ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

रविवार, 15 मार्च 2015

दृष्टिकोण


   जब मेरी नज़र उस पर पड़ी, तब हम आईसक्रीम स्टोर में पंक्ति में खड़े थे। उसके चेहरे पर मारपीट की चोटों के अनेकों निशान थे, उसकी नाक भी टेढ़ी हो रखी थी; उसके कपड़े साफ तो थे लेकिन अस्त-व्यस्त थे। एक स्वाभाविक प्रतिक्रीया स्वरूप मैं अपने बच्चों और उसके बीच में होकर खड़ा हो गया तथा अपनी पीठ को दोनों के बीच की एक दीवार बना लिया। जब पहली बार उसने कुछ कहा तो मुझे स्पष्ट सुनाई नहीं दिया, इसलिए उत्तर में मैंने बस अपना सिर थोड़ा सा हिला भर दिया, मैं उसके साथ आँख मिलाकर बात नहीं कर पा रहा था। क्योंकि मेरी पत्नि मेरे साथ स्टोर में नहीं थी इसलिए उसने सोचा कि मैं अकेला ही बच्चों का पालन-पोषण कर रहा हूँ।

  फिर उसने बड़ी नम्र आवाज़ में कहा, "अकेले ही इन का पालन-पोषण करना कठिन होता है; है ना?" बात कहने के उसके अन्दाज़ में कुछ था जिसने मुझे मुड़कर उसे देखने पर मजबूर कर दिया। तब ही मेरा ध्यान उसके साथ खड़े उसके बच्चों की ओर गया, और फिर उसने बताया कि कैसे बहुत पहले उस की पत्नि उन्हें छोड़कर जा चुकी थी, और मैं उसकी बात सुनता रहा। उसके नम्र शब्द तथा व्यवहार उसके कठोर बाहरी स्वरूप की तुलना में विरोधात्मक थे। मैं एक बार फिर मैं अपनी पूर्व-धारणा एवं आँकलन के कारण दुखी हुआ; एक बार फिर मैंने बाहरी स्वरूप के अन्दर की वास्तविकता को नहीं देख पाने की गलती करी थी।

   प्रभु यीशु का प्रतिदिन ऐसे लोगों से सामना होता था जिनके बाहरी स्वरूप के कारण उनसे मुँह मोड़ लेना बड़ी स्वाभाविक बात होती, उदाहरणस्वरूप हमारे आज के परमेश्वर के वचन बाइबल के पाठ में उल्लेखित दुष्टात्माओं से ग्रसित व्यक्ति ही को लीजिए (मरकुस 5:1-20)! लेकिन प्रभु यीशु ने सदा ही मनुष्यों की भीतरी दशा पर ध्यान किया, उनकी आवश्यकताओं को पहचाना और फिर उसी के अनुसार उनके साथ व्यवहार किया, उनकी आवश्यकताओं को पूरा किया।

   प्रभु यीशु का दृष्टिकोण सदा ही प्रेम का दृष्टिकोण होता है; वह कभी हमारे पाप के दाग़ों, बिगड़े हुए स्वभाव और लड़खड़ाती हुई विश्वासयोग्यता के आधार पर हमारा आँकलन नहीं करता है। उसने जगत के सभी लोगों से प्रेम किया है, अपने बैरी और विरोधियों से भी; उसने सभी के लिए अपना बलिदान दिया है; उस में विश्वास द्वारा सेंत-मेंत मिलने वाले उद्धार का उसका प्रस्ताव सभी के लिए समान रूप से है। प्रभु करे कि हमारा दृष्टिकोण तथा व्यवहार हट और दंभ का नहीं वरन उसके दृष्टिकोण के समान प्रेम और क्षमा का हो। - रैन्डी किलगोर


यदि आप प्रभु यीशु के दृष्टिकोण से देखेंगे तो आपको संसार ज़रूरतमंद नज़र आएगा।

...क्योंकि यहोवा का देखना मनुष्य का सा नहीं है; मनुष्य तो बाहर का रूप देखता है, परन्तु यहोवा की दृष्टि मन पर रहती है। - 1 शमूएल 16:7

