ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

शुक्रवार, 18 मार्च 2011

परमेश्वर की योजना समझिए

एक युवती एक प्रचारक के पास आयी और उससे जानना चाहा कि वह कैसे अपनी उन इच्छाओं की समस्या का समाधान कर सकती है जो परमेश्वर की मन्सा के विरोध में हैं? प्रचारक ने एक छोटा कागज़ लिया, उसपर दो शब्द लिखे और उसे युवती को दे दिया। तब प्रचारक ने युवती से कहा, "इसपर दस मिनिट तक विचार करो, फिर इन में से एक शब्द काट दो और कागज़ मेरे पास वापस ले आओ।" उस युवती ने कागज़ पर लिखे शब्दों को देखा, एक था "नहीं" और दूसरा था "प्रभु"। विचार करने के थोड़े समय में ही वह समझ गयी कि यदि वह "नहीं" को, यानि कि इन्कार करने को चुनती है, तो फिर यीशु को प्रभु नहीं कह सकती; और अगर वह "प्रभु" को चुनती है तो फिर यीशु को "नहीं" यानि इन्कार नहीं कर सकती।

यही हमारे जीवनों के लिये परमेश्वर की इच्छा को समझने का भेद है। जब तक हम परमेश्वर के हाथों में अपने आप को पूर्णतः तथा बिना किसी शर्त के नहीं रख देते, हम अपने प्रति उसकी इच्छा के विकल्पों को नहीं जान सकते। हमें अपने सारे अधिकार उसके आधीन कर देने हैं, तब ही हम उससे मिलने वाले अधिकारों को जान और समझ पाएंगे। अपने शरीरों को "जीवित बलिदान करके चढ़ाना" प्रभु की प्रत्येक आज्ञा के लिए सहमत और समर्पित होना है।

जब हम परमेश्वर को पूर्णतः समर्पित हो जाते हैं, तब ही हम इससे अगला कदम, अर्थात अपने व्यवहार में बदलाव, को उठा पाते हैं। व्यवहार में यह बदलाव तब ही संभव है जब हम अपने सोच-विचार को अपने चारों ओर प्रचलित संसार के सिद्धांतों से हटा कर परमेश्वर के वचन के सिद्धांतों के अनुरूप कर दें; और यह वो ही कर सकता है जिसका तन, मन और बुद्धि संसार को नहीं परमेश्वर को समर्पित हो।

यदि आप अपने जीवन के लिए परमेश्वर की योजना को जानना चाहते हैं, तो सर्वप्रथम अपने आप को परमेश्वर को समर्पित कीजीए। - डेनिस डी हॉन


जो अपनी इच्छा परमेश्वर की इच्छा के आधीन कर देते हैं, वे परमेश्वर से सर्वोत्तम ही पाते हैं।

इसलिये हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपने शरीरो को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है। - रोमियों १२:१


बाइबल पाठ: रोमियों १२:१-८

Rom 12:1 इसलिये हे भाइयों, मैं तुम से परमेश्वर की दया स्मरण दिला कर बिनती करता हूं, कि अपने शरीरो को जीवित, और पवित्र, और परमेश्वर को भावता हुआ बलिदान करके चढ़ाओ: यही तुम्हारी आत्मिक सेवा है।
Rom 12:2 और इस संसार के सदृश न बनो; परन्‍तु तुम्हारी बुद्धि के नये हो जाने से तुम्हारा चाल-चलन भी बदलता जाए, जिस से तुम परमेश्वर की भली, और भावती, और सिद्ध इच्‍छा अनुभव से मालूम करते रहो।
Rom 12:3 क्‍योंकि मैं उस अनुग्रह के कारण जो मुझ को मिला है, तुम में से हर एक से कहता हूं, कि जैसा समझना चाहिए, उस से बढ़कर कोई भी अपने आप को न समझे पर जैसा परमेश्वर ने हर एक को परिमाण के अनुसार बांट दिया है, वैसा ही सुबुद्धि के साथ अपने को समझे।
Rom 12:4 क्‍योंकि जैसे हमारी एक देह में बहुत से अंग हैं, और सब अंगों का एक ही सा काम नहीं।
Rom 12:5 वैसा ही हम जो बहुत हैं, मसीह में एक देह होकर आपस में एक दूसरे के अंग हैं।
Rom 12:6 और जब कि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न भिन्न वरदान मिले हैं, तो जिस को भविष्यद्वाणी का दान मिला हो, वह विश्वास के परिमाण के अनुसार भविष्यद्वाणी करे।
Rom 12:7 यदि सेवा करने का दान मिला हो, तो सेवा में लगा रहे, यदि कोई सिखाने वाला हो, तो सिखाने में लगा रहे।
Rom 12:8 जो उपदेशक हो, वह उपदेश देने में लगा रहे, दान देने वाला उदारता से दे, जो अगुआई करे, वह उत्‍साह से करे, जो दया करे, वह हर्ष से करे।

एक साल में बाइबल:
  • व्यवस्थाविवरण ३२-३४
  • मरकुस १५:२६-४७