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सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (16)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (7) - अन्य-भाषाएं - परमेश्वर से बातें करना नहीं है (2) 

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है, कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने, जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है। 

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा, प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखने के बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखना आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी के नया जन्म या उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है, और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना या पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना भी कहते हैं। वचन स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना या उससे बपतिस्मा पाना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, वरन उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास करना ही है। इन गलत शिक्षकों की एक और बहुत प्रचलित और बल पूर्वक कही जाने वाले बात हैअन्य-भाषाओंमें बोलना, और उन लोगों के द्वाराअन्य-भाषाओंको अलौकिक भाषाएं बताना, और परमेश्वर के वचन के दुरुपयोग के द्वारा इससे संबंधित कई और गलत शिक्षाओं को सिखाना। इसके बारे में भी हम देख चुके हैं कि यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार नहीं है। प्रेरितों 2 अध्याय में जो अन्य भाषाएं बोली गईं, वे पृथ्वी ही की भाषाएं और उनकी बोलियाँ थीं; कोई अलौकिक भाषा नहीं। हमने यह भी देखा था कि वचन में इस शिक्षा का भी कोई आधार या समर्थन नहीं है किअन्य-भाषाएंप्रार्थना की भाषाएं हैं। इस गलत शिक्षा के साथ जुड़ी हुई इन लोगों की एक और गलत शिक्षा है किअन्य-भाषाएंबोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है, जिसके भी झूठ होने और परमेश्वर के वचन के दुरुपयोग पर आधारित होने को हमने पिछले लेख में देखा है। पिछले लेख में हमने यह भी देखा था कि उन लोगों के सभी दावों के विपरीत, न तो प्रेरितों 2:3-11 का प्रभु के शिष्यों द्वारा अन्य-भाषाओं में बोलना कोईसुननेका आश्चर्यकर्म था, न ही अन्य भाषाएं प्रार्थना करने की गुप्त भाषाएँ हैं, और न ही ये किसी को भी यूं ही दे दी जाती हैं, जब तक कि व्यक्ति की उस स्थान पर सेवकाई न हो, जहाँ की भाषा बोलने की सामर्थ्य उसे प्रदान की गई है। एक और दावा जो ये पवित्र आत्मा और अन्य-भाषाएँ बोलने से संबंधित गलत शिक्षाएं देने वाले करते हैं, है कि व्यक्ति अन्य-भाषा बोलने के द्वारा सीधे परमेश्वर से बात करता है। इसके बारे में हम पिछले लेख में देख चुके हैं कि उनका यह दावा भी वचन की कसौटी पर बिलकुल गलत है, अस्वीकार्य है। आज हम इससे संबंधित कुछ अन्य बातों को देखेंगे।

यहाँ पर कुछ संबंधित और बहुत महत्वपूर्ण बातों पर ध्यान दीजिए, जिनकी अनदेखी ये गलत शिक्षा देने वाले करते रहते हैं: 

क्या अन्य सभी लोग जो उनके अनुसार उनकी येअन्य-भाषाएँ नहीं बोलते हैं, क्या वे पिता परमेश्वर से बात नहीं करते हैं, और क्या पिता परमेश्वर उनकी नहीं सुनता है, उनकी प्रार्थनाओं के उत्तर नहीं देता है? और यदि बिना अन्य-भाषा बोले बिना भी परमेश्वर से बात-चीत की जा सकती है, परमेश्वर सामान्य भाषा में की गई बातों को भी सुनता है, उनका उत्तर देता है, तो फिर किसी को भी उनकी ये अन्य-भाषा में बोलने की क्या आवश्यकता है? उनकी ये अन्य-भाषा में बोलने के द्वारा वह और क्या अतिरिक्त या अद्भुत कर लेगा या प्राप्त कर लेगा? इस संदर्भ में उनके सभी दावों के झूठा और वचन के अतिरिक्त होने को तो हम देख ही चुके हैं।

वचन में, पुराने अथवा नए नियम में, ऐसा कुछ भी कहाँ लिखा है कि अन्य-भाषाओं में प्रार्थना करने वालों, या परमेश्वर से बातचीत करने वालों की ही बातें परमेश्वर द्वारा सुनी जाती हैं? या फिर, उनकी बातें परमेश्वर पहले या अवश्य ही सुनता है, जबकि अपनी सामान्य भाषा में प्रार्थना करने वालों की बातों की परमेश्वर अनदेखी करता है या विलंब से सुनता है? परमेश्वर और उसके वचन से संबंधित शिक्षाओं में इस प्रकार के अनुचित अभिप्राय मिला देने के द्वारा वे इन शिक्षाओं के शैतान की ओर से होने की पुष्टि करते हैं, क्योंकि शैतान आरंभ ही से परमेश्वर की बातों में मिलावट करता आया है, उन्हें बिगाड़ कर प्रस्तुत करता आया है। और इन गलत शिक्षाओं में बने रहने, इन्हें सिखाते रहने के द्वारा वे अपने लिए बहुत कठोर दण्ड निश्चित कर रहे हैं। 

पुराने नियम में लेवियों और याजकों का कार्य था लोगों की ओर से परमेश्वर के सामने भेंट-बलिदान चढ़ाना, और साथ ही इस्राएल की प्रजा के लिए परमेश्वर का दूत होने के नाते उन्हें लोगों को परमेश्वर का वचन भी सिखाना होता था (मलाकी 2:4-7)। लेकिन न व्यवस्था की पुस्तकों में, और न कहीं और यह लिखा गया है कि उन्हें भी अन्य-भाषाओं में यह सेवकाई करनी होती थी। यदि व्यवस्था के युग में बिना मुँह से विचित्र, निरर्थक ध्वनियाँ निकाले याजक परमेश्वर की राज्य के लिए परमेश्वर से बातें कर सकता था, तो फिर आज इस अनुग्रह के युग में जब प्रभु परमेश्वर हमारे साथ रहता है, हम में निवास करता है, हम सामान्य भाषा में उससे बात क्यों नहीं कर सकते हैं? ये सभी वचन की शिक्षाओं के विरुद्ध व्यर्थ के निराधार तर्क हैं, जिन के द्वारा ये लोग अपरिपक्व लोगों को बहका और भटका देते हैं। 

