मेरे दादा तथा नाना, दोनो ही को बागबानी में बहुत रुचि थी, जैसे मेरे अन्य कई मित्रों को भी है। मुझे भी सुन्दर बगीचों में जाना बहुत अच्छा लगाता है; उनसे मुझे प्रेर्णा मिलती है और मेरी भी इच्छा होती है कि मैं भी अपने आंगन में ऐसे ही सुन्दर बगीचे बनाऊं। किंतु मेरी समस्या रहती है बगीचा लगाने की प्रेर्णा पाने से आगे बढ़कर बगीचा लगाने के परिश्रम को करना। मेरे मन में आने वाले अच्छे विचार कार्यान्वित नहीं हो पाते क्योंकि मैं उन्हें वास्तविकता तक लाने की मेहनत नहीं करती, उन के लिए समय नहीं लगाती।
यही सिद्धांत हमारे आत्मिक जीवनों में भी कार्य करता है। हम कुछ लोगों की गवाही सुन कर, परमेश्वर द्वारा उनके जीवन में किए जा रहे, तथा उन में होकर दूसरों के जीवन में हो रहे अद्भुत कार्यों के बारे में जानकर अचंभित हो सकते हैं। हम एक अच्छा प्रचार सन्देश और अच्छे स्तुति गीत सुनकर और भी अधिक कटिबद्धता से परमेश्वर का अनुसरण करने कि ठान सकते हैं। परन्तु चर्च या सभाग्रह से बाहर आने के बाद वहां किए गए अपने निर्णय को कार्यान्वित करना हमारे लिए कठिन हो जाता है।
परमेश्वर के वचन बाइबल में याकूब की पत्री में ऐसे मसीही विश्वासियों के लिए लिखा गया है कि वे उन लोगों के समान हैं जो दर्पण में अपना स्वाभाविक चेहरा देखते तो हैं परन्तु दिखाई देने वाले विकारों को ठीक करने के लिए कुछ प्रयास नहीं करते; देखने के बाद वे जैसे थे वैसे ही लौट जाते हैं (याकूब १:२३-२४)। वे परमेश्वर का वचन सुनते तो हैं परन्तु उनके जीवनों में वह कार्यकारी नहीं होता। याकूब कहता है कि हमें केवल सुनने वाला ही नहीं वरन कार्य करने वाला भी बनना है।
जब दूसरों द्वारा हो रहे भले और अद्भुत कार्यों के बारे में केवल सुनने द्वारा मिली प्रेर्णा से आगे बढ़कर हम स्वयं परिश्रम करके कार्य करना आरंभ करते हैं, तब ही हमारे अन्दर बोया गया परमेश्वर के वचन का बीज हमारे जीवनों को सुन्दर और भले आत्मिक फूलों तथा फलों से भरा बगीचा बनाने पाएगा, जो फिर दूसरों के लिए प्रेर्णा स्त्रोत हो सकेगा। - जूली एकैरमैन लिंक
कार्य करने से ही जीवन उन्नति पाता है।
परन्तु वचन पर चलने वाले बनो, और केवल सुनने वाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं। - याकूब १:२२
बाइबल पाठ: याकूब १:१९-२७
Jas 1:19 हे मेरे प्रिय भाइयो, यह बात तुम जानते हो: इसलिये हर एक मनुष्य सुनने के लिये तत्पर और बोलने में धीरा और क्रोध में धीमा हो।
Jas 1:20 क्योंकि मनुष्य का क्रोध परमेश्वर के धर्म का निर्वाह नहीं कर सकता है।
Jas 1:21 इसलिये सारी मलिनता और बैर भाव की बढ़ती को दूर करके, उस वचन को नम्रता से ग्रहण कर लो, जो हृदय में बोया गया और जो तुम्हारे प्राणों का उद्धार कर सकता है।
Jas 1:22 परन्तु वचन पर चलने वाले बनो, और केवल सुनने वाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं।
Jas 1:23 क्योंकि जो कोई वचन का सुनने वाला हो, और उस पर चलने वाला न हो, तो वह उस मनुष्य के समान है जो अपना स्वाभाविक मुंह दर्पण में देखता है।
Jas 1:24 इसलिये कि वह अपने आप को देख कर चला जाता, और तुरन्त भूल जाता है कि मैं कैसा था।
Jas 1:25 पर जो व्यक्ति स्वतंत्रता की सिद्ध व्यवस्था पर ध्यान करता रहता है, वह अपने काम में इसलिये आशीष पाएगा कि सुनकर नहीं, पर वैसा ही काम करता है।
Jas 1:26 यदि कोई अपने आप को भक्त समझे, और अपनी जीभ पर लगाम न दे पर अपने हृदय को धोखा दे, तो उस की भक्ति व्यर्थ है।
Jas 1:27 हमारे परमेश्वर और पिता के निकट शुद्ध और निर्मल भक्ति यह है, कि अनाथों और विधवाओं के क्लेश में उन की सुधि लें, और अपने आप को संसार से निष्कलंक रखें।
एक साल में बाइबल:
- यहेजकेल ४७-४८
- १ यूहन्ना ३