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गुरुवार, 30 सितंबर 2021

परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 36


पाप का समाधान - उद्धार - 32 - कुछ संबंधित प्रश्न और उनके उत्तर (5)

       पिछले 4 लेखों में हम प्रभु यीशु मसीह में विश्वास द्वारा मिलने वाली पापों की क्षमा, उद्धार, और नया जन्म पाने से संबंधित कुछ महत्वपूर्ण और सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्नों को देखते आ रहे हैं। पिछले लेख में हमने देखा था कि एक मसीही विश्वासी भी, उद्धार पाने के बावजूद, पाप कर सकता है, और करता भी है। किन्तु साथ ही उसे उस पाप से निकालने और आगे बढ़ने के लिए परमेश्वर की सहायता भी उपलब्ध रहती है; और यदि कोई व्यक्ति लापरवाही से जीने और पाप करते चले जाने के लिए परमेश्वर की इस सहायता एवं उदारता का दुरुपयोग करने का प्रयास करता है, तो फिर उसे परमेश्वर की ताड़ना का भी सामना करना पड़ता है, और साथ ही स्वर्ग में उसे मिलने वाले प्रतिफलों की भी हानि होती है। अर्थात, न तो पाप को और न ही उद्धार के अनन्तकालीन होने को लापरवाही से लिया जा सकता है; क्योंकि चाहे उद्धार न भी जाए किन्तु देर-सवेर पाप करते रहने वाले व्यक्ति को पाप के दुष्परिणामों को भुगतना ही पड़ेगा, इस संसार में भी और परलोक में भी। आज इसी शृंखला में हम एक और महत्वपूर्ण प्रश्न को देखेंगे:

प्रश्न: क्या उद्धार पा लेने, प्रभु यीशु मसीह का शिष्य बन जाने से व्यक्ति संसार के दुख-तकलीफों, बीमारियों, समस्याओं, आदि से मुक्त हो जाता है, और सांसारिक समस्याओं से निश्चिंत होकर जीवन जीने लगता है?

उत्तर: यद्यपि बहुत से लोग अपने सुसमाचार प्रचार में इस बात का आश्वासन देते हैं, किन्तु, परमेश्वर के वचन बाइबल में ऐसा कोई आश्वासन नहीं दिया गया है; और न ही प्रभु यीशु ने कभी अपने शिष्यों से यह कहा कि उनपर विश्वास लाने वाले को सांसारिक समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा, और उनका जीवन सुख एवं समृद्धि से भर जाएगा। जो भी इस प्रकार की शिक्षा या प्रचार के साथ उद्धार का सुसमाचार सुनाते हैं, वे गलत प्रचार करते हैं, लोगों को ऐसा आश्वासन देते हैं जिसका बाइबल में कोई समर्थन नहीं है, और पापों के परिणामों की गंभीरता तथा प्रभु यीशु द्वारा उपलब्ध करवाए गए पापों के समाधान की महानता के आधार पर नहीं, वरन सांसारिक बातों के लालच में लाकर लोगों को प्रभु यीशु मसीह की ओर आकर्षित करने और उनका अनुसरण करवाने के प्रयास करते हैं। 

       जब प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों को उनकी पहली प्रचार सेवकाई के लिए भेजा था (मत्ती 10 अध्याय), तब ही उन्हें उन कठिन और दुखदायी परिस्थितियों के लिए आगाह कर दिया था जिनका उन्हें इस सेवकाई के निर्वाह में सामना करना होगा:

  • वे पकड़े जाएंगे और दण्ड के लिए अधिकारियों के सामने खड़े किए जाएंगे (10:16-20)
  • उनके अपने घर के लोग और निकट संबंधी उनके शत्रु हो जाएंगे (10:21)
  • उन्हें लोगों के बैर का सामना करना पड़ेगा (10:22)
  • उन्हें इस बैर और सताव से बचने के लिए एक से दूसरे स्थान पर भागना पड़ेगा (10:23)

       प्रभु ने यह भी कहा कि जो उनका शिष्य बनना चाहता है उसे प्रतिदिन अपना क्रूस उठाकर उसके पीछे चलने को तैयार रहना चाहिएउसने सब से कहा, यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप से इनकार करे और प्रति दिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले” (लूका 9:23)। उन दिनों में क्रूस उठाकर वह व्यक्ति जाता था जिसे मृत्यु-दण्ड दिया गया है, और देखने वाले उसे देख कर समझ जाते थे कि यह अपराधी है, और अब यह नहीं, इसकी लाश ही लौटेगी। प्रभु का शिष्यों से प्रतिदिन क्रूस उठकर उसके पीछे चलने का निर्णय लेने से अभिप्राय था, प्रतिदिन उसके शिष्य होने के कारण सताए जाने और मारे जाने के लिए तैयार रहना। अपने पकड़वाए जाने से पहले भी प्रभु यीशु ने शिष्यों को सचेत किया, “वे तुम्हें आराधनालयों में से निकाल देंगे, वरन वह समय आता है, कि जो कोई तुम्हें मार डालेगा वह समझेगा कि मैं परमेश्वर की सेवा करता हूं” (यूहन्ना 16:2)। तो फिर प्रभु की इन शिक्षाओं के समक्ष कोई यह कैसे दावा कर सकता है कि प्रभु यीशु की शिष्यता का जीवन समस्याओं तथा परेशानियों से मुक्त एक आराम और सुरक्षा का जीवन होगा?

       बाद में प्रभु के शिष्यों ने भी मसीही विश्वास के जीवन के विषय इन्हीं बातों को दोहराया:

  • प्रेरितों 14:22 और चेलों के मन को स्थिर करते रहे और यह उपदेश देते थे, कि हमें बड़े क्लेश उठा कर परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करना होगा
  • 2 तीमुथियुस 3:12 पर जितने मसीह यीशु में भक्ति के साथ जीवन बिताना चाहते हैं वे सब सताए जाएंगे
  • 1 यूहन्ना 2:18 हे लड़कों, यह अन्तिम समय है, और जैसा तुम ने सुना है, कि मसीह का विरोधी आने वाला है, उसके अनुसार अब भी बहुत से मसीह के विरोधी उठे हैं; इस से हम जानते हैं, कि यह अन्तिम समय है
  • 1 यूहन्ना 3:13 हे भाइयों, यदि संसार तुम से बैर करता है तो अचम्भा न करना
  • 1 पतरस 4:12 हे प्रियो, जो दुख रूपी अग्नि तुम्हारे परखने के लिये तुम में भड़की है, इस से यह समझ कर अचम्भा न करो कि कोई अनोखी बात तुम पर बीत रही है
  • याकूब 1:2-3 हे मेरे भाइयों, जब तुम नाना प्रकार की परीक्षाओं में पड़ो तो इसको पूरे आनन्द की बात समझो, यह जान कर, कि तुम्हारे विश्वास के परखे जाने से धीरज उत्पन्न होता है

       और भी अनेकों पद हैं जो यह दिखाते हैं कि मसीही जीवन संघर्ष का और संसार के लोगों के बैर और विरोध का निरंतर सामना करते रहने का जीवन है; और जो भी प्रभु यीशु के पीछे चलना चाहता है, उसे यह सब सहने के लिए तैयार रहना चाहिए। किन्तु साथ ही प्रत्येक मसीही विश्वासी को यह परमेश्वर से आश्वासन भी है कि उसकी प्रत्येक परिस्थिति में प्रभु उसके साथ होगा, उसे समझ, शक्ति, और शांति देगा कि वह उन परिस्थितियों का सामना कर सकेमैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि तुम्हें मुझ में शान्ति मिले; संसार में तुम्हें क्लेश होता है, परन्तु ढाढ़स बांधो, मैं ने संसार को जीत लिया है” (यूहन्ना 16:33), और उसे उन सब में से भी सुरक्षित निकाल कर लाएगा, और अंततः सब बातें मिलकर प्रभु के जन के लिए भलाई ही को उत्पन्न करेंगीऔर हम जानते हैं, कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते हैं, उन के लिये सब बातें मिलकर भलाई ही को उत्पन्न करती है; अर्थात उन्हीं के लिये जो उस की इच्छा के अनुसार बुलाए हुए हैं” (रोमियों 8:28) 

