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मृत्यु के प्रति सही मसीही रवैया क्या है?
सामान्यतः संसार
के सभी लोगों में, वे चाहे किसी भी धर्म अथवा मान्यता के हों, मृत्यु के प्रति एक भय का रवैया देखा जाता है।
लोग मृत्यु के बारे में बात नहीं करना चाहते हैं, अनिश्चित होते हैं,
जितना संभव हो सके मृत्यु
को टालना चाहते हैं। नया जन्म पाए हुए मसीही विश्वासी भी सामान्यतः यही रवैया रखते
हैं, यद्यपि उनके प्रचार और शिक्षाओं में एक भिन्न ही बात कही जाती है। प्रभु यीशु
मसीह के पुनरुत्थान ने प्रत्येक नया जन्म पाए हुए मसीही विश्वासी को इस बात का
आश्वासन दिया है कि उनके लिए मृत्यु जीवन का अन्त नहीं है। परमेश्वर के वचन बाइबल
की शिक्षा है कि जो प्रभु में हैं, वे एक दिन उसके
साथ, उसके समान जी भी उठेंगे (यूहन्ना
11:25-26; 1 कुरिन्थियों 15:19-22; 1 थिस्सलुनीकियों 4:13-18); और शारीरिक मृत्यु के
बाद का मसीह यीशु के साथ का जीवन इस पृथ्वी के जीवन से कहीं अधिक भला है (यशायाह 57:1; फिलिप्पियों 1:23; प्रकाशितवाक्य 7:14-17)। प्रभु
यीशु ने हमारे लिए मृत्यु सहन कर के न केवल हमें पापों से क्षमा दी और हमारा
मेल-मिलाप परमेश्वर से करवाया है (रोमियों 5:8-11), वरन शैतान की मृत्यु की ताकत
को भी हमेशा के लिए तोड़ दिया है और अपने विश्वासियों को मृत्यु के भय से छुड़ा लिया
है (इब्रानियों 2:14-15)। लेकिन फिर भी एक आम मसीही विश्वासी मृत्यु को लेकर संसार
के अन्य लोगों के समान ही रवैया रखता है, और मृत्यु से डरता है।
एक नया जन्म
पाए हुए मसीही विश्वासी को, संसार के लोगों के समान मृत्यु से डरने और संसार के
लोगों के समान उससे बचने के प्रयास और उपाय करने की कोई आवश्यकता नहीं है, किन्तु
साथ ही उसे मृत्यु को लेकर मूर्खतापूर्ण व्यवहार और रवैया भी नहीं रखना चाहिए।
प्रत्येक मसीही विश्वासी को परमेश्वर के द्वारा उसे प्रदान की गई आयु को इस प्रकार
से पूरा जीना चाहिए कि उसके जीवन से परमेश्वर की महिमा हो तथा मसीह यीशु में लाए
गए विश्वास के द्वारा पापों की क्षमा और उद्धार के सुसमाचार का भी प्रचार और
प्रसार हो। उसके किसी भी कार्य अथवा व्यवहार लोगों को, विशेष कर अविश्वासी लोगों को, प्रभु के पीछे
चलने के प्रति कदापि कोई संदेह नहीं करना चाहिए, अथवा पीछे नहीं हटना चाहिए। इस सिद्धान्त का एक उत्तम उदाहरण है शैतान
द्वारा की गई प्रभु यीशु की दूसरी परीक्षा (मत्ती 4:5-7), जिस में शैतान प्रभु से
कहता है कि वह अपने आप को मन्दिर की चोटी से गिरा दे। यदि प्रभु यीशु ने यह किया
होता, तो निश्चय ही उसे शारीरिक रीति से न तो
कोई चोट लगती और न ही कोई हानि होती; किन्तु उसके इस
कार्य के कारण उसके बारे में लोगों पर क्या प्रभाव पड़ता, और लोग उसकी मानसिक
स्थिति, विचार और व्यवहार आदि के बारे में क्या
सोचते? उसके ऐसा करने के बाद कितने लोग उसके पीछे चलने और उसे उद्धारकर्ता स्वीकार
करने के इच्छुक होते?
