इन दिनों में हम आने वाले ईस्टर के उत्सव के बारे में सोचने लग जाते हैं और मेरा ध्यान प्रभु यीशु द्वारा समस्त मानव जाति के पापों की क्षमा और उद्धार के लिए दिए गए बलिदान की ओर जाता है, जिसके द्वारा मेरा और सभी लोगों का परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप होना संभव हो सका। इस बात को समझने के लिए कि प्रभु यीशु को मेरे पापों की क्षमा तथा उद्धार के लिए क्या कुछ बलिदान करना पड़ा, मैं भी अपना एक छोटा बलिदान करती हूँ - उपवास। जब मैं उपवास में उन वस्तुओं का इनकार करती हूँ जो सामान्यतः मुझे अच्छी लगती हैं, तो उन वस्तुओं की प्रत्येक लालसा मुझे स्मरण दिलाती है कि मेरे प्रभु ने मेरे लिए क्या कुछ छोड़ दिया।
क्योंकि मैं अपने उपवास रूपी बलिदान में सफल रहना चाहती हूँ, इसलिए मैं केवल उन ही वस्तुओं का उपवास रखती हूँ जो मेरे लिए अधिक बड़ा प्रलोभन नहीं हों, लेकिन फिर भी मैं कई बार अपने उपवास में चूक जाती हूँ। इतनी छोटी से बात में भी मेरा असफल रहना मुझे समझाता है कि ईस्टर हमारे लिए क्यों महत्वपूर्ण है - यदि हम अपने ही प्रयासों से सिद्ध या सफल हो सकते तो प्रभु यीशु को हमारे बदले अपना बलिदान देने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी; वे केवल निर्देश दे देते और हम कार्य कर लेते!
प्रभु यीशु के पास एक बहुत धनी युवक आया और अपने भले कार्यों के द्वारा अनन्त जीवन की प्राप्ति का प्रयास करने लगा। प्रभु यीशु ने उससे कहा, कि वह अपने सांसारिक धन को छोड़ कर के स्वर्ग में धन एकत्रित करे; लेकिन उसके लिए यह बलिदान बहुत भारी था और वह निराश होकर लौट गया। प्रभु के चेले यह सब देखकर बड़े विस्मित हुए, तब प्रभु यीशु ने उन्हें समझाया कि मनुष्य अपने आप को कभी ऐसा भला नहीं बना सकता कि पाप से दोषमुक्त हो जाए, "...मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से हो सकता है; क्योंकि परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है" (मरकुस 10:27)।
उपवास या बलिदान में कुछ छोड़ अथवा त्याग देने से कोई भला नहीं हो जाता; यह तो हमें केवल इस बात को स्मरण करवाता है कि कुछ छोड़ने का आभास कैसा होता है। और उस सर्वसिद्ध एवं सर्वोत्तम परमेश्वर प्रभु यीशु ने सांसारिक ही नहीं वरन स्वर्ग का भी वैभव और सुख भी हमारे लिए छोड़ दिया जिससे कि हम उस पर विश्वास कर के उसके द्वारा स्वर्ग में जाने के योग्य बन सकें। हम पापी मनुष्यों के कमज़ोर तथा अपूर्ण बलिदान नहीं वरन उस उत्तम एवं सिद्ध परमेश्वर का पूर्ण बलिदान ही हमारे पापों की क्षमा और उद्धार को संभव कर सकता है। - जूली ऐकैरमैन लिंक
प्रभु यीशु ने हमारे बदले अपने प्राण बलिदान कर दिए।
हे प्रभु यहोवा, तू ने बड़े सामर्थ और बढ़ाई हुई भुजा से आकाश और पृथ्वी को बनाया है! तेरे लिये कोई काम कठिन नहीं है। - यर्मियाह 32:17
बाइबल पाठ: मरकुस 10:17-27
Mark 10:17 और जब वह निकलकर मार्ग में जाता था, तो एक मनुष्य उसके पास दौड़ता हुआ आया, और उसके आगे घुटने टेककर उस से पूछा हे उत्तम गुरू, अनन्त जीवन का अधिकारी होने के लिये मैं क्या करूं?
Mark 10:18 यीशु ने उस से कहा, तू मुझे उत्तम क्यों कहता है? कोई उत्तम नहीं, केवल एक अर्थात परमेश्वर।
Mark 10:19 तू आज्ञाओं को तो जानता है; हत्या न करना, व्यभिचार न करना, चोरी न करना, झूठी गवाही न देना, छल न करना, अपने पिता और अपनी माता का आदर करना।
Mark 10:20 उसने उस से कहा, हे गुरू, इन सब को मैं लड़कपन से मानता आया हूं।
Mark 10:21 यीशु ने उस पर दृष्टि कर के उस से प्रेम किया, और उस से कहा, तुझ में एक बात की घटी है; जा, जो कुछ तेरा है, उसे बेच कर कंगालों को दे, और तुझे स्वर्ग में धन मिलेगा, और आकर मेरे पीछे हो ले।
Mark 10:22 इस बात से उसके चेहरे पर उदासी छा गई, और वह शोक करता हुआ चला गया, क्योंकि वह बहुत धनी था।
Mark 10:23 यीशु ने चारों ओर देखकर अपने चेलों से कहा, धनवानों को परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा कठिन है!
Mark 10:24 चेले उस की बातों से अचम्भित हुए, इस पर यीशु ने फिर उन को उत्तर दिया, हे बालकों, जो धन पर भरोसा रखते हैं, उन के लिये परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना कैसा कठिन है!
Mark 10:25 परमेश्वर के राज्य में धनवान के प्रवेश करने से ऊंट का सूई के नाके में से निकल जाना सहज है!
Mark 10:26 वे बहुत ही चकित हो कर आपस में कहने लगे तो फिर किस का उद्धार हो सकता है?
Mark 10:27 यीशु ने उन की ओर देखकर कहा, मनुष्यों से तो यह नहीं हो सकता, परन्तु परमेश्वर से हो सकता है; क्योंकि परमेश्वर से सब कुछ हो सकता है।
एक साल में बाइबल:
- लैव्यवस्था 23-24
- मरकुस 1:1-22