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गुरुवार, 5 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – अनुपम एवं विशिष्ट – 1


          हम बाइबल को ‘परमेश्वर का वचन’ कहकर संबोधित करते हैं; प्रत्येक धर्म की अपनी पुस्तकें हैं, और हर धर्म के मानने वाले भी अपने धर्म-ग्रंथों के लिए यही कहते हैं, कि उनके वे ग्रंथ परमेश्वर भी ईश्वरीय हैं। इसके अतिरिक्त, संसार भर में साहित्य, दर्शन-शास्त्र, धर्म तथा धार्मिक व्याख्यानों, नैतिक शिक्षाओं, आदि से संबंधित कई पुस्तकें हैं जो बहुत विख्यात हैं, और उन्हें अपने प्रकार की अनुपम कृतियाँ कहा अजात है, तुलना के लिए मानक के समान प्रयोग किया जाता है। तो फिर बाइबल में ऐसा क्या है जिसके आधार पर मसीही विश्वास में उसे ‘परमेश्वर का वचन’ कहा जाता है; उसे अन्य किसी भी पुस्तक अथवा ग्रंथ से भिन्न माना जाता है, और जिसके आधार पर कहा जाता है कि केवल यही एक पुस्तक वह पुस्तक है जो वास्तव में परमेश्वर का वचन है। बाइबल में ऐसा अनुपम और विशिष्ट क्या है, जो और किसी पुस्तक अथवा धर्म-ग्रंथ में नहीं  है?

आज के इस लेख में हम बाइबल की कुछ बातों को देखेंगे जो इसे अन्य किसी भी पुस्तक से भिन्न, अनुपम, एवं विशिष्ट बनाती हैं, और इस दावे के पुष्टि करती हैं कि यही वास्तव में जीवते, सच्चे परमेश्वर का वचन है।

          1. इसे जाँचने के दावे में अनुपम: यद्यपि हर धर्म के ग्रंथ के लिए उसके परमेश्वर का वचन होने का दावा किया जाता है, किन्तु बाइबल ही एकमात्र है जो अपने दावों और बातों के लिए उसे जाँचने और परखने का निमंत्रण देती है। अन्य किसी भी धर्म में यदि उसके धर्म ग्रंथ को जाँचने, परखने,आलोचनात्मक विश्लेषण तथा तुलना करने आदि का प्रयास किया जाए तो उस धार्मिक समुदाय के लोग इसे उनके धर्म और धर्म ग्रंथ का अपमान मानते हैं, और कटु प्रतिक्रिया देने में संकोच नहीं करते हैं। संसार के इतिहास में ऐसे कितने ही उदाहरण विद्यमान हैं जब धर्म या धर्म-ग्रंथ से संबंधित बातों पर प्रश्न उठाने या उनका विश्लेषण करके उनकी मान्यताओं पर प्रश्न उठाने के कारण दंगे तथा जान-माल की हानि  हुई है।

          किन्तु बाइबल ही एकमात्र ऐसा धर्म-ग्रंथ है जो सभी को आमंत्रित करता है कि उसे जाँचें और परखें। इस संदर्भ में बाइबल के कुछ पद देखिए:

          1 थिस्स्लुनीकियों 5:21 – "सब बातों को परखो: जो अच्छी है उसे पकड़े रहो।" यह बाइबल की शिक्षा है कि पहले हर बात, हर शिक्षा, हर धारणा को जाँचा जाए, और खरा उतारने पर ही उसे स्वीकार किया जाए। बाइबल अंध विश्वास को स्वीकार नहीं करती है, बढ़ावा नहीं देती है।

          प्रेरितों 17:11 – "ये लोग तो थिस्सलुनीके के यहूदियों से भले थे और उन्होंने बड़ी लालसा से वचन ग्रहण किया, और प्रति दिन पवित्र शास्त्रों में ढूंढ़ते रहे कि ये बातें यों ही हैं, कि नहीं।" यह पद बेरिया नामक एक स्थान पर मसीही विश्वासियों की एक मँडली में पौलुस द्वारा परमेश्वर के वचन के प्रचार की जाने के विषय में है। पौलुस नए नियम का बहुत प्रमुख और आदरणीय पात्र है; उसी के द्वारा नए नियम के लगभग दो-तिहाई पुस्तकें  लिखी गई हैं। जब पौलुस ने बेरिया के मसीही विश्वासियों के मध्य प्रभु यीशु मसीह के विषय प्रचार किया, तो, जैसा पद में लिखा है, उन लोगों ने तुरंत ही उन बातों पर इसलिए विश्वास नहीं कर लिया कि पौलुस जैसा सुविख्यात परमेश्वर के जन ने उन्हें वे बातें बताईं और सिखाईं थीं।  वरन, उन्होंने प्रतिदिन पहले जा कर पौलुस की शिक्षाओं को उनके पास उपलब्ध पुराने नियम की पुस्तकों और शिक्षाओं के साथ मिलाकर जाँचा, और जब पौलुस की शिक्षाओं को सत्य पाया, तब ही उनपर विश्वास किया। किन्तु साथ ही उनके द्वारा याह जाँच-परख करने के लिए उनकी कोई आलोचना नहीं की गई, वरन उन्हें अन्य यहूदियों से जिन्होंने मसीह पर विश्वास किया था, इस बात के लिए, 'भला' कहा गया।

