मसीही सेवकाई में पवित्र आत्मा की कार्य-विधि (यूहन्ना 16:12-13) - 2.
पिछले लेख में हमने देखा था कि मसीही विश्वास और सेवकाई से संबंधित कुछ बातें और कुछ शिक्षाएं ऐसी भी हैं, जिन्हें समझने और मानने के लिए परमेश्वर पवित्र आत्मा की सहायता की आवश्यकता होती है, जैसा प्रभु यीशु मसीह ने स्वयं शिष्यों से कहा है। इसका एक उदाहरण हमें यूहन्ना 6:60-66 में हमें मिलता है, जहाँ आने वाले समय में स्थापित किए जाने वाले प्रभु-भोज से संबंधित प्रभु की शिक्षाओं को उनके उस समय के कई शिष्य समझ नहीं सके, सहन नहीं कर सके, और इस कारण प्रभु यीशु को छोड़कर चले गए। उद्धार पाने के साथ ही, तुरंत ही पवित्र आत्मा मसीही विश्वासी में आकर निवास करने लगता है, किन्तु जब तक उद्धार पाया हुआ व्यक्ति पवित्र आत्मा की अगुवाई में, उनकी आज्ञाकारिता में चलने न लगे, तब तक उसमें मसीही जीवन जीने के लिए वह परिपक्वता और समझ-बूझ विकसित नहीं होती है, जो समय के अनुसार हो जानी चाहिए। पौलुस ने कुरिन्थुस के मसीही विश्वासियों को उनके अपरिपक्व व्यवहार के लिए उलाहना दिया, उन्हें बालक और शारीरिक कहा (1 कुरिन्थियों 3:1-4) क्योंकि उनके अंदर पवित्र आत्मा के फलों (गलातियों 5:22-23) दिखाई देने की बजाए सांसारिकता का व्यवहार दिखाई दे रहा था। इसी प्रकार से इब्रानियों का लेखक भी अपने पाठकों को झिड़कता है, क्योंकि वे अभी भी मसीही विश्वास में आने के उनके समय के अनुसार उनसे अपेक्षित परिपक्वता तक नहीं पहुँचे थे, उन्हें अभी भी मसीही विश्वास की मूल बातें समझना और सीखना आवश्यक था (इब्रानियों 5:11-14)।
अर्थात मसीही विश्वासी में पवित्र आत्मा की उपस्थिति, स्वतः ही उसे मसीही सेवकाई के लिए उपयुक्त नहीं बना देती है। हर व्यक्ति को मसीही जीवन जीना, उसमें बढ़ना, और परमेश्वर के वचन की आज्ञाकारिता में रहना सीखना पड़ता है; और परमेश्वर पवित्र आत्मा इसमें सहायक तथा मार्गदर्शक होता है। यदि व्यक्ति सीखने और मानने वाला न बने, सांसारिक बातों में ही लगा रहे (इफिसियों 4 अध्याय), तो इससे पवित्र आत्मा शोकित होता है (इफिसियों 4:30)। पवित्र आत्मा की अगुवाई में पौलुस प्रेरित ने लिखा, “पर मैं कहता हूं, आत्मा के अनुसार चलो, तो तुम शरीर की लालसा किसी रीति से पूरी न करोगे” (गलातियों 5:16); अर्थात जीवन में सांसारिकता तथा शरीर की लालसाओं की पूर्ति की अभिलाषाएं यह प्रमाणित करते हैं कि उद्धार पाया हुआ व्यक्ति अभी पवित्र आत्मा के चलाए नहीं चल रहा है, मसीही परिपक्वता की ओर अग्रसर नहीं है। इसके विपरीत उस व्यक्ति का बदला हुआ जीवन, उसके जीवन में दिखने वाले पवित्र आत्मा के फल, उसका परमेश्वर के वचन को प्राथमिकता देना और उस वचन की आज्ञाकारिता में चलते रहना, उसके जीवन तथा व्यवहार से सांसारिक लोगों का पाप, धार्मिकता, और न्याय के विषय कायल होना, आदि बातें प्रत्यक्ष प्रमाण होते हैं के व्यक्ति में पवित्र आत्मा विद्यमान है, और वह व्यक्ति पवित्र आत्मा के चलाए चल रहा है।
यूहन्ना 16:13 में, पवित्र आत्मा के शिक्षक होने के कार्य के संबंध में एक बार फिर उन्हें 'सत्य का आत्मा' कहा गया है; अर्थात उनकी हर बात सत्य है, और वे केवल सत्य ही का मार्ग बताएंगे; वे किसी भी असत्य के साथ कभी सम्मिलित नहीं होंगे। परमेश्वर का वचन बाइबल ही ‘सत्य’ को पुराने तथा नए नियम में परिभाषित करती है:
भजन संहिता 119:160 तेरा सारा वचन सत्य ही है; और तेरा एक एक धर्ममय नियम सदा काल तक अटल है।
यूहन्ना 14:6 यीशु ने उस से कहा, मार्ग और सच्चाई और जीवन मैं ही हूं; बिना मेरे द्वारा कोई पिता के पास नहीं पहुंच सकता।
यूहन्ना 17:17 सत्य के द्वारा उन्हें पवित्र कर: तेरा वचन सत्य है।
