एक मसीही स्कूल में अपने शिक्षक और खेल प्रशिक्षक होने के कार्यकाल में मैं किशोरों के साथ वार्तालाप करने और उन्हें एक उद्देश्यपूर्ण मसीही जीवन जीने की शिक्षा देने, ऐसा जीवन जो परमेश्वर के तथा दूसरों के प्रति प्रेम से भरा हो, में बहुत रुचि लेता था। मेरा उद्देश्य था कि उन्हें सारा जीवन परमेश्वर के भय में जीना सिखा सकूँ। लेकिन ऐसा होना तब ही संभव था जब वे परमेश्वर के पवित्र-आत्मा की सहायता से उन शिक्षाओं तथा मसीही विश्वास को अपने जीवन का अभिन्न अंग बना लें। जो ऐसा नहीं करते थे, मैंने उन्हें मसीही शिक्षकों और अभिभावकों के प्रभाव से निकलने के बाद जीवन की गलत राहों में भटकते हुए भी देखा।
यही बात परमेश्वर के वचन बाइबल में दी गई राजा योआश कि कहानी से भी हमें देखने को मिलती है। जब तक योआश अपने बचपन से ही, परमेश्वर के भय में रहने वाले और उसके प्राणों को बचाने वाले तथा उसके सलाहकार यहोयादा के कहे अनुसार चलता रहा, वह परमेश्वर को आदर देने वाला जीवन जीता रहा (2 इतिहास 24:11, 14)। परन्तु समस्या यह थी कि योआश नें यहोयादा के समान परमेश्वर के आदर और भय को अपने जीवन का अंग नहीं बनाया था। यहोयादा की मृत्यु के पश्चात, योआश ने परमेश्वर के भवन को छोड़ दिया (पद 18) और अन्य देवी-देवताओं के पीछे चल निकला। वह बिगड़ कर इतना बुरा हो गया कि जब यहोयादा के पुत्र ने उसे इस संबंध में चिताया, तो उसने अपने प्राणों को बचाने वाले के पुत्र को ही घात करवा दिया (पद 20-22)।
मसीह यीशु की समानता और मसीही विश्वास में बढ़ना सिखाने के लिए हमारे जीवनों में किसी योग्य मार्गदर्शक का होना हमारे लिए बहुत लाभकारी होता है। लेकिन और भी बेहतर होता है प्रभु यीशु को व्यक्तिगत रीति से जानना, उसे अपना जीवन समर्पित करना और पवित्र-आत्मा के मार्गदर्शन में जीवन व्यतीत करना (गलतियों 5:16)। - डेव ब्रैनन
दूसरों के मसीही विश्वास से प्रोत्साहन मिलता है; स्वयं मसीही विश्वास में आ जाने से जीवन बदल जाता है।
पर मैं कहता हूं, आत्मा के अनुसार चलो, तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे। - गलतियों 5:16
बाइबल पाठ: 2 इतिहास 24:1-2; 15-22
2 Chronicles 24:1 जब योआश राजा हुआ, तब वह सात वर्ष का था, और यरूशलेम में चालीस वर्ष तक राज्य करता रहा; उसकी माता का नाम सिब्या था, जो बेर्शेबा की थी।
2 Chronicles 24:2 और जब तक यहोयादा याजक जीवित रहा, तब तक योआश वह काम करता रहा जो यहोवा की दृष्टि में ठीक है।
2 Chronicles 24:15 परन्तु यहोयादा बूढ़ा हो गया और दीर्घायु हो कर मर गया। जब वह मर गया तब एक सौ तीस वर्ष का था।
2 Chronicles 24:16 और दाऊदपुर में राजाओं के बीच उसको मिट्टी दी गई, क्योंकि उसने इस्राएल में और परमेश्वर के और उसके भवन के विषय में भला किया था।
2 Chronicles 24:17 यहोयादा के मरने के बाद यहूदा के हाकिमों ने राजा के पास जा कर उसे दण्डवत की, और राजा ने उनकी मानी।
2 Chronicles 24:18 तब वे अपने पितरों के परमेश्वर यहोवा का भवन छोड़कर अशेरों और मूरतों की उपासना करने लगे। सो उनके ऐसे दोषी होने के कारण परमेश्वर का क्रोध यहूदा और यरूशलेम पर भड़का।
2 Chronicles 24:19 तौभी उसने उनके पास नबी भेजे कि उन को यहोवा के पास फेर लाएं; और इन्होंने उन्हें चिता दिया, परन्तु उन्होंने कान न लगाया।
2 Chronicles 24:20 और परमेश्वर का आत्मा यहोयादा याजक के पुत्र जकर्याह में समा गया, और वह ऊंचे स्थान पर खड़ा हो कर लोगों से कहने लगा, परमेश्वर यों कहता है, कि तुम यहोवा की आज्ञाओं को क्यों टालते हो? ऐसा कर के तुम भाग्यवान नहीं हो सकते, देखो, तुम ने तो यहोवा को त्याग दिया है, इस कारण उसने भी तुम को त्याग दिया।
2 Chronicles 24:21 तब लोगों ने उस से द्रोह की गोष्ठी कर के, राजा की आज्ञा से यहोवा के भवन के आंगन में उसको पत्थरवाह किया।
2 Chronicles 24:22 यों राजा योआश ने वह प्रीति भूल कर जो यहोयादा ने उस से की थी, उसके पुत्र को घात किया। और मरते समय उसने कहा यहोवा इस पर दृष्टि कर के इसका लेखा ले।
एक साल में बाइबल:
- व्यवस्थाविवरण 11-13
- मरकुस 12:1-27