       पूरा नया नियम इस बात का गवाह है कि प्रभु यीशु मसीह के शिष्यों को हर स्थान पर, अपनी सारी सेवकाई के दिनों में बहुत से दुखों, क्लेशों, और सताव का सामना करना पड़ा है। जीवन कभी भी उनके लिए सहज और सरल नहीं रहा; वरन जिनके मध्य में होकर उन्होंने प्रभु की सेवकाई की और जिन लोगों की भलाई की, उन्हीं में से उनके बैरियों-विरोधियों ने निकलकर उनके लिए बहुत परेशानियाँ उत्पन्न कीं। किन्तु फिर भी जिसने एक बार प्रभु के प्रेम, कृपा, अनुग्रह, और उद्धार के स्वाद को चख लिया, एक बार जिसने प्रभु की शान्ति और आशीष को अपने जीवन में तमाम कठिनाइयों और मुसीबतों के मध्य में अनुभव कर लिया, जिसने एक बार प्रभु यीशु मसीह की वास्तविकता और खराई को पहचान लिया, फिर संसार के ये क्लेश उसके लिए निराश का नहीं, वरन उस अद्भुत, उत्तम स्वर्गीय आशा का प्रमाण बन गए, जो परमेश्वर ने उसके लिए रखी हुई है, और उस उत्तम आशीष की लालसा रखते हुए वे इन सभी बातों को सहर्ष सहन कर लेते हैंक्योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्लेश हमारे लिये बहुत ही महत्वपूर्ण और अनन्त महिमा उत्पन्न करता जाता है। और हम तो देखी हुई वस्तुओं को नहीं परन्तु अनदेखी वस्तुओं को देखते रहते हैं, क्योंकि देखी हुई वस्तुएं थोड़े ही दिन की हैं, परन्तु अनदेखी वस्तुएं सदा बनी रहती हैं” (2 कुरिन्थियों 4:17-18)। फिर शारीरिक चंगाई का उसके लिए कोई विशेष महत्व नहीं है, क्योंकि वह व्यक्ति जानता है कि एक दिन तो शरीर ने मिटना ही है; और जो भी रोग या अस्वस्थता उसमें है, प्रभु उसमें भी उसकी सहायता करेगा, उसे आशीष देगाऔर उसने मुझ से कहा, मेरा अनुग्रह तेरे लिये बहुत है; क्योंकि मेरी सामर्थ्य निर्बलता में सिद्ध होती है; इसलिये मैं बड़े आनन्द से अपनी निर्बलताओं पर घमण्ड करूंगा, कि मसीह की सामर्थ्य मुझ पर छाया करती रहे। इस कारण मैं मसीह के लिये निर्बलताओं, और निन्‍दाओं में, और दरिद्रता में, और उपद्रवों में, और संकटों में, प्रसन्न हूं; क्योंकि जब मैं निर्बल होता हूं, तभी बलवन्‍त होता हूं” (2 कुरिन्थियों 12:9-10)

       किसी भी मसीही विश्वासी को इन परिस्थितियों से घबराने की आवश्यकता नहीं है, “...क्योंकि उसने आप ही कहा है, कि मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा। इसलिये हम बेधड़क हो कर कहते हैं, कि प्रभु, मेरा सहायक है; मैं न डरूंगा; मनुष्य मेरा क्या कर सकता है” (इब्रानियों 13:5-6), और साथ ही प्रभु का अपने विश्वासियों, अपने शिष्यों के लिए यह भी आश्वासन है कि उन्हें उनके सहने की सीमा से बाहर कभी किसी परीक्षा का सामना नहीं करना पड़ेगा तुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है: और परमेश्वर सच्चा है: वह तुम्हें सामर्थ्य से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको” (1 कुरिन्थियों 10:13)। शैतान और उसके लोग तो हमें निराश करने और गिराने, विश्वास से भटकाने, प्रभु पर संदेह करने के लिए बहुत से प्रयास करेंगे। इसलिए शैतान के द्वारा फैलाई जा रही इन बातों पर ध्यान मत दीजिए। प्रभु के आपके प्रति प्रमाणित किए गए प्रेम, कृपा, और अनुग्रह, तथा उसके द्वारा आपको प्रदान किए जा रहे पाप-क्षमा प्राप्त करने के अवसर के मूल्य को समझिए, और अभी इस अवसर का लाभ उठा लीजिए। आपके द्वारा स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ आपके द्वारा की गई एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लेंआपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को आशीषित तथा स्वर्गीय जीवन बना देगा। अभी अवसर है, अभी प्रभु का निमंत्रण आपके लिए है - उसे स्वीकार कर लीजिए।  

 

बाइबल पाठ: इब्रानियों 11:32-40 

इब्रानियों 11:32 अब और क्या कहूँ क्योंकि समय नहीं रहा, कि गिदोन का, और बाराक और समसून का, और यिफतह का, और दाऊद का और शामुएल का, और भविष्यद्वक्ताओं का वर्णन करूं।

इब्रानियों 11:33 इन्होंने विश्वास ही के द्वारा राज्य जीते; धर्म के काम किए; प्रतिज्ञा की हुई वस्तुएं प्राप्त की, सिंहों के मुंह बन्द किए।

इब्रानियों 11:34 आग की ज्वाला को ठंडा किया; तलवार की धार से बच निकले, निर्बलता में बलवन्‍त हुए; लड़ाई में वीर निकले; विदेशियों की फौजों को मार भगाया।

इब्रानियों 11:35 स्त्रियों ने अपने मरे हुओं को फिर जीवते पाया; कितने तो मार खाते खाते मर गए; और छुटकारा न चाहा; इसलिये कि उत्तम पुनरुत्थान के भागी हों।

इब्रानियों 11:36 कई एक ठट्ठों में उड़ाए जाने; और कोड़े खाने; वरन बान्धे जाने; और कैद में पड़ने के द्वारा परखे गए।

इब्रानियों 11:37 पत्थरवाह किए गए; आरे से चीरे गए; उन की परीक्षा की गई; तलवार से मारे गए; वे कंगाली में और क्लेश में और दुख भोगते हुए भेड़ों और बकिरयों की खालें ओढ़े हुए, इधर उधर मारे मारे फिरे।

इब्रानियों 11:38 और जंगलों, और पहाड़ों, और गुफाओं में, और पृथ्वी की दरारों में भटकते फिरे।

इब्रानियों 11:39 संसार उन के योग्य न था: और विश्वास ही के द्वारा इन सब के विषय में अच्छी गवाही दी गई, तौभी उन्हें प्रतिज्ञा की हुई वस्तु न मिली।

इब्रानियों 11:40 क्योंकि परमेश्वर ने हमारे लिये पहिले से एक उत्तम बात ठहराई, कि वे हमारे बिना सिद्धता को न पहुंचे।

 

एक साल में बाइबल:

· यशायाह 9-10  

· इफिसियों 3

बुधवार, 29 सितंबर 2021

परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 35

 

