पाप का समाधान - उद्धार - 6
पिछले लेखों में हम बाइबल की प्रथम पुस्तक, उत्पत्ति के 3 अध्याय में दिए गए प्रथम पाप और उसके परिणामों और प्रभावों के विवरण पर
आधारित, पाप के समाधान और उस समाधान से संबंधित तीन
महत्वपूर्ण प्रश्नों में से पहले दो, “उद्धार किससे और क्यों”;
तथा “व्यक्ति इस उद्धार को कैसे प्राप्त कर
सकता है?” को, और उनके निष्कर्षों को
विस्तार से देख चुके हैं। हमने देखा कि पाप का मनुष्य जीवन और सृष्टि में प्रवेश
परमेश्वर के प्रति अविश्वास, और इस कारण उसकी अनाज्ञाकारिता
के द्वारा हुआ। पाप के मानव जीवन में आने और बस जाने के समय न तो कोई धर्म था,
न किसी धर्म, और न किसी धार्मिक अनुष्ठान अथवा
या रीति की कोई अवहेलना हुई। इसलिए पाप के समाधान के लिए भी किसी भी धर्म की कोई
आवश्यकता नहीं है। परमेश्वर द्वारा दिए गए पाप के समाधान में न तो कोई धर्म,
और न ही कोई धार्मिक प्रक्रिया सम्मिलित है। परमेश्वर का समाधान,
मनुष्य का उसके प्रति विश्वास और उस विश्वास पर आधारित परमेश्वर की
सम्पूर्ण आज्ञाकारिता एवं समर्पण पर निर्भर है। इस पूरी प्रक्रिया में मनुष्य को
केवल परमेश्वर द्वारा उपलब्ध करवाए गए समाधान को अपने जीवन में कार्यान्वित करना
है; उसमें अपनी कोई बात, योजना,
विधि आदि नहीं सम्मिलित करनी है, और न ही किसी
अन्य मनुष्य की मध्यस्थता अथवा योगदान को सम्मिलित करना है। बिना किसी धर्म अथवा
किसी धार्मिक प्रक्रिया को किए, केवल और केवल प्रभु यीशु
मसीह पर विश्वास, समर्पण, और
आज्ञाकारिता पर आधारित परमेश्वर द्वारा दिया गया यह सीधा, साधारण
समाधान बहुत से लोगों को अटपटा और अस्वीकार्य लगता है, क्योंकि
उन्हें लगता है कि यह अपर्याप्त होगा; अथवा उनके धर्म के काम और धर्म का निर्वाह उन्हें
परमेश्वर को स्वीकार्य बनाने के लिए पर्याप्त और उचित है, इसलिए उन्हें और किसी बात
की कोई आवश्यकता नहीं है।
उद्धार से संबंधित तीसरे महत्वपूर्ण प्रश्न, “इसके लिए यह इतना
आवश्यक क्यों हुआ कि स्वयं परमेश्वर प्रभु यीशु को स्वर्ग छोड़कर सँसार में बलिदान
होने के लिए आना पड़ा?” को देखने से पहले आज से हम परमेश्वर
के वचन बाइबल में से तीन बड़े धर्मी और परमेश्वर की व्यवस्था का गंभीरता से पालन
करने वाले लोगों के जीवन से देखेंगे कि उनके द्वारा अपने धर्म का निर्वाह, उन्हें उद्धार प्रदान करने और परमेश्वर को स्वीकार्य होने के लिए
अपर्याप्त था; स्वयं उनका विवेक उन्हें बता रहा था कि उनकी
इस धर्म-परायणता के बावजूद, वे अभी परमेश्वर के सम्मुख खड़े
नहीं हो सकते।
पहला उदाहरण है यहूदियों के उच्च धार्मिक अगुवे, नीकुदेमुस का है:
“यूहन्ना
3:1 फरीसियों में से नीकुदेमुस नाम एक मनुष्य था, जो यहूदियों का सरदार था।
यूहन्ना 3:2 उसने रात को यीशु
के पास आकर उस से कहा, हे रब्बी, हम
जानते हैं, कि तू परमेश्वर की ओर से गुरु हो कर आया है;
क्योंकि कोई इन चिन्हों को जो तू दिखाता है, यदि
परमेश्वर उसके साथ न हो, तो नहीं दिखा सकता।
यूहन्ना 3:3 यीशु ने उसको उत्तर
दिया; कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि
कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता।
यूहन्ना 3:4 नीकुदेमुस ने उस से
कहा, मनुष्य जब बूढ़ा हो गया, तो
क्योंकर जन्म ले सकता है? क्या वह अपनी माता के गर्भ में दूसरी
बार प्रवेश कर के जन्म ले सकता है?
