ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

गुरुवार, 2 अक्टूबर 2014

सन्तुष्ट


   सन्तुष्ट रहना बहुत कठिन है। विश्वास के नायक, प्रेरित पौलुस को भी सन्तुष्ट रहना सीखना पड़ा (फिलिप्पियों 4:11); उसके लिए भी सन्तुष्टि, चरित्र का एक स्वाभाविक गुण नहीं था। पौलुस के द्वारा यह लिखा जाना कि वह हर परिस्थिति में सन्तुष्ट रहता है वास्तव में अचरजपूर्ण है, क्योंकि जब पौलुस ने फिलिप्पियों को अपनी पत्री लिखी, तब वह शासन के प्रति राजद्रोह और विश्वासघात जैसे गंभीर अपराधों के आरोप में जेलखाने में कैद था। उसने अपने न्याय के लिए रोमी साम्राज्य के सर्वोच्च स्थान अर्थात कैसर की अदालत में गुहार लगाई थी, परन्तु क्योंकि उसके पास ना तो कोई वैधानिक सहायक थे और ना ही कोई ऐसा मित्र-जानकार जो उसके लिए ऊँचे पदों पर कार्य करता, इसलिए पौलुस को अपने मुकदमे की सुनवाई के लिए कैदखाने में पड़े पड़े ही प्रतीक्षा करनी पड़ रही थी। ऐसे में पौलुस के लिए अधीर और अप्रसन्न होना बहुत ही स्वाभाविक बात होती, लेकिन इसके विप्रीत इन परिस्थितियों में भी वह फिलिप्पियों के मसीही विश्वासियों को लिखता है कि उसने ऐसे में भी सन्तुष्ट रहना सीख लिया है।

   ऐसा पौलुस ने कैसे सीखा - एक एक कदम कर के, जब तक कि उसने असुविधाजनक परिस्थितियों में भी सन्तुष्ट रहने का पाठ भली भाँति सीख नहीं लिया। पहले उसने सीखा कि जो भी परिस्थिति उसके मार्ग में आए वह उसे स्वीकार करे (पद 12), फिर उसने सीखा कि जो कुछ भी सहायता उसे उसके साथी मसीही विश्वासियों से मिलती है उसके लिए वह धन्यवादी रहे (पद 14-18), और सबसे बड़ी बात जो उसने सीखी वह थी कि हर परिस्थिति में परमेश्वर ही है जो उसकी हर आवश्यकता को पूरी करता है (पद 19)।

   सन्तुष्ट रहना हमारे लिए भी स्वाभाविक गुण नहीं है। हमारे अन्दर पाई जाने वाली परस्पर स्पर्धा करने की प्रवृति हमें दूसरों के साथ तुलना करने, शिकायत करने तथा लालच करने के लिए उकसाती रहती है। हम में से शायद ही कोई होगा जो पौलुस के समान कठिनाईयों में पड़ा हो, इसलिए पौलुस का जीवन हमें सिखाता है कि हम भी उसके समान हर परिस्थिति में परमेश्वर पर भरोसा रखें और सन्तुष्ट रहें। - सी. पी. हिया


सन्तुष्टि का अर्थ प्रत्येक ऐच्छित बात प्राप्त करना नहीं है, वरन हर प्राप्त बात के लिए परमेश्वर का धन्यवादी रहना है।

तुम्हारा स्‍वभाव लोभरिहत हो, और जो तुम्हारे पास है, उसी पर संतोष किया करो; क्योंकि उसने आप ही कहा है, कि मैं तुझे कभी न छोडूंगा, और न कभी तुझे त्यागूंगा। - इब्रानियों 13:5

बाइबल पाठ: फिलिप्पियों 4:10-20
Philippians 4:10 मैं प्रभु में बहुत आनन्‍दित हूं कि अब इतने दिनों के बाद तुम्हारा विचार मेरे विषय में फिर जागृत हुआ है; निश्‍चय तुम्हें आरम्भ में भी इस का विचार था, पर तुम्हें अवसर न मिला। 
Philippians 4:11 यह नहीं कि मैं अपनी घटी के कारण यह कहता हूं; क्योंकि मैं ने यह सीखा है कि जिस दशा में हूं, उसी में सन्‍तोष करूं। 
Philippians 4:12 मैं दीन होना भी जानता हूं और बढ़ना भी जानता हूं: हर एक बात और सब दशाओं में तृप्‍त होना, भूखा रहना, और बढ़ना-घटना सीखा है। 
Philippians 4:13 जो मुझे सामर्थ देता है उस में मैं सब कुछ कर सकता हूं। 
Philippians 4:14 तौभी तुम ने भला किया, कि मेरे क्‍लेश में मेरे सहभागी हुए। 
Philippians 4:15 और हे फिलप्‍पियो, तुम आप भी जानते हो, कि सुसमाचार प्रचार के आरम्भ में जब मैं ने मकिदुनिया से कूच किया तब तुम्हें छोड़ और किसी मण्‍डली ने लेने देने के विषय में मेरी सहयता नहीं की। 
Philippians 4:16 इसी प्रकार जब मैं थिस्सलुनीके में था; तब भी तुम ने मेरी घटी पूरी करने के लिये एक बार क्या वरन दो बार कुछ भेजा था। 
Philippians 4:17 यह नहीं कि मैं दान चाहता हूं परन्तु मैं ऐसा फल चाहता हूं, जो तुम्हारे लाभ के लिये बढ़ता जाए। 
Philippians 4:18 मेरे पास सब कुछ है, वरन बहुतायत से भी है: जो वस्तुएं तुम ने इपफ्रुदीतुस के हाथ से भेजी थीं उन्हें पाकर मैं तृप्‍त हो गया हूं, वह तो सुगन्‍ध और ग्रहण करने के योग्य बलिदान है, जो परमेश्वर को भाता है। 
Philippians 4:19 और मेरा परमेश्वर भी अपने उस धन के अनुसार जो महिमा सहित मसीह यीशु में है तुम्हारी हर एक घटी को पूरी करेगा। 
Philippians 4:20 हमारे परमेश्वर और पिता की महिमा युगानुयुग होती रहे। आमीन।

एक साल में बाइबल: 
  • मीका 1-4