  पाप का समाधान - उद्धार - 31 - कुछ संबंधित प्रश्न और उनके उत्तर (4)

 

       पिछले लेख में हमने देखा था कि उद्धार कभी खोया या गँवाया नहीं जा सकता है, वह अनन्तकालीन ही है; किन्तु उद्धार पाया हुआ व्यक्ति यदि पाप में बना रहे, तो उसे न केवल पृथ्वी पर ताड़ना सहनी पड़ती है, वरन उसके स्वर्गीय प्रतिफलों पर भी उसके पापों का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है; और कुछ ऐसे लोग भी होंगे जो अपनी इस लापरवाही के व्यवहार के कारण स्वर्ग में छूछे हाथ प्रवेश करेंगे - वे अपने उद्धार को तो नहीं गँवाएंगे, किन्तु अपनी आशीषों और प्रतिफलों को गँवा देंगे, और फिर अपना स्वर्गीय अनन्तकाल खाली हाथ ही बिताएंगे। पाप और उद्धार से संबंधित सामान्यतः पूछे जाने वाले प्रश्नों की शृंखला में आज हम इसी विषय से संबंधित एक और प्रश्न पर विचार करते हैं। 

प्रश्न: क्या उद्धार पाया हुआ व्यक्ति पाप कर सकता है? यदि वह करे तो उसका क्या परिणाम और समाधान है?

उत्तर: जैसा हमने उद्धार या नया जन्म पाने के विषय में देखा था, उद्धार या नया जन्म पाना एक आरंभ है। उद्धार पाते ही व्यक्ति सिद्ध नहीं हो जाता है, वरन प्रभु यीशु मसीह का उसके वचन की आज्ञाकारिता में अनुसरण करते जाने के द्वारा वह मसीही विश्वास और प्रभु की शिष्यता के जीवन में परिपक्व होता चला जाता है, प्रभु यीशु की समानता में अधिकाधिक ढलता चला जाता है। परमेश्वर का वचन हमें एक अद्भुत, अनपेक्षित, किन्तु बहुत सांत्वना देने वाले तथ्य से भी अवगत करवाता है - प्रभु यीशु के साथ रहने और चलने वाले शिष्य भी सिद्ध नहीं थे; उनसे भी पाप हो जाता था; उन्हें भी अपने पापों के लिए प्रभु से क्षमा और बहाली माँगनी पड़ती थी! बाइबल के कुछ पदों को देखिए:

  • प्रेरित यूहन्ना ने लिखा:यदि हम कहें, कि हम में कुछ भी पाप नहीं, तो अपने आप को धोखा देते हैं: और हम में सत्य नहीं” (1 यूहन्ना 1:8); “यदि कहें कि हम ने पाप नहीं किया, तो उसे झूठा ठहराते हैं, और उसका वचन हम में नहीं है” (1 यूहन्ना 1:10)। इन पदों में यूहन्ना द्वारा प्रयुक्तहमपर ध्यान करें - प्रेरित अपने आप को भी उन लोगों के साथ सम्मिलित कर लेता है, जिनके लिए वह यह पत्री लिख रहा है। साथ ही वह यह स्पष्ट कर देता है कि यदि कोई यह दावा करता है कि उसने पाप नहीं किया है, तो न केवल वह झूठा है, वरन परमेश्वर को भी झूठा ठहरा देता है। लेकिन साथ ही यूहन्ना समाधान भी लिखता है:...और उसके पुत्र यीशु का लहू हमें सब पापों से शुद्ध करता है” (1 यूहन्ना 1:7); “यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है” (1 यूहन्ना 1:9)
  • प्रेरित पौलुस ने लिखा, “क्योंकि मैं जानता हूं, कि मुझ में अर्थात मेरे शरीर में कोई अच्छी वस्तु वास नहीं करती, इच्छा तो मुझ में है, परन्तु भले काम मुझ से बन नहीं पड़ते। क्योंकि जिस अच्छे काम की मैं इच्छा करता हूं, वह तो नहीं करता, परन्तु जिस बुराई की इच्छा नहीं करता वही किया करता हूं। परन्तु यदि मैं वही करता हूं, जिस की इच्छा नहीं करता, तो उसका करने वाला मैं न रहा, परन्तु पाप जो मुझ में बसा हुआ है” (रोमियों 7:18-20)। अपने शरीर के पाप करने की इस प्रवृत्ति से दुखी और कुंठित होकर पौलुस प्रश्न उठाता है, “मैं कैसा अभागा मनुष्य हूं! मुझे इस मृत्यु की देह से कौन छुड़ाएगा?” (रोमियों 7:24); और फिर तुरंत ही पवित्र आत्मा की अगुवाई में स्वयं ही उत्तर भी दे देता है, “सो अब जो मसीह यीशु में हैं, उन पर दण्ड की आज्ञा नहीं: क्योंकि वे शरीर के अनुसार नहीं वरन आत्मा के अनुसार चलते हैं। क्योंकि जीवन की आत्मा की व्यवस्था ने मसीह यीशु में मुझे पाप की, और मृत्यु की व्यवस्था से स्वतंत्र कर दिया” (रोमियों 8:1-2)

        इसी प्रकार नए नियम की विभिन्न मसीही मंडलियों को परमेश्वर पवित्र आत्मा की अगुवाई में लिखी गई पत्रियों के सभी लेखक अपनी पत्रियों में मसीही विश्वासी के जीवन में पाप की वास्तविकता के विभिन्न आयामों के विषय लिखते हैं। अर्थात वे पवित्र आत्मा की प्रेरणा में स्वीकार कर रहे हैं कि कोई भी मसीही विश्वासी इस संसार में, अपनी नश्वर देह में रहते हुए पाप करने की प्रवृत्ति और संभावना से मुक्त नहीं है; सिद्ध नहीं है। सभी को उद्धार के बाद भी पाप की समस्या से जूझना पड़ता है; सभी को इसका समाधान चाहिए होता है, क्योंकि मसीही विश्वासियों और परमेश्वर का बैरी शैतान निरंतर मसीही विश्वासियों को पाप में गिराने और फँसाने के प्रयासों में लगा रहता है। इसीलिए परमेश्वर हमें आश्वस्त करता है कि जैसे ही हमें अपने पाप का बोध हो, हम उससे क्षमा माँग लें, और वह हमको क्षमा कर देगा और बहाल कर देगा; अब हमपर दण्ड की आज्ञा नहीं है, वरन प्रभु यीशु में होकर अनुग्रह और कृपा प्रदान की गई है।  

तो फिर उद्धार पाने का क्या लाभ? उद्धार पाए हुए और न पाए हुए व्यक्ति में क्या अंतर? बहुत बड़ा और महत्वपूर्ण अंतर है - उद्धार पाया हुआ व्यक्ति हर परिस्थिति में सुरक्षित है; इस पृथ्वी पर भी, और स्वर्ग में भी। कुछ पदों को देखिए:

  • नीतिवचन 24:16 क्योंकि धर्मी चाहे सात बार गिरे तौभी उठ खड़ा होता है; परन्तु दुष्ट लोग विपत्ति में गिर कर पड़े ही रहते हैं
  • अय्यूब 5:19 वह [परमेश्वर] तुझे छ: विपत्तियों से छुड़ाएगा; वरन सात से भी तेरी कुछ हानि न होने पाएगी
  • भजन संहिता 37:24 चाहे वह गिरे तौभी पड़ा न रह जाएगा, क्योंकि यहोवा उसका हाथ थामे रहता है
  • भजन संहिता 34:19 धर्मी पर बहुत सी विपत्तियां पड़ती तो हैं, परन्तु यहोवा उसको उन सब से मुक्त करता है
  • नीतिवचन 14:32 दुष्ट मनुष्य बुराई करता हुआ नाश हो जाता है, परन्तु धर्मी को मृत्यु के समय भी शरण मिलती है