बाइबल पाठ: मरकुस 5:1-20
Mark 5:1 और वे झील के पार गिरासेनियों के देश में पहुंचे। 
Mark 5:2 और जब वह नाव पर से उतरा तो तुरन्त एक मनुष्य जिस में अशुद्ध आत्मा थी कब्रों से निकल कर उसे मिला। 
Mark 5:3 वह कब्रों में रहा करता था। और कोई उसे सांकलों से भी न बान्‍ध सकता था। 
Mark 5:4 क्योंकि वह बार बार बेडिय़ों और सांकलों से बान्‍धा गया था, पर उसने सांकलों को तोड़ दिया, और बेडिय़ों के टुकड़े टुकड़े कर दिए थे, और कोई उसे वश में नहीं कर सकता था। 
Mark 5:5 वह लगातार रात-दिन कब्रों और पहाड़ों में चिल्लाता, और अपने को पत्थरों से घायल करता था। 
Mark 5:6 वह यीशु को दूर ही से देखकर दौड़ा, और उसे प्रणाम किया। 
Mark 5:7 और ऊंचे शब्द से चिल्लाकर कहा; हे यीशु, परमप्रधान परमेश्वर के पुत्र, मुझे तुझ से क्या काम? मैं तुझे परमेश्वर की शपथ देता हूं, कि मुझे पीड़ा न दे। 
Mark 5:8 क्योंकि उसने उस से कहा था, हे अशुद्ध आत्मा, इस मनुष्य में से निकल आ। 
Mark 5:9 उसने उस से पूछा; तेरा क्या नाम है? उसने उस से कहा; मेरा नाम सेना है; क्योंकि हम बहुत हैं। 
Mark 5:10 और उसने उस से बहुत बिनती की, हमें इस देश से बाहर न भेज। 
Mark 5:11 वहां पहाड़ पर सूअरों का एक बड़ा झुण्ड चर रहा था। 
Mark 5:12 और उन्होंने उस से बिनती कर के कहा, कि हमें उन सूअरों में भेज दे, कि हम उन के भीतर जाएं। 
Mark 5:13 सो उसने उन्हें आज्ञा दी और अशुद्ध आत्मा निकलकर सूअरों के भीतर पैठ गई और झुण्ड, जो कोई दो हजार का था, कड़ाडे पर से झपटकर झील में जा पड़ा, और डूब मरा।
Mark 5:14 और उन के चरवाहों ने भागकर नगर और गांवों में समाचार सुनाया। 
Mark 5:15 और जो हुआ था, लोग उसे देखने आए। और यीशु के पास आकर, वे उसको जिस में दुष्टात्माएं थीं, अर्थात जिस में सेना समाई थी, कपड़े पहिने और सचेत बैठे देखकर, डर गए। 
Mark 5:16 और देखने वालों ने उसका जिस में दुष्टात्माएं थीं, और सूअरों का पूरा हाल, उन को कह सुनाया। 
Mark 5:17 और वे उस से बिनती कर के कहने लगे, कि हमारे सिवानों से चला जा। 
Mark 5:18 और जब वह नाव पर चढ़ने लगा, तो वह जिस में पहिले दुष्टात्माएं थीं, उस से बिनती करने लगा, कि मुझे अपने साथ रहने दे। 
Mark 5:19 परन्तु उसने उसे आज्ञा न दी, और उस से कहा, अपने घर जा कर अपने लोगों को बता, कि तुझ पर दया कर के प्रभु ने तेरे लिये कैसे बड़े काम किए हैं। 
Mark 5:20 वह जा कर दिकपुलिस में इस बात का प्रचार करने लगा, कि यीशु ने मेरे लिये कैसे बड़े काम किए; और सब अचम्भा करते थे।

एक साल में बाइबल: 
  • व्यवस्थाविवरण 26-27
  • मरकुस 14:27-53