यूहन्ना 3:5 यीशु ने उत्तर दिया,
कि मैं तुझ से सच सच कहता हूं; जब तक कोई
मनुष्य जल और आत्मा से न जन्मे तो वह परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।
यूहन्ना 3:6 क्योंकि जो शरीर से
जन्मा है, वह शरीर है; और जो आत्मा से
जन्मा है, वह आत्मा है।
यूहन्ना 3:7 अचम्भा न कर,
कि मैं ने तुझ से कहा; कि तुम्हें नये सिरे से
जन्म लेना अवश्य है।
यूहन्ना 3:8 हवा जिधर चाहती है
उधर चलती है, और तू उसका शब्द सुनता है, परन्तु नहीं जानता, कि वह कहां से आती और किधर को
जाती है? जो कोई आत्मा से जन्मा है वह ऐसा ही है।
यूहन्ना 3:9 नीकुदेमुस ने उसको
उत्तर दिया; कि ये बातें क्योंकर हो सकती हैं?
यूहन्ना 3:10 यह सुनकर यीशु ने
उस से कहा; तू इस्राएलियों का गुरु हो कर भी क्या इन बातों
को नहीं समझता?”
उपरोक्त खंड से हम नीकुदेमुस
के बारे में और प्रभु यीशु की बारे में उसके विचारों को देखते हैं:
- पद 1 - वह एक फरीसी था, और यहूदियों का सरदार था। प्रभु यीशु की पृथ्वी की सेवकाई के समय में,
फरीसी लोग परमेश्वर के मंदिर को और परमेश्वर की व्यवस्था के
अध्ययन तथा शिक्षा को समर्पित जीवन जीने वाले लोगों का समुदाय थे। उनकी
जीविका परमेश्वर के मंदिर से थी, और वे परमेश्वर के वचन
के अध्ययन, व्याख्या, और लोगों को
उसकी शिक्षा देने में समय बिताते थे; और नीकुदेमुस इन
फरीसियों का एक प्रधान या सरदार था। उसका यह परिचय बताता है कि वह परमेश्वर
के वचन और धर्म की बातों के पालन में कितना संलग्न और उच्च ओहदा रखने वाला
होगा।
- सामान्यतः, फरीसी लोग प्रभु यीशु मसीह को
पसंद नहीं करते थे, उससे बैर, द्वेष
रखते थे, क्योंकि प्रभु उनके जीवन के पाखण्ड और दोगलेपन
को स्पष्ट प्रकट कर देने और इसके लिए उन्हें उलाहना देने में हिचकिचाता नहीं
था। प्रभु उनकी धार्मिकता को भी मानता था; किन्तु उसने
यह भी बताया था कि परमेश्वर के सम्मुख उनके स्वीकार्य होने के लिए उनकी यह
धार्मिकता अपर्याप्त है “क्योंकि मैं तुम से कहता
हूं, कि यदि तुम्हारी धामिर्कता शास्त्रियों और
फरीसियों की धामिर्कता से बढ़कर न हो, तो तुम स्वर्ग के
राज्य में कभी प्रवेश करने न पाओगे” (मत्ती 5:20)। नीकुदेमुस फरीसियों में अपने ओहदे और साख को भी बनाए रखना चाहता था,
और अपने मन की दुविधा का समाधान भी प्रभु से चाहता था। इसलिए
वह सब की नज़रों से बचता हुआ, प्रभु से मिलने के लिए रात
में आया (पद 2)।
- पद 2 हमें यह भी दिखाता है कि
फरीसियों का वह सरदार प्रभु यीशु का बहुत आदर करता था - उस धर्म गुरुओं के
अगुवे ने प्रभु यीशु को “हे रब्बी” अर्थात “हे गुरु” कहकर
संबोधित किया। साथ ही उसने यह भी स्वीकार किया कि:
- प्रभु यीशु परमेश्वर की ओर से गुरु होकर आया है;
- परमेश्वर प्रभु यीशु के साथ है;
