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शुक्रवार, 16 जनवरी 2015

उल्टी शिक्षाएं


   प्रभु यीशु से संबंधित ऐसी अनेक बातें हैं जो मेरे अन्दर कौतूहल उत्पन्न करती हैं। प्रभु यीशु की सेवकाई की एक बात जो सदा लोगों को चकित और उन्हें सोचने के लिए विवश करती रही है, वह है उनकी सांसारिक व्यवहार और समझ से उल्ट लगने वाली शिक्षाएं।

   हमारी जीवन यात्रा में ऐसा समय भी आता है जब हम यह समझने लगते हैं कि हम सब कुछ जानने लग गए हैं, सब बातों की समझ अब हम में है, और हम अब जीवन के मार्गों पर सही रीति से चलना सीख चुके हैं। लेकिन प्रभु यीशु हमारे जीवन में हस्तक्षेप करके हमें एक नए और बेहतर मार्ग पर चलने के लिए बुलाता है। किंतु सावधान! प्रभु यीशु के मार्गों पर चलना चुनौती भरा है। संसार के व्यवहार और मान्यताओं के परिपेक्ष में उल्ट लगने वाली तथा विरोधाभास से भरी प्रभु यीशु की कुछ शिक्षाओं पर विचार कीजिए:
  • जीने के लिए मरना पड़ेगा (मरकुस 8:35);
  • पाने के लिए देना होगा (मत्ती 19:21);
  • "धन्य हैं वे जो विलाप करते हैं" (मत्ती 5:4);
  • प्रधान बनने के लिए सेवक बनना होगा (लूका 22:26);
  • दुख एवं कष्टों का भी उद्देश्य है (मत्ती 5:10-11)।

   ऐसी शिक्षाओं को सुनकर लोग सोचते हैं कि प्रभु यीशु संसार की वास्तविकताओं तथा उनके अनुरूप आवश्यक व्यवहार से अनभिज्ञ हैं। लेकिन वास्तविकता तो यह है कि अनभिज्ञ प्रभु यीशु नहीं हम हैं; वह उल्टा नहीं है, उल्टे हम हैं! हम उन छोटे बच्चों के समान हैं जो यह मानकर चलते हैं के वे अपने माता-पिता से बेहतर जानते हैं, बेहतर समझ रखते हैं। इसीलिए परमेश्वर ने कहा है, "...मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है" (यशायाह 55:8)।

   आखिरकर हम और यह स्मस्त सृष्टि प्रभु यीशु ही की बनाई हुई है (कुलुस्सियों 1:15-17), इसीलिए वह बेहतर जानता है कि इसमें कार्य तथा इसका संचालन सही रीति से किस प्रकार हो सकता है। इसलिए अपनी उल्टे नैसर्गिक गुणों, सहजज्ञान और सांसारिक मान्यताओं पर भरोसा रखकर चलते रहने और कार्य करने की बजाए, हमारे लिए भला होगा कि हम प्रभु यीशु की शिक्षाओं को अपना लें और उनका पालन करें। - जो स्टोवैल


जो हमें उल्टा लगता है, वह परमेश्वर की दृष्टि में सही है।

वह तो अदृश्य परमेश्वर का प्रतिरूप और सारी सृष्‍टि में पहिलौठा है। क्योंकि उसी में सारी वस्‍तुओं की सृष्‍टि हुई, स्वर्ग की हो अथवा पृथ्वी की, देखी या अनदेखी, क्या सिंहासन, क्या प्रभुतांए, क्या प्रधानताएं, क्या अधिकार, सारी वस्तुएं उसी के द्वारा और उसी के लिये सृजी गई हैं। और वही सब वस्‍तुओं में प्रथम है, और सब वस्तुएं उसी में स्थिर रहती हैं। - कुलुस्सियों 1:15-17

बाइबल पाठ: यशायाह 55:6-13
Isaiah 55:6 जब तक यहोवा मिल सकता है तब तक उसकी खोज में रहो, जब तक वह निकट है तब तक उसे पुकारो; 
Isaiah 55:7 दुष्ट अपनी चालचलन और अनर्थकारी अपने सोच विचार छोड़कर यहोवा ही की ओर फिरे, वह उस पर दया करेगा, वह हमारे परमेश्वर की ओर फिरे और वह पूरी रीति से उसको क्षमा करेगा। 
Isaiah 55:8 क्योंकि यहोवा कहता है, मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है। 
Isaiah 55:9 क्योंकि मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारों में, आकाश और पृथ्वी का अन्तर है।
Isaiah 55:10 जिस प्रकार से वर्षा और हिम आकाश से गिरते हैं और वहां यों ही लौट नहीं जाते, वरन भूमि पर पड़कर उपज उपजाते हैं जिस से बोने वाले को बीज और खाने वाले को रोटी मिलती है, 
Isaiah 55:11 उसी प्रकार से मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिये मैं ने उसको भेजा है उसे वह सफल करेगा।
Isaiah 55:12 क्योंकि तुम आनन्द के साथ निकलोगे, और शान्ति के साथ पहुंचाए जाओगे; तुम्हारे आगे आगे पहाड़ और पहाडिय़ां गला खोल कर जयजयकार करेंगी, और मैदान के सब वृक्ष आनन्द के मारे ताली बजाएंगे। 
Isaiah 55:13 तब भटकटैयों की सन्ती सनौवर उगेंगे; और बिच्छु पेड़ों की सन्ती मेंहदी उगेगी; और इस से यहोवा का नाम होगा, जो सदा का चिन्ह होगा और कभी न मिटेगा।

एक साल में बाइबल: 
  • उत्पत्ति 39-40
  • मत्ती 11