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सोमवार, 1 जनवरी 2024

Blessed and Successful Life / आशीषित एवं सफल जीवन – 127 – Stewards of The Church / कलीसिया के भण्डारी – 3

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कलीसिया को समझना – 3 – रूपक – 1

 

    परमेश्वर द्वारा प्रत्येक नया-जन्म पाए हुए मसीही विश्वासी को दी गई विभिन्न बातों, और जिनका उसे भण्डारी बनाया गया है, उन में से एक है कि प्रत्येक विश्वासी परमेश्वर की कलीसिया का और उसकी सँतानों के परिवार का एक अंग हैं; परमेश्वर ने उसे अन्य विश्वासियों, वे सँसार में चाहे जहाँ पर भी हों, की संगति भी दी है। सली, प्रत्येक विश्वासी को इस ज़िम्मेदारी, इस भण्डारीपन के निर्वाह के एहसास के साथ जीवन जीना और कार्य करना चाहिए। आज सामान्यतः “कलीसिया” शब्द से लोग एक विशेष भवन या इमारत या बिल्डिंग की कल्पना करते हैं, जहाँ पर ईसाई या मसीही धर्म को मानने वाले अपनी पूजा-अर्चना, आराधना, रीति-रिवाजों के पालन, आदि के लिए एकत्रित होते हैं। और साथ ही इस सामान्य धारणा के अनुसार उनके ध्यान में उस विशेष भवन या इमारत या बिल्डिंग का एक विशिष्ट स्वरूप भी आ जाता है। किन्तु, जैसा हमने देखा है, मूल यूनानी भाषा के जिस शब्द का अनुवाद ‘कलीसिया’ या मण्डली किया गया है, वह है “ekklesia, एक्कलेसिया” जिसका शब्दार्थ होता है, “व्यक्तियों का एकत्रित होना”, या “व्यक्तियों का समूह” या “व्यक्तियों की सभा”; और प्रेरितों 19:32, 39 में “ekklesia, एक्कलेसिया” शब्द का अनुवाद “सभा” किया गया है।


    मसीही विश्वास के प्रारंभिक दिनों में लोग घरों में (रोमियों 16:5; 1 कुरिन्थियों 16:19; कुलुस्सियों 4:15; फिलेमोन 1:2), खुले स्थानों पर, जैसे कि नदी के किनारे (प्रेरितों 16:13), आदि पर आराधना के लिए एकत्रित हुआ करते थे। घरों में आराधना, उपासना के लिए एकत्रित होने की सभा के लिए उपरोक्त सभी हवालों में “ekklesia, एक्कलेसिया” प्रयोग किया गया है। यहाँ पर किसी भी विशिष्ट प्रयोग के लिए किसी वस्तु के द्वारा बनाए गए किसी विशेष भवन या इमारत का कोई अभिप्राय ही नहीं है। इसलिए, जब प्रभु यीशु ने पतरस से वार्तालाप में, मत्ती 16:18 में, इस शब्द का उपयोग किया, तो पतरस ने तथा उसके साथ के अन्य शिष्यों ने भी इसी शब्दार्थ के साथ प्रभु के इस कथन “...मैं अपनी कलीसिया बनाऊंगा” को, उस समय शब्दों के सामान्य उपयोग के अनुसार, कुछ इस प्रकार से समझा होगा, “...और मैं अपने लोगों को एकत्रित करूंगा।” जैसे ही हम “कलीसिया” जब हम शब्द के मूल अर्थ के साथ प्रभु के इस शब्द के उपयोग और अन्य स्थानों पर इस शब्द के उपयोग को देखते हैं, तो स्वतः ही “कलीसिया” शब्द के साथ जुड़ी अनेकों भ्रांतियों और गलत समझ एवं अनुचित शिक्षाओं का आधार समाप्त हो जाता है; उन बातों के मिथ्या एवं व्यर्थ होने की बात प्रकट हो जाती है, जैसे हम आने वाले दिनों के लेखों में देखेंगे।


    इसकी तुलना में, अंग्रेज़ी शब्द Church/चर्च, यूनानी भाषा के शब्द ‘कुरियाकॉन’ से आया है, जिसका अर्थ होता है “उपासना या आराधना का स्थान”; किन्तु नए नियम की मूल यूनानी भाषा का यह शब्द पूरे नए नियम के मूल यूनानी लेखों में कहीं पर भी उपयोग नहीं किया गया है। तो फिर “ekklesia, एक्कलेसिया” के स्थान पर “Church, चर्च” शब्द कैसे आ गया? इसे हम प्रभु यीशु के शिष्यों के समूह को बाइबल में जिन विभिन्न रूपकों या उपनामों से संबोधित किया गया है उसे देखते समय समझेंगे। अभी के लिए हम यही ध्यान रखते हैं कि नए नियम में मसीही विश्वास एवं शिक्षाओं के संदर्भ में, मूल यूनानी भाषा में “ekklesia, एक्कलेसिया” शब्द न तो किसी भौतिक भवन या आराधना स्थल के लिए, और न ही ईसाई लोगों की किसी संस्था के लिए उपयोग किया गया है। वरन, नए नियम में मसीही विश्वास एवं शिक्षाओं के संदर्भ में, यह शब्द प्रभु यीशु मसीह के शिष्यों के समूह या समुदाय के लिए ही विभिन्न अभिप्रायों के साथ उपयोग किया गया है, जिन्हें हम आगे के लेखों में देखेंगे।