- यह बात उन चिह्नों से प्रमाणित हो जाती है जो प्रभु यीशु करता था।
कुल मिलाकर, प्रभु यीशु के प्रति
नीकुदेमुस के मन और व्यवहार में बहुत आदर और भक्ति का भाव था। इसी कारण वह प्रभु
के पास अपनी समस्या के समाधान के लिए आया था - अपने सारे ज्ञान, समझ, ओहदे, और दूसरों को
परमेश्वर के वचन की शिक्षा देने वाला होने के बावजूद, उसका
मन शान्त नहीं था; उसे यह निश्चय नहीं था कि वह परमेश्वर के
राज्य में प्रवेश करने भी पाएगा या नहीं। वह प्रभु से इसका समाधान जानना चाहता था।
- पद 3 में प्रभु यीशु उससे और कोई बात
करने के स्थान पर, सीधे उसके मन की बेचैनी को संबोधित
करता है। प्रभु उस धर्म-गुरु को, जो प्रभु यीशु का भी
बहुत आदर करता था, स्पष्ट शब्दों में कह देता है,
“मैं तुझ से सच सच कहता हूं, यदि
कोई नये सिरे से न जन्मे तो परमेश्वर का राज्य देख नहीं सकता”
- अर्थात, उसकी धार्मिकता, परमेश्वर के वचन का ज्ञान और समझ, धार्मिक
समुदाय में उसका ओहदा, प्रभु यीशु मसीह के प्रति उसका
आदर - न तो इनमें से कुछ भी, और न ही ये सब मिलाकर भी,
उसके मन की समस्या का समाधान थे। बिना नया जन्म पाए वह
परमेश्वर के राज्य को देख भी नहीं सकता था!
- पद 4, 5 - नीकुदेमुस प्रभु के
प्रत्युत्तर से हक्का-बक्का रह गया। उसके विचारों में “जन्म”
का एक ही अर्थ था, और वह उसी के अनुसार
प्रभु से प्रश्न करता है, उससे जानना चाहता है कि
दोबारा जन्म लेना कैसे संभव हो सकता है? तब प्रभु यीशु
उसे “नया जन्म” का अभिप्राय बताता
है - नीकुदेमुस जिस जन्म की बात कर रहा था वह शारीरिक जन्म था; प्रभु जिस नए जन्म की बात कह रहा था, वह जल और
परमेश्वर के आत्मा द्वारा आत्मिक जन्म था, जो व्यक्ति
को स्वेच्छा से, अपने निर्णय के साथ लेना होता है।
शारीरिक जन्म स्वाभाविक जन्म है जो मनुष्य शरीर की रीति के अनुसार लेता है;
नया जन्म आत्मिक जन्म है जिसके लिए मनुष्य को समझ-बूझ के साथ
व्यक्तिगत निर्णय लेना होता है। साथ ही प्रभु यीशु ने यह भी कहा, जब तक कोई नया जन्म न ले “वह परमेश्वर के
राज्य में प्रवेश नहीं कर सकता।” लगभग एक ही साथ प्रभु ने दो बार, व्यक्ति के
परमेश्वर के राज्य के लिए योग्य गिने जाने के लिए, नए
जन्म की अनिवार्यता को कहा। और वह भी एक उच्च धार्मिक अगुवे से जो परमेश्वर
के वचन को अच्छे से जानता था, प्रभु का आदर करता था।
- पद 6, 7 - फिर प्रभु नीकुदेमुस को
शारीरिक और नए जन्म के प्रभाव को समझाता है - नया जन्म व्यक्ति का शारीरिक से
आत्मिक जन्म है; अविनाशी आत्मा का मरनहार शरीर को छोड़
कर अनन्तकालीन आत्मिक स्थान में परमेश्वर के साथ रहने के लिए तैयार होने का
आरंभ। और अब तीसरी बार प्रभु उससे नया जन्म लेने की अनिवार्यता को कहता है।
यही दिखाता है कि प्रभु की दृष्टि में यह नया जन्म कितना महत्वपूर्ण और
