ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

रविवार, 27 सितंबर 2015

न्याय और करुणा


   जब कॉलेराडो स्प्रिंग्स, कॉलेराडो, के जंगलों में लगी आग से सैंकड़ों घर तथा जानवरों के रहने के अनेक स्थल जल कर राख हो गए, तो सारे देश में लोग परमेश्वर से प्रार्थना करने लगे कि वह बारिश को भेजे जिससे आग बुझ सके, विनाश रुक सके और आग बुझाने में लगे लोगों को राहत मिल सके। प्रार्थना करने वाले लोगों में से कुछ ने अपनी प्रार्थनाओं के साथ एक रोचक शर्त भी लगाई; उन्होंने परमेश्वर से करुणा दिखाने का आग्रह किया और बरसात की माँग करी लेकिन ऐसी बारिश जिसके साथ बिजली ना कड़के, क्योंकि उन्हें आशंका थी कि बिजली गिरने से कहीं और आग लग सकती है।

   इससे मुझे स्मरण हो आता है कि हम उसी वस्तु से हानि और लाभ के बीच कैसे तनाव में जीवन व्यतीत करते हैं। हम आग से अपना भोजन पकाते हैं, अपने आप को गरम रखते हैं, लेकिन वही आग हमें भस्म भी कर सकती है। बिना पानी हमारा जीवन नहीं है, हमें अपने शरीरों के कार्य करते रहने के लिए उचित मात्रा में पानी चाहिए, इस पृथ्वी के तापमान को नियंत्रित रखने के लिए के लिए और पर्यावरण को बनाए रखने के लिए पानी चाहिए, लेकिन उसी पानी में हम डूब भी सकते हैं, वह हमें और हमारे घर तथा फसलों को बहा कर ले जा सकता है, बर्बाद कर सकता है। किसी भी चीज़ की कमी या अधिकाई, या अनियंत्रित प्रयोग हानिकारक अथवा जीवन के लिए खतरनाक हो जाता है।

   यही सिद्धांत आत्मिक बातों और जीवन पर भी लागू होता है। सभ्यताओं को पनपने और बढ़ने के लिए, परस्पर विरोधाभास रखने वाली दो बातों, करुणा और न्याय (ज़कर्याह 7:9) की आवश्यकता होती है। प्रभु यीशु ने धर्मगुरुओं को परमेश्वर की व्यवस्था के अक्षरशः पालन पर ज़ोर देने परन्तु उसकी गंभीर बातों की अवहेलना करने के लिए डाँटा (मत्ती 23:23)।

   हम न्याय या करुणा में से किसी एक की ओर झुकाव रख सकते हैं, परन्तु प्रभु यीशु हमारे प्रति उन्हें बिलकुल संतुलित रखता है (यशायाह 16:5, 42:1-4)। समस्त मानव जाति के पापों के दण्ड के लिए प्रभु यीशु द्वारा दिए गए बलिदान से परमेश्वर के न्याय और हमारे प्रति उसकी करुणा, दोनों ही की माँग पूरी हुई, और हमें परमेश्वर के साथ मेल-मिलाप का मार्ग मिला है। - जूली ऐकैरमैन लिंक


परमेश्वर के न्याय और करुणा का मिलन प्रभु यीशु के क्रूस पर हुआ।

हे कपटी शास्‍त्रियों, और फरीसियों, तुम पर हाय; तुम पोदीने और सौंफ और जीरे का दसवां अंश देते हो, परन्तु तुम ने व्यवस्था की गम्भीर बातों को अर्थात न्याय, और दया, और विश्वास को छोड़ दिया है; चाहिये था कि इन्हें भी करते रहते, और उन्हें भी न छोड़ते। - मत्ती 23:23

बाइबल पाठ: यशायाह 16:1-5, 42:1-4
Isaiah 16:1 जंगल की ओर से सेला नगर से सिय्योन की बेटी के पर्वत पर देश के हाकिम के लिये भेड़ों के बच्चों को भेजो। 
Isaiah 16:2 मोआब की बेटियां अर्नोन के घाट पर उजाड़े हुए घोंसले के पक्षी और उनके भटके हुए बच्चों के समान हैं। 
Isaiah 16:3 सम्मति करो, न्याय चुकाओ; दोपहर ही में अपनी छाया को रात के समान करो; घर से निकाले हुओं को छिपा रखो, जो मारे मारे फिरते हैं उन को मत पकड़वाओ। 
Isaiah 16:4 मेरे लोग जो निकाले हुए हैं वे तेरे बीच में रहें; नाश करने वाले से मोआब को बचाओ। पीसने वाला नहीं रहा, लूट पाट फिर न होगी; क्योंकि देश में से अन्धेर करने वाले नाश हो गए हैं। 
Isaiah 16:5 तब दया के साथ एक सिंहासन स्थिर किया जाएगा और उस पर दाऊद के तम्बू में सच्चाई के साथ एक विराजमान होगा जो सोच विचार कर सच्चा न्याय करेगा और धर्म के काम पर तत्पर रहेगा।

Isaiah 42:1 मेरे दास को देखो जिसे मैं संभाले हूं, मेरे चुने हुए को, जिस से मेरा जी प्रसन्न है; मैं ने उस पर अपना आत्मा रखा है, वह अन्यजातियों के लिये न्याय प्रगट करेगा। 
Isaiah 42:2 न वह चिल्लाएगा और न ऊंचे शब्द से बोलेगा, न सड़क में अपनी वाणी सुनायेगा। 
Isaiah 42:3 कुचले हुए नरकट को वह न तोड़ेगा और न टिमटिमाती बत्ती को बुझाएगा; वह सच्चाई से न्याय चुकाएगा। 
Isaiah 42:4 वह न थकेगा और न हियाव छोड़ेगा जब तक वह न्याय को पृथ्वी पर स्थिर न करे; और द्वीपों के लोग उसकी व्यवस्था की बाट जाहेंगे।

एक साल में बाइबल: 
  • यशायाह 3-4
  • गलतियों 6