ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

रविवार, 2 जनवरी 2011

विश्वास का आधार

पत्रकार सिडनी जे. हैरिस कहते हैं: " ’मान लीजिए आप वर्तमान के ज्ञान के साथ समय में पीछे जाकर एक मध्यकालीन सन्यासी से कहें कि इस सृष्टि में करोड़ों नक्षत्रसमूह (galaxies) हैं, प्रत्येक नक्षत्रसमूह करोड़ों नक्षत्रों से मिल कर बना है और करोड़ों मील के आकार का है, और प्रत्येक नक्षत्रसमूह एक दूसरे से तीव्र गति से दूर होता जा रहा है; हर समूह जितना दूर होता जाता है, उतनी उसकी गति बढ़ती जाती है।’ आपसे वर्तमान का यह ज्ञान सुनकर वह मध्यकालीन सन्यासी, अपने संसामयिक ज्ञान के संदर्भ में, क्या आपको पागल नहीं समझेगा?"

जो बात श्रीमान हैरिस उजागर करना मांग रहे हैं वह यह है: आप जिस भी मत को माने - चाहे परंपरागत धार्मिक मत को अथवा प्रचलित वैज्ञानिक मत को, बिना ’विश्वास’ को आधार बनाए आप किसी को भी स्वीकार नहीं कर सकते। उनका निष्कर्ष है कि जिस व्यक्ति को "ब्लैक होल" के अस्तित्व को स्वीकार करने में कोई आपत्ति नहीं है, उसे "स्वर्ग" के अस्तित्व को स्वीकर करने में भी कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिये - दोनो के अस्तित्व की स्वीकृति केवल ’विश्वास’ पर है।

कुछ लोग हमें मूर्ख समझते हैं क्योंकि हम बाइबल में उत्पति की पुस्तक में वर्णित सृष्टि की रचना के इतिहास को सत्य मानते हैं, उसपर विश्वास करते हैं। किंतु वे भी जिन बातों को मानते हैं, उनको अपने विश्वास के आधार पर ही मानते हैं; फर्क केवल इतना है कि उनका विश्वास सीमित अवलोकनों और ऐसे निष्कर्षों पर आधारित है जो गलत भी हो सकते हैं - और विज्ञान के कई सिद्धांत और निष्कर्ष गलत प्रमाणित होकर बदले गए हैं, जबकि हमारा विश्वास परमेश्वर के कभी न झुठलाए जाने और कभी न बदलने वाले अटल वचन पर आधारित है - आज तक बाइबल की एक भी बात, अनेक प्रयासों के बावजूद, गलत प्रमाणित नहीं हुई है।

इस कारण जो परमेश्वर के अस्तित्व से इन्कार करके, विज्ञान को अपने विश्वास का आधार बनाते हैं वे घाटे में हैं क्योंकि उनके विश्वास का आधार नई खोजों के साथ बदल भी सकता है और जो आज सत्य माना जाता है, कल वो उसी विज्ञान के आधार पर असत्य भी घोषित हो सकता है।

परन्तु हम मसीही विश्वासियों के लिये ऐसी कोई अनिश्चितता नहीं है, हमारा विश्वास सृष्टि के सृष्टिकर्ता के अटल वचन पर आधारित है। परमेश्वर का वचन हमें सच्चा ज्ञान और समझ देता है और उसपर विश्वास करना हमारे लिये लज्जा की नहीं गर्व की बात है। - रिचर्ड डी हॉन


सृष्टि को हमने जितना जटिल जाना है, वह उससे कहीं कहीं अधिक जटिल है।

आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की। - उतपत्ति १:१


बाइबल पाठ: इब्रानियों ११:१-६

अब विश्वास आशा की हुई वस्‍तुओं का निश्‍चय, और अनदेखी वस्‍तुओं का प्रमाण है।
क्‍योंकि इसी के विषय में प्राचीनों की अच्‍छी गवाही दी गई।
विश्वास ही से हम जान जाते हैं, कि सारी सृष्‍टि की रचना परमेश्वर के वचन के द्वारा हुई है। यह नहीं, कि जो कुछ देखने में आता है, वह देखी हुई वस्‍तुओं से बना हो।
विश्वास ही से हाबिल ने कैन से उत्तम बलिदान परमेश्वर के लिये चढ़ाया और उसी के द्वारा उसके धर्मी होने की गवाही भी दी गई: क्‍योंकि परमेश्वर ने उस की भेंटों के विषय में गवाही दी और उसी के द्वारा वह मरने पर भी अब तक बातें करता है।
विश्वास ही से हनोक उठा लिया गया, कि मृत्यु को न देखे, और उसका पता नहीं मिला; क्‍योंकि परमेश्वर ने उसे उठा लिया था, और उसके उठाए जाने से पहिले उस की यह गवाही दी गई थी, कि उस ने परमेश्वर को प्रसन्न किया है।
और विश्वास बिना उसे प्रसन्न करना अनहोना है, क्‍योंकि परमेश्वर के पास आने वाले को विश्वास करना चाहिए, कि वह है, और अपके खोजने वालों को प्रतिफल देता है।

एक साल में बाइबल:
  • उत्पत्ति ४-६
  • मत्ती २