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अन्य प्राचीन सभ्यताओं एवं संस्कृतियों के धार्मिक लेखों की तुलना में बाइबल - भाग - 2
बाइबल के आरंभ से लेकर अंत तक, उसकी विषय-वस्तु और अंतर्वस्तु प्रभु यीशु मसीह, और केवल उन ही के द्वारा प्रदान की जा सकने वाले पापों से मुक्ति और उद्धार ही हैं, “और किसी दूसरे के द्वारा उद्धार नहीं; क्योंकि स्वर्ग के नीचे मनुष्यों में और कोई दूसरा नाम नहीं दिया गया, जिस के द्वारा हम उद्धार पा सकें” (प्रेरितों 4:12)। यह विषय-वस्तु, अर्थात, प्रभु यीशु, उनका जीवन, उनके गुण और चरित्र, उनके कार्य और सेवकाई, उनसे मिलने वाला उद्धार आदि, सभी को प्रभु यीशु मसीह के पृथ्वी पर जन्म लेने से सदियों पूर्व बाइबल के पुराने नियम खंड में विभिन्न प्रकार से बताया, सिखाया, और उदहारणों द्वारा दर्ज किया गया है; विभिन्न शिक्षाओं, नियमों, घटनाओं, व्यवहारों, कुछ ऐतिहासिक लोगों के जीवनों और उनके लेखों, तथा अनेकों परिस्थितियों में मनुष्यों के साथ परमेश्वर के व्यवहार, इत्यादि के द्वारा। इस बात को स्वयं प्रभु यीशु मसीह और बाइबल के अन्य लेखकों ने कहा है, और बारंबार इसकी पुष्टि की है, जैसा कि बाइबल के कुछ निम्नलिखित संबंधित हवालों से प्रकट है:
यूहन्ना 5:39 तुम पवित्र शास्त्र में ढूंढ़ते हो, क्योंकि समझते हो कि उस में अनन्त जीवन तुम्हें मिलता है, और यह वही है, जो मेरी गवाही देता है।
यूहन्ना 5:46 क्योंकि यदि तुम मूसा की प्रतीति करते, तो मेरी भी प्रतीति करते, इसलिये कि उसने मेरे विषय में लिखा है।
यूहन्ना 12:41 यशायाह ने ये बातें इसलिये कहीं, कि उसने उस की महिमा देखी; और उसने उसके विषय में बातें कीं।
लूका 24:27 तब उसने मूसा से और सब भविष्यद्वक्ताओं से आरंभ कर के सारे पवित्र शास्त्रों में से, अपने विषय में की बातों का अर्थ, उन्हें समझा दिया।
1 कुरिन्थियों 15:1-4 हे भाइयों, मैं तुम्हें वही सुसमाचार बताता हूं जो पहिले सुना चुका हूं, जिसे तुम ने अंगीकार भी किया था और जिस में तुम स्थिर भी हो। उसी के द्वारा तुम्हारा उद्धार भी होता है, यदि उस सुसमाचार को जो मैं ने तुम्हें सुनाया था स्मरण रखते हो; नहीं तो तुम्हारा विश्वास करना व्यर्थ हुआ। इसी कारण मैं ने सब से पहिले तुम्हें वही बात पहुंचा दी, जो मुझे पहुंची थी, कि पवित्र शास्त्र के वचन के अनुसार यीशु मसीह हमारे पापों के लिये मर गया। और गाड़ा गया; और पवित्र शास्त्र के अनुसार तीसरे दिन जी भी उठा।
इब्रानियों 10:7 तब मैं ने कहा, देख, मैं आ गया हूं, (पवित्र शास्त्र में मेरे विषय में लिखा हुआ है) ताकि हे परमेश्वर तेरी इच्छा पूरी करूं।
बाइबल का नया नियम खण्ड चार वृतांतों के साथ आरंभ होता है, जो प्रभु यीशु मसीह के पृथ्वी के जीवन, तथा उन के द्वारा सम्पूर्ण मानव जाति, समस्त संसार के सभी लोगों के लिए उद्धार का मार्ग बनाने और उपलब्ध करवाने के बारे में हैं। यह उद्धार जो उन्होंने सभी के लिए मुफ्त में उपलब्ध करवाया है, उसे अब प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन के लिए स्वेच्छा से अपनाना तथा कार्यान्वित करना है, बिना कोई भी कीमत चुकाए, बिना किन्ही कर्मों या अनुष्ठानों के: “और उसने तुम्हें भी जिलाया, जो अपने अपराधों और पापों के कारण मरे हुए थे। जिन में तुम पहिले इस संसार की रीति पर, और आकाश के अधिकार के हाकिम अर्थात उस आत्मा के अनुसार चलते थे, जो अब भी आज्ञा न मानने वालों में कार्य करता है। इन में हम भी सब के सब पहिले अपने शरीर की लालसाओं में दिन बिताते थे, और शरीर, और मन की मनसाएं पूरी करते थे, और और लोगों के समान स्वभाव ही से क्रोध की सन्तान थे। परन्तु परमेश्वर ने जो दया का धनी है; अपने