अर्थात, जिस सत्य की बात वचन में की जाती है, वह सांसारिक मानकों और परिभाषाओं के अनुसार नहीं है, वरन परमेश्वर के वचन, तथा प्रभु यीशु मसीह और उनकी शिक्षाओं के अनुसार ‘सत्य’ है। इसका सीधा और स्पष्ट तात्पर्य है कि जो भी व्यवहार एवं शिक्षा परमेश्वर के वचन में नहीं दी गई है, अथवा प्रभु यीशु मसीह के जीवन, व्यवहार, और शिक्षाओं में देखने को नहीं मिलती है, वह सब मसीही जीवन, विश्वास, और सेवकाई के संबंध में असत्य है, अनुचित है। ऐसी हर शिक्षा और व्यवहार मसीही विश्वासी के लिए अस्वीकार्य है, क्योंकि, जैसा कि प्रभु यीशु मसीह ने कहा, हर असत्य शैतान की ओर से होता है, शैतान ही झूठ का पिता है (यूहन्ना 8:44)। मसीही विश्वास एवं सेवकाई में सही शिक्षा और सिद्धान्तों की पहचान करने के लिए उसमें तीन गुण विद्यमान होने चाहिएं:
i. उसे सुसमाचारों में प्रचार किया गया हो, अर्थात प्रभु यीशु मसीह द्वारा कहे और सिखाए गए होना।
ii. वे प्रेरितों के काम में व्यावहारिक मसीही या मण्डली के जीवन में प्रदर्शित किए गए हों; अर्थात उनका प्रथम एवं आरंभिक मंडलियों द्वारा माना गया और पालन किया गया होना चाहिए।
iii. पत्रियों में उसकी व्याख्या की गई या उसके विषय सिखाया गया हो; अर्थात परमेश्वर पवित्र आत्मा ने उन शिक्षाओं और व्यवहारों की पुष्टि की है, और उनसे संबंधित और बातें को भी परमेश्वर के वचन में सिखाया तथा लिखवाया है।
जिस भी शिक्षा, व्यवहार, या बात में ये तीनों गुण नहीं हैं, उसे तुरंत स्वीकार नहीं करना चाहिए, उसे बताने वाला चाहे कोई भी हो, कितना भी प्रसिद्ध और ज्ञानी क्यों न हो। पहले, सचेत होकर तथा प्रार्थना के साथ, बेरिया के विश्वासियों के समान, वचन से यह देखना चाहिए कि जो उस शिक्षा अथवा व्यवहार में कहा और बताया जा रहा है, वास्तव में पवित्र शास्त्र में वैसा ही लिखा है या नहीं - यह करना कोई आपत्तिजनक बात नहीं वरन खरे आत्मिक जन होने का चिह्न है 1 कुरिन्थियों 2:15।
यदि आप मसीही विश्वासी हैं, तो क्या आप किसी मसीही सेवकाई में भी संलग्न हैं? आपके लिए यह करना अनिवार्य है क्योंकि परमेश्वर पिता ने अपनी सभी संतानों के लिए कुछ-न-कुछ सेवकाई पहले से तय की हुई है (इफिसियों 2:10), और आपका उसे पूरा न करना, अनाज्ञाकारिता है, आपके अनन्त जीवन के प्रतिफलों के लिए हानिकारक है। आप जिन बातों, शिक्षाओं, व्यवहार का पालन करते हैं या औरों को उन्हें सिखाते और उन से करवाते हैं, उनके विषय बहुत सचेत रहने वाले और उन्हें परमेश्वर के वचन के अनुसार खराई से जाँचने वाले बनें। अन्यथा शैतान अपनी चतुराई से आपको आकर्षक तथा प्रबल लगने वाली किन्तु गलत शिक्षाओं और व्यवहार के द्वारा बहका कर बहुत नुकसान में फंसा देगा (2 कुरिन्थियों 11:3; कुलुस्सियों 2:4, 6-8)।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो थोड़ा थम कर विचार कीजिए, क्या मसीही विश्वास के अतिरिक्त आपको कहीं और यह अद्भुत और विलक्षण आशीषों से भरा सौभाग्य प्राप्त होगा, कि आप जैसी भी दशा में हैं, उसी में परमेश्वर आपको स्वीकार कर लेगा, और सदा काल के लिए अपना बना लेगा। साथ ही क्या किसी पापी मनुष्य के लिए कहीं और यह संभव है कि परमेश्वर स्वयं आप में आ कर सर्वदा के लिए निवास करे; आपको धर्मी बनाए; आपको अपना वचन सिखाए; और आपको शैतान की युक्तियों और हमलों से सुरक्षित रखने के सभी प्रयोजन करके दे? और फिर, आप में होकर अपने आप को तथा अपनी धार्मिकता को औरों पर प्रकट करे, आपको खरा आँकलन करने और सच्चा न्याय करने वाला बनाए; तथा आप में होकर पाप में भटके लोगों को उद्धार और अनन्त जीवन प्रदान करने के अपने अद्भुत कार्य करे, जिससे अंततः आपको ही अपनी ईश्वरीय आशीषों से भर सके? इसलिए अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। स्वेच्छा और सच्चे मन से अपने पापों के लिए पश्चाताप करके, उनके लिए प्रभु से क्षमा माँगकर, अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आप अपने पापों के अंगीकार और पश्चाताप करके, प्रभु यीशु से समर्पण की प्रार्थना कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए मेरे सभी पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” प्रभु की शिष्यता तथा मन परिवर्तन के लिए सच्चे पश्चाताप और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
यहेजकेल 3-4
इब्रानियों 11:20-40