पिछले लेख में हमने पुराने नियम कि कुछ स्त्रियों के उदाहरणों को देखा था, जिन्हें परमेश्वर के वचन में “नबिया” कहा गया है, और जिन्हें अनुचित रीति से उदाहरण बनाकर यह प्रमाणित करने का दावा किया जाता है कि वचन महिलाओं को कलीसियाओं में प्रचारक और पास्टर होने की अनुमति देता है। उनके संबंध में दी गई वचन की बातों को देखने और विश्लेषण करने से यह प्रकट हो गया कि वचन ऐसी कोई अनुमति नहीं देता है, और न ही उनके उदाहरण को इस बात को प्रमाणित करने के लिए उपयोग किया जा सकता है। आज से हम नए नियम की स्त्रियों के उदाहरणों, और वचन में उनके विषय लिखी गई बातों को देखेंगे, और विश्लेषण करेंगे कि क्या उनके उदाहरण स्त्रियों के प्रचारक और पास्टर होने की अनुमति के दावे की पुष्टि करते हैं कि नहीं।
एक बहुधा प्रयोग किया जाने वाला उदाहरण है फीबे का, जिसके बारे में प्रेरित पौलुस रोमियों 16:1 में लिखता है, “मैं तुम से फीबे की, जो हमारी बहिन और किंख्रिया की कलीसिया की सेविका है, बिनती करता हूँ।” स्पष्ट है कि फीबे को सेविका कहा गया है, न तो प्रचारिका कहा गया है और न ही पास्टर। यहाँ जिस मूल यूनानी शब्द ‘डायाकनोस’ का अनुवाद ‘सेविका’ हुआ है, उसका अर्थ यही है – वह जो सेवा, अर्थात रख-रखाव या देखभाल करे। इसलिए इस शब्द को फीबे के लिए भी इसी अर्थ में लिया जाना चाहिए, न कि उसमें अपने ही अर्थ और अभिप्राय जोड़ कर वास्तविकता से भिन्न अर्थ दिया जाना चाहिए। इस शब्द को इस पद में “सेविका” अनुवाद किया गया है, जो इस शब्द Diakonos (डायकानोस) का वास्तविक और सही शब्दार्थ है; और यह शब्द इसी अर्थ एवं अभिप्राय के साथ नए नियम में अनेकों स्थानों पर भी प्रयोग हुआ है।
यहाँ पर असमंजस का और इस पद के अनुचित अर्थ के साथ उपयोग किए जाने कारण है मूल यूनानी भाषा का शब्द Diakonos (डायकानोस) की आज की समझ। वर्तमान में कलीसियाओं में यूनानी भाषा के इस शब्द Diakonos (डायकानोस) से बना शब्द “डीकन” एक अधिकार का और कलीसियाओं एवं पास्टरों के ऊपर नियंत्रण और प्रबंधन का स्थान रखने वाले के लिए उपयोग किया जाता है। पास्टरों में से ही तरक्की पा कर लोग डीकन बनते हैं और फिर वे कई कलीसियाओं पर तथा उनके पास्टरों पर अधिकार रखते हैं। इसलिए आज लोग यह समझते हैं कि यदि फीबे “डीकन” थी, तो वह पास्टरों पर अधिकार रखने वाली और अवश्य ही कलीसिया में प्रचार करने वाली रही होगी। किन्तु लगभग 2000 साल पहले, मूल यूनानी भाषा के सामान्य प्रयोग के अनुसार, पौलुस ने इस पत्री में इस शब्द का प्रयोग किया था, जिसके अनुसार फीबे अधिकारी और प्रचार करने वाली नहीं, कलीसिया की सेविका, वहाँ रख-रखाव और देखभाल करने वाली थी। समय के साथ शब्द के अर्थ और समझ में लोगों में आए परिवर्तन के कारण, शैतान ने यह भ्रम और गलत अभिप्राय फैला रखा है, और इसका अनुचित उपयोग करवा रहा है।
कुछ लोग इसी Diakonos (डायकानोस) शब्द का एक और अभिप्राय, ध्यान कीजिए, अनुवाद नहीं वरन अभिप्राय, पास्टर भी बताते हैं; किन्तु यह मात्र उनके द्वारा दिया जाने वाला एक तात्पर्य है, वास्तविक अर्थ नहीं है। इफिसियों 4:11 में प्रभु द्वारा दी गई प्रचार से संबंधित तीन सेवकाइयों को बताया गया है – सुसमाचार सुनाने वाले, रखवाले (पास्टर) और उपदेशक (या शिक्षक), और इन तीनों में से किसी भी सेवकाई के लिए मूल यूनानी भाषा में Diakonos (डायकानोस) शब्द नहीं प्रयोग किया गया वरन उससे भिन्न तीन शब्द प्रयोग किए गए हैं। अंग्रेज़ी भाषा में पूरे नए नियम में, शब्द “pastor” केवल एक बार प्रयोग हुआ है, इफिसियों 4:11 में; और इस पद में मूल यूनानी भाषा में प्रयोग किया गया शब्द है poimen (पोइमेन), जिसका शब्दार्थ होता है एक चरवाहा या रखवाला। इसीलिए हिन्दी की बाइबल में इस पद में ‘पास्टर’ नहीं ‘रखवाला’ लिखा गया है; और नए नियम में अन्य स्थानों पर भी जहाँ यूनानी भाषा में poimen (पोइमेन) आया है, वहाँ हिन्दी एवं अंग्रजी में इसका अनुवाद केवल चरवाहा ही किया गया है। पूरे नए नियम के किसी भी अनुवाद में कहीं पर भी कभी भी Diakonos (डायकानोस) को पास्टर अनुवाद नहीं किया गया है, क्योंकि मूल यूनानी भाषा के अनुसार वह इसका अनुवाद है ही नहीं।
फीबे चर्च की सेविका थी – चर्च और चर्च के लोगों की देखभाल, संयोजन, रख-रखाव आदि करने में उसकी भूमिका थी, न कि प्रचार करने में; सेविका का अर्थ प्रचारिका अथवा पास्टर नहीं होता है। इसलिए फीबे के उदाहरण को लेकर महिलाओं के कलीसिया में प्रचार करने या पास्टर होने को जायज़ ठहराना अनुचित है, वचन का दुरुपयोग है, और वास्तव में ‘गलत शिक्षा’ है। यदि इन महिलाओं को फीबे का अनुसरण करना है तो कलीसिया में आएँ और उसकी देख-भाल और रख-रखाव में भाग लें, जैसे फीबे करती थी, उसके नाम में पुल्पिट को अपनी इच्छा पूरी करने के लिए प्रयोग क्यों करना चाहती हैं? अगले लेख में हम कुछ अन्य उदाहरणों का विश्लेषण करेंगे।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
- क्रमशः
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According to the Bible, Do Women Have the Permission to Serve as Pastors and Preach from the Pulpit in the Church?
