किसी ने मित्रता को परिभाषित करते हुए कहा है कि यह "दूसरे के मन को जानना और अपने मन को दूसरे के मन के साथ बाँटना है।" जिन पर हम विश्वास करते हैं, उनके साथ हम अपने मन की बातें भी बाँटते हैं, और जो हमारी चिन्ता करते हैं, उन पर हम भरोसा भी करते हैं।
हम मसीही विश्वासी प्रभु यीशु मसीह को अपना मित्र कहकर भी संबोधित करते हैं क्योंकि हम जानते हैं कि उसे हमारी चिन्ता रहती है और वह सदा हमारे लिए हर बात में केवल सर्वोत्तम की ही इच्छा रखता है। हम मसीह यीशु के साथ अपने मन की गूढ़ बातें भी बाँटते हैं क्योंकि हम उस पर विश्वास रखते हैं। लेकिन क्या कभी आपने इस बात पर विचार किया है कि मसीह यीशु भी अपने मन की बातें आपके साथ बाँटना चाहता है?
क्योंकि प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों के साथ, जो कुछ उसने परमेश्वर पिता से सुना था, बाँट दिया, इसलिए प्रभु ने उन्हें मित्र भी कहा: "अब से मैं तुम्हें दास न कहूंगा, क्योंकि दास नहीं जानता, कि उसका स्वामी क्या करता है: परन्तु मैं ने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैं ने जो बातें अपने पिता से सुनीं, वे सब तुम्हें बता दीं" (यूहन्ना 15:15)। प्रभु यीशु ने विश्वास रखा कि उसके शिष्य उन बातों का सदुपयोग परमेश्वर के राज्य की महिमा और बढ़ोतरी के लिए करेंगे।
यद्यपि हम मसीही विश्वासी यह जानते और मानते हैं कि मसीह यीशु हमारा मित्र है, लेकिन उतने ही विश्वास और दृढ़ता से क्या हम यह भी कह सकते हैं कि हम भी मसीह यीशु के मित्र हैं? क्या हम उसकी सुनते हैं; या हम केवल इतना ही चाहते हैं कि वह हमारी सुनता रहे? क्या हम यह जानने का प्रयास करते हैं कि उसके मन में क्या है; या हम केवल इसी में प्रयासरत रहते हैं कि उसे हमारे मन की बात मालूम पड़ती रहे? यदि हम मसीह यीशु के मित्र हैं तो जो वह हमसे कहना चाहता है उसे सुनने के लिए हमारे पास समय और इच्छा भी होनी चाहिए और फिर उस की कही बातों को उसके लिए अन्य मित्र बनाने के लिए सदुपयोग करने की लालसा भी रहनी चाहिए; क्योंकि प्रभु यीशु ने अपने शिष्यों से यह भी कहा है: "मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे" (यूहन्ना 15:8)। - जूली ऐकैरमैन लिंक
मसीह यीशु से मित्रता, उससे वफादारी भी चाहती है।
जो कुछ मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं, यदि उसे करो, तो तुम मेरे मित्र हो। - यूहन्ना 15:14
बाइबल पाठ: यूहन्ना 15:8-17
John 15:8 मेरे पिता की महिमा इसी से होती है, कि तुम बहुत सा फल लाओ, तब ही तुम मेरे चेले ठहरोगे।
John 15:9 जैसा पिता ने मुझ से प्रेम रखा, वैसा ही मैं ने तुम से प्रेम रखा, मेरे प्रेम में बने रहो।
John 15:10 यदि तुम मेरी आज्ञाओं को मानोगे, तो मेरे प्रेम में बने रहोगे: जैसा कि मैं ने अपने पिता की आज्ञाओं को माना है, और उसके प्रेम में बना रहता हूं।
John 15:11 मैं ने ये बातें तुम से इसलिये कही हैं, कि मेरा आनन्द तुम में बना रहे, और तुम्हारा आनन्द पूरा हो जाए।
John 15:12 मेरी आज्ञा यह है, कि जैसा मैं ने तुम से प्रेम रखा, वैसा ही तुम भी एक दूसरे से प्रेम रखो।
John 15:13 इस से बड़ा प्रेम किसी का नहीं, कि कोई अपने मित्रों के लिये अपना प्राण दे।
John 15:14 जो कुछ मैं तुम्हें आज्ञा देता हूं, यदि उसे करो, तो तुम मेरे मित्र हो।
John 15:15 अब से मैं तुम्हें दास न कहूंगा, क्योंकि दास नहीं जानता, कि उसका स्वामी क्या करता है: परन्तु मैं ने तुम्हें मित्र कहा है, क्योंकि मैं ने जो बातें अपने पिता से सुनीं, वे सब तुम्हें बता दीं।
John 15:16 तुम ने मुझे नहीं चुना परन्तु मैं ने तुम्हें चुना है और तुम्हें ठहराया ताकि तुम जा कर फल लाओ; और तुम्हारा फल बना रहे, कि तुम मेरे नाम से जो कुछ पिता से मांगो, वह तुम्हें दे।
John 15:17 इन बातें की आज्ञा मैं तुम्हें इसलिये देता हूं, कि तुम एक दूसरे से प्रेम रखो।
एक साल में बाइबल:
- अय्युब 30-31
- प्रेरितों 13:26-52