पिछले लेखों में हमने देखा है कि प्रभु ने अपनी कलीसिया और अपने विश्वासियों की आत्मिक उन्नति के लिए उन में विभिन्न प्रकार की वचन की सेवकाई करने वालों को नियुक्त किया है (इफिसियों 4:11-12)। इन सेवकों की सेवकाई से होने वाली उन्नति और परिपक्वता की चरम सीमा है सभी मसीही विश्वासियों और पृथ्वी की सभी स्थानीय कलीसियाओं का इफिसियों 4:13 के अनुरूप हो जाना; इस 13 पद के संदर्भ में, जैसा हम पहले 9 फरवरी के लेख में देख चुके हैं, यहाँ मूल यूनानी भाषा के जिस शब्द का अनुवाद “सिद्ध” किया गया है, उसका शब्दार्थ होता है “पूर्णतः सुसज्जित” होना, अर्थात किसी भी कार्य या ज़िम्मेदारी के निर्वाह के लिए पूरी तरह से तैयार और आवश्यक संसाधनों एवं उपकरणों तथा समझ-बूझ से लैस होना।
फिर हमने इफिसियों 4:14 से बालकों के समान अपरिपक्व मसीही विश्वासियों की पहचान देखी थी कि वे बहुत सरलता से शैतान द्वारा मनुष्यों में होकर प्रयोग की जाने वाली ठग-विद्या का शिकार हो जाते हैं; भ्रम की युक्तियों में फंस जाते हैं; और भ्रामक शिक्षाओं द्वारा बहकाए तथा गलत बातों में भटकाए जाते हैं। इस संदर्भ में हमने देखा है कि इन भ्रामक शिक्षाओं को शैतान और उस के दूत झूठे प्रेरित, धर्म के सेवक, और ज्योतिर्मय स्वर्गदूतों का रूप धारण कर के बताते और सिखाते हैं (2 कुरिन्थियों 11:13-15)। ये लोग, और उनकी शिक्षाएं, दोनों ही बहुत आकर्षक, रोचक, और ज्ञानवान, यहाँ तक कि भक्तिपूर्ण और श्रद्धापूर्ण भी प्रतीत हो सकती हैं, किन्तु साथ ही उनमें अवश्य ही बाइबल की बातों के अतिरिक्त भी बातें डली हुई होती हैं, जो उनके गलत और अस्वीकार्य होने तथा उनसे सचेत रहने की प्रमुख पहचान हैं। इन भ्रामक शिक्षाओं और गलत उपदेशों के, मुख्यतः तीन विषय, होते हैं - प्रभु यीशु मसीह, पवित्र आत्मा, और सुसमाचार, जैसा परमेश्वर पवित्र आत्मा ने प्रेरित पौलुस के द्वारा 2 कुरिन्थियों 11:4 में लिखवाया है, “यदि कोई तुम्हारे पास आकर, किसी दूसरे यीशु को प्रचार करे, जिस का प्रचार हम ने नहीं किया: या कोई और आत्मा तुम्हें मिले; जो पहिले न मिला था; या और कोई सुसमाचार जिसे तुम ने पहिले न माना था, तो तुम्हारा सहना ठीक होता।” किन्तु साथ ही इसी पद में सच्चाई को पहचानने और शैतान के झूठ से बचने के लिए एक बहुत महत्वपूर्ण बात भी दी गई है, कि इन तीनों विषयों के बारे में जो यथार्थ और सत्य हैं, वे सब वचन में पहले से ही बता और लिखवा दिए गए हैं। इसलिए बेरिया के विश्वासियों के समान (प्रेरितों 17:11) बाइबल से देखने, जाँचने, तथा वचन के आधार पर शिक्षाओं को परखने के द्वारा सही और गलत की पहचान करना कठिन नहीं है।
फिर हमने इन गलत शिक्षा देने वाले लोगों के द्वारा, इन तीनों विषयों से संबंधित गलत शिक्षाओं और बाइबल की सही शिक्षाओं को देखा था।
हमने पहले तो प्रेरितों के काम में से प्रभु यीशु से संबंधित शिक्षाओं को देखा, वे संक्षेप में यह हैं:
प्रभु यीशु पूर्णतः परमेश्वर और पूर्णतः मनुष्य हैं।