मसीही
विश्वासियों में भी संसार के लोगों के समान ही मृत्यु का भय देखे जाने का एक और
कारण है कि हर कोई जो अपने आप को मसीही विश्वासी कहता है, वह बाइबल की परिभाषा के अनुसार (प्रेरितों 11:26) वास्तव में, मसीही विश्वासी नहीं होता है, अर्थात मसीह यीशु का सच्चा और पूर्णतः समर्पित
शिष्य जो प्रभु और उसकी आज्ञाकारिता को अपने जीवन में प्रथम स्थान देता है।
क्योंकि ये लोग वास्तव में वे नहीं होते हैं, जिन्हें बाइबल मसीही कहती है, इसलिए मसीही
विश्वासी के सभी गुण और व्यवहार भी उनके जीवनों में दिखाई नहीं देते हैं। किन्तु
क्योंकि ये लोग अपने आप को मसीही कहते हैं, इसलिए उनके जीवन, कार्य, और व्यवहार के
कारण बहुत से लोग मसीह यीशु और मसीही जीवन के लिए ठोकर खाते हैं। इस प्रकार के लोग, अपने उद्धार के लिए अनिश्चित होते हैं और प्रभु
के सामने न्याय के लिए खड़े होने और अपने जीवन का हिसाब देने से डरते हैं, और अपने अन्दर मृत्यु और उसके बाद होने वाली
बातों के प्रति वही भय रखते हैं जो संसार का कोई भी व्यक्ति सामान्यतः रखता है।
एक तीसरा
प्रमुख कारण हो सकता है ‘अनजाने का भय।’ यह सच है कि उन
मसीही विश्वासियों ने मृत्यु के बाद स्वर्ग में प्रभु परमेश्वर के साथ परम-आनन्द
में होने के बारे में पढ़ा,
सुना, और सीखा है; किन्तु उन्होंने इस सत्य को अपने
जीवन में लागू नहीं किया है; मृत्यु के बाद की
स्थिति अभी भी उनके लिए एक अनजानी सी बात है, इसलिए वे उस ‘अनजाने’ से डरते हैं, उसका सामना करना नहीं चाहते हैं। इसे एक उदाहरण के दवा समझिए – किसी इलाज
के लिए सुई या इंजेक्शन लगवाना। अधिकांश लोग, वयस्क भी, सुई लगवाने से बहुत डरते हैं। यद्यपि
उन्होंने इसके बारे में पढ़ा और सुना होगा, कई बार देखा भी होगा, तथा साथ ही उनके दोस्त-रिश्तेदार और सुई लगाने वाले
भी उन्हें समझाते और आश्वस्त करते हैं कि यह उतनी पीड़ादायक बात नहीं है जितनी कि
वे समझ रहे हैं; लेकिन फिर भी सुई लगवाते समय बहुत से लोग
बच्चों के समान व्यवहार करते हैं, मानो कोई बहुत भारी
कष्टदायक कार्य होने वाला है। चाहे सुई लग जाने के बाद वे यह मान लें कि जितना
उन्होंने सोचा था, यह उतना पीड़ादायक कदापि नहीं था। उसी
प्रकार से मृत्यु के बाद की स्थिति के बारे में जानकारी रखने वाले भी कई बार बाइबल
के तथ्यों पर कम और पानी कल्पनाओं तथा औरों से सूनी-सुनाई बातों पर अधिक भरोसा
करते हैं, जो उनके व्यवहार से दिखाई देता है।
मसीही विश्वासी
के मृत्यु के प्रति भय का दृष्टिकोण रखने का एक चौथा कारण हो सकता है कि यद्यपि वे
वास्तव में नया जन्म पाए हुए मसीही विश्वासी हैं, लेकिन अभी भी वे प्रभु के सामने खड़े होकर अपने जीवन का हिसाब देने के लिए
तैयार नहीं हैं। उनके जीवन में अभी भी ऐसी बातें हैं जिन्हें प्रभु पसंद नहीं करता
है, और उनके कारण वे प्रभु के सामने आने से कतराते
हैं। और इसीलिए, जब तक संभव हो वह इस घड़ी को, संसार के
अन्य लोगों के समान ही, टालते रहना चाहते हैं, क्योंकि वे यह जानते हैं कि हिसाब तो लिया जाएगा,और उन्हें देना भी होगा।
लेकिन नया जन्म पाए हुए वे मसीही विश्वासी जो प्रभु परमेश्वर तथा उसके वचन पर पूरा भरोसा रखते हैं, तथा अपने आप को कभी भी प्रभु के पास बुलाए जाने के लिए तैयार बनाए रखते हैं, वे मृत्यु से नहीं डरते हैं। वे मृत्यु के शीघ्रता से आने के लिए कार्य नहीं करते हैं, किन्तु जब आएगी, तो उसे स्वीकार करने से भी नहीं घबराते हैं।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
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What is a proper Christian Attitude towards death?
