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शनिवार, 1 दिसंबर 2012

बैसाखी?


   मसीही विश्वास का उपहास करने वाले कहते हैं कि यह किसी बैसाखी के समान ही है - प्रभु यीशु में लोग केवल इसलिए विश्वास रखते हैं क्योंकि वे अपने आप में कमज़ोर होते हैं और उनके लिए धर्म की बैसाखी के बिना जीवन व्यतीत करना संभव नहीं। संभवतः इन उपहास करने वाले लोगों ने मसीही विश्वास के लिए यात्नाएं सहने और भारी दुख तथा पीड़ा उठाने वाले लोगों के बारे में नहीं सुना है, जिन्होंने भीष्ण अत्याचारों का सामना करने और सहने पर भी अपने विश्वास से मुँह नहीं मोड़ा। इतना सब सहने पर भी स्थिर बने रहने की शक्ति किसी कमज़ोर व्यक्ति के बस की बात नहीं है।

   सुदूर पुर्व के एक देश में, अपने मसीही विश्वास के कारण, एक डॉक्टर को ढाई वर्ष जेल में रख कर उसे ’पुनःशिक्षित’ किया गया जिससे वह इस विश्वास से निकल जाए। जेल से छोड़े जाने के कुछ समय बाद ही उसे फिर हिरासत में लेना पड़ा क्योंकि अब वह अपने चर्च में मसीही विश्वास की उन्नति और स्थिरता के लिए और भी बढ़-चढ़ कर कार्य कर रहा था।

   परमेश्वर के वचन बाइबल में प्रेरित पौलुस के जीवन के बारे में विचार कीजिए, जिसने मसीही विश्वास में आने के बाद अपना रुतबा, हैसियत, पद सब कुछ गंवा दिया; उसके मित्र और साथी उसके शत्रु बन गए और मसीही विश्वास के प्रचार के कारण उसे जेल, कोड़े, उपहास और मृत्यु के जोखिम बार-बार उठाने पड़े (२ कुरिन्थियों ११:१६-२९)।

   ये मसीही विश्वासी किसी बैसाखी का सहारा नहीं ढूँढ रहे थे; इनके मनों में कुछ गंभीर और अति-आवश्यक था जिसे संसार के लोगों में हर कीमत पर पहुँचाना इनकी ज़िम्मेदारी थी, और वे उस ज़िम्मेदारी को हर कीमत चुका कर ही निभा रहे थे। परमेश्वर के साथ उनका एक व्यक्तिगत रिश्ता था, एक ऐसा रिश्ता जो मसीह यीशु के क्रूस पर दिए बलिदान पर लाए विश्वास से बना था। अपने इस विश्वास के कारण अब वे सृष्टिकर्ता परमेश्वर की सन्तान बन गए थे और अपने इस राजपद पाने को संसार के सामने घोषित करने के सौभाग्य के लिए वे कुछ भी सहने और बलिदान करने के लिए तैयार थे।

   इनमें से कोई भी व्यर्थ बातों में फंसा अपाहिज नहीं था जिसे किसी बैसाखी की आवश्यकता हो; इनकी सामर्थ और शक्ति संसार कि किसी भी सामर्थ और शक्ति से बढ़कर थी।

   मसीही विश्वास एक बैसाखी? कदापि नहीं! प्रभु यीशु मसीह में विश्वास संसार की कठिनाईयों से बचकर सुरक्षा में रहने का माध्यम नहीं है, वरन यह संसार में अन्धकार कि शक्तियों को खुली चुनौती देकर उनसे जूझने का निमंत्रण है, जिसके लिए प्रत्येक विश्वासी को एक भारी कीमत चुकाने को सदा तैयार रहना चाहिए। यह अपने उद्धारकर्ता के समान ही प्रतिदिन अपना क्रूस उठाकर (लूका ९:२३) उसके पीछे पीछे चलने और दुख उठाने का नाम है। - डेव ब्रैनन


क्योंकि मसीह यीशु ने हमारे लिए क्रूस सह लिया इसलिए हम उसके लिए क्रूस उठाए फिरते हैं।

उस ने सब से कहा, यदि कोई मेरे पीछे आना चाहे, तो अपने आप से इन्‍कार करे और प्रति दिन अपना क्रूस उठाए हुए मेरे पीछे हो ले। क्‍योंकि जो कोई अपना प्राण बचाना चाहेगा वह उसे खोएगा, परन्‍तु जो कोई मेरे लिय अपना प्राण खोएगा वही उसे बचाएगा। - लूका ९:२३-२४

बाइबल पाठ: २ कुरिन्थियों ४:८-१८
2Co 4:8  हम चारों ओर से क्‍लेश तो भोगते हैं, पर संकट में नहीं पड़ते; निरूपाय तो हैं, पर निराश नहीं होते। 
2Co 4:9  सताए तो जाते हैं, पर त्यागे नहीं जाते; गिराए तो जाते हैं, पर नाश नहीं होते। 
2Co 4:10  हम यीशु की मृत्यु को अपनी देह में हर समय लिये फिरते हैं; कि यीशु का जीवन भी हमारी देह में प्रगट हो। 
2Co 4:11 क्‍योंकि हम जीते जी सर्वदा यीशु के कारण मृत्यु के हाथ में सौंपे जाते हैं कि यीशु का जीवन भी हमारे मरणहार शरीर में प्रगट हो। 
2Co 4:12  सो मृत्यु तो हम पर प्रभाव डालती है और जीवन तुम पर। 
2Co 4:13  और इसलिये कि हम में वही विश्वास की आत्मा है, (जिस के विषय में लिखा है, कि मैं ने विश्वास किया, इसलिये मैं बोला) सो हम भी विश्वास करते हैं, इसी लिये बोलते हैं। 
2Co 4:14 क्‍योंकि हम जानते हैं, जिस ने प्रभु यीशु को जिलाया, वही हमें भी यीशु में भागी जानकर जिलाएगा, और तुम्हारे साथ अपने साम्हने उपस्थित करेगा। 
2Co 4:15 क्‍योंकि सब वस्‍तुएं तुम्हारे लिये हैं, ताकि अनुग्रह बहुतों के द्वारा अधिक होकर परमेश्वर की महिमा के लिये धन्यवाद भी बढ़ाए।
2Co 4:16 इसलिये हम हियाव नहीं छोड़ते; यद्यपि हमारा बाहरी मनुष्यत्‍व नाश भी होता जाता है, तौभी हमारा भीतरी मनुष्यत्‍व दिन प्रतिदिन नया होता जाता है। 
2Co 4:17 क्‍योंकि हमारा पल भर का हल्का सा क्‍लेश हमारे लिये बहुत ही महत्‍वपूर्ण और अनन्‍त महिमा उत्‍पन्न करता जाता है। 
2Co 4:18 और हम तो देखी हुई वस्‍तुओं को नहीं परन्‍तु अनदेखी वस्‍तुओं को देखते रहते हैं, क्‍योंकि देखी हुई वस्‍तुएं थोड़े ही दिन की हैं, परन्‍तु अनदेखी वस्‍तुएं सदा बनी रहती हैं।

एक साल में बाइबल: 
  • यहेजकेल ४०-४१ 
  • २ पतरस ३