परमेश्वर के वचन बाइबल में जब मूसा ने परमेश्वर के मण्डप, उसके निवास-स्थान, के बनाने का कार्य आरंभ किया तो सारे इस्त्राएलियों को बुलाया (निर्गमन 35-39), और परमेश्वर द्वारा तैयार कर के नियुक्त किए गए कुशल कारीगर बसलेल को यह कार्य करने की ज़िम्मेदारी सौंपी। इस्त्राएल के लोगों से कहा गया कि वे इस कार्य के लिए अपने पास उपलब्ध सामान में से वे स्वेच्छा से दें; और कुछ स्त्रियों ने अपने पीतल के बहुमूल्य दर्पण भी परमेश्वर की उपस्थिति के स्थान का सामान बनाने के लिए दिए (निर्गमन 38:8)।
अपने दर्पण दान कर दिए? हम में से अनेकों के लिए यह करना कठिन होगा कि कोई ऐसी वस्तु दान कर दें जिसके द्वारा हम अपने आप को देखने संवारने पाते हैं। हमें ऐसा करने के लिए कहा तो नहीं जाता है, परन्तु यह मुझे विचारने पर विवश करता है कि हम अपने आप को देखने, संवारने और अपने स्वरूप की जाँच करते रहने में कितना समय बिताते हैं? ऐसा करना हमें अपने बारे में अधिक और दूसरों के बारे कम सोचने वाला बना देता है।
लेकिन जब हम बाइबल की इस शिक्षा पर ध्यान देते हैं कि हम जैसे भी हैं, हमारी खामियों और अधूरेपन के बावजूद, परमेश्वर हम से ऐसे में भी प्रेम करता है, तो यह हमें अपने चेहरों या स्वरूप के बारे में चिंतित होने की बजाए परमेश्वर तथा अन्य लोगों के बारे में सोचने के लिए प्रेरित करता है (फिलिप्पियों 2:4)।
ऑगस्टीन ने कहा, हम अपने आप से प्रेम करने से तो खो जाते हैं, परन्तु दूसरों से प्रेम करने में पाए जाते हैं। दूसरे शब्दों में, आनन्दित रहने का रहस्य अपने चेहरों को संवारने में नहीं वरन अपने हृदय, अपने जीवन, अपने आप को दूसरों को संवारने के लिए दे देने में है, जैसा कि हमारे प्रभु यीशु ने हमारे लिए किया और हमारे सामने अनुसरण करने के लिए उदाहरण रखा। - डेविड रोपर
वह हृदय जो दूसरों को संवारने पर केंद्रित है,
स्वार्थ द्वारा कभी नाश नहीं हो सकता।
निदान हम बलवानों को चाहिए, कि निर्बलों की निर्बलताओं को सहें; न कि अपने आप को प्रसन्न करें। हम में से हर एक अपने पड़ोसी को उस की भलाई के लिये सुधारने के निमित प्रसन्न करे। - रोमियों 15:1-2
बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 2:1-11
Philippians 2:1 सो यदि मसीह में कुछ शान्ति और प्रेम से ढाढ़स और आत्मा की सहभागिता, और कुछ करूणा और दया है।
Philippians 2:2 तो मेरा यह आनन्द पूरा करो कि एक मन रहो और एक ही प्रेम, एक ही चित्त, और एक ही मनसा रखो।
Philippians 2:3 विरोध या झूठी बड़ाई के लिये कुछ न करो पर दीनता से एक दूसरे को अपने से अच्छा समझो।
Philippians 2:4 हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों के हित की भी चिन्ता करे।
Philippians 2:5 जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा ही तुम्हारा भी स्वभाव हो।
Philippians 2:6 जिसने परमेश्वर के स्वरूप में हो कर भी परमेश्वर के तुल्य होने को अपने वश में रखने की वस्तु न समझा।
Philippians 2:7 वरन अपने आप को ऐसा शून्य कर दिया, और दास का स्वरूप धारण किया, और मनुष्य की समानता में हो गया।
Philippians 2:8 और मनुष्य के रूप में प्रगट हो कर अपने आप को दीन किया, और यहां तक आज्ञाकारी रहा, कि मृत्यु, हां, क्रूस की मृत्यु भी सह ली।
Philippians 2:9 इस कारण परमेश्वर ने उसको अति महान भी किया, और उसको वह नाम दिया जो सब नामों में श्रेष्ठ है।
Philippians 2:10 कि जो स्वर्ग में और पृथ्वी पर और जो पृथ्वी के नीचे है; वे सब यीशु के नाम पर घुटना टेकें।
Philippians 2:11 और परमेश्वर पिता की महिमा के लिये हर एक जीभ अंगीकार कर ले कि यीशु मसीह ही प्रभु है।
एक साल में बाइबल:
- व्यवस्थाविवरण 20-22
- मरकुस 13:21-37