       एक बार फिर ध्यान करें, यह उद्धार पाए हुए व्यक्ति के लिए पाप करते रहने की छूट नहीं है; जैसा कि हम इससे पहले वाले प्रश्न के उत्तर में देख चुके हैं। वरन इसे ऐसे समझिए, जब एक शिशु खड़ा होना और चलना आरंभ करता है, तो बहुत बार लड़खड़ाता है, अस्थिर कदमों से चलता है, गिरता है, कभी-कभी चोट भी खाता है, किन्तु माता-पिता हर बार उसकी सहायता करते हैं, उसे प्रोत्साहित करते हैं, गिर जाने पर उसे उठा कर खड़ा भी करते हैं और गोदी में लेकर दुलारते और पुचकारते भी हैं। इसी प्रकार परमेश्वर पिता भी अपने आत्मिक बच्चों की सहायता करता है, उन्हें उभारता है, मार्गदर्शन करता है। किन्तु जैसे जब बच्चे उद्दंड होते हैं, बारंबार जान-बूझकर अनाज्ञाकारिता करते हैं, बुराई में पड़ते ही रहते हैं, तो फिर केवल चेतावनी देने भर से ही काम नहीं चलता है, और माता-पिता को उस उद्दंड बच्चे की ताड़ना भी करनी पड़ती है; उसी प्रकार परमेश्वर भी उद्दंडता करने वाली अपनी सन्तान की उपयुक्त ताड़ना भी करता है (इब्रानियों 12:5-11) 

       जब हम मसीही विश्वासियों के प्रति पिता परमेश्वर के इस प्रेम और देखभाल, उन्हें सुरक्षित रखने, उभारने, सिखाने, और परिपक्व करने के प्रावधानों को देखते हैं, तो फिर आश्चर्य होता है कि क्यों लोग फिर भी परमेश्वर के इस अद्भुत प्रयोजन को स्वीकार नहीं करते हैं, और क्यों सच्चे मन से प्रभु यीशु को समर्पित होकर उसकी शरण में नहीं आ जाते हैं, स्वेच्छा से उसके शिष्य नहीं बन जाते हैं? परमेश्वर कोई कठोर दण्ड-अधिकारी नहीं है जो हमें दण्ड या ताड़ना देने के अवसर ढूँढता रहता है; वरन वह तो हमें अपने प्रेम, अनुग्रह, और कृपा का भागी बनाने के अवसरों की तलाश में रहता है। तो फिर क्यों उससे दूरी रखनी? क्यों उसके इस प्रेम भरे आह्वान को ठुकराना? प्रभु के आपके प्रति प्रमाणित किए गए प्रेम, कृपा, और अनुग्रह, तथा उसके द्वारा आपको प्रदान किए जा रहे पाप-क्षमा प्राप्त करने के अवसर के मूल्य को समझिए, और अभी इस अवसर का लाभ उठा लीजिए। आपके द्वारा स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ आपके द्वारा की गई एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लेंआपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को आशीषित तथा स्वर्गीय जीवन बना देगा। अभी अवसर है, अभी प्रभु का निमंत्रण आपके लिए है - उसे स्वीकार कर लीजिए।

 

बाइबल पाठ: भजन 25:7-15

भजन संहिता 25:7 हे यहोवा अपनी भलाई के कारण मेरी जवानी के पापों और मेरे अपराधों को स्मरण न कर; अपनी करुणा ही के अनुसार तू मुझे स्मरण कर।

भजन संहिता 25:8 यहोवा भला और सीधा है; इसलिये वह पापियों को अपना मार्ग दिखलाएगा।

भजन संहिता 25:9 वह नम्र लोगों को न्याय की शिक्षा देगा, हां वह नम्र लोगों को अपना मार्ग दिखलाएगा।

भजन संहिता 25:10 जो यहोवा की वाचा और चितौनियों को मानते हैं, उनके लिये उसके सब मार्ग करुणा और सच्चाई हैं।

भजन संहिता 25:11 हे यहोवा अपने नाम के निमित्त मेरे अधर्म को जो बहुत हैं क्षमा कर।

भजन संहिता 25:12 वह कौन है जो यहोवा का भय मानता है? यहोवा उसको उसी मार्ग पर जिस से वह प्रसन्न होता है चलाएगा।

भजन संहिता 25:13 वह कुशल से टिका रहेगा, और उसका वंश पृथ्वी पर अधिकारी होगा।

भजन संहिता 25:14 यहोवा के भेद को वही जानते हैं जो उस से डरते हैं, और वह अपनी वाचा उन पर प्रगट करेगा।

भजन संहिता 25:15 मेरी आंखें सदैव यहोवा पर टकटकी लगाए रहती हैं, क्योंकि वही मेरे पांवों को जाल में से छुड़ाएगा।

एक साल में बाइबल:

· यशायाह 7-8  

· इफिसियों 2

मंगलवार, 28 सितंबर 2021

परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 34

 

पाप का समाधान - उद्धार - 30 - कुछ संबंधित प्रश्न और उनके उत्तर (3.2)

 

पिछले लेख में हमने प्रभु यीशु मसीह में लाए गए विश्वास द्वारा मिलने वाले पाप क्षमा तथा उद्धार से संबंधित प्रश्नों की शृंखला में एक बहुत महत्वपूर्ण प्रश्नक्या कभी गँवाए न जा सकने वाले अनन्त उद्धार के सिद्धांत में, बिना किसी भय के पाप करते रहने की स्वतंत्रता निहित नहीं है?को देखना आरंभ किया था। पिछले लेख में हमने दो बातें देखी थीं कि क्यों यह विचार रखना परमेश्वर के इस उद्धार के कार्य और आश्वासन से असंगत है। पहली बात थी कि जिसने मसीह के बलिदान और पुनरुत्थान के महत्व को समझा है और उसे सच्चे मन से स्वीकार किया है, वह फिर प्रभु के बलिदान, पुनरुत्थान, और उसके परिणामस्वरूप मिले इस महान उद्धार का आदर करेगा; उसका दुरुपयोग नहीं करेगा, उसका अनुचित लाभ उठाने का प्रयास नहीं करेगा। दूसरी बात हमने देखी थी कि परमेश्वर अज्ञानी नहीं है जो बिना सोचे समझे मनुष्य को एक ऐसी संभावना प्रदान कर दे, जिसका दुरुपयोग किया जा सके। परमेश्वर का वचन बाइबल यह स्पष्ट बताती है कि चाहे मसीही विश्वासी का उद्धार न भी जाए, तो भी उसके पाप और दुर्वचन, उसे स्वर्ग में मिलने वाले उसके प्रतिफलों का नुकसान करते हैं, और यहाँ पर लापरवाही से बिताया गया जीवन, स्वर्ग में मिलने वाले प्रतिफलों का नाश करता है, जो स्थिति अनन्तकाल के लिए होगी, कभी सुधारी या पलटी नहीं जा सकेगी। आज इसी प्रश्न के उत्तर से जुड़ी एक तीसरी बहुत महत्वपूर्ण बात भी देखते हैं, जिसकी ओर सामान्यतः लोगों का ध्यान या तो जाता ही नहीं है, अथवा बहुत कम जाता है।    

