मसीही जीवन में परिपक्वता के चिह्न
पिछले लेखों में हमने इफिसियों 4:11 में दिए गए सेवकों के
विवरण से देखा है कि प्रभु यीशु द्वारा उसकी कलीसिया में नियुक्त किए गए सेवकों की
सेवकाई से, इफिसियों 4:12 के अनुसार,
प्रभु यीशु के विश्वासी, उसकी कलीसिया के लोग
“सिद्ध”, अर्थात सेवकाई के लिए (i) तत्पर और तैयार होते हैं, (ii) कलीसिया में सेवा का काम होता है, और (iii) कलीसिया उन्नति पाती है। इसका उदाहरण हमने थिस्सलुनीकिया की कलीसिया के
स्थापित होने तथा उन्नति करने से देखा था। मसीह यीशु की कलीसिया में इन तीन बातों
के होने से कुछ और प्रभाव भी आते हैं, जिन्हें इफिसियों 4:13-16
में बताया गया है। आज हम इनमें से 13 पद में
दिए गए प्रभावों को देखेंगे।
परमेश्वर पवित्र आत्मा ने पौलुस प्रेरित
के द्वारा इफिसियों 4:13 में
लिखवाया है, “जब तक कि हम सब के सब विश्वास, और परमेश्वर के पुत्र की पहचान में एक न हो जाएं, और
एक सिद्ध मनुष्य न बन जाएं और मसीह के पूरे डील डौल तक न बढ़ जाएं।” इस वाक्य और पद के आरंभिक शब्द “जब तक” प्रभु द्वारा उसके विश्वासियों, उसके ‘पवित्र लोगों’ के लिए कलीसिया के रूप में, तथा व्यक्तिगत रीति से
मसीही विश्वास एवं जीवन में उन्नति के चरम स्तर की ओर संकेत करते हैं। अर्थात,
मसीही विश्वासियों की कलीसिया को, और
व्यक्तिगत रीति से प्रभु के ‘पवित्र लोगों’ को कब तक उन्नत होते चले जाने के प्रयास में कार्यरत रहना है? इस पद में उत्तर दिया गया है - जब तक कि:
- हम
सब के सब विश्वास, और परमेश्वर के पुत्र की पहचान में एक न हो जाएं
- एक
सिद्ध मनुष्य न बन जाएं
- मसीह
के पूरे डील डौल तक न बढ़ जाएं
एक बार फिर, इससे पहले वाले 12
पद के समान ही यहाँ भी एक क्रम, उन्नति की एक
के बाद एक सीढ़ी दी गई है। सबसे पहला लक्ष्य है प्रभु की कलीसिया के ‘सब के सब’ लोगों का विश्वास में और प्रभु यीशु
की पहचान में एक हो जाना; उनके बारे में एक ही समझ, विचार, और दृष्टिकोण रखना (इफिसियों 4:1-6)। और यह होना अति-आवश्यक भी है, क्योंकि जब तक मसीही
विश्वास तथा प्रभु यीशु मसीह से संबंधित बातों में, शिक्षाओं
में, दृष्टिकोण में भिन्नता रहेगी, तब
तक न तो कलीसिया के लोग साथ मिलकर रह सकेंगे, और न ही एक ही
उद्देश्य के साथ सेवकाई कर सकेंगे। प्रभु की विश्वव्यापी कलीसिया के सभी लोगों को
मसीही विश्वास और प्रभु यीशु मसीह के विषय समान समझ, विचार,
और दृष्टिकोण रखना बहुत आवश्यक, वरन, अनिवार्य है। जब मसीह यीशु एक ही है, प्रभु यीशु का
वचन एक ही है, उस वचन को सिखाने वाला परमेश्वर पवित्र आत्मा
एक ही है, सारे संसार के सभी लोगों के लिए परमेश्वर से
मेल-मिलाप और उद्धार का मार्ग एक ही है, तो फिर कलीसिया को
भी एक ही होना है; कलीसिया में अलग-अलग विचारधाराओं और
मान्यताओं के होने के लिए कोई स्थान ही नहीं है। किन्तु फिर भी आज का ईसाई या
मसीही समाज, यहाँ तक कि मसीही विश्वासी भी आज अनेकों
समुदायों, गुटों, और डिनॉमिनेशंस में
विभाजित हैं, जो परस्पर टकराव और असहिष्णुता की स्थिति में
भी रहते हैं। इस विभाजन का एक ही कारण, एक ही आधार है -
प्रभु परमेश्वर और उसके वचन के अनुसार नहीं, वरन व्यक्तियों
और उनकी, यानि कि मनुष्यों की शिक्षाओं के अनुसार चलना और
गुट-बंदी करना; जो परिस्थिति शैतान ने आरंभिक कलीसिया के समय
से ही कलीसियाओं में डाल दी थी (1 कुरिन्थियों 1:10-13; 3:1-7)।
मसीही विश्वास और प्रभु यीशु की पहचान
में एक हो जाने के बाद इफिसियों 4:13 में दिए गए क्रम में दूसरा है, जब
तक कि, “एक सिद्ध मनुष्य न बन जाएं”। ध्यान कीजिए कि 4:12 में भी “सिद्ध” होने - “जिस से
पवित्र लोग सिद्ध हों जाएं” की बात की गई है; किन्तु मूल यूनानी भाषा में “सिद्ध” होने के लिए 4:12 और 4:13 में
प्रयोग किए गए शब्द भिन्न हैं। मूल यूनानी भाषा में जो शब्द 4:12 में प्रयोग किया गया है उसका अर्थ होता है “पूर्णतः
सुसज्जित” होना, अर्थात किसी भी कार्य
या ज़िम्मेदारी के निर्वाह के लिए पूरी तरह से तैयार और आवश्यक संसाधनों एवं
उपकरणों तथा समझ-बूझ से लैस होना, जैसा हमने पिछले लेख में
देखा है; किन्तु 4:13 में प्रयोग किए
गए जिस शब्द का अनुवाद “सिद्ध” किया
गया है, उसका शब्दार्थ होता है “संपूर्ण”
