ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

रविवार, 5 मार्च 2017

मुझ से


   मैं उन्हें ’मैल नोट्स’ कहता हूँ - छोटी टिप्पणियाँ जो हमारी बेटी मैलिस्सा ने अपनी बाइबल में लिखीं जिससे वह उस पद या परिच्छेद को अपने जीवन में लागू कर सके। जैसे कि उसने मत्ती 7 के पहले दो पदों के चारों ओर एक रेखा खींची थी। परमेश्वर के वचन बाइबल के इस खण्ड में प्रभु यीशु मसीह ने औरों का न्याय करने से संबंधित शिक्षा दी है; प्रभु ने यहाँ सिखाया है कि हम जिस नाप से औरों के लिए नापते हैं उसी नाप से हमारे लिए भी नापा जाएगा। इस खण्ड के चारों ओर रेखा खींचने के बाद मैल ने अपने नोट में लिखा: "इससे पहले कि दूसरे क्या कर रहे हैं देखो, यह देखो कि तुम क्या कर रहे हो।"

   मैलिस्सा औरों के प्रति ध्यान रखने वाली किशोरी थी। वह परमेश्वर के वचन बाइबल के फिलिप्पियों 2:4 के निर्देष को जीया करती थी। उसके सहपाठी मैट ने, जो मैलिस्सा के साथ छोटी आयु से लेकर ग्यारहवीं कक्षा के उस समय तक रहा था जब एक कार दुर्घटना में मैलिस्सा की मृत्यु हुई, मैलिस्सा की मृत्योपरांत रखी गई यादगार सभा कहा: "मुझे कोई ऐसा समय याद नहीं आता है जब मैंने तुम्हें मुस्कुराते हुए या किसी के लिए कुछ ऐसा करते हुए नहीं देखा जिससे उनका दिन आनन्दपूर्ण हो जाए।" उसकी सहेली तारा ने कहा: "मेरी सहेली होने के लिए धन्यवाद, उस समय में भी जब कोई तुम्हारे समान भला और हँसमुख नहीं होता था।"

   ऐसे समय में जब औरों के प्रति कर्कश रवैया रखते हुए उनका आँकलन करना सामान्यतः देखा जाता है, यह ध्यान करना भला है कि प्रेम का आरंभ हम से ही होता है। प्रेरित पौलुस ने लिखा, "पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थाई है, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है" (1 कुरिन्थियों 13:13)। यह कितना प्रभावी होगा जब हम औरों को देखें और तो विचार करें कि उनके प्रति प्रेम का आरंभ मुझ से ही होगा। क्या यह प्रभु यीशु द्वारा हम से किए गए प्रेम को प्रतिबिंबित करना नहीं होगा? - डेव ब्रैनन


हमारे प्रति परमेश्वर के प्रेम को स्वीकार करना ही 
औरों से प्रेम प्रदर्शित करने का आधार है।

हर एक अपनी ही हित की नहीं, वरन दूसरों की हित की भी चिन्‍ता करे। - फिलिप्पियों 2:4

बाइबल पाठ: 1 कुरिन्थियों 13
1 Corinthians 13:1 यदि मैं मनुष्यों, और सवर्गदूतों की बोलियां बोलूं, और प्रेम न रखूं, तो मैं ठनठनाता हुआ पीतल, और झंझनाती हुई झांझ हूं। 
1 Corinthians 13:2 और यदि मैं भविष्यद्वाणी कर सकूं, और सब भेदों और सब प्रकार के ज्ञान को समझूं, और मुझे यहां तक पूरा विश्वास हो, कि मैं पहाड़ों को हटा दूं, परन्तु प्रेम न रखूं, तो मैं कुछ भी नहीं। 
1 Corinthians 13:3 और यदि मैं अपनी सम्पूर्ण संपत्ति कंगालों को खिला दूं, या अपनी देह जलाने के लिये दे दूं, और प्रेम न रखूं, तो मुझे कुछ भी लाभ नहीं। 
1 Corinthians 13:4 प्रेम धीरजवन्‍त है, और कृपाल है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं। 
1 Corinthians 13:5 वह अनरीति नहीं चलता, वह अपनी भलाई नहीं चाहता, झुंझलाता नहीं, बुरा नहीं मानता। 
1 Corinthians 13:6 कुकर्म से आनन्‍दित नहीं होता, परन्तु सत्य से आनन्‍दित होता है। 
1 Corinthians 13:7 वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है। 
1 Corinthians 13:8 प्रेम कभी टलता नहीं; भविष्यद्वाणियां हों, तो समाप्‍त हो जाएंगी, भाषाएं हो तो जाती रहेंगी; ज्ञान हो, तो मिट जाएगा। 
1 Corinthians 13:9 क्योंकि हमारा ज्ञान अधूरा है, और हमारी भविष्यद्वाणी अधूरी। 
1 Corinthians 13:10 परन्तु जब सवर्सिद्ध आएगा, तो अधूरा मिट जाएगा। 
1 Corinthians 13:11 जब मैं बालक था, तो मैं बालकों की नाईं बोलता था, बालकों का सा मन था बालकों की सी समझ थी; परन्तु सियाना हो गया, तो बालकों की बातें छोड़ दी। 
1 Corinthians 13:12 अब हमें दर्पण में धुंधला सा दिखाई देता है; परन्तु उस समय आमने साम्हने देखेंगे, इस समय मेरा ज्ञान अधूरा है; परन्तु उस समय ऐसी पूरी रीति से पहिचानूंगा, जैसा मैं पहिचाना गया हूं। 
1 Corinthians 13:13 पर अब विश्वास, आशा, प्रेम थे तीनों स्थाई है, पर इन में सब से बड़ा प्रेम है।

एक साल में बाइबल: 

  • गिनती 34-36
  • मरकुस 9:30-50