हमने पिछले लेख में यह भी देखा था कि पाप करने से मनुष्य पर दो बातें आईं - मृत्यु - आत्मिक एवं शारीरिक; और जीवनपर्यंत एक शारीरिक दण्ड की स्थिति में जीते रहना और अन्ततः उसी स्थिति में मर भी जाना। प्रत्येक मनुष्य के पाप के लिए, उसके पाप की मृत्यु प्रभु यीशु ने वहन कर ली, उसकी पूरी कीमत चुका दी, और मृत्यु पर विजय प्राप्त कर ली है। जिसने प्रभु के इस कार्य को स्वीकार कर लिया और अपने आप को उसका शिष्य होने के लिए समर्पित कर दिया, प्रभु ने परमेश्वर के साथ उसकी संगति को बहाल कर दिया, उस पर से मृत्यु के दण्ड को हटा दिया, जैसा हम पहले देख चुके हैं। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि प्रभु यीशु मसीह के कार्य के द्वारा हमें मृत्यु से तो निकासी मिल गई, परमेश्वर के साथ हमारी संगति बहाल हो गई; किन्तु प्रभु यीशु मसीह ने हमारे पापों के साथ जुड़े हुए उसके शारीरिक दण्ड की स्थिति को हमारे लिए वहन नहीं किया है। पाप के कारण आए इस शारीरिक दण्ड को हम में से प्रत्येक को मसीही विश्वासी को भुगतना ही पड़ेगा। बाइबल में इसके कई स्पष्ट उदाहरण हैं और संबंधित हवाले हैं कि लोगों के पाप क्षमा होने पर परमेश्वर के साथ उनकी संगति बहाल रही, किन्तु उन्हें उन पापों के लिए शारीरिक दण्ड फिर भी सहते रहना पड़ा। हम यहाँ पर केवल तीन उदाहरणों को ही देखेंगे:

  • गिनती की पुस्तक के 13 और 14 अध्यायों को देखिए। जब इस्राएली मिस्र के दासत्व से निकलकर, वाचा किए हुए कनान देश के किनारे पर पहुँचे, तो उनके मनों में कुछ संदेह उठे, और परमेश्वर ने मूसा से कहा कि वह इस्राएल के हर गोत्र में से एक जन को लेकर कनान की टोह लेने को भेज दे, जिससे इस्राएल के लोगों का उस देश के उत्तम होने के बारे में संदेह का निवारण हो जाए। उन भेदियों ने जाकर कनान देश की टोह ली, और आकर इस्राएलियों को बताया कि देश तो बहुत अच्छा और उपजाऊ है, किन्तु वहाँ दैत्याकार लोग भी रहते हैं, और उन्हें उस देश में जाने के विषय घबरा दिया। उनके बारंबार परमेश्वर के प्रति प्रदर्शित किए जाने अविश्वास और अनाज्ञाकारिता की प्रवृत्ति के कारण परमेश्वर ने उन्हें दण्ड देना और मार डालना चाहा, और मूसा से कहा कि अब वह उन इस्राएलियों के स्थान पर उससे एक नई जाति उत्पन्न करेगा (गिनती 14:11-12)। मूसा ने उन लोगों के लिए परमेश्वर से क्षमा माँगी, परमेश्वर के आगे उनके लिए गिड़गिड़ाया और विनती की। परमेश्वर ने मूसा की प्रार्थना के उत्तर में उनके मृत्यु दण्ड को तो हटा लिए, किन्तु यह दण्ड दिया कि अब उन्हें 40 वर्ष तक जंगल में यात्रा करते रहना होगा, जब तक कि वह अविश्वासी और अनाज्ञाकारी पीढ़ी के लोग मर कर समाप्त न हो जाएं (गिनती 14:22-34)। प्रभु यीशु मसीह के हमारे पापों के लिए मध्यस्थ और सहायक की भूमिका को मूसा ने निभाया - मृत्यु दण्ड हटा दिया गया, स्वाभाविक मृत्यु रह गई, किन्तु अविश्वास और अनाज्ञाकारिता के पाप के कारण जीवन भर सहने वाले एक दण्ड की आज्ञा बनी रह गई। 
  • गिनती की पुस्तक के 20 अध्याय को देखिए। जंगल की यात्रा के दौरान, जब लोगों को पानी की कमी हुई, तो इस्राएली लोग हाहाकार करने लगे (पद 1-5); परमेश्वर ने मूसा से कहा कि वह वहाँ की एक चट्टान से जाकर कहे, और उसमें से पानी निकल पड़ेगा (पद 7-8)। मूसा ने परमेश्वर के कहे के अनुसार लोगों को एकत्रित किया; किन्तु उनके अविश्वास और परमेश्वर के विरुद्ध कुड़कुड़ाने के कारण उनसे क्रुद्ध होकर, उसने क्रोधावेश में आकर अनुचित बोला, और चट्टान से बोलने के स्थान पर उसपर अपनी लाठी दो बार मारी (पद 10-11)। चट्टान से पानी तो निकला, किन्तु परमेश्वर ने उसे दण्ड दिया कि वह अपनी इस अनाज्ञाकारिता के कारण कनान में प्रवेश नहीं करने पाएगा (पद 12), और मूसा को अपनी अनाज्ञाकारिता का दण्ड आजीवन भुगतना पड़ा। कनान के किनारे पहुँच कर मूसा ने फिर से परमेश्वर से उसे कनान में जाने देने की अनुमति देने की विनती की, किन्तु परमेश्वर ने उसे डाँट कर चुप करा दिया (व्यवस्थाविवरण 3:23-27)। मूसा को उसकी अनाज्ञाकारिता के लिए मृत्यु, या परमेश्वर से पृथक होने की सजा तो नहीं दी गई, किन्तु शारीरिक दण्ड की आज्ञा को आजीवन भुगतना पड़ा। 
  • 2 शमूएल 12 अध्याय देखिए। दाऊद द्वारा बतशेबा के साथ किए गए व्यभिचार और उसके पति ऊरिय्याह हत्या के पाप के कारण परमेश्वर उससे अप्रसन्न हुआ। परमेश्वर ने दाऊद को लगभग एक वर्ष का समय दिया, कि वह पश्चाताप कर ले, किन्तु उसने नहीं किया। तब परमेश्वर ने नातान नबी को उसके पास भेजा, जिसने दाऊद के सामने उसके पाप को प्रकट कर दिया (पद 1-7), और दाऊद पर परमेश्वर की अप्रसन्नता को व्यक्त कर दिया तथा परमेश्वर द्वारा निर्धारित दण्ड उसको बता दिया (पद 8-12)। यह सुनकर दाऊद ने अपना पाप स्वीकार किया, पश्चाताप किया। दाऊद के इस पश्चाताप के कारण परमेश्वर ने जो नातान से कहलवाया, वह ध्यान देने योग्य हैतब दाऊद ने नातान से कहा, मैं ने यहोवा के विरुद्ध पाप किया है। नातान ने दाऊद से कहा, यहोवा ने तेरे पाप को दूर किया है; तू न मरेगा” (2 शमूएल 12:13)। दाऊद पर से मृत्यु तो हटा ली गई, किन्तु शेष दण्ड उसे भुगतना पड़ा, और आज तक परमेश्वर के वचन में उसके इस पाप का वर्णन है। दाऊद जितना अपने भजनों औरपरमेश्वर के मन के अनुसार व्यक्तिहोने के लिए जाना जाता है, उतना ही ऊरिय्याह के हत्यारे और बतशेबा के साथ व्यभिचार करने के लिए भी जाना जाता है, और परमेश्वर की दृष्टि में बतशेबा ऊरिय्याह ही की पत्नी रही, दाऊद की पत्नी नहीं बनी (मत्ती 1:6) 
       इस्राएल परमेश्वर की चुनी हुए प्रजा है,  दाऊद और मूसा उसके प्रिय जन और भविष्यद्वक्ता हैं, किन्तु उनके किए पापों के लिए यद्यपि वे नाश नहीं हुए, किन्तु उन्हें भी शारीरिक दण्ड उठाना ही पड़ा, वे उससे बच नहीं सके। यदि अनुग्रह के युग से पहले भी परमेश्वर का चुना हुआ जन परमेश्वर से पृथक नहीं हो सकता था, तो फिर अब इस अनुग्रह के युग में यह क्योंकर संभव होगा? प्रभु यीशु मसीह ने हमें पाप के परमेश्वर से पृथक करने वाले प्रभाव, अर्थात आत्मिक और शारीरिक मृत्यु, को अपने ऊपर ले लिया, हम सभी के लिए सह लिया, और उसके प्रभाव को मिटा दिया। अब मृत्यु, अर्थात परमेश्वर से दूरी का स्थाई समाधान हो गया है, और कोई भी, कुछ भी उस समाधान को पलट नहीं सकता है। जो भी व्यक्ति उस समाधान को स्वीकार कर लेता है, उसके लिए वह सदा सक्रिय तथा अनन्त काल के लिए लागू है। किन्तु साथ ही परमेश्वर ने यह भी प्रकट कर दिया है कि पाप के शारीरिक दण्ड को, परमेश्वर द्वारा उनके लिए दी गई ताड़ना को, मनुष्य को इस पृथ्वी पर भुगतना होगा (इब्रानियों 12:5-11; 1 पतरस 4:1), और साथ ही उस पाप का दुष्प्रभाव उसके स्वर्गीय प्रतिफलों पर भी आएगा। अब यह प्रत्येक व्यक्ति के लिए स्वयं परखने और निर्णय लेने की बात है कि क्या वह अपने उद्धार को लापरवाही से लेगा, और इस पृथ्वी पर ताड़ना सहने तथा स्वर्ग में अपने प्रतिफलों के हानि उठाने को तैयार रहेगा? इसलिए यह धारणा रखना कि उद्धार के अनन्तकालीन होने के कारण उद्धार पाया हुआ व्यक्ति चाहे जैसा भी जीवन जीए, उसे कोई हानि नहीं होगी, परमेश्वर के वचन से पूर्णतः असंगत है। और जो इस अनुचित धारणा के आधार पर यह शिक्षा देते हैं कि पाप करने के कारण उद्धार खोया जा सकता है उन्हें परमेश्वर के वचन को सही प्रकार से पढ़ने, समझने, और मानने की आवश्यकता है। 