In the previous article we had seen some examples of women of the Old Testament, who have been called “prophetess” in God’s Word, and whose example is being misinterpreted and misused to try to justify the false claims that women have the sanction from God’s Word to be preachers and pastors in the Church. When we saw the information given about them in God’s Word, and analyzed it, it became evident that the Scriptures do not give any such permission, and their example cannot be used to prove the point that is being attempted. From today, we will look at some examples of women from the New Testament, and analyze them to see if they provide the permission for women to preach and be pastors in the Church.
One very commonly used example is that of Phoebe, about whom the Apostle Paul writes, “I commend to you Phoebe our sister, who is a servant of the church in Cenchrea.” It is very clear that Phoebe has been called a ‘servant’; she has neither been called a ‘preacher’, nor has she been called a ’pastor’. The word used here in the original Greek language is ‘Diakonos’, and it means just what it has been translated – one who serves, i.e., takes care, helps or attends to others. Therefore, for Phoebe too, this word should be taken with this very meaning; it should not be given any different meaning to give it a new implication, different from that in the original. This word has been translated as ‘servant’ in this verse, which is the correct meaning and translation of this word; and this word has been used at other places in the New Testament with this very meaning. Therefore, here too it should be understood and used with this actual meaning only.
The cause of confusion and of this verse being misused is the meaning that is attached to this Greek word Diakonos today. In the present day Churches the word “Deacon” which is a word derived from this Greek word Diakonos, is a word that is used in the Churches for an office of authority and of having charge, of managing many Churches and their pastors. The Deacons are promoted from amongst the pastors, and then are appointed over them. Therefore, today people assume and understand that if Phoebe was a “deaconess”, then she would have been a pastor and preacher in the Church prior to being promoted as “Deaconess”. But in the Greek language usage of this word about 2000 years ago, the commonly used and understood sense of this word was for a servant, an attendant; not an officer holding authority and charge over others. It was with this sense that Paul wrote about her, using the word “deaconess” in the original Greek language of the letter to Romans. Phoebe was one who was taking care of, looking after, and serving the Church. With time, because of the change in understanding and usage of the word, a different meaning has come into the minds of people, and Satan has misused it to create this false impression and wrong ideas in the congregations.
Some people ascribe another implication to this word Diakonos – take note, that is not the meaning, but an implication added on to the word; they imply that this word also means being a pastor. But this is not the real meaning of the word, just an understanding that some people want to convey. In Ephesians 4:11, three different ministries related to preaching have been given – evangelists, pastors and teachers. For none of these ministries, in the original Greek language, has the word Diakonos been used, but three other, different words have been used. In the English translations of the Bible, in the New Testament the word “pastor” has been used just once, only in this verse Ephesians 4:11. And the word used in the Greek language is ‘Poimen’, which has been translate as ‘pastor’ here. The word Poimen literally means “shepherd”, or one who takes care; and in the English translations of the Bible, wherever the Greek word Poimen has come, except for this one instance, at every other place it has always been translated only as “shepherd”. In the whole of the New Testament, never has the word Diakonos ever been translated as “pastor” in any English translation, since the actual meaning of this Greek word never can be a “pastor”.
Phoebe was a servant of the Church; her role was in taking care of the Church and the congregation. The word ‘servant’ does not mean or imply ‘preacher’ or ‘pastor; and her role was never of a preacher or a pastor of the Church. Therefore, to take the example of Phoebe and try to use it to justify women being preachers and pastors in the church is to misuse God’s Word, is a wrong teaching. Those who want to use the example of Phoebe, should come into the Church as ‘servants’ and spend time looking after the Church, the congregation, serving them and attending to them, as Phoebe used to do. Why should they misuse her name and ministry to fulfill their selfish desire of using the pulpit? In the next article we will look at some other examples and analyze them.
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life. Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.
- To Be Continued