उस बड़े प्रेम के कारण, जिस से उसने हम से प्रेम किया। जब हम अपराधों के कारण मरे हुए थे, तो हमें मसीह के साथ जिलाया; (अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है।) और मसीह यीशु में उसके साथ उठाया, और स्वर्गीय स्थानों में उसके साथ बैठाया कि वह अपनी उस कृपा से जो मसीह यीशु में हम पर है, आने वाले समयों में अपने अनुग्रह का असीम धन दिखाए। क्योंकि विश्वास के द्वारा अनुग्रह ही से तुम्हारा उद्धार हुआ है, और यह तुम्हारी ओर से नहीं, वरन परमेश्वर का दान है। और न कर्मों के कारण, ऐसा न हो कि कोई घमण्ड करे” (इफिसियों 2:1-9)। और प्रभु यीशु द्वारा इस प्रकार से उपलब्ध करवाई गई पापों की क्षमा के द्वारा उस व्यक्ति का परमेश्वर के साथ मेल होता है: “कि यदि तू अपने मुंह से यीशु को प्रभु जानकर अंगीकार करे और अपने मन से विश्वास करे, कि परमेश्वर ने उसे मरे हुओं में से जिलाया, तो तू निश्चय उद्धार पाएगा। क्योंकि धामिर्कता के लिये मन से विश्वास किया जाता है, और उद्धार के लिये मुंह से अंगीकार किया जाता है। क्योंकि पवित्र शास्त्र यह कहता है कि जो कोई उस पर विश्वास करेगा, वह लज्जित न होगा।”; “क्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे?” (रोमियों 10:9-11; रोमियों 5:10)।
नया नियम, प्रभु यीशु मसीह के जीवन के बारे में लिखे गए लेखों के बाद फिर आगे, प्रभु यीशु के कुछ अनुयायियों द्वारा लिखे गए अन्य लेखों के माध्यम से प्रभु यीशु मसीह के शिष्यों – जो कि सामूहिक रूप में प्रभु का चर्च, उसके बुलाए हुए कहलाते हैं, की आरंभिक गतिविधियों के इतिहास, घटनाओं, वृद्धि, कार्यों, और दायित्वों का वर्णन प्रदान करता है। और अंत में बाइबल तथा नए नियम का समापन होता है प्रकाशितवाक्य की पुस्तक के साथ – जो संसार के अंत समय की भविष्यवाणियों का लेख है, उन अंत के दिनों का जिन में आज हम जी रहे हैं, जैसा कि हमारी आँखों के सामने पूरी हो रही विभिन्न अंत-समय की भविष्यवाणियों से प्रगट है (इनका एक विवरण मत्ती के 24 अध्याय में पढ़िए)। प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में विस्तृत वर्णन है सारे संसार और उसमें जन्म लेने वाले प्रत्येक मनुष्य के होने वाले अवश्यंभावी न्याय का, और उसके बाद के अनन्त जीवन का – वह चाहे स्वर्ग में परमेश्वर के साथ हो, या बिना परमेश्वर के नरक में हो – यह प्रत्येक मनुष्य द्वारा इस पृथ्वी पर अपने लिए किए गए उस चुनाव के अनुसार होगा, जो निर्णय उन्होंने प्रभु यीशु मसीह और उसके द्वारा प्रदान किए जा रहे उद्धार की जानकारी मिलने पर लिया था, और जिसके साथ उन्होंने पृथ्वी का अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत किया था, अपने इस निर्णय को सुधारने के सभी अवसरों के प्रदान किए जाने के बावजूद: “फिर मैं ने एक बड़ा श्वेत सिंहासन और उसको जो उस पर बैठा हुआ है, देखा, जिस के साम्हने से पृथ्वी और आकाश भाग गए, और उन के लिये जगह न मिली। फिर मैं ने छोटे बड़े सब मरे हुओं को सिंहासन के साम्हने खड़े हुए देखा, और पुस्तकें खोली गई; और फिर एक और पुस्तक खोली गई; और फिर एक और पुस्तक खोली गई, अर्थात जीवन की पुस्तक; और जैसे उन पुस्तकों में लिखा हुआ था, उन के कामों के अनुसार मरे हुओं का न्याय किया गया। और समुद्र ने उन मरे हुओं को जो उस में थे दे दिया, और मृत्यु और अधोलोक ने उन मरे हुओं को जो उन में थे दे दिया; और उन में से हर एक के कामों के अनुसार उन का न्याय किया गया। और मृत्यु और अधोलोक भी आग की झील में डाले गए; यह आग की झील तो दूसरी मृत्यु है। और जिस किसी का नाम जीवन की पुस्तक में लिखा हुआ न मिला, वह आग की झील में डाला गया” (प्रकाशितवाक्य 20:11-15).
