प्रेरित यूहन्ना ने प्रभु यीशु का महिमामय दर्शन पाया जिसमें यूहन्ना ने यीशु को सोने के बने सात दीवटों के मध्य खड़ा देखा। प्रकाशितवाक्य के आरंभ में वर्णित इस दर्शन के महत्व को हम अक्सर समझ नहीं पाते हैं। वे सात दीवट साधारण सजावट के दीवट नहीं थे, वे प्रकाश देने के महत्वपूर्ण स्त्रोत थे। प्रत्येक दीवट एक मण्डली को दर्शाता है, और हर मण्डली को पाप के अन्धकार से भरे संसार में यीशु की ज्योति फैलाने की ज़िम्मेदारी दी गई थी।
उनमें से एक मण्डली थी इफसुस की मण्डली। यूहन्ना को मिले दर्शन में इस मण्डली के कई कार्यों की सराहना की गई है, किंतु फिर भी उस में एक ऐसी कमी थी जिसके कारण प्रभु यीशु उन्हें गंभीर चेतावनी देता है। वह कमी थी कि उन्होंने प्रभु के लिये अपना पहला सा प्रेम छोड़ दिया था (प्रकाशितवाक्य २:४)। उनके जीवन में प्राथमिकता प्रभु की नहीं वरन उन बहुत से "अच्छे कार्यों" की हो गई थी जिन्हें वे "प्रभु के नाम" से कर रहे थे। हम पाप के अंधकार से भरे जिस संसार में रहते हैं, उसकी सर्वप्रथम आवश्यक्ता है प्रभु यीशु की ज्योति - जो संसार हमारे जीवन में देख सके। कहीं हम भी इफिसियों की मण्डली की गलती को न दोहराने लगें और संसार हमारे जीवनों में प्रभु की ज्योति को नहीं वरन केवल "भले कार्यों" को ही देखने पाये।
हमें पता भी नहीं चलता और अनायास ही कई बातें हमारे जीवन में यीशु की प्राथमिक्ता का स्थान ले लेती हैं, और हम सिर्फ "मण्डली के कार्य" करने वाले होकर रह जाते हैं। इसका परिणाम होता है कि हम संसार के समक्ष यीशु का और अपनी मसीही गवाही का प्रभाव नहीं रख पाते। यीशु ने चेतावनी दी "सो चेत कर, कि तू कहां से गिरा है, और मन फिरा और पहिले के समान काम कर; और यदि तू मन न फिराएगा, तो मै तेरे पास आकर तेरी दीवट को उस स्थान से हटा दूंगा" (प्रकाशितवाक्य २:५)। हम यह नहीं होने दे सकते।
यीशु को अपने जीवन में प्रथम रखिये तब ही उसकी ज्योति आपके जीवन में होकर इस अन्धेरे संसार में चमकेगी। - जो स्टोवैल
मन फिरा और पहिले के समान काम कर; और यदि तू मन न फिराएगा, तो मै तेरे पास आकर तेरी दीवट को उस स्थान से हटा दूंगा। - प्रकाशितवाक्य २:५
एक साल में बाइबल:
उनमें से एक मण्डली थी इफसुस की मण्डली। यूहन्ना को मिले दर्शन में इस मण्डली के कई कार्यों की सराहना की गई है, किंतु फिर भी उस में एक ऐसी कमी थी जिसके कारण प्रभु यीशु उन्हें गंभीर चेतावनी देता है। वह कमी थी कि उन्होंने प्रभु के लिये अपना पहला सा प्रेम छोड़ दिया था (प्रकाशितवाक्य २:४)। उनके जीवन में प्राथमिकता प्रभु की नहीं वरन उन बहुत से "अच्छे कार्यों" की हो गई थी जिन्हें वे "प्रभु के नाम" से कर रहे थे। हम पाप के अंधकार से भरे जिस संसार में रहते हैं, उसकी सर्वप्रथम आवश्यक्ता है प्रभु यीशु की ज्योति - जो संसार हमारे जीवन में देख सके। कहीं हम भी इफिसियों की मण्डली की गलती को न दोहराने लगें और संसार हमारे जीवनों में प्रभु की ज्योति को नहीं वरन केवल "भले कार्यों" को ही देखने पाये।
हमें पता भी नहीं चलता और अनायास ही कई बातें हमारे जीवन में यीशु की प्राथमिक्ता का स्थान ले लेती हैं, और हम सिर्फ "मण्डली के कार्य" करने वाले होकर रह जाते हैं। इसका परिणाम होता है कि हम संसार के समक्ष यीशु का और अपनी मसीही गवाही का प्रभाव नहीं रख पाते। यीशु ने चेतावनी दी "सो चेत कर, कि तू कहां से गिरा है, और मन फिरा और पहिले के समान काम कर; और यदि तू मन न फिराएगा, तो मै तेरे पास आकर तेरी दीवट को उस स्थान से हटा दूंगा" (प्रकाशितवाक्य २:५)। हम यह नहीं होने दे सकते।
यीशु को अपने जीवन में प्रथम रखिये तब ही उसकी ज्योति आपके जीवन में होकर इस अन्धेरे संसार में चमकेगी। - जो स्टोवैल
संसार के अंधकार में वे कार्य ही सबसे अधिक प्रकाशमान होते हैं जो प्रभु यीशु के प्रेम में होकर किये जाएं।
बाइबल पाठ: प्रकाशितवाक्य १:१०-२५मन फिरा और पहिले के समान काम कर; और यदि तू मन न फिराएगा, तो मै तेरे पास आकर तेरी दीवट को उस स्थान से हटा दूंगा। - प्रकाशितवाक्य २:५
एक साल में बाइबल:
- भजन ७-९
- प्रेरितों के काम १८