इसलिए शैतान के द्वारा फैलाई जा रही इन व्यर्थ और मिथ्या बातों पर ध्यान मत दीजिए। प्रभु के आपके प्रति प्रमाणित किए गए प्रेम, कृपा, और अनुग्रह, तथा उसके द्वारा आपको प्रदान किए जा रहे पाप-क्षमा प्राप्त करने के अवसर के मूल्य को समझिए, और अभी इस अवसर का लाभ उठा लीजिए। आपके द्वारा स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ आपके द्वारा की गई एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लेंआपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को आशीषित तथा स्वर्गीय जीवन बना देगा। अभी अवसर है, अभी प्रभु का निमंत्रण आपके लिए है - उसे स्वीकार कर लीजिए। 

 

बाइबल पाठ: भजन 139:1-12

भजन 139:1 हे यहोवा, तू ने मुझे जांच कर जान लिया है।

भजन 139:2 तू मेरा उठना बैठना जानता है; और मेरे विचारों को दूर ही से समझ लेता है।

भजन 139:3 मेरे चलने और लेटने की तू भली भांति छानबीन करता है, और मेरी पूरी चालचलन का भेद जानता है।

भजन 139:4 हे यहोवा, मेरे मुंह में ऐसी कोई बात नहीं जिसे तू पूरी रीति से न जानता हो।

भजन 139:5 तू ने मुझे आगे पीछे घेर रखा है, और अपना हाथ मुझ पर रखे रहता है।

भजन 139:6 यह ज्ञान मेरे लिये बहुत कठिन है; यह गम्भीर और मेरी समझ से बाहर है।

भजन 139:7 मैं तेरे आत्मा से भाग कर किधर जाऊं? या तेरे सामने से किधर भागूं?

भजन 139:8 यदि मैं आकाश पर चढूं, तो तू वहां है! यदि मैं अपना बिछौना अधोलोक में बिछाऊं तो वहां भी तू है!

भजन 139:9 यदि मैं भोर की किरणों पर चढ़ कर समुद्र के पार जा बसूं,

भजन 139:10 तो वहां भी तू अपने हाथ से मेरी अगुवाई करेगा, और अपने दाहिने हाथ से मुझे पकड़े रहेगा।

भजन 139:11 यदि मैं कहूं कि अन्धकार में तो मैं छिप जाऊंगा, और मेरे चारों ओर का उजियाला रात का अन्‍धेरा हो जाएगा,

भजन 139:12 तौभी अन्धकार तुझ से न छिपाएगा, रात तो दिन के तुल्य प्रकाश देगी; क्योंकि तेरे लिये अन्धियारा और उजियाला दोनों एक समान हैं।

 

एक साल में बाइबल:

· यशायाह 5-6  

· इफिसियों

सोमवार, 27 सितंबर 2021

परमेश्वर का वचन, बाइबल – पाप और उद्धार - 33

 

पाप का समाधान - उद्धार - 29 - कुछ संबंधित प्रश्न और उनके उत्तर (3.1)

हम पिछले दो लेखों से प्रभु यीशु मसीह द्वारा सेंत-मेंत उपलब्ध करवाए गए पापों की क्षमा और उद्धार से संबंधित कुछ सामान्यतः उठाए जाने वाले प्रश्नों को देख रहे हैं। पिछले लेख में हमने देखा था कि उद्धार अनन्तकालीन है, कभी खोया अथवा गंवाया नहीं जा सकता है। उद्धार गँवाने की बात परमेश्वर के वचन और उसके चरित्र तथा गुणों से कदापि मेल नहीं खाती है, वरन उनके विरुद्ध है। किन्तु कुछ लोग यह विचार रखते हैं कि यदि मनुष्य धार्मिकता का जीवन न जीए, और पाप करे, तो फिर उसका उद्धार जा सकता है। साथ ही वे यह भी तर्क भी देते हैं कि यदि उद्धार कभी नहीं जा सकता है, तब तो परमेश्वर ने मनुष्यों को पाप करने का लाइसेंस दे दिया है - एक बार उद्धार पा लो, और फिर उसके बाद जैसा चाहो वैसा करो, क्योंकि उद्धार तो जाएगा नहीं, स्वर्ग तो हर हाल में मिलेगा ही। किन्तु यह भी मनुष्यों को भरमाने के लिए, और प्रभु यीशु के सिद्ध और पूर्ण कार्य में मनुष्यों की अपने ही प्रयासों की धार्मिकता और कर्मों को मिलाने की शैतान द्वारा फैलाई जाने वाली एक गलत शिक्षा, एक गलत धारणा है, और आज हम इसी प्रश्न के विषय देखेंगे।

प्रश्न: क्या कभी गँवाए न जा सकने वाले अनन्त उद्धार के सिद्धांत में, बिना किसी भय के पाप करते रहने की स्वतंत्रता निहित नहीं है? 

