मेरा एक बड़ा ऑपरेशन होना था और उसके एक दिन पहले मैंने अपनी सहेली से बातें करते हुए उसे बताया कि मैं उस शल्यक्रीया को लेकर भयभीत हूँ। मेरी सहेली ने पूछा, "उस शल्यक्रीया की कौन सी बात तुम्हें डराती है?" मैंने उत्तर दिया, "मुझे बस इसी बात का डर लगता है कि ऑपरेशन के लिए बेहोश किए जाने के बाद मैं वापस होश में नहीं आऊँगी।" मेरा उत्तर सुनकर तुरंत ही मेरी सहेली ने मेरे लिए परमेश्वर से इन शब्दों में प्रार्थना करी: "पिता परमेश्वर आप सिंडी के भय के बारे में सब कुछ जानते हैं। कृप्या उसके मन को आश्वस्त करें और अपनी शान्ति से भरें। और साथ ही प्रभु, ऑप्रेशन के पश्चात उसे बेहोशी से भी बाहर निकाल लाएं।"
मुझे लगता है कि जब हम अपनी प्रार्थनाओं में परमेश्वर से वार्तालाप करते हैं तो वह इस प्रकार की स्पष्टवादिता से प्रसन्न होता है। जब उस अन्धे भिखारी बरतिमाई ने प्रभु यीशु को पुकारा और प्रभु उसकी पुकार सुनकर उस के पास गए, तब प्रभु यीशु ने उससे प्रश्न किया, "तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिए करूँ?" और उस अन्धे भिखारी ने प्रभु यीशु से कहा, "हे गुरू, यह कि मैं देखने लगूँ।" प्रभु यीशु ने उसे उत्तर दिया, "तेरे विश्वास ने तुझे चँगा किया है" (मरकुस 10:51-52)|
परमेश्वर के साथ वार्तालाप में हमें बात को इधर-उधर घुमा-फिरा कर कहने की कोई आवश्यकता नहीं है। संभव है कि कभी हम दाऊद के भजनों के समान परमेश्वर से अपनी बात को कहने के लिए काव्यात्मक भाषा का प्रयोग करें, किंतु ऐसे समय भी होते हैं जहाँ हमें स्पष्टवादी होकर अपने मन की बात दो-टूक कह देनी चाहिए; जैसे कि, "परमेश्वर पिता मैं क्षमाप्रार्थी हूँ कि मैंने...." या फिर, "परमेश्वर प्रभु यीशु, मैं आपसे बहुत प्रेम करता हूँ क्योंकि आपने मेरे लिए....", इत्यादि। अपने मन की बात कहने के लिए हमारा परमेश्वर के साथ स्पष्टवादी होना हमारे विश्वास की दृढ़ता को भी दिखाता है, क्योंकि हम यह दिखा रहे हैं कि हम किसी दूरस्त काल्पनिक व्यक्तित्व या किसी विचार मात्र से नहीं वरन एक ऐसे व्यक्तित्व से बात-चीत कर रहे हैं जो वास्तविक है, हमारे आस-पास विद्यमान है, हमसे बहुत प्रेम करता है और हमारे जीवनों में सम्मिलित तथा संलग्न रहता है।
जब हम प्रार्थना में परमेश्वर से वार्तालाप करें तो उसे यह नहीं चाहिए कि हम आकर्षक शब्दों का प्रयोग करें, या अपनी बात के व्यर्थ विवरण उसे दें; वह केवल हमारे मन की बात को हमारे मूँह से स्पष्टवादिता के साथ सुनना चाहता है क्योंकि वह तो हमें, हमारे मन को, हमारी आवश्यकताओं को, हमारी परेशानियों और हमारे जीवन से संबंधित सभी बातों को हमसे अधिक भली-भांति और हमसे पहले जानता है। - सिंडी हैस कैस्पर
हृदय की प्रार्थना एक समर्पित, विश्वासी तथा प्रार्थना से भरे हृदय से ही निकलती है।
किसी भी बात की चिन्ता मत करो: परन्तु हर एक बात में तुम्हारे निवेदन, प्रार्थना और बिनती के द्वारा धन्यवाद के साथ परमेश्वर के सम्मुख अपस्थित किए जाएं। - फिलिप्पियों 4:6
बाइबल पाठ: मरकुस 10:46-52
Mark 10:46 और वे यरीहो में आए, और जब वह और उसके चेले, और एक बड़ी भीड़ यरीहो से निकलती थी, तो तिमाई का पुत्र बरतिमाई एक अन्धा भिखारी सड़क के किनारे बैठा था।
Mark 10:47 वह यह सुनकर कि यीशु नासरी है, पुकार पुकार कर कहने लगा; कि हे दाऊद की सन्तान, यीशु मुझ पर दया कर।
Mark 10:48 बहुतों ने उसे डांटा कि चुप रहे, पर वह और भी पुकारने लगा, कि हे दाऊद की सन्तान, मुझ पर दया कर।
Mark 10:49 तब यीशु ने ठहरकर कहा, उसे बुलाओ; और लोगों ने उस अन्धे को बुलाकर उस से कहा, ढाढ़स बान्ध, उठ, वह तुझे बुलाता है।
Mark 10:50 वह अपना कपड़ा फेंककर शीघ्र उठा, और यीशु के पास आया।
Mark 10:51 इस पर यीशु ने उस से कहा; तू क्या चाहता है कि मैं तेरे लिये करूं? अन्धे ने उस से कहा, हे रब्बी, यह कि मैं देखने लगूं।
Mark 10:52 यीशु ने उस से कहा; चला जा, तेरे विश्वास ने तुझे चंगा कर दिया है: और वह तुरन्त देखने लगा, और मार्ग में उसके पीछे हो लिया।
एक साल में बाइबल:
- याकूब 3-5