          आज यदि किसी धर्म-प्रचारक की शिक्षाओं के प्रति कोई सवाल-जवाब कर ले, तो बहुत समस्या खड़ी हो जाती है; ऐसा करने वालों की निन्दा तथा ताड़ना की जाती है। केवल बाइबल ही है जो साफ, खुला, दो-टूक कहती है कि आओ और जाँचो, और संतुष्ट होने पर ही विश्वास करो।

          भजन 34:8 – "परखकर देखो कि यहोवा कैसा भला है! क्या ही धन्य है वह पुरुष जो उसकी शरण लेता है।" बाइबल ही एकमात्र ऐसी पुस्तक है जो ना केवल अपने आप को जाँचने का निमंत्रण देती है, वरन उस परमेश्वर 'यहोवा' को भी, जिसका बाइबल वचन है, परख कर देखने के लिए आमंत्रित करती है। यह बाइबल की खुली शिक्षा है कि कोई भी आकर बाइबल के परमेश्वर के भले होने को जाँच-परख कर देख ले; इसमें बुरा मानने या एतराज़  करने की कोई बात नहीं है। प्रभु यीशु मसीह ने अपने आलोचकों को खुली चुनौती दी, "परन्तु मैं जो सच बोलता हूं, इसीलिये तुम मेरी प्रतीति नहीं करते। तुम में से कौन मुझे पापी ठहराता है? और यदि मैं सच बोलता हूं, तो तुम मेरी प्रतीति क्यों नहीं करते? जो परमेश्वर से होता है, वह परमेश्वर की बातें सुनता है; और तुम इसलिये नहीं सुनते कि परमेश्वर की ओर से नहीं हो (यूहन्ना 8:45-47); और कोई उसके विरुद्ध कुछ प्रमाणित नहीं कर सका, उसकी चुनौती का सामना नहीं कर सका - तब से लेकर आज तक भी नहीं।

          यह केवल बाइबल अध्ययन के कौलेजों (सेमीनरी) में ही पाया जाता है कि इस प्रकार का बाइबल विश्लेषण एवं जाँचना परखना, पाठ्यक्रम का एक महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग है, और छात्रों को बाइबल की बातों को परखने और जाँचने की विधियों की शिक्षा दी जाती है। साथ ही, यह केवल बाइबल अध्ययन के कौलेजों (सेमीनरी) में ही पाया जाता है कि बाइबल का अध्ययन करने वालों के लिए अन्य धर्मों की मान्यताओं की शिक्षा भी प्रदान की जाती है, और छात्रों को प्रत्येक धर्म के बारे में विस्तृत जानकारी दी जाती है, कौलेज (सेमीनरी) की लाइब्रेरी में सभी धर्मों से संबंधित पुस्तकें भी रखी जाती हैं, जिससे छात्र स्वयं पढ़ सकें और जान सकें कि तुलना में बाइबल और अन्य धर्म तथा उनके धर्म-ग्रंथ परस्पर कहाँ खड़े हैं।

          जाँचने, परखने, समझने का यह व्यवहार बाइबल और मसीही विश्वास में अनूठा एवं अनुपम है, क्योंकि न बाइबल और न ही मसीही विश्वास किसी को किसी छल अथवा कपट के द्वारा प्रभावित करने में विश्वास रखता है, वरन उसकी हर बात खुली, स्पष्ट, और अवलोकन के लिए उपलब्ध है। 

 

 

बाइबल पाठ: 2 तीमुथियुस 3:15-17

2 तीमुथियुस 3:15 और बालकपन से पवित्र शास्त्र तेरा जाना हुआ है, जो तुझे मसीह पर विश्वास करने से उद्धार प्राप्त करने के लिये बुद्धिमान बना सकता है।

2 तीमुथियुस 3:16 हर एक पवित्र शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिये लाभदायक है।

2 तीमुथियुस 3:17 ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिये तत्पर हो जाए।

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 66-67
  • रोमियों 7