यह भी ध्यान देने योग्य बात है कि 1 कुरिन्थियों 12:7 में लिखा है कि पवित्र आत्मा के द्वारा दिए जाने वाले आत्मिक वरदानसब के लाभ पहुँचानेके उद्देश्य से दिए जाते हैं। इस बात के अनुसार 1 कुरिन्थियों 14:4 में बताया गया है कि वे व्यर्थ की अन्य-भाषाएं बोलने वाले ऐसा करने के द्वारा केवल अपनी ही उन्नति करते, कलीसिया की नहीं। और यदि उनका अपनी प्रार्थनाओं या आशीष के लिए अन्य-भाषा में बोलने का यह दावा सही होता, तो फिर वचन की शिक्षाओं के विरुद्ध होता, वचन में विरोधाभास (contradiction) ले आता - जो वचन के पवित्र आत्मा की अगुवाई और प्रेरणा से लिखे जाने के कारण संभव नहीं है। इसलिए यह स्पष्ट है कि अन्य-भाषाओं में बोलना किसी के भी, कैसे भी व्यक्तिगत प्रयोग अथवा लाभ या उन्नति के लिए हो ही नहीं सकता है। अन्य-भाषा में बोलना तब ही सही और जायज़ होगा जब वह सभी लोगों के लाभ और कलीसिया की उन्नति के लिए हो; और यह तभी हो सकता है जब उस भाषा में कही जाने वाली बातें मनुष्यों द्वारा भी समझी और सीखी जा सकें, केवलपरमेश्वर से की गई बातेंन हों।

पवित्र आत्मा की अगुवाई में, पौलुस प्रेरित ने यहाँ यह भी लिखा है, “मैं चाहता हूं, कि तुम सब अन्य भाषाओं में बातें करो, परन्तु अधिकतर यह चाहता हूं कि भविष्यवाणी करो: क्योंकि यदि अन्य अन्य भाषा बोलने वाला कलीसिया की उन्नति के लिये अनुवाद न करे तो भविष्यवाणी करने वाला उस से बढ़कर है” (1 कुरिन्थियों 14:5)। गलत शिक्षाएं फैलाने वाले ये लोग इस पद के केवल आरंभिक वाक्यमैं चाहता हूं, कि तुम सब अन्य भाषाओं में बातें करो...को ही लोगों के सामने रखते हैं, और कहते हैं कि यह वचन ही की शिक्षा है कि सभी को अन्य-भाषाओं में बोलना चाहिए। किन्तु वे उससे आगे के वाक्य “... परन्तु अधिकतर यह चाहता हूं कि भविष्यवाणी करो: क्योंकि यदि अन्य अन्य भाषा बोलने वाला कलीसिया की उन्नति के लिये अनुवाद न करे तो भविष्यवाणी करने वाला उस से बढ़कर हैकी पूर्णतः अनदेखी कर देते हैं, क्योंकि यहाँ स्पष्ट लिखा है कि अन्य-भाषाओं में बोलने से बेहतर भविष्यवाणी करना है। हम पहले के लेखों में देख चुके हैं किभविष्यवाणी करनेका अर्थ भविष्य की बातें बताना ही नहीं है, वरन लोगों के समक्ष परमेश्वर के वचन की शिक्षाएं देना है। अब यह प्रकट है कि पवित्र आत्मा की अगुवाई में पौलुस के इच्छा यही है कि निरर्थक अन्य-भाषाएँ बोलने के स्थान पर प्रभु के लोगों में वचन को सीखने और उसे औरों को सिखाने की अभिलाषा होनी चाहिए। दूसरों को वचन की सही शिक्षा देना अन्य-भाषा बोलने से अधिक उत्तम और परमेश्वर को अधिक पसंद कार्य है। 

       यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के पालन को अपना लें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 17-22         
  • मरकुस 6:30-56; 7:1-13

रविवार, 27 फ़रवरी 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (15)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (6) - अन्य-भाषाएं - परमेश्वर से बातें करना नहीं है (1) 

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है, कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने, जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है। 

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा, प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखने के बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखना आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी के नया जन्म या उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है, और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना या पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना भी कहते हैं। वचन स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना या उससे बपतिस्मा पाना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, वरन उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास करना ही है। इन गलत शिक्षकों की एक और बहुत प्रचलित और बल पूर्वक कही जाने वाले बात हैअन्य-भाषाओंमें बोलना, और उन लोगों के द्वाराअन्य-भाषाओंको अलौकिक भाषाएं बताना, और परमेश्वर के वचन के दुरुपयोग के द्वारा इससे संबंधित कई और गलत शिक्षाओं को सिखाना। इसके बारे में भी हम देख चुके हैं कि यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार नहीं है। प्रेरितों 2 अध्याय में जो अन्य भाषाएं बोली गईं, वे पृथ्वी ही की भाषाएं और उनकी बोलियाँ थीं; कोई अलौकिक भाषा नहीं। हमने यह भी देखा था कि वचन में इस शिक्षा का भी कोई आधार या समर्थन नहीं है किअन्य-भाषाएंप्रार्थना की भाषाएं हैं। इस गलत शिक्षा के साथ जुड़ी हुई इन लोगों की एक और गलत शिक्षा है किअन्य-भाषाएंबोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है, जिसके भी झूठ होने और परमेश्वर के वचन के दुरुपयोग पर आधारित होने को हमने पिछले लेख में देखा है। पिछले लेख में हमने यह भी देखा था कि उन लोगों के सभी दावों के विपरीत, न तो प्रेरितों 2:3-11 का प्रभु के शिष्यों द्वारा अन्य-भाषाओं में बोलना कोईसुननेका आश्चर्यकर्म था; न ही अन्य भाषाएं प्रार्थना करने की गुप्त भाषाएँ हैं; और न ही ये पृथ्वी की ही अन्य स्थानों की भाषाएँ किसी को भी यूं ही दे दी जाती हैं, जब तक कि व्यक्ति की उस स्थान पर सेवकाई न हो, जहाँ की भाषा बोलने की सामर्थ्य उसे प्रदान की गई है। आज हम अन्य-भाषाएं बोलने से संबंधित कुछ अन्य गलत शिक्षाओं के बारे में देखेंगे। 

क्या अन्य-भाषा में बोलना परमेश्वर से सीधे बात करना है?