उनके और उनकी सेवकाई के विषय पुराने नियम की सभी पुस्तकों में पहले से लिखा गया है।
प्रभु यीशु कलवरी के क्रूस पर मारे गए, गाड़े गए, और तीसरे दिन मृतकों में से जी भी उठे।
उद्धार केवल प्रभु यीशु मसीह के द्वारा है, अन्य किसी के द्वारा नहीं।
प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास लाने वालों के जीवन बदल जाते हैं, वे निडर और परमेश्वर के प्रभावी जन बन जाते हैं, उन में होकर परमेश्वर अपनी अद्भुत सामर्थ्य संसार पर प्रकट करता है।
जगत के अन्त के समय, प्रभु यीशु ही के द्वारा सभी का न्याय किया जाएगा, और उन्हें उनके जीवन और कार्यों के अनुसार प्रतिफल अथवा दण्ड दिए जाएंगे।
यद्यपि प्रभु यीशु के विषय यह सूची अंतिम या पूर्ण नहीं है, किन्तु प्रभु यीशु के विषय जिस भी प्रचार में ये बातें नहीं हैं, या इन बातों को बदलकर बताया जाता है, वह प्रचार गलत है, झूठा है, अस्वीकार्य है।
फिर उसके बाद, परमेश्वर पवित्र आत्मा से संबंधित सही शिक्षाओं को तथा सामान्यतः बताई और सिखाई जाने वाली गलत शिक्षाओं की वास्तविकता को वचन की बातों से विस्तार से देखा; जो संक्षेप में ये हैं:
यह बाइबल का तथ्य है कि किसी भी व्यक्ति के पापों से पश्चाताप करके प्रभु यीशु को अपना उद्धारकर्ता ग्रहण करते ही, तुरंत और उसी क्षण से परमेश्वर पवित्र आत्मा उसमें आकर निवास करने लगता है। इसके बाद पवित्र आत्मा उस व्यक्ति में से कभी नहीं जाता है, सर्वदा उसके साथ बना रहता है। इसलिए पवित्र आत्मा को प्राप्त करने के लिए किसी को भी कोई भी अलग से प्रयास या प्रार्थना करने की कोई आवश्यकता नहीं है; ऐसा करना व्यर्थ है, वचन के अनुसार नहीं है।
बाइबल यह भी सिखाती है कि पवित्र आत्मा से भर जाना, और पवित्र आत्मा से (“का” नहीं “से”) बपतिस्मा, मसीही विश्वास में आने के समय पवित्र आत्मा प्राप्त करने की ही अभिव्यक्तियाँ हैं, कोई अतिरिक्त या “दूसरा” अनुभव नहीं। पवित्र आत्मा कोई वस्तु नहीं है जो टुकड़ों में या अंश-अंश कर के दी जा सके, वह परमेश्वर है, और एक व्यक्ति के समान जब भी जहाँ भी होगा अपनी संपूर्णता में, अपनी पूरी सामर्थ्य के साथ होगा; अभी कुछ कम और बाद में और अधिक नहीं मिलेगा।
प्रेरितों 2 अध्याय में जिन अन्य भाषाओं के बोलने का उल्लेख हुआ है वे पृथ्वी के ही अन्य स्थानों की भाषाएं और बोलियाँ थीं, कोई अलौकिक भाषाएं नहीं। मुँह से निरर्थक उच्चारण और आवाज़ें निकालने के द्वारा “अन्य-भाषाएं” बोलने का दावा करना बाइबल के अनुसार गलत है।
बाइबल बिलकुल स्पष्ट सिखाती है कि “अन्य-भाषाएं” बोलना पवित्र आत्मा प्राप्त करने का प्रमाण नहीं है, और न ही उद्धार पाने का प्रमाण है।
बाइबल में कहीं इस बात का कोई संकेत अथवा प्रमाण है कि ये निरर्थक “अन्य-भाषाएं” प्रार्थना की भाषाएं हैं, इनमें की गई प्रार्थना अधिक प्रभावी होती है, या शैतान से प्रार्थना गुप्त रखने के लिए इनका प्रयोग आवश्यक है। ये सभी बाइबल से बाहर की शिक्षाएं हैं, गलत हैं।
