उपसंहार
पिछले लगभग एक महीने से हम मसीही
विश्वासी के जीवन और सेवकाई में परमेश्वर पवित्र आत्मा की भूमिका, उनके द्वारा दिए गए
वरदानों के, और उन वरदानों के उपयोग, तथा
पवित्र आत्मा तथा आत्मिक वरदानों के साथ जुड़ी अनेकों भ्रांतियों के बारे में
परमेश्वर के वचन बाइबल से देखते आ रहे हैं, और सीखते आ रहे
हैं कि उन गलत शिक्षाओं की तुलना में वचन में दी गई सही बातें क्या हैं, वचन की उन बातों के अभिप्राय क्या हैं, और कैसे उन
बातों को उनके संदर्भ, तात्कालिक पाठक या श्रोताओं के लिए
अर्थ, प्रयोग किए गए शब्दों के मूल भाषा के शब्दार्थ,
और वचन में उन से संबंधित अन्य शिक्षाओं एवं बातों के साथ मिलाकर,
परमेश्वर पवित्र आत्मा के अगुवाई में किए गए अध्ययन से ये गलत
शिक्षाएं पहचानी जा सकती हैं, और इनसे बचा जा सकता है,
बाहर निकला जा सकता है। प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों को, उनके जीवन और सेवकाई में परमेश्वर पवित्र आत्मा की भूमिका और कार्य के
बारे में कुछ बहुत महत्वपूर्ण शिक्षाएं यूहन्ना 14 और 16
अध्याय में दी हैं। मसीही विश्वासी के जीवन और सेवकाई में पवित्र
आत्मा और आत्मिक वरदानों के संदर्भ में प्रत्येक मसीही विश्वासी के लिए इन
शिक्षाओं को जानना और समझना, और फिर इनके अनुसार लोगों
द्वारा दी जा रही शिक्षाओं का आँकलन करना बहुत आवश्यक है, क्योंकि
ये शिक्षाएं प्रभु ने इसी उद्देश्य से अपने शिष्यों को दी थीं।
प्रभु यीशु ने शिष्यों से कहा, “मैं अब से तुम्हारे
साथ और बहुत बातें न करूंगा, क्योंकि इस संसार का सरदार आता
है, और मुझ में उसका कुछ नहीं” (यूहन्ना
14:30)। प्रभु जानता था कि उनके स्वर्गारोहण के पश्चात,
शैतान उनके कार्य को बिगाड़ने और शिष्यों द्वारा सुसमाचार की सेवकाई
को बाधित या निष्फल करने के लिए उन शिष्यों पर और उनकी सेवकाई पर हमला करेगा।
क्योंकि शैतान एक बहुत प्रबल शत्रु है, और अनेकों युक्तियों
तथा धार्मिक और सही प्रतीत होने वाली बातों एवं व्यवहार के द्वारा प्रभु के
शिष्यों और सेवकाई के कार्यों में बाधा डालेगा (2 कुरिन्थियों
11:3, 13-15, इसी लिए शिष्यों की सहायता के लिए प्रभु ने अपने पवित्र
आत्मा को उनमें और उनके साथ रहने के लिए भेजा। हम देख चुके हैं कि जैसे ही कोई
व्यक्ति पापों से पश्चाताप करके, उनके लिए प्रभु यीशु से
क्षमा माँगता है, प्रभु को अपना उद्धारकर्ता स्वीकार करता है
और अपना जीवन उसे समर्पित कर देता है, उसी पल से तुरंत ही
परमेश्वर पवित्र आत्मा उसके जीवन में आकर, उसके मसीही जीवन
और सेवकाई में उसका सहायक और मार्गदर्शक होने के लिए, उसके
अन्दर सर्वदा के लिए निवास करने लगता है (यूहन्ना 14:16-17; 1 कुरिन्थियों 3:16;
6:19)। साथ
ही परमेश्वर पिता ने जो भी सेवकाई उस व्यक्ति के लिए निर्धारित की है (इफिसियों 2:10)
उसे भली-भांति निभाने के लिए उस व्यक्ति को उपयुक्त आत्मिक वरदान भी
प्रदान करता है, तथा उन वरदानों का प्रयोग करना सिखाता है।
प्रभु यीशु के विश्वासी की आशीष और आत्मिक जीवन में उन्नति, उसके
द्वारा उसे सौंपी गई सेवकाई को ठीक से करने में ही है; इसी
उद्देश्य से परमेश्वर पवित्र आत्मा उसके अन्दर रहता है।
