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शुक्रवार, 27 मई 2011

ज्ञानवृद्धि का उद्देश्य

कुछ साल पहले मैं एक विद्यार्थी से चर्चा कर रहा था; उसका कहना था कि वह धर्म में बहुत रुचि रखता है, और धर्म के बारे में सब कुछ जान लेना चाहता है। जब मैंने उसके इस शौक के बारे में उससे थोड़ी गहराई से जानकारी ली तो पता चला कि वह केवल अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए ऐसा करना चाहता था। उसकी जिज्ञासा उसे यह जाने को उकसाती थी कि धर्म में आखिर ऐसा क्या है जिससे लोग उसमें आस्था रखते हैं, परन्तु उसके लिए परमेश्वर का कोई महत्व नहीं था, और ना ही वह अपने लिए परमेश्वर की इच्छा जानने या उसे मानने में कोई रुचि रखता था।

यदि आप बाइबल के बारे में अपनी जानकारी केवल अपने ज्ञान को बढ़ाने के लिए चाहते हैं, ना कि इसलिए कि परमेश्वर को निकटता से जानकर उसकी इच्छा पूरी करने में जुटें, तो आप भी उस छात्र से भिन्न नहीं हैं।

प्रेरित पतरस ने कहा कि हमें अपने परमेश्वर संबंधी ज्ञान को केवल एक उद्देश्य के लिए बढ़ाना चाहिए - कि हमारा विश्वास परिपक्व हो सके। पतरस ने लिखा कि, "और इसी कारण तुम सब प्रकार का यत्‍न करके, अपने विश्वास पर सदगुण, और सदगुण पर समझ। और समझ पर संयम, और संयम पर धीरज, और धीरज पर भक्ति। और भक्ति पर भाईचारे की प्रीति, और भाईचारे की प्रीति पर प्रेम बढ़ाते जाओ। क्‍योंकि यदि ये बातें तुम में वर्तमान रहें, और बढ़ती जाएं, तो तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह के पहचानने में निकम्मे और निष्‍फल न होने देंगी" (२ पतरस १:५-८)। मसीही विश्वास में परिपक्वता का यही मार्ग है।

परमेश्वर हमें केवल ज्ञानवर्धन के लिए अपने ज्ञान के खोजी होने को नहीं कहता, वरन इसलिए क्योंकि, "अनन्‍त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्‍चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें" (युहन्ना १७:३); और अपने जीवनों में परमेश्वर को केंद्रबिंदु बना कर प्रेम और सदगुणों से भर जाएं और परमेश्वर के लिए फलदायी हों। - मार्ट डी हॉन


जिस ज्ञान से समझ-बूझ और परिपक्वता न बढ़े वह खातरनाक होता है।

अनन्‍त जीवन यह है, कि वे तुझ अद्वैत सच्‍चे परमेश्वर को और यीशु मसीह को, जिसे तू ने भेजा है, जानें। - युहन्ना १७:३


बाइबल पाठ: २ पतरस १:१-११

2Pe 1:1 शमौन पतरस की और से जो यीशु मसीह का दास और प्रेरित है, उन लोगों के नाम जिन्‍होंने हमारे परमेश्वर और उद्धारकर्ता यीशु मसीह की धामिर्कता से हमारा सा बहुमूल्य विश्वास प्राप्‍त किया है।
2Pe 1:2 परमेश्वर के और हमारे प्रभु यीशु की पहचान के द्वारा अनुग्रह और शान्‍ति तुम में बहुतायत से बढ़ती जाए।
2Pe 1:3 क्‍योंकि उसके ईश्वरीय सामर्थ ने सब कुछ जो जीवन और भक्ति से सम्बन्‍ध रखता है, हमें उसी की पहचान के द्वारा दिया है, जिस ने हमें अपनी ही महिमा और सदगुण के अनुसार बुलाया है।
2Pe 1:4 जिन के द्वारा उस ने हमें बहुमूल्य और बहुत ही बड़ी प्रतिज्ञाएं दी हैं: ताकि इन के द्वारा तुम उस सड़ाहट से छूटकर जो संसार में बुरी अभिलाषाओं से होती है, ईश्वरीय स्‍वभाव के समभागी हो जाओ।
2Pe 1:5 और इसी कारण तुम सब प्रकार का यत्‍न करके, अपने विश्वास पर सदगुण, और सदगुण पर समझ।
2Pe 1:6 और समझ पर संयम, और संयम पर धीरज, और धीरज पर भक्ति।
2Pe 1:7 और भक्ति पर भाईचारे की प्रीति, और भाईचारे की प्रीति पर प्रेम बढ़ाते जाओ।
2Pe 1:8 क्‍योंकि यदि ये बातें तुम में वर्तमान रहें, और बढ़ती जाएं, तो तुम्हें हमारे प्रभु यीशु मसीह के पहचानने में निकम्मे और निष्‍फल न होने देंगी।
2Pe 1:9 और जिस में ये बातें नहीं, वह अन्‍धा है, और धुन्‍धला देखता है, और अपने पूर्वकाली पापों से धुलकर शुद्ध होने को भूल बैठा है।
2Pe 1:10 इस कारण हे भाइयों, अपने बुलाए जाने, और चुन लिये जाने को सिद्ध करने का भली भांति यत्‍न करते जाओ, क्‍योंकि यदि ऐसा करोगे, तो कभी भी ठोकर न खाओगे।
2Pe 1:11 वरन इस रीति से तुम हमारे प्रभु और उद्धारकर्ता यीशु मसीह के अनन्‍त राज्य में बड़े आदर के साथ प्रवेश करने पाओगे।

एक साल में बाइबल:
  • २ इतिहास १-३
  • यूहन्ना १०:१-२३