एक और दावा जो ये पवित्र आत्मा और अन्य-भाषाएँ बोलने से संबंधित गलत शिक्षाएं देने वाले करते हैं, है कि व्यक्ति अन्य-भाषा बोलने के द्वारा सीधे परमेश्वर से बात करता है। आज हम इसके बारे में देखेंगे। 

पवित्र आत्मा और अन्य-भाषा बोलने से संबंधित एक अन्य गलत और पूर्णतः निराधार एवं झूठी शिक्षा यह भी कही जाती है कि 1 कुरिन्थियों 14:2 के अनुसार, जो अन्य भाषा में बोलता है, वह मनुष्यों से नहीं, वरन सीधे परमेश्वर से बातें करता है। यह कहने के द्वारा वे न केवल यहाँ प्रयोग किए गए व्यंग्य या कटाक्ष की, ताना मारने की अनदेखी कर देते हैं, वरन वचन को उसके संदर्भ से बाहर लेकर गलत अर्थ देने के भी दोषी ठहरते हैं। हम पहले देख चुके हैं कि अन्य-भाषा बोलना भी परमेश्वर पवित्र आत्मा के द्वारा दिया जाने वाला एक आत्मिक वरदान है, जो अन्य आत्मिक वरदानों के समान हर किसी को नहीं दिया जाता है, वरन सभी को उनकी निर्धारित सेवकाई के अनुसार भिन्न-भिन्न वरदान दिए जाते हैं (1 कुरिन्थियों 12:7-11, 29-30)। क्योंकि कुरिन्थुस की मण्डली के कुछ लोग भी मुँह से विचित्र निरर्थक ध्वनियाँ निकालने के द्वारा मण्डली के अन्य लोगों को अलौकिक भाषा बोलने के दावे के द्वारा प्रभावित करने में लगे हुए थे, इसीलिए पवित्र आत्मा ने पौलुस द्वारा उनकी इस बात पर ताना मारते हुए यह बात कही, जिसका सामान्य शब्दों में अभिप्राय है, “उन लोगों की ये इस प्रकार कीअन्य-भाषाएँकिसी मनुष्य की समझ में तो आती नहीं हैं; किसी को पता ही नहीं चलने पाता है कि वे क्या भेद की बातें बोल रहे हैं। वे तो अपने आप को सामान्य लोगों से उच्च और भिन्न स्तर का दिखते हैं, इसलिए मनुष्य नहीं संभवतः परमेश्वर ही समझ पाएगा कि वे क्या कह रहे हैं।

उन लोगों द्वारा अलौकिक भाषाएं बोलने के दावे के संदर्भ में भी पवित्र आत्मा ने पौलुस प्रेरित के द्वारा लिखवा दिया, “यदि मैं मनुष्यों, और स्‍वर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झनझनाती हुई झांझ हूं” (1 कुरिन्थियों 13:1)। अर्थात, परमेश्वर की दृष्टि में महत्व पृथ्वी की अथवा अलौकिक भाषा बोल पाने का नहीं है, महत्व प्रेम को दिखाने और मिल-जुल कर प्रेम से रहने का है; और इसके विषय वह 11 अध्याय में, प्रभु-भोज के दर्शन समझाते समय भी उन से कह चुका था, उनमें ऊँच-नीच और बड़े-छोटे होना दिखाने की प्रवृत्ति की भर्त्सना कर चुका था। 

साथ ही इस बात पर भी ध्यान करें, कि 1 कुरिन्थियों 14:9 जो लिखा है, उसे ये गलत शिक्षाएं फैलाने वाले कभी सामने नहीं लाते हैं, कभी नहीं बताते हैं, क्योंकि यह पद उनके परमेश्वर से बातें करने के दावों की पोल खोल देता है। वहाँ लिखा हैऐसे ही तुम भी यदि जीभ से साफ साफ बातें न कहो, तो जो कुछ कहा जाता है वह क्योंकर समझा जाएगा? तुम तो हवा से बातें करने वाले ठहरोगे” (1 कुरिन्थियों 14:9)। स्पष्ट है कि जो भी बोला जाए वह अस्पष्ट या समझा न जाने वाला नहीं होना चाहिए, वरन सुनने वालों की समझ में आने वाली बात ही होनी चाहिए, जैसे प्रेरितों 2:3-11 में  थी - लोगों को समझ आ रहा था कि उनकी ही भाषाओं में कहा जा रहा है, परमेश्वर के बड़े-बड़े कामों की चर्चा की जा रही है। इस पद के अंत के वाक्य पर ध्यान कीजिए, “...तुम तो हवा से बातें करने वाले ठहरोगे।यदि पद 2 में उन लोगों के द्वारा विचित्र और निरर्थक ध्वनियाँ निकालना परमेश्वर से बातें करना था, तो फिर यहाँ लिखी गई यह बात कैसे संभव है? पवित्र आत्मा की अगुवाई में पौलुस प्रेरित यह बात कैसे लिख सकता है, क्योंकि यह तो परमेश्वर से बातें करने की बात के विपरीत और उसका अपमान करना है? या तो पद 2 में परमेश्वर से बात करना सही है, या फिर पद 9 में हवा से बातें करना सही है। दोनों तो एक साथ सही तब ही होंगे जब पद 2 की बात एक ताना है, और पद 9 की बात वास्तविकता है। अर्थात, स्वयं परमेश्वर के वचन ने ही तुरंत ही अपनी सही बात को सामने रख दिया है। और ये गलत शिक्षाएं देने वाले इस पद की, तथा इस संदर्भ के परमेश्वर के वचन के अन्य हवालों की अनदेखी करके, केवल अपनी ही बात को सही दिखाने के मतलब से, परमेश्वर के वचन का दुरुपयोग करते हैं, परमेश्वर के वचन में मिलावट करते हैं, परमेश्वर के नाम में झूठी शिक्षाएं और बातें सिखाते हैं।

अगले लेख से हम अन्य भाषाएं बोलने से संबंधित कुछ और बहुत महत्वपूर्ण बातों पर विचार करेंगे। यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के पालन को अपना लें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 15-16         
  • मरकुस 6:1-29  

शनिवार, 26 फ़रवरी 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (14)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (5) - अन्य-भाषाएं - कुछ और गलत शिक्षाएं 

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है, कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने, जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है। 