परमेश्वर पवित्र आत्मा अपनी सम्पूर्ण
सामर्थ्य के साथ प्रत्येक मसीही विश्वासी में उसके उद्धार पाने के क्षण से ही
विद्यमान है; किन्तु
जब तक वह विश्वासी पवित्र आत्मा के कहे के अनुसार न करे, उसके
चलाए न चले (गलातियों 5:16, 18, 26), तो फिर उसके जीवन में
पवित्र आत्मा की उपस्थिति और सामर्थ्य कैसे प्रकट होगी? अदन
की वाटिका में पहला पाप करवाने के लिए शैतान ने अपनी जिस युक्ति का प्रयोग किया था,
उसे ही आज भी वह उतनी ही कारगर रीति से प्रयोग करता है। उसकी यह
युक्ति है परमेश्वर के वचन पर संदेह उत्पन्न करके, उसके
विरुद्ध मन में प्रश्न उठाकर, मनुष्य द्वारा अपनी दृष्टि और
समझ के अनुसार अच्छी, लुभावनी, और
मन-भावनी प्रतीत होने वाली बात को ही सही मानना, और परमेश्वर
के वचन के विरुद्ध, अपनी दृष्टि और
समझ में सही बात का पालन करना। इसी युक्ति के अन्तर्गत शैतान ने परमेश्वर पवित्र आत्मा, उनके कार्य, और उनके द्वारा दिए जाने वाले आत्मिक वरदानों के बारे में बहुत सी गलत
शिक्षाएं बहुत धार्मिक और लुभावनी लगने वाली बातों के रूप में मसीही या ईसाई कहलाए
जाने वाले लोगों में फैला रखी हैं, यहाँ तक कि अनेकों
वास्तविक मसीही विश्वासियों को भी उन बातों के भ्रम में फंसा रखा है।
जब तक मसीही विश्वासी उन गलत शिक्षाओं से
बाहर आकर वचन की सच्चाई और खराई को समझकर, उसका पालन करना आरंभ नहीं करेगा, वह
शैतान द्वारा खड़े किए गए एक काल्पनिक “मसीही” विश्वास तथा धार्मिकता की चकाचौंध, आकर्षण, शारीरिक उन्माद और लुभावने अनुभव उत्पन्न करने वाली बातों में, तथा उसके अनुसार किए गए कार्यों के धोखे में फंसा रहेगा। अन्ततः जब ऐसे
“मसीही विश्वासियों” की आँख खुलेगी, और वे सच्चाई को जानेंगे, पहचानेंगे, तब तक बहुत देर हो चुकी होगी, और उन पाँच मूर्ख
कुँवारियों के समान उनके वापस परमेश्वर के पास लौटने के द्वारा हमेशा के लिए बंद
हो चुके होंगे। एक बहुत साधारण और सीधी सी बात है, जो कुछ
वचन में दिया गया नहीं है, वचन के अनुसार नहीं है, जो कुछ भी
वचन के बाहर से है, जो कुछ भी वचन में जोड़ कर या उसमें से
घटा कर बताया और सिखाया जा रहा है, वह सत्य नहीं है, शैतान की ओर से है, और कदापि उसका पालन नहीं करना है
- वह चाहे मानवीय बुद्धि और तर्क के अनुसार कितना भी ठीक, आकर्षक,
धार्मिक, और उचित क्यों न लगे; चाहे कितने भी और कैसे भी लोग उसके पक्ष में क्यों न बोलें।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं तो अभी समय
रहते 2 कुरिन्थियों
13:5 के अनुसार अपने आप को जाँच कर देख लें कि आप सही
विश्वास में हैं कि नहीं। परमेश्वर पवित्र आत्मा के द्वारा, परमेश्वर
के वचन बाइबल के अनुसार चलाए ही चलें, अन्य हर बात से बाहर
हो जाएं। चाहे ऐसा करने के लिए कैसी भी कीमत क्यों न चुकानी पड़े, क्योंकि आज की थोड़ी सी हानि, कल की अनन्त आशीष और
भलाई बन जाएगी। किन्तु यदि आप सच्चाई के लिए आज यह थोड़ी सी हानि उठाने, यह कीमत चुकाने के लिए तैयार नहीं होंगे, तो कल यह
आपके लिए अनन्त हानि और पीड़ा का कारण बन जाएगी। इसलिए सही निर्णय लेकर, और उसके अनुसार उचित कार्य कर लें।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- मलाकी
1-4
- प्रकाशितवाक्य 22