उत्तर: यदि परमेश्वर ने हमें अनन्त उद्धार का प्रावधान उपलब्ध करवाया है, तो अवश्य ही कुछ सोच-समझ कर, कुछ जानते-बूझते हुए ही करवाया होगा। उपरोक्त संभावना यदि हम सीमित बुद्धि और ज्ञान वाले मनुष्यों के मन में आ सकती है तो उस असीम ज्ञान और समझ रखने वाले परमेश्वर से भी छिपी हुई नहीं होगी, कि यदि पाप की प्रवृत्ति रखने वाले मनुष्य को अनन्त, कभी न गँवाया जा सकने वाला उद्धार प्रदान कर दिया, तो वह फिर निडर होकर मनमानी और पाप करने के लिए इसका दुरुपयोग अवश्य ही करेगा। इसीलिए परमेश्वर के विषय लिखा है, “क्योंकि परमेश्वर की मूर्खता मनुष्यों के ज्ञान से ज्ञानवान है; और परमेश्वर की निर्बलता मनुष्यों के बल से बहुत बलवान है” (1 कुरिन्थियों 1:25)। वास्तविकता यही है कि इस संभावना को उठाने और मानने वाले लोग, परमेश्वर के वचन के प्रति अपने अधूरे ज्ञान और अपूर्ण समझ के कारण शैतान द्वारा बहकाए और पथभ्रष्ट किए जा रहे हैं; जैसा कि यशायाह ने लिखा, “इसलिये अज्ञानता के कारण मेरी प्रजा बंधुआई में जाती है, उसके प्रतिष्ठित पुरूष भूखों मरते और साधारण लोग प्यास से व्याकुल होते हैं” (यशायाह 5:13) 

यदि लोग पाप और उसके कारण उत्पन्न परिस्थितियों, तथा परमेश्वर के वचन में दी गई अन्य संबंधित शिक्षाओं एवं उदाहरणों का ध्यान करें, तो उन्हें स्वतः ही स्पष्ट हो जाएगा कि अनन्त उद्धार के सिद्धांत में पाप करते रहने की स्वतंत्रता निहित नहीं है; वरन एक चेतावनी है कि मनुष्य अपने उद्धार की कीमत और महत्व को समझे अन्यथा परिणाम बहुत दुखदायी होंगे, इस लोक में भी और परलोक में भी। जैसा हम पहले देख चुके हैं, वास्तव में अपने पापों से पश्चाताप करने वाले, और प्रभु यीशु को सच्चे मन से जीवन समर्पित करने वाले व्यक्ति के अंदर परमेश्वर पवित्र आत्मा आकर निवास करने लगते हैं, जो उसे पाप के विषय कायल करते हैं। यदि उस व्यक्ति से किसी कारणवश कभी कोई पाप हो भी जाए, तो उसमें निवास करने वाले परमेश्वर पवित्र आत्मा उसे उस पाप में बने नहीं रहने देते हैं, वरन उसे उभारते और उकसाते हैं कि वह व्यक्ति अपने पाप के लिए पश्चाताप कर ले; उसको परमेश्वर के सम्मुख स्वीकार कर के उसके लिए क्षमा माँग ले, ताकि परमेश्वर उसे वापस क्षमा की स्थिति में बहाल कर देक्या ही धन्य है वह जिसका अपराध क्षमा किया गया, और जिसका पाप ढाँपा गया हो। क्या ही धन्य है वह मनुष्य जिसके अधर्म का यहोवा लेखा न ले, और जिसकी आत्मा में कपट न हो। जब मैं चुप रहा तब दिन भर कराहते कराहते मेरी हड्डियां पिघल गई। क्योंकि रात दिन मैं तेरे हाथ के नीचे दबा रहा; और मेरी तरावट धूप काल की सी झुर्राहट बनती गई। जब मैं ने अपना पाप तुझ पर प्रगट किया और अपना अधर्म न छिपाया, और कहा, मैं यहोवा के सामने अपने अपराधों को मान लूंगा; तब तू ने मेरे अधर्म और पाप को क्षमा कर दिया” (भजन संहिता 32:1-5); साथ ही 1 यूहन्ना 1:9 भी देखिए। इसलिए सच्चे मन से, और पूर्ण समर्पण से मसीह यीशु पर विश्वास लाने वाला व्यक्ति, जिसने प्रभु यीशु द्वारा उसके लिए चुकाई गई उसके पापों की कीमत को, प्रभु यीशु के बलिदान और पुनरुत्थान के मूल्य तथा महत्व को समझा है, वह कभी इस प्रवृत्ति के साथ कोई भी कार्य नहीं करेगा कि अब अनन्त उद्धार तो मिल ही गया है, इसलिए जैसा जी में आए कर लो, कोई हानि नहीं होगी। यह विचार और व्यवहार वही रखेगा जो अभी भी अपने पापों में ही है, जिसने वास्तव में उद्धार नहीं पाया है, और जो प्रभु द्वारा उसके उद्धार के लिए चुकाए गए दाम के मूल्य का एहसास नहीं करता है, जो प्रभु परमेश्वर के प्रति उसके इस महान अनुग्रह के लिए कृतज्ञ एवं दीन और नम्र नहीं है। 

उद्धार पाए हुए व्यक्ति की उसे पाप करने से रोकने वाली इस कृतज्ञता और समर्पण, तथा पवित्र आत्मा द्वारा उसे गलती से भी हुए पाप के लिए कायल करने के अतिरिक्त भी कुछ और संबंधित बातें हैं, जिनको समझने के लिए हमें वापस अदन की वाटिका में, प्रथम पाप के साथ घटी की घटनाओं का पुनःअवलोकन करके देखना होगा। जैसा हम पहले देख चुके हैं, पाप करने के बाद प्रथम मनुष्यों के साथ दो बातें हुईं - (i) वे तुरंत ही आत्मिक और शारीरिक मृत्यु के अंतर्गत आ गए - परमेश्वर से उनकी संगति टूट गई, और उनका शरीर क्षय होना आरंभ हो गया, जो अन्ततः शारीरिक मृत्यु में पहुँच गया; (ii) परमेश्वर ने उन्हें दंड दिया - स्त्री को आदम की अधीनता में कर दिया, उसकी प्रसव की पीड़ा बढ़ा दी, और आदम को दुख के साथ परिश्रम की रोटी खाने के अधीन कर दिया, उसके परिश्रम के बावजूद धरती उनके लिए कांटे और ऊंटकटारे उगाएगी; और उन दोनों को उस आशीष की विशिष्ट वाटिका के बाहर निकाल दिया गया। अर्थात पाप के कारण मनुष्य की परमेश्वर से संगति तो टूट ही चुकी है, किन्तु साथ ही मनुष्य जब भी पाप करता है उस पाप का दंड भी उसके जीवन में जुड़ जाता है, जिसे उसे इस पृथ्वी पर भुगतना ही होता है। साथ ही परलोक में उस पाप का प्रतिफल भी उसके नाम पर अर्जित हो जाता है, जिसे उसे परलोक में जाकर भुगतना होगा। 

इस पृथ्वी पर पाप का दण्ड भुगतने से संबंधित चर्चा कुछ लंबी है, इसलिए उसे हम अगले लेख में देखेंगे; आज हम परलोक के जीवन से संबंधित पाप के प्रभाव को देख लेते हैं। 

