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रविवार, 6 मार्च 2022

कलीसिया में अपरिपक्वता के दुष्प्रभाव (22)


भ्रामक शिक्षाओं के स्वरूप - सुसमाचार संबंधित गलत शिक्षाएं (3) - सुसमाचार की योजना

हम पिछले लेखों से देखते आ रहे हैं कि बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की एक पहचान यह भी है कि वे बहुत सरलता से भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं (इफिसियों 4:14)। इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्‍वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं। जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता”, इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार। साथ ही इस पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है, कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बाइबल से देखने, जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है। 

पिछले लेखों में हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा, पहले तो प्रभु यीशु से संबंधित सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं को देखा; फिर उसके बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से देखा; और पिछले लेख से हमने सुसमाचार से संबंधित गलत शिक्षाओं के बारे में देखना आरंभ किया है, और इन आरंभिक लेखों में हम सही सुसमाचार क्या है, यह देख और समझ रहे हैं, जिससे गलत या भ्रष्ट को पहचान सकें, स्वयं भी उस से बच कर रह सकें तथा औरों को भी बचा सकें। पिछले दो लेखों में हमने देखा है कि सुसमाचार संसार के प्रत्येक व्यक्ति के लिए है, चाहे उसका धर्म, धारणा, मान्यता कुछ भी हो; ईसाइयों या मसीहियों के लिए भी। सभी को उसके लिए व्यक्तिगत रीति से निर्णय लेना है। सुसमाचार का व्यक्ति के जीवन में कार्यकारी होना उसके सच्चे समर्पित मन से अपने पापों के लिए पश्चाताप और प्रभु यीशु से पापों के क्षमा माँगकर उसे समर्पित हो जाने से आरंभ होता है। आज हम इस सुसमाचार के विषय परमेश्वर की योजना के बारे में देखेंगे।  

सुसमाचार - आरंभ से ही परमेश्वर द्वारा स्थापित 

बहुधा लोगों की यह धारणा रहती है कि प्रभु यीशु में पापों की क्षमा और उद्धार तथा उससे संबंधित आशीषों का यह सुसमाचार नए नियम, या प्रभु यीशु के आगमन और सेवकाई के साथ आरंभ हुआ है। संसार के बहुत से लोग तो प्रभु यीशु के विषय यह धारणा भी रखते हैं कि वह एक भक्त यहूदी था, जिसके जीवन से उस समय के बहुत से लोग बहुत प्रभावित हुए थे, और उसके बाद, उसके अनुयायियों ने उसके नाम में कुछ शिक्षाओं और बातों को बना कर फैला दिया, जिनमें से एक यह उसके नाम में विश्वास द्वारा पापों से क्षमा और उद्धार की बात भी है। किन्तु बहुत कम लोगों को यह पता है कि इस सुसमाचार का उल्लेख पुराने नियम में भी है, और इसका आरंभ सृष्टि के पहले से है। परमेश्वर का वचन बाइबल हमें सुसमाचार में होकर परमेश्वर की इस उद्धार की योजना के विषय सामान्य धारणाओं और विचारों से बहुत भिन्न तथ्य प्रदान करती है। बाइबल के इन तथ्यों को देखना आरंभ हम सुसमाचार के संक्षिप्त रूप, उसके सार को परमेश्वर पवित्र आत्मा की अगुवाई में प्रेरित पौलुस द्वारा कुरिन्थुस की मण्डली को लिखी गई पहली पत्री में से देखने के साथ करते हैं:

हे भाइयों, मैं तुम्हें वही सुसमाचार बताता हूं जो पहिले सुना चुका हूं, जिसे तुम ने अंगीकार भी किया था और जिस में तुम स्थिर भी हो। उसी के द्वारा तुम्हारा उद्धार भी होता है, यदि उस सुसमाचार को जो मैं ने तुम्हें सुनाया था स्मरण रखते हो; नहीं तो तुम्हारा विश्वास करना व्यर्थ हुआ। इसी कारण मैं ने सब से पहिले तुम्हें वही बात पहुंचा दी, जो मुझे पहुंची थी, कि पवित्र शास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के लिये मर गया। ओर गाड़ा गया; और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा” (1 कुरिन्थियों 15:1-4) 