या “हर रीति से ठीक और सही” - अर्थात वास्तव में “सिद्ध” - जो
परिपूर्ण, या दोषरहित हो। 4:13 में दिए
गए इस क्रम से अभिप्राय स्पष्ट है - जब कलीसिया और मसीही विश्वासी, सब के सब विश्वास, और परमेश्वर के पुत्र की पहचान
में एक हो जाएंगे, तो इससे फिर वे अपने मसीही जीवन और
विश्वास में भी सभी त्रुटियों और गलत शिक्षाओं, गलत व्यवहार,
आचरण, और परंपराओं आदि से मुक्त हो जाएंगे;
और परिपूर्ण, या दोषरहित हो जाएंगे - सिद्ध हो
जाएंगे। और प्रभु परमेश्वर के सिद्ध लोगों का समूह, प्रभु की
कलीसिया भी, तब सिद्ध हो जाएगी। इसलिए कलीसिया और व्यक्तिगत
मसीही जीवन में इस “सिद्धता” का होना,
इस बात का प्रमाण होगा कि वह मसीही विश्वासी, वह
कलीसिया वास्तव में परिपक्व है, परमेश्वर की इच्छा के अनुसार
है।
इस सिद्धता के बाद, 4:13 में दिया गया अगला
क्रम है “मसीह के पूरे डील डौल तक न बढ़ जाएं”। बाइबल हमें सिखाती है कि प्रभु परमेश्वर हम सभी मसीही विश्वासियों को
अंश-अंश करके मसीह यीशु की समानता में, उसके रूप में ढालता,
या परिवर्तित करता जा रहा है (2 कुरिन्थियों 3:18),
ताकि उसके विश्वासी मसीह के स्वरूप में हों, और
मसीह “बहुत भाइयों में पहलौठा ठहरे” (रोमियों 8:29)। इस बात की गंभीरता और महत्व का एहसास
करते हुए पौलुस अपनी जीवन शैली मसीह यीशु के समान रखने में प्रयासरत रहता था,
तथा उसने सभी मसीही विश्वासियों को भी उसके समान यही करने के लिए
कहा (1 कुरिन्थियों 1:11; 1 थिस्सलुनीकियों
4:1)। परमेश्वर पवित्र आत्मा ने परस्पर प्रेम, दीनता, नम्रता, और एक-मनता के
संदर्भ में लिखवाया, “जैसा मसीह यीशु का स्वभाव था वैसा
ही तुम्हारा भी स्वभाव हो” (फिलिप्पियों 2:5)। प्रभु यीशु मसीह के जीवन का उद्देश्य था हर बात में पिता परमेश्वर को
आदर और महिमा देना; और प्रत्येक मसीही विश्वासी द्वारा भी हर
बात में, दिनचर्या की छोटी से छोटी और किसी गंभीर विचार के
योग्य न समझी जाने वाली बात से भी परमेश्वर को महिमा मिलनी चाहिए, “सो तुम चाहे खाओ, चाहे पीओ, चाहे
जो कुछ करो, सब कुछ परमेश्वर की महिमा के लिये करो”
(1 कुरिन्थियों 10:31)। जब मसीही विश्वासियों,
और उनसे बनी हुई कलीसिया में यह परिपक्वता, मसीह
यीशु के समान जीवन शैली दिखाई देगी, तो वे मसीह यीशु के
डील-डौल तक भी बढ़े हुए कहलाएंगे।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो इस वचन के समक्ष अपने
मसीही विश्वास, जीवन, और सेवकाई का
आँकलन करके देख लीजिए कि आप किसी मत या डिनॉमिनेशन की मनुष्यों की शिक्षाओं के
पालन में लगे हुए हैं, या परमेश्वर पवित्र आत्मा की
आज्ञाकारिता में परमेश्वर के वचन को सीखने और उसका पालन करने में लगे हैं। जब तक
आपके मसीही विश्वास और प्रभु यीशु के बारे में समझ परमेश्वर के वचन के अनुरूप नहीं
होंगे, न आप सिद्ध हो सकेंगे, और न ही
मसीह यीशु के डील-डौल तक पहुँच सकेंगे, वरन मनुष्यों और उनकी
संस्थाओं की बातों के व्यर्थ निर्वाह में ही समय और अवसर गँवाते रहेंगे। कही ऐसा न
हो कि जब तक आप सही बात को समझें और उसका पालन करने की इच्छा रखें तब तक बहुत देर
हो चुकी हो, और बातों को ठीक करने का समय तथा अवसर निकल चुका
हो।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक
स्वीकार नहीं किया है, तो
अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के
पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की
आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए
- उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से
प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ
ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस
प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद
करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया,
उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी
उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को
क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और
मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।”
सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा
भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
- लैव्यव्यवस्था
8-10
- मत्ती 25:31-46