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा, प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखने के बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखना आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी के नया जन्म या उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है, और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना या पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना भी कहते हैं। वचन स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना या उससे बपतिस्मा पाना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, वरन उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास करना ही है। इन गलत शिक्षकों की एक और बहुत प्रचलित और बल पूर्वक कही जाने वाले बात हैअन्य-भाषाओंमें बोलना, और उन लोगों के द्वाराअन्य-भाषाओंको अलौकिक भाषाएं बताना, और परमेश्वर के वचन के दुरुपयोग के द्वारा इससे संबंधित कई और गलत शिक्षाओं को सिखाना। इसके बारे में भी हम देख चुके हैं कि यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार नहीं है। प्रेरितों 2 अध्याय में जो अन्य भाषाएं बोली गईं, वे पृथ्वी ही की भाषाएं और उनकी बोलियाँ थीं; कोई अलौकिक भाषा नहीं। हमने यह भी देखा था कि वचन में इस शिक्षा का भी कोई आधार या समर्थन नहीं है किअन्य-भाषाएंप्रार्थना की भाषाएं हैं। इस गलत शिक्षा के साथ जुड़ी हुई इन लोगों की एक और गलत शिक्षा है किअन्य-भाषाएंबोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है, जिसके भी झूठ होने और परमेश्वर के वचन के दुरुपयोग पर आधारित होने को हमने पिछले लेख में देखा है।

आज हम अन्य-भाषाएं बोलने से संबंधित कुछ अन्य गलत शिक्षाओं के बारे में देखेंगे। कुछ लोग अपनी इस बात को सही ठहराने के लिए कुछ और भी तर्क देते हैं:

क्याअन्य भाषाबोलना, बोलने का नहीं वरन सुनने का आश्चर्यकर्म था?

कुछ का कहना है कि प्रेरितों 2:3-11 में आश्चर्यकर्म बोलने का ही नहीं सुनने का भी था। अर्थात, प्रभु के शिष्य तो पृथ्वी के बाहर की अलौकिक भाषाएं बोल रहे थे, किन्तु एकत्रित यहूदियों को वह सुन उनकी अपनी स्थानीय भाषाओं और बोलियों में रहा था। 

यदि ऐसा था, तो फिर आज ऐसा क्यों नहीं होता है? आज क्यों सुनने वालों को केवल कुछ निरर्थक आवाज़ें ही सुनाई देते हैं? आज जब ये लोग और उनके अनुयायी बड़े जोर-शोर से अपनीअन्य-भाषाएंबोलते हैं तो क्यों लोगों को न तो उनकी अपनी भाषा सुनाई देती है और न ही कुछ समझ में आता है कि वे कह क्या रहे हैं! औरों को तो क्या, स्वयं बोलने वालों को भी पता नहीं होता है कि उन्होंने क्या कहा है!

क्या आज की यहअन्य भाषाएंपृथ्वी के किसी भिन्न स्थान की भाषाएं हैं

कुछ अन्य कहते हैं कि भाषाएं पृथ्वी ही की हैं, किन्तु किसी अन्य अनजाने देश अथवा स्थान की, जिसे उन बोलने वालों ने कभी नहीं सीखा या जाना, किन्तु पवित्र आत्मा उन से उन भाषाओं में बुलवाता है। इसे स्वीकार करने में दो मुख्य समस्याएं हैं: पहली तो यह कि आज जब लोगअन्य भाषाबोलते हैं, तो उनके मुँह के उच्चारण, आवाजों में न तो किसी भाषा के समान कोई प्रवाह दिखता है, और न ही कोई शब्द कहे जाने का आभास होता है। वे थोड़ी सी आवाजों को ही हर बार, हर बात के लिए, हर समय बारंबार दोहराते रहते हैं, जो भाषा होने के अनुरूप कदापि नहीं है। दूसरी बात, आज के समय में उनका किसी अन्य स्थान की भाषा बोलने का क्या औचित्य अथवा उपयोग है; वह भी तब जब बोलने वाले उन परदेश के स्थानों पर न तो जाते हैं और न सेवकाई करते हैं? किसी को अपनी व्यक्तिगत प्रार्थना या आराधना करने के लिए, किसी अन्य स्थान की भाषा बोलने की क्या आवश्यकता है? यदि व्यक्ति अपनी ही भाषा में प्रार्थना और आराधना नहीं कर सकता है, तो किसी अन्य भाषा में, जिसे वह नहीं जानता है, कैसे कर सकेगा; और वह कैसे जानेगा कि उसने क्या प्रार्थना या आराधना की है, परमेश्वर से क्या मांगा है? और पवित्र आत्मा उससे किसी अन्य भाषा में प्रार्थना और आराधना क्यों करवाएगा; ऐसा करने से क्या अतिरिक्त लाभ होगा? यह और भी विचित्र और हास्यास्पद हो जाता है जब यह ध्यान करें कि पृथ्वी के किसी और स्थान पर उसअन्य भाषा को स्वाभाविक रीति से बोलने वाले लोग, इसी प्रकार से, अपनी प्रार्थना और आराधना के लिए किसी और ही भाषा का प्रयोग करते होंगे! तो जो भाषा उनके अपने लिए प्रभावी नहीं है, वह किसी दूसरे के लिए प्रभावी कैसे हो सकती है?

क्या अन्य-भाषाएं प्रार्थना करने के लिए स्वर्गीय, गुप्त, भाषाएं हैं जिससे शैतान और उसके दूत हमारी प्रार्थनाओं को न समझ सकें, और उनमें बाधाएं न डालने पाएं?

अपनी निरर्थक आवाजों को अन्य-भाषाओं का जायज़ प्रतीत होने वाला स्वरूप देने के लिए ये लोग एक अन्य तर्क भी देते हैं कि उनकी वे अन्य-भाषाएं, परमेश्वर द्वारा दी गई स्वर्गीय और गुप्त भाषाएं हैं जिससे हम जो प्रार्थनाएं इन भाषाओं में करते हैं, उसे शैतान और उसके दूत समझ न सकें, और प्रार्थनाओं के उत्तर मिलने में बाधाएं न डाल सकें। जो यह तर्क देते हैं, उनके इस तर्क से यह प्रमाणित हो जाता है कि उन्हें बाइबल के सत्य, तथ्य, और इतिहास का कुछ पता नहीं है। उनकी इस बात का वचन से कोई समर्थन नहीं है। न ही वे यह ध्यान करते हैं कि अय्यूब की पुस्तक के पहले दो अध्यायों के अनुसार शैतान स्वर्ग में जाकर परमेश्वर के साथ मिलता और बात-चीत करता रहता है; उसे किसी स्वर्गीय भाषा से कोई अवरोध नहीं होता है। साथ ही परमेश्वर भी अपने लोगों के बारे में उसके साथ खुलकर बात करता है, परमेश्वर को भी इसका कोई भय नहीं है कि शैतान यदि उसकी इच्छा जान लेगा तो कुछ बिगाड़ उत्पन्न करेगा; क्योंकि परमेश्वर का जन परमेश्वर द्वारा निर्धारित सीमाओं के बाहर परखा ही नहीं जा सकता है (1 कुरिन्थियों 10:13)। इस गलत शिक्षा के द्वारा वे इस बात की भी अनदेखी करते हैं कि पाप के कारण स्वर्ग से निकाले और गिराए जाने तथा शैतान बनने से पहले लूसिफर और उसके दूत, स्वर्ग में परमेश्वर के साथ रहने वाला प्रधान स्वर्गदूत और उसके साथ के स्वर्गदूत थे। इसलिए स्वर्ग की कोई भाषा या बात उनसे छिपी नहीं है, स्वर्गीय भाषा हम मनुष्यों के लिएगुप्तहो सकती है, उनके लिए नहीं।  