ये पद इस बात को स्पष्ट कर देते हैं कि उद्धार के सुसमाचार का मर्म, प्रभु यीशु मसीह का पृथ्वी पर आना, मानव-जाति के पापों के लिए मारा जाना, गाड़ा जाना, और तीसरे दिन जी उठना, इनमें से कोई भी बात आकस्मिक या अनपेक्षित नहीं थीं। वरन, ये सारी बातें जो हुईं, वे सभीपवित्र शास्त्र के अनुसारही हुईं; अर्थात पवित्र शस्त्र में, जो उस समय वर्तमान का पुराना नियम था, पहले से ही लिखी हुई थीं, और उन्हीं भविष्यवाणी की बातों की पूर्ति प्रभु यीशु के जीवन के द्वारा हुई!

बाइबल में उद्धारकर्ता की पहली प्रतिज्ञा, आदम और हव्वा के पाप करने के साथ ही, परमेश्वर ने अदन की वाटिका में ही कर दी थी -और मैं तेरे और इस स्त्री के बीच में, और तेरे वंश और इसके वंश के बीच में बैर उत्पन्न करूंगा, वह तेरे सिर को कुचल डालेगा, और तू उसकी एड़ी को डसेगा” (उत्पत्ति 3:15)। सामान्यतः किसी भी परिवार में, “वंशपुरुष के द्वारा ज़ारी रखा माना जाता है, पुरुष का ही माना जाता है। किन्तु यहाँ परमेश्वर नेस्त्री के वंशकी बात की, जो उस सर्प रूपी शैतान के सिर को कुचलने वाले उद्धारकर्ता, प्रभु यीशु मसीह के, बिना पुरुष के साथ मेल के कुँवारी स्त्री से जन्म लेने, और शैतान के कार्यों का तथा उसका नाश करके मानव जाति के उद्धार के कार्य को संपन्न करने की पहली भविष्यवाणी थी। और इसी भविष्यवाणी के अनुसार प्रभु यीशु के जन्म के समय मरियम को आश्वस्त किया गया, “स्वर्गदूत ने उस से कहा, हे मरियम; भयभीत न हो, क्योंकि परमेश्वर का अनुग्रह तुझ पर हुआ है। और देख, तू गर्भवती होगी, और तेरे एक पुत्र उत्पन्न होगा; तू उसका नाम यीशु रखना” “मरियम ने स्वर्गदूत से कहा, यह क्योंकर होगा? मैं तो पुरुष को जानती ही नहीं। स्वर्गदूत ने उसको उत्तर दिया; कि पवित्र आत्मा तुझ पर उतरेगा, और परमप्रधान की सामर्थ्य तुझ पर छाया करेगी इसलिये वह पवित्र जो उत्पन्न होनेवाला है, परमेश्वर का पुत्र कहलाएगा।” (लूका 1:30-31, 34-35)

नए नियम में इब्रानियों की पत्री में, प्रभु यीशु मसीह के मनुष्य रूप में पृथ्वी पर आने के समय का वार्तालाप दर्ज किया गया है:इसी कारण वह जगत में आते समय कहता है, कि बलिदान और भेंट तू ने न चाही, पर मेरे लिये एक देह तैयार किया। होम-बलियों और पाप-बलियों से तू प्रसन्न नहीं हुआ। तब मैं ने कहा, देख, मैं आ गया हूं, (पवित्र शास्त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ है) ताकि हे परमेश्वर तेरी इच्छा पूरी करूं” (इब्रानियों 10:5-7)। ये पद भी हमारे लिए सुसमाचार के बारे में कुछ बहुत महत्वपूर्ण तथ्य रखते हैं - 

