पर बाइबल में दी गई शिक्षाओं पर एक विस्तृत चर्चा पहले
प्रस्तुत की जा चुकी है। इस विस्तृत चर्चा की शृंखला का आरंभ “पाप और उद्धार” पर लेख के साथ हुआ था; और जिन पाठकों ने इसे नहीं देखा है, वे इस लेख के
लिंक से उसे देख सकते हैं, अध्ययन कर सकते हैं।
प्रभु यीशु मसीह द्वारा सभी मनुष्यों के
पापों के लिए कलवरी के क्रूस पर दिए गए बलिदान को स्वीकार करने, अपने पापों से पश्चाताप
करने, और अपने पापों के लिए प्रभु से क्षमा मांगने से ही व्यक्ति परमेश्वर की दृष्टि में धर्मी
ठहरता है; क्योंकि
वह अपने इस विश्वास में आने के द्वारा प्रभु यीशु मसीह को “पहन”
लेता है “और तुम में से जितनों ने मसीह में
बपतिस्मा लिया है उन्होंने मसीह को पहिन लिया है” (गलतियों
3:27)। इसलिए अब मसीह यीशु में उस व्यक्ति के सभी पाप ढाँप
दिए गए हैं, और मसीह यीशु में होकर वह धर्मी है। प्रभु यीशु
ने यूहन्ना 16:10 में कहा कि वह अब सभी मनुष्यों के उद्धार
के लिए अपना कार्य पूरा करके पिता के पास जाता है। जैसे प्रभु यीशु मसीह अपनी
धर्मी दशा में परमेश्वर के पास जा सकता था, उसी प्रकार,
जो विश्वास में आने के द्वारा प्रभु यीशु मसीह में धर्मी ठहराए गए
हैं, वे भी परमेश्वर के पास जा सकते हैं। किन्तु यह आदर
संसार के उन लोगों को उपलब्ध नहीं है जो अभी भी अपनी “धर्म-कर्म-रस्म”
के निर्वाह की धार्मिकता के आधार पर परमेश्वर के पास आना चाहते हैं।
जैसे ऊपर कहा गया, प्रभु यीशु मसीह से मिली इस पवित्रता के
बिना तो वे परमेश्वर को देख भी नहीं सकते हैं, उसके पास
जाएंगे कैसे?
सच्चे और वास्तविक मसीही विश्वासी के
जीवन जीने वालों में, और संसार के मानकों के अनुसार “धार्मिकता” का
जीवन जीने वालों में परमेश्वर पवित्र आत्मा “धार्मिकता”
की यह तुलना प्रस्तुत करता है। मसीही विश्वास की धार्मिकता की तुलना
में, सांसारिक धार्मिकता के विषय सांसारिक लोगों को दोषी
ठहराता है। यदि आप मसीही विश्वासी हैं, तो आपकी “धार्मिकता” का आधार क्या है - आपका पापों से
पश्चाताप, मसीह यीशु में लाया गया विश्वास, मसीह यीशु को पूर्णतः समर्पित और उसके वचन की आज्ञाकारिता का जीवन;
या, किसी परिवार विशेष में जन्म तथा “धर्म-कर्म-रस्म” के निर्वाह की धार्मिकता? आपके मसीही विश्वास की वास्तविकता, और आप में
परमेश्वर पवित्र आत्मा की उपस्थिति की पुष्टि आपकी मसीही सेवकाई के द्वारा होती है।
यदि आपकी धार्मिकता, मसीही
विश्वास की धार्मिकता है, तो फिर आप में होकर पवित्र आत्मा
संसार के लोगों को उनकी सांसारिक धार्मिकता के विषय कायल करेगा, उन्हें उसकी अपूर्णता का एहसास करवाएगा।
यदि आपने प्रभु
की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो थोड़ा थम कर
विचार कीजिए, क्या मसीही विश्वास के अतिरिक्त आपको कहीं और
यह अद्भुत और विलक्षण आशीषों से भरा सौभाग्य प्राप्त होगा, कि
स्वयं परमेश्वर आप में आ कर सर्वदा के लिए निवास करे; आपको
धर्मी बनाए; आपको अपना वचन सिखाए; और
आपको शैतान की युक्तियों और हमलों से सुरक्षित रखने के सभी प्रयोजन करके दे?
और फिर, आप में होकर अपने आप को तथा अपनी
धार्मिकता को औरों पर प्रकट करे, तथा आप में होकर पाप में
भटके लोगों को उद्धार और अनन्त जीवन प्रदान करने के अपने अद्भुत कार्य करे,
जिससे अंततः आपको ही अपनी ईश्वरीय आशीषों से भर सके? इसलिए अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी
प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है,
उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ
प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों के लिए
पश्चाताप करके, उनके लिए प्रभु से क्षमा माँगकर, अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन
का यही एकमात्र मार्ग है। आप अपने पापों के अंगीकार और पश्चाताप करके, प्रभु यीशु से समर्पण की प्रार्थना कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं,
“प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा
और समाधान के लिए मेरे सभी पापों को अपने ऊपर लिया, उनके
कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और
आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें।
मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” प्रभु की
शिष्यता तथा मन परिवर्तन के लिए सच्चे पश्चाताप और समर्पित मन से की गई आपकी एक
प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक
के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- विलापगीत
1-2
- इब्रानियों 10:1-18