आवश्यक है; हर एक के लिए अनिवार्य है।
- पद 8 - प्रभु फिर नया जन्म पा लेने
की पहचान एक सांसारिक उदाहरण से देता है - हवा का प्रवाह। हवा दिखती नहीं है,
किन्तु उसकी उपस्थिति उसके प्रवाह, उसके
प्रवाह से उत्पन्न ध्वनि, और उसके प्रभावों से पता चल
जाती है, प्रमाणित हो जाती है। इसी प्रकार जिसने नया जन्म
पाया है, जो परमेश्वर के आत्मा और जल से जन्मा है,
उसके जीवन में आए हुए परिवर्तन, उसके
कार्य, उसके शब्द, बता देते हैं
कि उसने नया जन्म पा लिया।
- पद 9, 10 - नीकुदेमुस अभी भी असमंजस
में है, उसका मन और मस्तिष्क इस अद्भुत और महान तथ्य को
ग्रहण नहीं कर पा रहा है, वह फिर इन बातों के प्रति
अपने अविश्वास को व्यक्त करता है। तब प्रत्युत्तर में प्रभु उससे एक और उसे
हिला देने वाली बात कहता है “तू इस्राएलियों का गुरु
हो कर भी क्या इन बातों को नहीं समझता?” अर्थात,
“मैं जो तुझ से कह रहा हूँ, वह कोई नई
बात नहीं है; वचन में विद्यमान शिक्षा, जिसका तू ज्ञाता और शिक्षक है, उसी को व्यक्त
कर रहा हूँ। इसलिए, इस्राएलियों का गुरु होने के नाते,
तुझे तो यह बात तुरंत समझ आ जानी चाहिए।” प्रभु यीशु नीकुदेमुस से उस समय उपलब्ध परमेश्वर के वचन, जो वर्तमान बाइबल का पुराना नियम है, उसमें
लिखी हुई परमेश्वर के साथ संगति कर पाने के योग्य होने की बात (भजन 15;
51:6, 10; 73:1; आदि) कर रहा था। पुराने नियम की उन शिक्षाओं
का सार था परमेश्वर के साथ धार्मिक क्रियाओं और अनुष्ठानों को करने वाले नहीं,
वरन केवल शुद्ध मन वाले ही रह सकते हैं। परमेश्वर ने
यशायाह 1:1-20 में धार्मिक विधियों को मनाते रहने वाले
किन्तु मन और व्यवहार में सांसारिक तथा दुराचारी इस्राएलियों की इस “भक्ति” को अस्वीकार कर दिया; मलाकी 1:10 में ऐसे “धर्म”
का निर्वाह करते हुए भी परमेश्वर के विमुख चलने वाले लोगों के
लिए परमेश्वर ने कहा, “भला होता कि तुम में से कोई
मन्दिर के किवाड़ों को बन्द करता कि तुम मेरी वेदी पर व्यर्थ आग जलाने न
पाते! सेनाओं के यहोवा का यह वचन है, मैं तुम से कदापि
प्रसन्न नहीं हूं, और न तुम्हारे हाथ से भेंट ग्रहण
करूंगा।” नीकुदेमुस से प्रभु
यही बात “नया जन्म” लेने के नाम
से दोहरा रहा था - जब तक व्यक्ति मन की शुद्धता और समर्पण के साथ परमेश्वर के
पास नहीं आएगा, वह परमेश्वर के राज्य में कदापि प्रवेश
न करेगा; चाहे वह कितना ही विद्वान, वचन का ज्ञाता और शिक्षक, और धार्मिक
क्रिया-कलापों तथा अनुष्ठानों को पूरा करने वाला क्यों न हो, लोगों में कैसा भी ओहदा और सम्मानजनक स्थान क्यों न रखता हो।
नीकुदेमुस के साथ प्रभु के
वार्तालाप से प्रत्येक व्यक्ति के लिए परमेश्वर के राज्य में प्रवेश करने के लिए
धर्म के निर्वाह और वचन का ज्ञाता होने के स्थान पर प्रभु के प्रति सच्चे मन से