पाप का प्रभाव प्रत्येक मनुष्य के परलोक के जीवन पर भी पड़ता है। पापों की क्षमा पाए हुए मसीही विशासी को, इस पृथ्वी पर प्रभु की आज्ञाकारिता में उसकी उपयोगिता के लिए बिताए गए जीवन के अनुसार, स्वर्ग में आदर और प्रतिफल भी मिलेंगेभविष्य में मेरे लिये धर्म का वह मुकुट रखा हुआ है, जिसे प्रभु, जो धर्मी, और न्यायी है, मुझे उस दिन देगा और मुझे ही नहीं, वरन उन सब को भी, जो उसके प्रगट होने को प्रिय जानते हैं” (2 तीमुथियुस 4:8)। किन्तु इसके साथ ही पृथ्वी पर उसके द्वारा की गई परमेश्वर की अनाज्ञाकारिता तथा पाप उसके इन प्रतिफलों को बिगाड़ता भी रहता है। स्वर्ग में मनुष्य को मिलने वाले प्रतिफल इन दोनों - भले और बुरे के कुल योग के अनुसार दिए जाएंगे। किन्तु ये आदर और प्रतिफल मिलने से पहले प्रत्येक मसीही विश्वासी के जीवन के प्रत्येक कार्य की बहुत बारीकी से जाँच भी की जाएगी, “क्योंकि वह समय आ पहुंचा है, कि पहिले परमेश्वर के लोगों का न्याय किया जाए, और जब कि न्याय का आरम्भ हम ही से होगा तो उन का क्या अन्‍त होगा जो परमेश्वर के सुसमाचार को नहीं मानते? और यदि धर्मी व्यक्ति ही कठिनता से उद्धार पाएगा, तो भक्तिहीन और पापी का क्या ठिकाना?” (1 पतरस 4:17-18)। बाइबल से इस विषय से संबंधित कुछ और पदों को देखते हैं: 

  • हर पाप, हर अनाज्ञाकारिता, मसीही विश्वासी के प्रतिफलों को खराब करता है; और जिसका जीवन ऐसा रहा होगा कि उसकी लापरवाही और पापों ने उसके प्रतिफलों को या तो अर्जित ही नहीं होने दिया, अथवा बिगाड़ कर समाप्त कर दिया, वह फिर अनन्तकाल के लिए स्वर्ग में खाली हाथ ही प्रवेश करेगा और रहेगा, “तो हर एक का काम प्रगट हो जाएगा; क्योंकि वह दिन उसे बताएगा; इसलिये कि आग के साथ प्रगट होगा: और वह आग हर एक का काम परखेगी कि कैसा है। जिस का काम उस पर बना हुआ स्थिर रहेगा, वह मजदूरी पाएगा। और यदि किसी का काम जल जाएगा, तो हानि उठाएगा; पर वह आप बच जाएगा परन्तु जलते जलते” (1 कुरिन्थियों 3:13-15) 
  • न केवल कार्यों का, वरन हर एक मनुष्य को अपनी हर व्यर्थ बात, हर शब्द का भी हिसाब देना होगा, “और मैं तुम से कहता हूं, कि जो जो निकम्मी बातें मनुष्य कहेंगे, न्याय के दिन हर एक बात का लेखा देंगे। क्योंकि तू अपनी बातों के कारण निर्दोष और अपनी बातों ही के कारण दोषी ठहराया जाएगा” (मत्ती 12:36-37) 
  • परमेश्वर मसीही विश्वासियों की बातचीत को ध्यान से सुनता है और उसके सम्मुख उन बातों का लेखा रखा जाता है, “तब यहोवा का भय मानने वालों ने आपस में बातें की, और यहोवा ध्यान धर कर उनकी सुनता था; और जो यहोवा का भय मानते और उसके नाम का सम्मान करते थे, उनके स्मरण के निमित्त उसके साम्हने एक पुस्तक लिखी जाती थी” (मलाकी 3:16) 

 

इसलिए कोई भी यह न समझे कि उद्धार पाने के बाद पाप करने से उसे अब कोई हानि नहीं होगी। परमेश्वर मूर्ख नहीं है, कि मनुष्य उद्दंड होकर उसकी उदारता, कृपा, और प्रेम का दुरुपयोग कर ले और परमेश्वर बस एक मूक दर्शक ही बनकर मनुष्य द्वारा उसका अनुचित लाभ उठाते हुए देखता रह जाए। इसलिए शैतान के द्वारा फैलाई जा रही इन व्यर्थ और मिथ्या बातों पर ध्यान मत दीजिए। प्रभु के आपके प्रति प्रमाणित किए गए प्रेम, कृपा, और अनुग्रह, तथा उसके द्वारा आपको प्रदान किए जा रहे पाप-क्षमा प्राप्त करने के अवसर के मूल्य को समझिए, और अभी इस अवसर का लाभ उठा लीजिए। आपके द्वारा स्वेच्छा से, सच्चे और पूर्णतः समर्पित मन से, अपने पापों के प्रति सच्चे पश्चाताप के साथ आपके द्वारा की गई एक छोटी प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मैं मान लेता हूँ कि मैंने जाने-अनजाने में, मन-ध्यान-विचार और व्यवहार में आपकी अनाज्ञाकारिता की है, पाप किए हैं। मैं मान लेता हूँ कि आपने क्रूस पर दिए गए अपने बलिदान के द्वारा मेरे पापों के दण्ड को अपने ऊपर लेकर पूर्णतः सह लिया, उन पापों की पूरी-पूरी कीमत सदा काल के लिए चुका दी है। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मेरे मन को अपनी ओर परिवर्तित करें, और मुझे अपना शिष्य बना लें, अपने साथ कर लेंआपका सच्चे मन से लिया गया मन परिवर्तन का यह निर्णय आपके इस जीवन तथा परलोक के जीवन को आशीषित तथा स्वर्गीय जीवन बना देगा। अभी अवसर है, अभी प्रभु का निमंत्रण आपके लिए है - उसे स्वीकार कर लीजिए।   

 

 बाइबल पाठ: रोमियों 6:11-18

रोमियों 6:11 ऐसे ही तुम भी अपने आप को पाप के लिये तो मरा, परन्तु परमेश्वर के लिये मसीह यीशु में जीवित समझो।

रोमियों 6:12 इसलिये पाप तुम्हारे मरनहार शरीर में राज्य न करे, कि तुम उस की लालसाओं के आधीन रहो।

रोमियों 6:13 और न अपने अंगों को अधर्म के हथियार होने के लिये पाप को सौंपो, पर अपने आप को मरे हुओं में से जी उठा हुआ जानकर परमेश्वर को सौंपो, और अपने अंगों को धर्म के हथियार होने के लिये परमेश्वर को सौंपो।

रोमियों 6:14 और तुम पर पाप की प्रभुता न होगी, क्योंकि तुम व्यवस्था के आधीन नहीं वरन अनुग्रह के आधीन हो।

रोमियों 6:15 तो क्या हुआ क्या हम इसलिये पाप करें, कि हम व्यवस्था के आधीन नहीं वरन अनुग्रह के आधीन हैं? कदापि नहीं।

रोमियों 6:16 क्या तुम नहीं जानते, कि जिस की आज्ञा मानने के लिये तुम अपने आप को दासों के समान सौंप देते हो, उसी के दास हो: और जिस की मानते हो, चाहे पाप के, जिस का अन्त मृत्यु है, चाहे आज्ञा मानने के, जिस का अन्त धामिर्कता है

रोमियों 6:17 परन्तु परमेश्वर का धन्यवाद हो, कि तुम जो पाप के दास थे तौभी मन से उस उपदेश के मानने वाले हो गए, जिस के सांचे में ढाले गए थे।

रोमियों 6:18 और पाप से छुड़ाए जा कर धर्म के दास हो गए।

एक साल में बाइबल:

· यशायाह 3-4  

· गलातियों 6