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रविवार, 3 जनवरी 2010

उपासना के रूप में खाना

बाइबल पाठ : उत्पत्ती २:८-१७

क्या तूने मधु पाया? तो जितना तेरे लिये ठीक हो उतना ही खाना। - नीतिवचन २५:१६


जनवरी में पुस्तकों की दूकान की मेज़ पर, तबियत के लिये अच्छे भोजन के विषय में कई पुस्तकें रखी मिलती हैं कई हफ्तों के लिये छुट्टीयों में बहुत अच्छा खाना खाने के बाद लोग कम खाने की ओर ध्यान देते हैं

पवित्र शास्त्र में भोजन का एक मुख्य स्थान है। परमेश्वर उसका उपयोग हमें अनुग्रह देने को ही नहीं सिखाने को भी करता है। भोजन का दुरूपयोग हमें परमेश्वर को योग्य रीति से जानने नहीं देता।

पुराने नियम में परमेश्वर ने आदम को निर्देश दिया की क्या खाना है और क्या नहीं खाना है (उत्पत्ती :१६-१७) बाद में उसने इस्त्रालियों को 'मन्ना' दिया ताकि वह विश्वास करें की वह परमेश्वर है और वह उनका विश्वास परख सके (निर्गमन १६:१२, व्यवस्थाविवरण :१६) नए नियम में पौलुस प्रेरित ने सब काम करने की उचित प्रवत्ती सिखाई, खाने की भी, "तुम चाहे खाओ, चाहे पीयो.........सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिये करो"( कुरिन्थियों १०:३१)

चाहे भोजन को हम एक सान्तावना देनेवाले मित्र के रूप में देखें या हमें मोटा करने वाले दुश्मन के रूप में, दोनों ही स्वरूपों में हम भोजन को परमेश्वर से मिलने वाले अद्भुत उपहार के रूप में नहीं देख पाते। ज़्यादा खाना और नहीं खाना, दोनों ही बातें दिखाती हैं की हमारा मन भोजन देने वाले पर नहीं, परन्तु केवल भोजन पर ही है, जो एक तरह की मूर्ती पूजा है।

जब भोजन करना उपासना के स्वरूप में होगा, तो उपासना भोजन की नहीं भोजन देने वाले की होगी। - जल

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खाना जब देवता बन जाता है, तो "जीवन की रोटी" के लिये हमारी भूख कम हो जाती है।

बाइबल एक साल में, पढ़िये :
  • उत्पत्ती ७-९
  • मत्ती ३