Generally speaking,
all kinds of people all over the world, whichever religion or belief they may
be following, have an attitude of fear towards death. People don't like to talk
about death, are uncertain and apprehensive about it, and try to postpone death
as much as they possibly can. The Born-Again Christian Believers too often have
a similar attitude, although in their preaching and teaching they are taught something
much different from this. The resurrection of the Lord Jesus has assured every
Christian Believer that death is not the end of life for them. It is the
teaching of the God's Word, the Bible, that those who are in Christ, one day
they too will be resurrected like the Lord Jesus (John 11:25-26; 1 Corinthians
15:19-22; 1 Thessalonians 4:13-18); and the life after physical death is far
better than the life on this earth (Isaiah 57:1; Philippians 1:23; Revelation
7:14-17). By suffering death for us, the Lord Jesus has not only provided us
forgiveness of sins and reconciliation with God (Romans 5:8-11), but also has
forever broken the bondage of Satan that he exercised through the fear of
death, and has delivered His Believers from it (Hebrews 2:14-15). But still, an
average Christian Believer exhibits an attitude similar to the people of the
world regarding death, and is afraid of facing it.
A truly
Born-Again Christian Believer, has no reason to fear and make efforts to avoid
death as the people of the world do; but neither should he be foolhardy about
death. He should take every precaution
to fulfill his God-given life span in a manner that not only glorifies God but
also witnesses for God and for salvation through faith in the Lord Jesus
Christ. None of his actions or way of life should make others, especially
non-believers, step back or step away from following Christ. We see this well illustrated
in the second temptation of Christ by Satan (Matthew 4:5-7), where Satan asks
Christ to throw Himself down from the pinnacle of the temple. For sure, had the
Lord Jesus thrown Himself down, He wouldn’t have suffered any physical hurt or
injury; but what impression would it have conveyed to the crowd about His
mental stability, thinking, and behavior? How many would have liked to follow
Him, had he done that?
Another
major factor because of which fear of death is seen amongst the Christian
Believers is that all those who call themselves Christians are not really
Christians, as defined by the Bible (Acts 11:26), i.e., true, committed
disciples of the Lord Jesus who accord Him the primary place and obedience in
their lives. Since they are not the people that the Bible actually calls
Christians, therefore, all attributes and characteristics of being a Christian
are also not evident in their lives. Yet, because they call themselves
Christians, therefore many are made to stumble about Lord Jesus and are misled
about Christian Faith and living, by their lives. Within themselves they are
apprehensive of and unsure of their salvation, of being able to stand before
the Lord and give an account of their lives; therefore, it is only natural and
expected that they would be afraid of death and what follows after that.
A third
factor can be the fear of the unknown. Yes, theoretically they have learned,
read, and known about going to heaven and being in bliss with the Lord, once
their life on earth comes to an end. But they have not yet applied this truth
in their lives; they still have the fear of the unknown, what will actually
happen once they die, and so they remain afraid of death. Understand it through
an example - of having to take an injection for some treatment. Most people,
even adults, are terrified of taking an injection. Although they may have read,
heard, seen many times that it is actually not as painful a thing as they
imagine it to be; and those giving them the injection, as well as their
relatives or friends may be saying the same to them at the time they have to
receive the injection. But still, many throw tantrums and behave as if it is
like torturing them, or that some great harm is being done to them. Although
after it is done, they will admit that the experience wasn’t as painful as they
had imagined it would be. Similarly, many are afraid of death, because of their
own imaginations or things they may have heard from others, and that is then
seen in their behavior.
A fourth
reason can be that though they are Born-Again Christian Believers, they are not
really prepared and ready to face the Lord and give an account of their lives
to Him. There are still things in their lives that are not pleasing to the
Lord, and they don't want to face the Lord while those things are in them.
Therefore, they want to postpone it till as far as they possibly can, and
remain afraid of death, knowing that accountability will follow.
But the truly Born-Again Christian Believers, who trust the Lord and His Word, who live in submission and obedience to Him, always keep themselves prepared and ready to be called home to the Lord, whenever he decides to do so, and are not afraid of dying. Though they will not hasten death for themselves, they will also not be afraid of embracing it, as and when it comes.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life. Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.
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