मेरी प्रवृति है अपने ही निराधारित तरीकों में होकर कार्य करने की, इसलिए जो कुछ भी मुझे मेरी दिनचर्या या योजनाओं से अलग दिशा में ले जाता है, उससे मुझे बड़ी खीज होती है। इससे भी बदतर तब होता है जब जीवन की बदलती हुई दिशाओं का सामना करना पड़ता है, तब मैं अपने आप को बहुत अस्थिर अनुभव करता हूँ, जो मेरे लिए बड़ा कष्टदायी होता है। लेकिन परमेश्वर, जिसने कहा, "...मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है" (यशायाह 55:8), यह जानता है कि उसे हमारे जीवनों की दिशा में परिवर्तन लाने की आवश्यकता रहती है, जिससे हम अपने पूर्व निर्धारित मार्ग से हट सकें और वह हमारे जीवनों को अधिक बेहतर बना सके।
परमेश्वर के वचन बाइबल के कुछ प्रमुख पात्रों के जीवन को देखिए - यूसुफ के बारे में विचार कीजिए, परमेश्वर ने उसे अपने परिवार से निकाले जाकर मिस्त्र में जाने दिया जिससे वह आते समय में लोगों तथा अपने परिवार को भयानक अकाल से बचा सके, तथा स्वयं भी एक ऐसे पद पर पहुँच सके जिस तक स्वयं अपनी सामर्थ से पहुँचने की कल्पना भी उसके लिए कर पाना असंभव था। मूसा को देखिए, उसे शिशु अवस्था में ही गुलामों के घर से निकालकर पहले राजा के महल में परवरिश के लिए पहुँचाया, और फिर उस राज महल से निकालकर बियाबान में रहने के लिए भेजा दिया, जहाँ परमेश्वर ने उसे दर्शन दिए और उसे नियुक्त किया कि वह परमेश्वर के लोगों को मिस्त्र के दासत्व से निकालकर वाचा किए हुए देश ले कर जाए, तथा परमेश्वर के वचन को लिखित रूप में लोगों को दे। यूसुफ और मरियम के बारे में सोचिए, जिनके जीवन में परमेश्वर के स्वर्गदूत ने एक बड़े अप्रत्याशित और सारे संसार को प्रभावित करने वाले दिशा परिवर्तन की सूचना दी। स्वर्गदूत ने मरियम से कहा कि वह गर्भवती होगी और संसार के उद्धारकर्ता को जन्म देगी और यूसुफ से कहा कि गर्भवती दशा में भी मरियम को अपने घर लाने से ना घबराए, और होने वाले बच्चे के लिए कहा कि, "वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा" (मत्ती 1:21); और यूसुफ ने ऐसा ही किया (पद 25)। इसके बाद जो हुआ और हो रहा है, वह अद्भुत इतिहास है।
हम परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं कि उसने हमारे लिए अद्भुत योजनाएं बनाई हैं; वह हमारा सृष्टिकर्ता है, हमसे प्रेम करता है, हमें विनाश में नहीं वरन अपने साथ आशीष में देखना चाहता है। उसकी योजनाओं पर कुड़कुड़ाएं नहीं, वरन उसे समर्पित जीवन व्यतीत करें, उसके द्वारा जीवन को दी जाने वाली दिशा तथा मार्गदर्शन को स्वीकार करें। - जो स्टोवैल
परमेश्वर को अपने जीवन मार्गों को निर्देशित, पुनःनिर्देशित करते रहने दीजिए।
क्योंकि जिन्हें उसने पहिले से जान लिया है उन्हें पहिले से ठहराया भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में हों ताकि वह बहुत भाइयों में पहिलौठा ठहरे। - रोमियों 8:29
बाइबल पाठ: मत्ती 1:18-25
Matthew 1:18 अब यीशु मसीह का जन्म इस प्रकार से हुआ, कि जब उस की माता मरियम की मंगनी यूसुफ के साथ हो गई, तो उन के इकट्ठे होने के पहिले से वह पवित्र आत्मा की ओर से गर्भवती पाई गई।
Matthew 1:19 सो उसके पति यूसुफ ने जो धर्मी था और उसे बदनाम करना नहीं चाहता था, उसे चुपके से त्याग देने की मनसा की।
Matthew 1:20 जब वह इन बातों के सोच ही में था तो प्रभु का स्वर्गदूत उसे स्वप्न में दिखाई देकर कहने लगा; हे यूसुफ दाऊद की सन्तान, तू अपनी पत्नी मरियम को अपने यहां ले आने से मत डर; क्योंकि जो उसके गर्भ में है, वह पवित्र आत्मा की ओर से है।
Matthew 1:21 वह पुत्र जनेगी और तू उसका नाम यीशु रखना; क्योंकि वह अपने लोगों का उन के पापों से उद्धार करेगा।
Matthew 1:22 यह सब कुछ इसलिये हुआ कि जो वचन प्रभु ने भविष्यद्वक्ता के द्वारा कहा था; वह पूरा हो।
Matthew 1:23 कि, देखो एक कुंवारी गर्भवती होगी और एक पुत्र जनेगी और उसका नाम इम्मानुएल रखा जाएगा जिस का अर्थ यह है “ परमेश्वर हमारे साथ”।
Matthew 1:24 सो यूसुफ नींद से जागकर प्रभु के दूत की आज्ञा अनुसार अपनी पत्नी को अपने यहां ले आया।
Matthew 1:25 और जब तक वह पुत्र न जनी तब तक वह उसके पास न गया: और उसने उसका नाम यीशु रखा।
एक साल में बाइबल:
- लैव्यवस्था 6-7
- मत्ती 25:1-30