और न ही यह गलत शिक्षा देने वाले इस बात को कहते समय यह ध्यान करते हैं कि जब प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों को प्रार्थना करने से संबंधित शिक्षाएं दीं, तब लोगों को दिखाने के लिए नहीं वरन एकांत में प्रार्थना करने को कहा, और प्रार्थना का एक स्वरूप भी दिया (मत्ती 6:5-13); किन्तु कभी भी प्रभावी प्रार्थना के लिए किसी अन्य-भाषा का प्रयोग करने की कोई बात नहीं कही या सिखाई। और न ही बाद में नए नियम की पुस्तकों में कहीं ऐसी कोई शिक्षा दी गई कि प्रभावी प्रार्थनाओं के लिए न समझी जाने वालीअन्य-भाषामें प्रार्थना करनी चाहिए। और यदि प्रार्थनाएं सुन और समझकर शैतान और उसके दूत उन्हें बाधित कर सकते हैं, तब तो वो परमेश्वर से अधिक सामर्थी हो गए, जो परमेश्वर की इच्छा और योजना, और उसकी संतानों के लिए परमेश्वर की आशीषों को जब चाहे रोक दें, और परमेश्वर इस विषय में कुछ न करने पाए! यह तथ्य भी उनकी इस बात के बिलकुल गलत होने को प्रकट कर देता है।

अगले लेख से हम 1 कुरिन्थियों 13-14 अध्याय में दी गई अन्य भाषाएं बोलने से संबंधित कुछ और बहुत महत्वपूर्ण बातों पर विचार करेंगे। यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के पालन को अपना लें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 12-14         
  • मरकुस 5:21-43 

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (13)

   

भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (5) - अन्य-भाषाएं - पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण?

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरितों और प्रभु के लोगों का भेस धारण कर के प्रस्तुत करते हैं। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। इन गलत या भ्रामक शिक्षाओं के मुख्य स्वरूपों के बारे में, जिन्हें शैतान और उसके लोग प्रभु यीशु के झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं, परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है कि, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता। अर्थात, इन भ्रामक शिक्षाओं के, गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है। इस पद में यह भी लिखा है कि इन तीनों विषयों के बारे में शैतान की युक्तियों के जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता दिए गए हैं। इसलिए वचन से देखने, जाँचने, शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है।

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखने के बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखना आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी के नया जन्म या उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है, और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना या पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना भी कहते हैं। वचन स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना या उससे बपतिस्मा पाना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, वरन उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास करना ही है। इन गलत शिक्षकों की एक और बहुत प्रचलित और बल पूर्वक कही जाने वाले बात हैअन्य-भाषाओंमें बोलना, और उन लोगों के द्वाराअन्य-भाषाओंको अलौकिक भाषाएं बताना। इसके बारे में पिछले लेख में हम देख चुके हैं कि यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार नहीं है। प्रेरितों 2 अध्याय में जो अन्य भाषाएं बोली गईं, वे पृथ्वी ही की भाषाएं और उनकी बोलियाँ थीं; कोई अलौकिक भाषा नहीं। हमने यह भी देखा था कि वचन में इस शिक्षा का भी कोई आधार या समर्थन नहीं है किअन्य-भाषाएंप्रार्थना की भाषाएं हैं। 

एक अन्य संबंधित गलत शिक्षा उन लोगों के द्वारा बल-पूर्वक यह सिखाना है कि अन्य-भाषाएं बोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है। आज हम इसी के विषय परमेश्वर के वचन बाइबल से देखेंगे। यदि आप 1 कुरिन्थियों 12:4-11 को देखेंगे, जो पवित्र आत्मा द्वारा वचन की सेवकाई के लिए दिए जाने वाले आत्मिक वरदानों के बारे में है, तो उसके 10 पद से यह स्पष्ट हो जाएगा कि अन्य-भाषा में बोलना, अन्य आत्मिक वरदानों के समान ही पवित्र आत्मा द्वारा दिया गया एक आत्मिक वरदान है। साथ ही इसी खंड में पद 8 से 10 में हर आत्मिक वरदान के लिए, बारंबारकिसी कोभी लिखा गया है; जो यह दिखाता है कि हर किसी को एक ही समान आत्मिक वरदान नहीं दिए गए, किसी को एक, किसी अन्य को कोई और, और इसी प्रकार भिन्न लोगों को भिन्न आत्मिक वरदान, उनकी सेवकाई के अनुसार, पवित्र आत्मा की इच्छा के अनुसार (पद 11) दिए गए हैं। बाइबल का यह खंड स्पष्ट है कि हर किसी को अन्य-भाषा में बात करने का वरदान नहीं दिया गया है। साथ ही यहाँ पर अन्य भाषाओं के विषय ऐसी कोई बात या कोई संकेत तक भी नहीं है जिसके आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जाए कि अन्य-भाषा में बोलना पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है। व्यक्ति में पवित्र आत्मा की उपस्थिति का प्रमाण तो उसका बदला हुआ जीवन, उसका पवित्र आत्मा के चलाए चलना और शारीरिक लालसाओं और अभिलाषाओं से दूर हो जाना, उसके जीवन में दिखने वाले आत्मा के फल हैं (गलातियों 5:22-26) 

