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रविवार, 12 दिसंबर 2021

मसीही सेवकाई और पवित्र आत्मा के वरदान - 10

 आत्मिक वरदान - उनके प्रकार तथा उनका विश्लेषण (2)


पिछले लेख में हमने 1 कुरिन्थियों 12:7-11 में दिए गए आत्मिक वरदानों को देखना आरंभ किया था। यहाँ दिए गए 9 विभिन्न वरदानों:बुद्धि का बातें”; “ज्ञान की बातें”; “विश्वास”; “चंगा करने का वरदान”; “सामर्थ्य के काम करने की शक्ति”; “भविष्यवाणी करने की शक्ति”; “आत्माओं की परख”; “अनेक प्रकार की भाषा”; “भाषाओं का अर्थ बतानामें से हमने पहले पाँच के बारे में देखा था। साथ ही हमने यह भी देखा था कि पवित्र आत्मा के सभी वरदान किसी के निज प्रयोग अथवा लाभ के लिए नहीं हैं, वरन, सभी के लिए और मसीही विश्वासियों की मण्डली की उन्नति और लाभ के लिए हैं। जिसे भी उसकी सेवकाई के लिए जो भी वरदान परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रदान किया है, उसे वह वरदान पवित्र आत्मा की अगुवाई में, सभी मसीही विश्वासियों के लाभ के लिए प्रयोग करना है, अपने लिए नहीं। आज हम शेष चार वरदानों के बारे में कुछ विवरण देखेंगे:

  • भविष्यवाणी करने की शक्ति: मूल यूनानी भाषा के जिस शब्द का अनुवादभविष्यवाणी किया गया है, उसका शब्दार्थ न केवल भविष्य की बातें बताना होता है, वरन प्रेरित होकर औरों के सामने बोलना या बताना भी होता है। 1 कुरिन्थियों 14:3 में इसी शब्द को “”... मनुष्यों से उन्नति, और उपदेश, और शान्ति की बातेंकहने के लिए भी प्रयोग किया गया है, और लूका 22:64 में, जब पकड़वाए जाने के बाद सैनिकों द्वारा प्रभु का उपहास किया जा रहा था, तबबूझनेयापता लगाकर बतानेके लिए भी हुआ है। इसी प्रकार से इस शब्द को विभिन्न स्थानों में उसके भिन्न अर्थों के साथ उपयोग किया गया है। पवित्र आत्मा न केवल कुछ लोगों को भविष्य की बातें बताने की सामर्थ्य देता है (प्रेरितों 21:9-11), वरन कुछ लोगों को परमेश्वर की बातें औरों के सामने बोलने की भी सामर्थ्य देता है (1 कुरिन्थियों 11:4,5; 13:9; 14:3-5, 24, 31, 39; प्रकाशितवाक्य 11:3) 
  • आत्माओं की परख: पहली कलीसिया की स्थापना, और प्रभु के शिष्यों द्वारा सुसमाचार प्रचार के आरंभ होने के साथ ही शैतान की ओर से झूठे प्रचारक (1 यूहन्ना 2:18; 4:1), प्रभु यीशु के नाम से प्रचार को कमाई का साधन बना कर प्रयोग करने वाले (रोमियों 16:18; फिलिप्पियों 3:18, 19), और गलत शिक्षाओं के देने वाले (2 कुरिन्थियों 4:2; 2 पतरस 2:1; 2 यूहन्ना 1:7) भी मण्डलियों और लोगों में फैलने लगे थे, अपने कार्य के द्वारा लोगों को बहकाने लगे थे। उस समय में, जब आज के समान लिखित वचन लोगों के हाथ में नहीं था, अधिकांशतः मसीही जीवन की शिक्षाएं, सुसमाचार प्रचार, और प्रभु की बातों का प्रसार, मौखिक प्रचार और संबोधनों के द्वारा होता था। ऐसे में, इन शैतान के लोगों के झूठ और गलत शिक्षाओं को तुरंत ही परखने और प्रकट करने के लिए, वचन को जानने, जाँचने, और सच को उजागर करने की शक्ति पवित्र आत्मा लोगों को देता था, जिससे वे झूठ को प्रकट कर के लोगों को गलत शिक्षाओं से बचा सकें (1 कुरिन्थियों 14:29)। यह कार्य आज भी पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से कुछ लोग विभिन्न माध्यमों के द्वारा करते रहते हैं, अन्यथा गलत शिक्षाओं की भरमार में मसीही विश्वासियों के लिए सत्य की पहचान करना बहुत कठिन हो जाएगा।   
  • अनेक प्रकार की भाषा: प्रेरितों 2:4-11 से यह प्रकट है कि जिनअन्य भाषाओंका उल्लेख किया गया है वे पृथ्वी की ही, और विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लोगों द्वारा बोली जाने वाली भाषाएं थीं, न कि अलौकिक या पृथ्वी के बाहर की भाषाएं, जैसा पवित्र आत्मा के नाम से गलत शिक्षाएं देने वाले दावा करते हैं। यह बात 1 कुरिन्थियों 14 अध्याय के अध्ययन से और अधिक स्पष्ट एवं दृढ़ हो जाती है। उस समय प्रभु के शिष्यों और प्रेरितों को तुरंत ही संसार भर में जाकर सुसमाचार बताने की आवश्यकता थी; किन्तु प्रभु के अनुयायी सभी इस्राएल से थे, यहूदी भाषा बोलने वाले थे, और अधिकांशतः तो बहुत कम शिक्षा पाए हुए या अनपढ़ भी थे। इस बात का सुसमाचार प्रचार में बाधा बनने के समाधान के लिए पवित्र आत्मा ने उन शिष्यों को अनेकों प्रकार की भाषाएं बोलने का वरदान भी दे दिया, जिससे वे उस भाषा के अनुसार अलग-अलग इलाकों में जाकर प्रचार कर सकें। यह उस समय की तात्कालिक आवश्यकता थी, जिसका समाधान परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रदान किया, और यह 1 कुरिन्थियों 14 अध्याय में और स्पष्ट भी हो जाता है। साथ ही पवित्र आत्मा ने यह भी लिखवा दिया कि यह वरदान स्थाई नहीं है, वरन एक समय पर समाप्त हो जाएगा क्योंकि तब इसकी आवश्यकता नहीं रहेगी (1 कुरिन्थियों 13:8), हर स्थान पर हर भाषा में सुसमाचार देने वाले लोग खड़े हो जाएंगे। किन्तु इस वरदान की गलत समझ, व्याख्या, और शिक्षाओं के द्वारा पवित्र आत्मा के नाम से गलत शिक्षाएं देने वालों ने बहुतेरों को बहका रखा है, भ्रम में डाल रखा है। 

