मेरे बच्चे तो रोमांचित थे, लेकिन मैं बहुत आशंकित थी। छुट्टियाँ
मनाने के समय में हम एक मछली-घर घूमने गए थे, और वहाँ एक
विशेष टैंक में छोटी शार्क मछलियाँ भी थीं, जिन्हें दर्शक छू
सकते थे, दुलार से थपथपा सकते थे। मैंने वहाँ के सहायक से
पूछा कि क्या ये शार्क कभी किसी को काटती या पकड़ती नहीं हैं?
उसने उत्तर दिया कि इन शार्क मछलियों को अभी कुछ देर पहले ही भरपेट भोजन करवाया
गया है, और फिर उसके ऊपर कुछ और अतिरिक्त भी खिला दिया गया
है। क्योंकि अब उन्हें भूख नहीं थी, उनके पेट भरे हुए थे, इसलिए वे काटेंगी भी नहीं।
मैंने जो शार्क को छूने और
थपथपाने के विषय में उस दिन सीखा, वह परमेश्वर के वचन बाइबल में नीतिवचन में लिखी बात, “सन्तुष्ट होने पर मधु का छत्ता भी फीका लगता है, परन्तु भूखे को सब कड़वी
वस्तुएं भी मीठी जान पड़ती हैं” (नीतिवचन 27:7) के अनुसार है। भूख – वह अन्दर से खालीपन का भाव – हमारे सही निर्णय
करने की बुद्धिमत्ता को क्षीण बना सकती है। भूखा होना या तृप्त न होना हमें ऐसा
कुछ भी स्वीकार करने के लिए बाध्य कर सकता है, जिसके द्वारा हमें लगता है कि हमारी भूख शांत हो सकेगी, हमें तृप्ति मिल सकेगी – चाहे उसके लिए हमें किसी और का कोई भाग ही काटना
या छीनना क्यों न पड़े।
परमेश्वर नहीं चाहता है कि हम
अपनी भूख या तृप्त होने की भावना से बाध्य होकर जीवन जीएँ। वह चाहता है कि हम मसीह
यीशु के प्रेम से भर जाएँ जिससे हम जो भी करें वह उस शान्ति और स्थिरता के साथ हो
जो वह हमें प्रदान करता है। इस बात का निरंतर एहसास कि हमें बिना किसी भी शर्त के
लगातार प्रेम किया जाता है,
हमें इसके लिए भरोसा देता है। इस प्रेम में स्थिर और दृढ़ होने के द्वारा हम हमारी
ओर आने वाले प्रत्येक “अच्छी” प्रतीत होने वाली वस्तु को स्वीकार करने के स्थान पर, अपने लिए अपनी संपत्ति, संबंधों, सामग्री के विषय जाँच-परख कर सही चुनाव कर सकते हैं।
केवल प्रभु यीशु मसीह के साथ
एक सही संबंध ही हमें पूर्ण संतुष्टि दे सकता है, हमें तृप्त रख सकता है। हम अपने लिए उसके अनुपम, अद्भुत प्रेम को समझें, और अपनी तथा औरों की तृप्ति
के लिए “...परमेश्वर की सारी भरपूरी तक परिपूर्ण हो जाएँ” (इफिसियों 3:19)।
- जेनिफर बेनसन शुल्ट
जो प्रभु यीशु को जीवन की रोटी के रूप में देखते हैं, वे कभी भूखे नहीं होंगे।
जीवन की रोटी जो स्वर्ग से उतरी मैं हूं। यदि कोई इस रोटी में से खाए, तो सर्वदा जीवित रहेगा
और जो रोटी मैं जगत के जीवन के लिये दूंगा, वह मेरा मांस है। - यूहन्ना
6:51
बाइबल पाठ: नीतिवचन 27:1-10
नीतिवचन 27:1 कल के दिन के विषय में मत फूल, क्योंकि तू नहीं जानता कि दिन भर
में क्या होगा।
नीतिवचन 27:2 तेरी प्रशंसा और लोग करें तो करें, परन्तु तू आप न करना; दूसरा तुझे सराहे तो
सराहे, परन्तु तू अपनी सराहना न करना।
नीतिवचन 27:3 पत्थर तो भारी है और बालू में बोझ है, परन्तु मूढ का क्रोध
उन दोनों से भी भारी है।
नीतिवचन 27:4 क्रोध तो क्रूर, और प्रकोप धारा के समान होता है, परन्तु जब कोई जल उठता
है, तब कौन ठहर सकता है?
नीतिवचन 27:5 खुली हुई डांट गुप्त प्रेम से उत्तम है।
नीतिवचन 27:6 जो घाव मित्र के हाथ से लगें वह विश्वासयोग्य है परन्तु बैरी अधिक
चुम्बन करता है।
नीतिवचन 27:7 सन्तुष्ट होने पर मधु का छत्ता भी फीका लगता है, परन्तु भूखे को सब कड़वी
वस्तुएं भी मीठी जान पड़ती हैं।
नीतिवचन 27:8 स्थान छोड़ कर घूमने वाला मनुष्य उस चिडिय़ा के समान है, जो घोंसला छोड़ कर उड़ती
फिरती है।
नीतिवचन 27:9 जैसे तेल और सुगन्ध से, वैसे ही मित्र के हृदय की मनोहर
सम्मति से मन आनन्दित होता है।
नीतिवचन 27:10 जो तेरा और तेरे पिता का भी मित्र हो उसे
न छोड़ना; और अपनी विपत्ति के दिन अपने भाई के घर न जाना। प्रेम
करने वाला पड़ोसी, दूर रहने वाले भाई से कहीं उत्तम है।
एक साल में बाइबल:
- अय्यूब 14-16
- प्रेरितों 9:22-43