    

    बाइबल में कलीसिया के लिए निम्न सात रूपक उपयोग किये गए हैं:

1.   प्रभु का परिवार

2.   परमेश्वर का निवास स्थान या मन्दिर

3.   परमेश्वर का भवन

4.   परमेश्वर की खेती

5.   प्रभु की देह

6.   प्रभु की दुल्हन

7.   परमेश्वर की दाख की बारी


    अगले लेख से, यह सीखने के लिए कि कलीसिया वास्तव में क्या है, हम इन रूपकों पर विचर करना आरंभ करेंगे। यह समझ फिर हमें यह समझने में सहायता करेगी कि परमेश्वर की कलीसिया और उसकी संतानों के साथ संगति के भण्डारी होने के नाते, हमें किस प्रकार से जीवन जीना तथा व्यवहार करना चाहिए।


    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।


 

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English Translation

Understanding the Church – 3 Metaphors – 1

 

    Of the various things that God has given to every Born-Again Christian Believer, and made him a steward of is made him a part of His Church and the family of His children; God has given the Believers the fellowship of other Christian Believers, wherever they may be in the world. Therefore, every Believer has to live and function keeping this responsibility, this stewardship in mind. Today, generally speaking, on hearing the word Church, people often think of either a particular building or a particular physical structure, where the followers of the Christian religion gather for their worship, religious ceremonies, feasts, and festivals etc. Often the concept of this building is also associated with a particular shape of the building as well. But, as we have seen, the word translated as “Church,” in the original Greek language is “ekklesia,” which literally means a “the gathering of people”, or, “an assembly of people;” and in Acts 19:32, 39 the Greek word “ekklesia” has been translated as “assembly.”


    In the initial days of the Christian Faith, people would gather in homes and houses (Romans 16:5; 1 Corinthians 16:19; Colossians 4:15; Philemon 1:2), or, in open places, e.g., a riverside (Acts 16:13), etc. for their worship. In all these instances, the Greek word “ekklesia” has been used to denote the gathering of people for worship. At no place does the use of this word imply or indicate a special building constructed for this purpose. For those initial Christians, the word “ekklesia” simply meant a gathering together for worshipping the Lord God. Therefore, when the Lord Jesus first used this word while talking to Peter in Matthew 16:18, then Peter and the disciples, as in the common usage of these words at that time, would have understood the Lord’s statement “...and I will build my Church,” as something like “... and I will gather my people together.” As soon as we place this original meaning of the word into this statement of the Lord and into the other places where “ekklesia” is used, automatically, the very basis of many false notions and wrong concepts, of many wrong teachings and false doctrines related to the Church gets eliminated, and the vanity, the falsehood of all such contrived, unBiblical teachings becomes apparent, as we will see in the days to come.


    In contrast, it is interesting to note that the English word “Church” has actually come from the Greek word “kuriakon” which literally means “the Lord’s House”, i.e., “a place of worship”; and in the original Greek language texts, this word “kuriakon” has never been used in the whole of the New Testament. Then how did the word “Church” come into use, in place of “ekklesia”? We will see this when we are considering the various metaphors used for the assembly of the Lord’s disciples. For now, we will only keep in mind that in context of the Christian Faith and its teachings, the Greek word ekklesia has never been used for a physical building or place of worship, nor for any organization of Christians. Rather, in the New Testament, in context of the Christian Faith and teachings, through the use of various metaphors, this word has been used with various meanings and implications for a gathering together of the disciples and followers of the Lord Jesus, as we will see in the coming articles.


    The Bible mentions the following seven metaphors for the Church:

1.   The Family of God

2.   The Temple or Dwelling Place of God

3.   The House or Building of God

4.   The Field of God

5.   The Body of Christ

6.   The Bride of Christ

7.   God’s Vineyard


    From the next article, we will start considering each of these metaphors, to learn what the Church actually is, Biblically speaking. This understanding will then help us understand that as stewards of God’s Church and of fellowship with His children, how we need to behave and conduct ourselves.


    If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.


 

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