इसीलिए अन्य भाषा बोलने का वरदान भी सभी की भलाई, सभी की उपयोगिता, और मण्डली की उन्नति के लिए है; किसी के द्वारा व्यक्तिगत प्रयोग या अपने आप को विशेष सामर्थ्य पाया हुआ दिखाने के लिए नहीं। इस वरदान को व्यक्तिगत उपयोग के लिए बताना या प्रयोग करना, वचन के अनुसार नहीं है, इस वरदान तथा परमेश्वर के वचन का दुरुपयोग है।  

  • भाषाओं का अर्थ बताना: जिस प्रकार संसार के सभी स्थानों में जाकर वहाँ की भाषा में सुसमाचार प्रचार करने वालों की आवश्यकता थी, उसी प्रकार से मण्डलियों में ऐसे लोगों की भी आवश्यकता थी जो दु-भाषिये का कार्य कर सकें। अर्थात यदि कोई भिन्न भाषा बोलने वाला प्रचारक किसी मण्डली में आए, तो उसकी बात को स्थानीय भाषा में अनुवाद कर के स्थानीय लोगों को लाभान्वित कर सकें। इसीलिए पवित्र आत्मा ने लिखवाया है कि प्रचारक को किसी नए स्थान पर जाने के बाद पहले यह पता कर लेना चाहिए कि उसकी बात का स्थानीय भाषा में अनुवाद करने वाला कोई है कि नहीं; यदि नहीं है तो फिर उसे शांत रहना चाहिए, नाहक प्रचार नहीं करना चाहिए (1 कुरिन्थियों 14:27-28)

यदि आप मसीही विश्वासी हैं तो आपके लिए यह अनिवार्य है कि वचन की सही समझ और शिक्षा में दृढ़ और स्थापित हों, तथा गलत शिक्षाओं के बहकावे में न आएं; वरन गलत शिक्षाओं को औरों के सामने प्रकट करें और लोगों को उनसे सावधान रहने, बच कर रहने के बारे में समझाएं। इन अंत के दिनों में जिस तेज़ी से चिह्न-चमत्कारों आदि के द्वारा गलत शिक्षाएं फैलाई जा रही हैं, उसका सामना करने, लोगों को झूठी बातों में फँसने और बहकाए जाने से बचाने के लिए सभी मसीही विश्वासियों को वचन की सही समझ रखने और उसका सही उपयोग करना सिखाने की बहुत आवश्यकता है। प्रभु से प्रार्थना कीजि, उससे माँगिए कि वह आपको अपने लिए उपयोग करे कि आप झूठ और गलत शिक्षाओं को प्रकट कर सकें, उन्हें उजागर कर सकें, और लोगों को गलत बातों में फंस कर अनन्त विनाश में जाने से बचा सकें।

 यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी। 

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • होशे 9-11    
  • प्रकाशितवाक्य 3