पूर्णतः समर्पित, तथा उसका आज्ञाकारी शिष्य होने की
अनिवार्यता की शिक्षा हमें मिलती है। आज प्रभु यीशु की अपने शिष्यों तथा सभी लोगों
के लिए यही शिक्षा है “अचम्भा न कर, कि मैं ने तुझ से कहा; कि तुम्हें नये सिरे से
जन्म लेना अवश्य है” (यूहन्ना 3:7)। संभव है कि आप नीकुदेमुस के समान बहुत धर्मी, बाइबल
के विद्वान और ज्ञाता, तथा शिक्षक हों, अपनी इस “धार्मिकता” के कारण
समाज और अपने समुदाय में बहुत नाम और स्थान रखते हों, किन्तु
नीकुदेमुस के समान ही प्रभु के कहे के अनुसार, आपको भी
“नया जन्म” लेना अनिवार्य है; बिना ऐसा किए आप परमेश्वर के राज्य में प्रवेश नहीं कर सकेंगे। और यदि यह
नया जन्म पाना नीकुदेमुस जैसे धर्मी व्यक्ति के लिए अनिवार्य था, तो फिर किसी अन्य
“सामान्य” धर्मी व्यक्ति के लिए और कितना आवश्यक तथा अनिवार्य है।
अपने अनन्तकाल को दांव पर मत लगाइए, जोखिम मत उठाइए।
स्वेच्छा, तथा सच्चे और समर्पित मन से पश्चाताप की एक छोटी
प्रार्थना आपके लिए स्वर्ग के वे द्वार खोल देगी, जो आपकी
अपनी “धार्मिकता” और धार्मिक
रीति-रिवाज़ों का निर्वाह करना नहीं खोल सका है। अभी अवसर है, अभी प्रभु से कुछ इस प्रकार से प्रार्थना कीजिए “हे
प्रभु यीशु मैं स्वीकार करता हूँ कि मैं पापी हूँ और आपकी अनाज्ञाकारिता करता रहता
हूँ। मैं स्वीकार करता हूँ कि आपने मेरे पापों को अपने ऊपर लेकर, मेरे बदले में उनके दण्ड को कलवरी के क्रूस पर सहा, और
मेरे लिए अपने आप को बलिदान किया। आप मेरे लिए मारे गए, गाड़े
गए, और मेरे उद्धार के लिए तीसरे दिन जी उठे। कृपया मुझ पर
दया करके मेरे पापों को क्षमा कर दीजिए, मुझे अपनी शरण में
ले लीजिए, अपना आज्ञाकारी शिष्य बनाकर, अपने साथ कर लीजिए।” इसके विषय अंतिम निर्णय आपका
है।
बाइबल पाठ: 1 शमूएल 15:22-23; व्यवस्थाविवरण 8:20; लूका 16:10
1 शमूएल
15:22 शमूएल ने कहा, क्या यहोवा
होमबलियों, और मेलबलियों से उतना प्रसन्न होता है, जितना कि अपनी बात के माने जाने से प्रसन्न होता है? सुन मानना तो बलि चढ़ाने और कान लगाना मेढ़ों की चर्बी से उत्तम है।
1 शमूएल
15:23 देख बलवा करना और भावी कहने वालों से पूछना एक ही समान
पाप है, और हठ करना मूरतों और गृह-देवताओं की पूजा के तुल्य
है। तू ने जो यहोवा की बात को तुच्छ जाना, इसलिये उसने तुझे
राजा होने के लिये तुच्छ जाना है।
व्यवस्थाविवरण 8:20 जिन जातियों को यहोवा
तुम्हारे सम्मुख से नष्ट करने पर है, उन्हीं के समान तुम भी
अपने परमेश्वर यहोवा का वचन न मानने के कारण नष्ट हो जाओगे।
लूका 16:10 जो थोड़े से थोड़े में
सच्चा है, वह बहुत में भी सच्चा है: और जो थोड़े से थोड़े में
अधर्मी है, वह बहुत में भी अधर्मी है।
एक साल में बाइबल:
· भजन 143-145
· 1 कुरिन्थियों 14:21-40