 परमेश्वर पवित्र आत्मा के बारे में गलत शिक्षाएं फैलाने वाले ये लोग अपने इस दावे कोप्रमाणितकरने के लिए एक बहुत बड़ा झूठ बोलते हैं। वे दावे के साथ कहते हैं कि वचन में जब भी किसी ने पवित्र आत्मा प्राप्त किया है, उससे परिपूर्ण हुआ है, तो उसने अवश्य ही अन्य-भाषाएं भी बोली हैं; इसलिए यह मानने योग्य बात और प्रमाण है कि अन्य-भाषा बोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है। इस संदर्भ में शायद ही कभी किसी ने बेरिया के विश्वासियों के समान (प्रेरितों 17:11) इस बात की सच्चाई को जाँचने और उनके दावे की पुष्टि करने का प्रयास किया होगा - न तो उनके अपने साथियों और अनुयायियों ने, और न ही उन्होंने जिन्हें ये बड़ी हिम्मत के साथ यह बात कहते हैं।

जब हम वचन से उनके इस दावे को परखते हैं तो पाते हैं कि उनका यह तर्क भी कि वचन में जब भी पवित्र आत्मा प्राप्त करना आया है, साथ ही अन्य-भाषाएं बोलना भी आया है, इसी प्रकार से निराधार है। नए नियम में पवित्र आत्मा के किसी पर आने का सबसे पहला उल्लेख प्रभु यीशु की माता मरियम के लिए है (लूका 1:35), दूसरा उल्लेख यूहन्ना बपतिस्मा देने वाली की माता इलीशिबा का है (लूका 1:41), और तीसरा यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के पिता ज़कर्याह का है (लूका 1:67); किन्तु इन तीनों आरंभिक घटनाओं में कहीं कोई उल्लेख नहीं है कि इन में से किसी ने कभी कोईअन्य भाषाबोली - न तो उस समय जब वे पवित्र आत्मा से परिपूर्ण हुए, और न ही उसके बाद किसी अन्य अवसर पर। 

इसी प्रकार से बिना अन्य भाषा बोले पवित्र आत्मा से भरने के लिए प्रेरितों के कार्य में अन्य स्थानों पर भी आया है:

  • प्रेरितों 4:8 में पतरस के लिए
  • प्रेरितों 4:31 में शिष्यों के लिए 
  • प्रेरितों 6:5 में स्तिफनुस के लिए
  • प्रेरितों 8:17 में सामरियों के विश्वास में आने और पवित्र आत्मा पाने के लिए
  • प्रेरितों 9:17 में पौलुस के लिए

पुराने नियम में पवित्र आत्मा प्राप्त करने पर साथ ही अन्य भाषा में बोलने का भी कोई उदाहरण नहीं है:

  • बेजलील निर्गमन 31:3 
  • ओतनिएल न्यायियों 3:10 
  • गिदोन न्यायियों 6:34   
  • यिपताह न्यायियों 11:29 
  • शिमशोन न्यायियों 13:25, 14:6, 14:19, 15:14 
  • शाऊल 1 शमूएल 10:6; 10:10; 11:6; 19:23 
  • दाऊद 1 शमूएल 16:13 
  • शाऊल के दूत 1 शमूएल 19:20 
  • आमासाई 1 इतिहास 12:18  
  • अज़रियाह 2 इतिहास 15:1  
  • जहाज़ीएल  2 इतिहास 20:14 
  • ज़कर्याह 2 इतिहास 24:20
  • दानिय्येल दानिय्येल 4:8, 9, 18; 5:11, 14 
  • मीका मीका 3:8 

परमेश्वर के वचन के ये सभी हवाले उनके इस दावे के बिलकुल झूठ और वचन का दुरुपयोग होने, लोगों को बहकाने और भरमाने का कार्य होने को दिखा देते हैं। 

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के पालन को अपना लें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 9-11         
  • मरकुस 5:1-20

गुरुवार, 24 फ़रवरी 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (12)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - पवित्र आत्मा के विषय गलत शिक्षाएं (4) - अन्य-भाषाएं - प्रार्थना की अलौकिक भाषाएं?

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं में बहकाए भटकाए जाते हैं। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरितों और प्रभु के लोगों का भेस धारण कर के प्रस्तुत करते हैं। ये लोग और उनकी शिक्षाएं आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डाली हुई होती हैं। इन गलत या भ्रामक शिक्षाओं के मुख्य स्वरूपों के बारे में परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है कि इन भ्रामक शिक्षाओं के, गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन स्वरूप होते हैं, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, जिन्हें शैतान और उसके लोग प्रभु यीशु के झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं। सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए इन तीनों स्वरूपों के साथ इस पद में एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है। इस पद में लिखा है कि शैतान की युक्तियों के तीनों विषयों, प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार के बारे में जो यथार्थ और सत्य है वह वचन में पहले से ही बता दिया गया है।

पिछले लेखों में हमने इन लोगों के द्वारा प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं के बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखना आरंभ किया है। हम देख चुके हैं कि प्रत्येक सच्चे मसीही विश्वासी के नया जन्म या उद्धार पाते ही, तुरंत उसके उद्धार पाने के पल से ही परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी संपूर्णता में आकर उसके अंदर निवास करने लगता है, और उसी में बना रहता है, उसे कभी छोड़ कर नहीं जाता है; और इसी को पवित्र आत्मा से भरना या पवित्र आत्मा से बपतिस्मा पाना भी कहते हैं। वचन स्पष्ट है कि पवित्र आत्मा से भरना या उससे बपतिस्मा पाना कोई दूसरा या अतिरिक्त अनुभव नहीं है, उद्धार के साथ ही सच्चे मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा का आकर निवास करना ही है। इन गलत शिक्षकों की एक और बहुत प्रचलित और बल पूर्वक कही जाने वाले बात हैअन्य-भाषाओंमें बोलना, और उन लोगों के द्वाराअन्य-भाषाओंको अलौकिक भाषाएं बताना। यह भी एक ऐसी गलत शिक्षा है जिसका वचन से कोई समर्थन या आधार नहीं है। आज हम इसी के विषय परमेश्वर के वचन बाइबल से देखेंगे। 

अन्य-भाषाओं के विषय सीखने और समझने के लिए हमें उनके प्रभु यीशु के शिष्यों के मध्य पहले प्रकटीकरण, प्रेरितों 2:4-11 का, उसके संदर्भ और वहाँ परभाषाके लिए प्रयोग किए गए मूल यूनानी भाषा के शब्दों का उनके अर्थ के साथ विश्लेषण करना आवश्यक है। यह करने के बाद ही हम सही निष्कर्ष पर पहुँच सकते हैं।  