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
- क्रमशः
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The Bible, in Comparison to the Religious Writings of Other Ancient Civilizations & Cultures - Part - 2
The theme and content of the Bible, from the beginning to the end is the Lord Jesus Christ, and the deliverance from sins and the salvation that only He provides, “Nor is there salvation in any other, for there is no other name under heaven given among men by which we must be saved” (Acts 4:12). This theme, i.e. the Lord Jesus, His life, His character and characteristics, His works and ministry, His salvation etc. are all indicated, taught, and exemplified through the various teachings, laws, events, happenings, lives and writings of certain historical people, God’s dealings with men in various circumstances, etc. and have been recorded centuries before the birth of the Lord Jesus on earth in the Old Testament section of the Bible. The Lord Jesus Himself and other writers of The Bible testified of this repeatedly, as is apparent from some related references from the Bible, given below:
John 5:39 You search the Scriptures, for in them you think you have eternal life; and these are they which testify of Me.
John 5:46 For if you believed Moses, you would believe Me; for he wrote about Me.
John 12:41 These things Isaiah said when he saw His glory and spoke of Him.
Luke 24:27 And beginning at Moses and all the Prophets, He expounded to them in all the Scriptures the things concerning Himself.
1 Corinthians 15:1-4 Moreover, brethren, I declare to you the gospel which I preached to you, which also you received and in which you stand, by which also you are saved, if you hold fast that word which I preached to you--unless you believed in vain. For I delivered to you first of all that which I also received: that Christ died for our sins according to the Scriptures, and that He was buried, and that He rose again the third day according to the Scriptures.
Hebrews 10:7 Then I said, 'Behold, I have come-- In the volume of the book it is written of Me-- To do Your will, O God.'
The New Testament section of the Bible begins with four accounts of the earthly life of the Lord Jesus, and how He prepared and provided the way of salvation for the entire mankind, for the whole world. This salvation that He has made freely available is to be accepted voluntarily and made applicable in their lives personally by everyone, free of any cost, without any works or rituals: “And you He made alive, who were dead in trespasses and sins, in which you once walked according to the course of this world, according to the prince of the power of the air, the spirit who now works in the sons of disobedience, among whom also we all once conducted ourselves in the lusts of our flesh, fulfilling the desires of the flesh and of the mind, and were by nature children of wrath, just as the others. But God, who is rich in mercy, because of His great love with which He loved us, even when we were dead in trespasses, made us alive together with Christ (by grace you have been saved), and raised us up together, and made us sit together in the heavenly places in Christ Jesus, that in the ages to come He might show the exceeding riches of His grace in His kindness toward us in Christ Jesus. For by grace you have been saved through faith, and that not of yourselves; it is the gift of God, not of works, lest anyone should boast” (Ephesians 2:1-9), and thereby the person is reconciled with God through the forgiveness of sins made available by the Lord Jesus: “that if you confess with your mouth the Lord Jesus and believe in your heart that God has raised Him from the dead, you will be saved. For with the heart one believes unto righteousness, and with the mouth confession is made unto salvation. For the Scripture says, "Whoever believes on Him will not be put to shame." ”; “For if when we were enemies we were reconciled to God through the death of His Son, much more, having been reconciled, we shall be saved by His life.” (Romans 10:9-11; Romans 5:10).
The New Testament, after the biographical records of the Lord Jesus then goes on to provide the history, events, growth, practices and responsibilities of the disciples of the Lord Jesus, that collectively form His Church – the group of the called out ones, through the writings of some of the disciples of the Lord Jesus. And finally the Bible and New Testament culminate with the Book of Revelation – which is a prophetically given record, of the end of the world, of the end times – the times we are presently living in, as is evident from the various end-times prophecies being fulfilled before our eyes (Read an account in Matthew chpt. 24). The book of Revelation details the coming inevitable judgment of the whole world and of every person ever to inhabit it, and the eternal life to follow – with God in heaven, or without God in hell – as per the choice every person made while living on the earth, the decision they made when brought to the knowledge of the Lord Jesus and the salvation He freely offers to all, and lived with for their entire life on earth, despite all opportunities provided to them to correct their decision: “Then I saw a great white throne and Him who sat on it, from whose face the earth and the heaven fled away. And there was found no place for them. And I saw the dead, small and great, standing before God, and books were opened. And another book was opened, which is the Book of Life. And the dead were judged according to their works, by the things which were written in the books. The sea gave up the dead who were in it, and Death and Hades delivered up the dead who were in them. And they were judged, each one according to his works. Then Death and Hades were cast into the lake of fire. This is the second death. And anyone not found written in the Book of Life was cast into the lake of fire” (Revelation 20:11-15).
If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life. Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.
- To Be Continued
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