  • जैसे परमेश्वर ने उत्पत्ति 3:15 मेंस्त्री के वंशकी बात कही थी, उसकी के अनुसार, कुँवारी मरियम के गर्भ में पवित्र आत्मा की सामर्थ्य से एक मानव देह तैयार कर के रखी गई जिसमें होकर परमेश्वर पुत्र - प्रभु यीशु ने जगत में, बिना किसी पुरुष के योगदान के, एक कुँवारी से जन्म लिया।
  • प्रभु का जगत में आना परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने के लिए था - अर्थात परमेश्वर पिता की यह इच्छा पहले से ही विद्यमान थी, जिसे पूरा करने के लिए परमेश्वर पुत्र ने स्वर्ग का वैभव, आदर, और महिमा छोड़कर, अपने आप को शून्य करके (फिलिप्पियों 2:5-8) पृथ्वी पर आना स्वीकार किया। 
  • प्रभु यीशु के विषय यह सब पवित्र शास्त्र में पहले से ही लिखा हुआ था। 

प्रभु यीशु मसीह ने अपने पुनरुत्थान के बाद, इम्माऊस के मार्ग पर जा रहे अपने दो शिष्यों के साथ हुई बातचीत में उन्हें स्मरण करवाया, “फिर उसने उन से कहा, ये मेरी वे बातें हैं, जो मैं ने तुम्हारे साथ रहते हुए, तुम से कही थीं, कि अवश्य है, कि जितनी बातें मूसा की व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं और भजनों की पुस्तकों में, मेरे विषय में लिखी हैं, सब पूरी हों” (लूका 24:44)। प्रेरित पौलुस के जीवन-परिवर्तन के बाद, पुराने नियम के अपने ज्ञान के आधार पर उसनेऔर वह तुरन्त आराधनालयों में यीशु का प्रचार करने लगा, कि वह परमेश्वर का पुत्र है। परन्तु शाऊल और भी सामर्थी होता गया, और इस बात का प्रमाण दे देकर कि मसीह यही है, दमिश्क के रहने वाले यहूदियों का मुंह बन्द करता रहा” (प्रेरितों 9:20, 22)। इसी प्रकार अपुल्लोस भी, जो पवित्र शास्त्र का अच्छा गया रखता था, “अपुल्लोस नाम एक यहूदी जिस का जन्म सिकन्‍दिरया में हुआ था, जो विद्वान पुरुष था और पवित्र शास्त्र को अच्छी तरह से जानता था इफिसुस में आया। क्योंकि वह पवित्र शास्त्र से प्रमाण दे देकर, कि यीशु ही मसीह है; बड़ी प्रबलता से यहूदियों को सब के सामने निरुत्तर करता रहा” (प्रेरितों के काम 18:24, 28)

क्योंकि पवित्र शास्त्र, अर्थात वर्तमान के पुराने नियम में एक उद्धारकर्ता के जन्म और छुटकारे के कार्य के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई थी, इसीलिए प्रभु यीशु की सेवकाई के समय में लोगों को यह अंदेशा था कि उस उद्धारकर्ता के आने का समय हो गया है, वे उसकी बाट जोह रहे थे। इसी प्रत्याशा में यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले ने अपनी सेवकाई आरंभ की, और जब वह आया तो उसे पहचान लियादूसरे दिन उसने यीशु को अपनी ओर आते देखकर कहा, देखो, यह परमेश्वर का मेम्ना है, जो जगत के पाप उठा ले जाता है” (यूहन्ना 1:29)। यूहन्ना बपतिस्मा देने वाले के शिष्य अन्द्रियास ने, यूहन्ना के कहने पर प्रभु यीशु को मसीह स्वीकार कर लिया, “उसने पहिले अपने सगे भाई शमौन से मिलकर उस से कहा, कि हम को ख्रिस्तुस अर्थात मसीह मिल गया” (यूहन्ना 1:41)। सामान्य लोगों में भी यही प्रत्याशा थी जैसा सामरी स्त्री ने प्रभु यीशु से कहा, “स्त्री ने उस से कहा, मैं जानती हूं कि मसीह जो ख्रीस्‍तुस कहलाता है, आने वाला है; जब वह आएगा, तो हमें सब बातें बता देगाआओ, एक मनुष्य को देखो, जिसने सब कुछ जो मैं ने किया मुझे बता दिया: कहीं यह तो मसीह नहीं है?” (यूहन्ना 4:25, 29)