प्रेरितों के काम के इस खंड (प्रेरितों 2:4-11) में, इन पदों में, मूल यूनानी भाषा में दो महत्वपूर्ण शब्द प्रयोग किए गए हैं, किन्तु हिन्दी में दोनों ही का अनुवादभाषाकिया गया है। ये शब्द हैं ग्लौसा (Tongue/Glossa), जिसका यहाँ पर और वचन में अन्य स्थानों पर, मनुष्यों द्वारा बोली जाने वाली कोई भाषा के अर्थ में प्रयोग किया गया है। वास्तव में ग्लौसा शब्द का शब्दार्थ होता हैजीभ”; और इसेजीभ के समान दिखने वालीकिसी वस्तु के लिए भी प्रयोग किया जाता है, जैसा कि पद 3 में हुआ है; और इसे जीभ से निकलने वाले शब्द या स्वरों के लिए भी प्रयोग किया जाता है। और इन पदों में प्रयोग किया गया दूसरा शब्द है डियालेकटौस (Language/Dialektos), बोली, जिसका अर्थ किसी बोली जाने वाली मुख्य भाषा का एक उप-स्वरूप याबोलीहोता है। उदाहरण के लिए पूरे उत्तर भारत में बोली जाने वाली भाषाहिन्दीहै; उत्तराखंड के मैदानी इलाकों से लेकर पूर्व में बिहार तक हिन्दी ही बोली जाती है। किन्तु जैसे-जैसे भौगोलिक क्षेत्र बदलते हैं, उस हिन्दी का स्वरूप भिन्न होता जाता है, मुख्य हिन्दी भाषा की बोलियाँ भिन्न होती चली जाती हैं। और हिन्दी की उन बोलियों के द्वारा यह पहचाना जा सकता है कि हिन्दी बोलने वाला वह व्यक्ति उत्तर भारत के किस क्षेत्र का है। अर्थात मुख्य भाषा का ही एक भिन्न स्वरूप बोली है। पद 4 और 11 में मुख्य भाषा दिखाने वाला शब्द गलौसा शब्द प्रयोग किया गया है; किन्तु, पद 6 और 8 में मुख्य भाषा के भिन्न स्वरूपबोलीको दिखाने वाला शब्द डियालेकटौस प्रयोग किया गया है।

यद्यपि यदि केवल इसके मूल अर्थ के अनुसार देखें तो ग्लौसा शब्द जीभ या मुँह से निकलने वाले हर शब्द के लिए सही है; और इसी अभिप्राय का प्रयोग करते हुए ये गलत शिक्षाओं को देने वाले उनकी जीभ या मुँह से निकलने वाले अज्ञात और निरर्थक शब्दों को भीभाषाकहते हैं। किन्तु शेष पदों के साथ मिला कर देखने से यह स्पष्ट है कि इन पदों में ग्लौसा का अर्थ पृथ्वी की ज्ञात और पहचानी जाने वाली भाषा है, कोई अलौकिक भाषा, अथवा मुँह से निकाली जाने वाली कोई भी ध्वनि नहीं। 

पद 4 में लिखा है कि उस स्थान पर एकत्रित सभी जन पवित्र आत्मा से भरने के साथ ही अन्य-अन्य भाषाओं (ग्लौसा) में बोलने लग गए। 

पद 5-8 में लिखा है कि उस पिन्तेकुस्त के पर्व को मनाने के समय पर संसार के विभिन्न क्षेत्रों से आए हुए यहूदी यरूशलेम में एकत्रित थे; और साथ ही उन्हेंभक्त यहूदीकहा गया है। पद 6 और 8 में हिन्दी में जोभाषालिखा गया है वह मूल यूनानी मेंडियालेकटौस”, अर्थातबोलीहै। इसे इससे आगे के पदों के साथ अधिक सरलता से समझा जा सकता है। ये लोग अचंभित होकर कहने लगे किइस्राएल के गलील इलाके के रहने वाले ये लोग, अपनी गलीली बोली के स्थान पर, हमारीबोली” (डियालेकटौस) कैसे बोलने लग गए?” क्योंकि उन सभी भक्त यहूदियों को शिष्यों के मुँह से अपनी-अपनी जन्म-भूमि की बोलियाँ (डियालेकटौस) सुनाई दे रही थीं। 

पद 9-10 में पृथ्वी के 15 विभिन्न क्षेत्रों या भू-भागों का नाम दिया गया है जहाँ के लोग उस समय यरूशलेम में एकत्रित थे। और इन सभी लोगों को - जो हजारों की संख्या में थे (3000 का तो उद्धार हुआ और उन्होंने बपतिस्मा लिया), सभी को अपनी-अपनी ग्लौसा और डियालेकटौस में सुनाई दे रहा था कि प्रभु यीशु के वे शिष्य क्या कह रहे हैं। 

पद 11 में फिर से ग्लौसा अर्थात भाषा शब्द का प्रयोग किया गया है और साथ ही पवित्र आत्मा ने यह भी और स्पष्ट कर दिया है कि क्यों यह ग्लौसा पृथ्वी की ही भाषाएं थीं, स्वर्गीय या दिव्य भाषाएं नहीं थीं। इसके तीन प्रमाण पवित्र आत्मा ने यहाँ लिखवाए हैं:

1. जैसा हम ऊपर पद 6 और 8 में देख चुके हैं, न केवल उन लोगों ने मुख्य भाषाएं बोलीं, किन्तु साथ ही उन मुख्य भाषाओं से संबंधितबोलियाँया उन भाषाओं के क्षेत्रीय स्वरूपों को भी बोला। किन्तु आजअन्य-भाषाको पृथ्वी से बाहर की भाषा कहने वालों में कभी भी उन लोगों के द्वारा यह मुख्य भाषा और उसकी संबंधित विभिन्न बोलियों को बोलने की बात देखने में नहीं आती है, अर्थात यह कि कोई अपनी या किसी और की बोली जाने वालीअन्य-भाषाको किसी और मुख्य भाषा कीबोलीया क्षेत्रीय भाषा बताए। उन्हें तो अपने द्वारा बोली जाने वाली भाषा का ही नाम, अर्थ, व्याकरण, आदि पता नहीं होता है, तो किसी दूसरे की भाषा या बोली के लिए क्या कहेंगे? अन्य-भाषाओं से संबंधित वचन का यह प्रमुख गुण, आजअन्य-भाषाएंबोलने के नामे पर मुँह से निरर्थक ध्वनियाँ निकालने वालों में बिलकुल दिखाई नहीं देता है, तो फिर वे कैसे अपने इस व्यवहार कोवचन के अनुसारसही और जायज़ कह सकते हैं?