“अन्य-भाषा” में बोलना परमेश्वर से बोलना नहीं है; यह दावा करना भी गलत शिक्षा है; एक ही पद को उसके संदर्भ और सही अर्थ के बाहर लेकर उसकी गलत व्याख्या करने के कारण है।
पवित्र आत्मा की निन्दा का पाप वह नहीं है जो आम तौर से ये गलत शिक्षाएं देने वाले बताते हैं। पवित्र आत्मा के बारे में प्रश्न करना, जिज्ञासा रखना, और जानकारी प्राप्त करने की इच्छा रखना, आदि वो क्षमा न होने वाले पाप नहीं हैं, जैसा गलत शिक्षाओं में दावा किया जाता है। वास्तव में यह निन्दा और क्षमा न किया जाने वाला पाप, प्रभु यीशु की ईश्वरीय वास्तविकता को जानते हुए भी उसे शैतान की सामर्थ्य से कार्य करने वाला मनुष्य कहकर, जान-बूझकर उसे बदनाम करना, उसके विषय लोगों को भरमाना, और उसके विषय झूठा प्रचार करना है।
और अन्त में हमने सुसमाचार से संबंधित शिक्षाओं के बारे में देखा, जिससे कि हम सही सुसमाचार क्या है देख और समझ सकें और गलत या भ्रष्ट को पहचान सकें, ताकि स्वयं भी गलत से बच कर रह सकें तथा औरों को भी बचा सकें। संक्षेप में ये शिक्षाएं है:
सुसमाचार के संदर्भ में हमने पहले तो सुसमाचार के विषय भ्रम और गलत शिक्षाओं को पहचानने के आधार को देखा;
फिर हमने सच्चे और उद्धार देने वाले सुसमाचार के शैतान द्वारा बिगाड़े जाने, भ्रष्ट किए जाने, और विभिन्न रीतियों से अप्रभावी किए जाने के लिए प्रयोग की जाने वाली आम युक्तियों के बारे में देखा;
फिर हमने गलातीयों 1 और 2 अध्याय से वास्तविक सुसमाचार के 7 गुणों या स्वभाव को देखा,
और उसके बाद असली सुसमाचार के मानने से व्यक्ति के जीवन में होने वाले 7 प्रभावों को देखा जिससे हम असली और नकली सुसमाचार के मध्य पहचान कर सकें।
परमेश्वर पवित्र आत्मा, इफिसियों 4:14 में यह बताने के बाद कि किन बातों से बचकर रहना है, अगले पद इफिसियों 4:15 में बताता है कि किन बातों को करते रहना है, जिन्हें हम अगले लेख में देखेंगे।
यदि आप एक मसीही विश्वासी हैं, तो आपके लिए यह जानना और समझना अति-आवश्यक है कि आप प्रभु यीशु मसीह, परमेश्वर पवित्र आत्मा, तथा संपूर्ण जगत के समस्त लोगों के लिए पापों की क्षमा और उद्धार के सुसमाचार से संबंधित किसी गलत शिक्षाओं अथवा धारणाओं में न पड़े हों। उपरोक्त बातों के अनुसार अपने आप को जाँचने के द्वारा यह सुनिश्चित कर लीजिए कि आपने सच्चे सुसमाचार पर सच्चा विश्वास किया है, और आप सच्चे पश्चाताप और समर्पण तथा सच्चे मन से प्रभु यीशु से पापों की क्षमा के द्वारा परमेश्वर के जन बने हैं, और परमेश्वर पवित्र आत्मा के चलाए चल रहे हैं। लोगों द्वारा कही जाने वाली ही नहीं, वरन वचन में लिखी हुई बातों पर ध्यान दें, और लोगों की बातों को वचन की बातों से मिला कर जाँचें और परखें, यदि सही हों, तब ही उन्हें मानें, अन्यथा अस्वीकार कर दें। न खुद भरमाए जाएं, और न ही आपके द्वारा कोई और भरमाया जाए।
यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।
एक साल में बाइबल पढ़ें:
व्यवस्थाविवरण 17-19
मरकुस 13:1-20