यह सभी दिखाता है कि प्रभु यीशु मसीह में उद्धार का सुसमाचार नए नियम से भी पहले का है, पवित्र शास्त्र के अनुसार है, पुराने नियम के आरंभ में से ही उसके बारे में लिख दिया गया था, उसकी योजना बनाई जा चुकी थी। किन्तु अद्भुत बात यह है कि प्रभु यीशु मसीह का अपने बलिदान के द्वारा छुटकारे का, पापों से क्षमा और उद्धार का मार्ग प्रदान करने का कार्य जगत की उत्पत्ति से पहले ही स्थापित कर दिया गया थाउसका ज्ञान तो जगत की उत्पत्ति के पहिले ही से जाना गया था, पर अब इस अन्तिम युग में तुम्हारे लिये प्रगट हुआ” (1 पतरस 1:20), और वह घात या बलि जगत की उत्पत्ति के समय हुआ, “और पृथ्वी के वे सब रहने वाले जिन के नाम उस मेम्ने की जीवन की पुस्तक में लिखे नहीं गए, जो जगत की उत्पत्ति के समय से घात हुआ है, उस पशु की पूजा करेंगे” (प्रकाशितवाक्य 13:8) 

अर्थात, प्रभु यीशु मसीह में होकर पापों की क्षमा और उद्धार का यह सुसमाचार न तो मनुष्य के पाप करने के बाद, परिस्थिति के अनुसार, बाद में लिया गया निर्णय और किया गया कार्य है; और न ही मनुष्यों की कल्पनाओं और विचारों की गढ़ी हुई बात है। यह जगत की उत्पत्ति से पहले स्थापित हो गया था, और जगत की उत्पत्ति के समय, इससे पहले कि मनुष्य की सृष्टि भी होती और वो पाप में गिराया जाता, उसे पाप से छुड़ाने का प्रयोजन और क्रिया को परमेश्वर ने तैयार कर के रख लिया था। इसीलिए इसे “eternal salvation” यासदा काल का उद्धारकहा गया है (इब्रानियों 5:9) 

ये बातें सुसमाचार के महत्व, सिद्धता, शुद्धता और पवित्रता को दिखाती हैं; बताती हैं कि कैसे सुसमाचार से की गई थोड़ी से भी छेड़ा-खानी, उसमें की गई कोई भी मिलावट, उसमें डाली गई कोई भी अतिरिक्त बात, उसे भ्रष्ट कर देगी, उसे अप्रभावी बना देगी। अगले लेख में हम देखेंगे के शैतान किन युक्तियों के द्वारा सुसमाचार को अप्रभावी बनाता है, और हमें उस भ्रष्ट सुसमाचार के चक्करों में फँसा कर, वास्तविक और सच्चे सुसमाचार को हमारे जीवनों में कार्यकारी एवं प्रभावी होने से रोक देता है। 

यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप प्रभु परमेश्वर के सुसमाचार से संबंधित किसी गलत शिक्षाओं में न पड़े हों। यह सुनिश्चित कर लीजिए कि आप सच्चे पश्चाताप और समर्पण तथा सच्चे मन से प्रभु यीशु से पापों की क्षमा के द्वारा परमेश्वर के जन बने हैं। न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए। लोगों द्वारा कही जाने वाली ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें, यदि सही हों, तब ही उन्हें मानें, अन्यथा अस्वीकार कर दें। 

यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • व्यवस्थाविवरण 1-2          
  • मरकुस 10:1-31