2. पद 6, 8 और 11 में लिखा है कि वहाँ एकत्रित सुनने वाले सभी यह पहचान रहे थे कि वे लोग उनकी भाषा या बोली में कुछ कह रहे हैं। यदि बोलने वाले पृथ्वी के बाहर की भाषाएं बोल रहे होते, तो फिर ये पृथ्वी के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों से एकत्रित हुए यहूदी मनुष्य यह कैसे कहने पाते कि उन्हें अपनी ही भाषा सुनाई दे रही है; क्योंकि उनकी अपनी भाषा का अभिप्राय तो उनके पृथ्वी के भौगोलिक क्षेत्र की भाषा या बोली से होता? आज जोअन्य-भाषाएंबोलने का दावा करते हैं, न तो उन्हें खुद ही और न ही उन्हें सुनने वालों को यह पता होता है कि उन्होंने क्या कहा है! जबकि प्रेरितों 2:4-11 में, और अन्य स्थानों पर भी, वचन में सदा ही यह स्पष्ट किया गया है कि सुनने वाले समझ रहे थे कि क्या कहा जा रहा है।

3. विभिन्न देशों से आए वे यहूदी न केवल अपनी भाषा और बोली पहचान रहे थे, वरन उन्हें यह भी समझ आ रहा था कि क्या कहा जा रहा है -परमेश्वर के बड़े-बड़े कामों की चर्चाकी जा रही है; अर्थात परमेश्वर के आराधना की जा रही है, उससे प्रार्थना नहीं की जा रही है। ध्यान कीजिए, वचन में न यहाँ पर, और न किसी अन्य स्थान पर अन्य-भाषा को प्रार्थना के लिए उपयोग किया गया दिखाया गया है। गलत शिक्षा वाले ये लोग अन्य-भाषाओं कोप्रार्थना करने की भाषाकहकर लोगों को भरमाते हैं, जबकि वचन में ऐसा कहीं नहीं लिखा है। अपनी बात के समर्थन में वे लोग रोमियों 8:26-27 “इसी रीति से आत्मा भी हमारी दुर्बलता में सहायता करता है, क्योंकि हम नहीं जानते, कि प्रार्थना किस रीति से करना चाहिए; परन्तु आत्मा आप ही ऐसी आहें भर भरकर जो बयान से बाहर है, हमारे लिये बिनती करता है। और मनों का जांचने वाला जानता है, कि आत्मा की मनसा क्या है क्योंकि वह पवित्र लोगों के लिये परमेश्वर की इच्छा के अनुसार बिनती करता हैका दुरुपयोग, उसमें अपने ही शब्द और तात्पर्य डालने के द्वारा करते हैं। 

रोमियों के इन पदों में साफ लिखा है कि परमेश्वर पवित्र आत्मा हमारी दुर्बलताओं की स्थिति में, जब हम नहीं जानते कि ऐसे में क्या प्रार्थना की जाए, तब स्वयं आहें भरकर हमारे लिए परमेश्वर की इच्छा के अनुसार विनती करता है। यहाँ यह कहीं नहीं लिखा या अर्थ दिया गया है कि पवित्र आत्मा मसीही विश्वासियों से अन्य-भाषा बोलने के द्वारा प्रार्थना करवाता है। आहें भरना, और वह भी किसी मनुष्य के द्वारा नहीं, वरन पवित्र आत्मा के द्वारा, अन्य भाषा बोलना नहीं है। इन पदों मेंहम नहीं जानतेमसीही विश्वासी की दुर्बलता की उस स्थिति के लिए आया है जिस में मसीही विश्वासी अपनी परिस्थिति से इतना अभिभूत या प्रभावित है कि उसे समझ ही नहीं आ रहा है कि वह क्या प्रार्थना करे; तब पवित्र आत्मा स्वयं उसके लिए प्रार्थना करके उसकी सहायता करता है। न तो रोमियों के ये पद मनुष्यों द्वारा अन्य-भाषाएं बोलने से संबंधित हैं, और न ही ये पद अन्य-भाषा बोलने को प्रार्थना की भाषा बताना जायज़ ठहराते हैं। इन पदों की इस प्रकार व्याख्या सर्वथा गलत है, वचन के साथ खिलवाड़ और वचन का जान-बूझ कर किया गया दुरुपयोग है। सामान्य समझ की बात है, जब हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं तो हमें पता होता है कि हम क्या और क्यूँ कह रहे हैं, परमेश्वर से क्या माँग रहे हैं। इन गलत शिक्षाओं वालों को तो स्वयं ही पता नहीं होता है कि उन्होंने कहा क्या है, तो फिर वे क्या प्रार्थना करते हैं, या क्या आराधना करते हैं, किसे पता है?

       आजअन्य-भाषाको पृथ्वी के बाहर की भाषा बताने वाले लोगों द्वारा मुँह से निकाली जाने वाली विचित्र आवाजों पर ऊपर कही गई तीनों में से एक भी बात लागू नहीं होती है। अर्थात, जब प्रेरितों 2:4-11 को उसके संदर्भ और शब्दों के अर्थ तथा अभिप्रायों के साथ देखा और अध्ययन किया जाए, तो इन गलत शिक्षाएं फैलाने वालों की बातों का झूठ तुरंत ही सामने आ जाता है। अगले लेख में हम अन्य-भाषाएं बोलने से संबंधित एक और बहुत फैलाई जाने वाली किन्तु बिलकुल गलत शिक्षा, कि अन्य-भाषा बोलना ही पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण है, के बारे में वचन से देखेंगे।   

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित इन गलत शिक्षाओं में न पड़ जाएं; न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाले ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर भी ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें। यदि आप इन गलत शिक्षाओं में पड़ चुके हैं, तो अभी वचन के अध्ययन और बात को जाँच-परख कर, सही शिक्षा को, उसी के पालन को अपना लें।

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • गिनती 7-8         
  • मरकुस 4:21-41