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गुरुवार, 5 अक्टूबर 2023

Blessed and Successful Life / आशीषित एवं सफल जीवन – 40 – Be Stewards of God’s Word / परमेश्वर के वचन के भण्डारी बनो – 26

परमेश्वर के वचन में फेर-बदल – 11

 

    पिछले कुछ लेखों में, यह दिखाने के लिए कि शैतान किस प्रकार से बाइबल के लेखों को बाइबल के विपरीत तरीके से उपयोग करता है, हम ईसाईयों या मसीहियों में पाई जाने वाली एक बहुत आम धारणा के बारे में देखते आ रहे हैं, कि उद्धार खोया जा सकता है, और उसे कर्मों के द्वारा बना कर रखना होता है; किन्तु बाइबल के अनुसार यह बिलकुल गलत है। यह समझने के लिए कि बाइबल के अनुसार यह गलत क्यों है, हमने पिछले लेखों में बाइबल में से देखा था कि उद्धार या नया-जन्म पाने का क्या अर्थ है, यह पारिवारिक अथवा वंशागत नहीं है, और इसमें किसी भी मनुष्य का कोई भी कार्य या प्रयास कारगर नहीं है, और न ही ये बातें व्यक्ति के उद्धार में कोई योगदान देती हैं। यह पूर्णतः और केवल व्यक्ति के लिए परमेश्वर के अनुग्रह से है जो उस पर व्यक्तिगत रीति से किया जाता है। इसके बाद हमने उद्धार खोए जा सकने के अर्थ और तात्पर्यों को देखा था, और यह भी कि इस धारणा को स्वीकार करना परमेश्वर के बुनियादी गुणों पर हमला करना है, परमेश्वर के परमेश्वर होने पर हमला करना है; और इसलिए पूर्णतः असंगत और अस्वीकार्य है। आज हम निष्कर्षों के साथ इस बात का समापन करेंगे कि शैतान किस प्रकार से बाइबल के लेख और तथ्यों का अनुचित उपयोग लोगों से यह मनवाने के लिए करता है कि उद्धार खोया जा सकता है।


    शैतान द्वारा एक बुनियादी तर्क उपयोग किया जाता है कि यदि उद्धार हमेशा के लिए है, और कभी खोया नहीं जा सकता है, तब तो उद्धार पाए हुए व्यक्ति को पाप करने का ‘लाइसेंस’ मिल गया है, क्योंकि अब वह निश्चिन्त होकर पाप कर सकता है, बिना किसी दुष्परिणाम की चिंता किए, क्योंकि उसका उद्धार तो कभी जाएगा नहीं। लेकिन जैसा हमने पिछले लेख में देखा है, परमेश्वर ने कभी भी कहीं भी यह नहीं कहा है कि उद्धार पाने के बाद मनुष्य अपने कार्यों के लिए कभी जवाबदेह नहीं होगा। पापों के लिए परमेश्वर की क्षमा हमेशा उपलब्ध रहती है, किन्तु साथ ही उसके पथ-भ्रष्ट बच्चों के लिए उसकी ताड़ना भी हमेशा उपलब्ध रहती है। इस बात पर कुछ विस्तार से चर्चा “अनन्त सुरक्षा” लेख में की जा चुकी है और इसे वहाँ से देखा जा सकता है।


    दूसरा तर्क जो शैतान लेकर आता है, वह है कि उद्धार पाने के बाद, अब यह मनुष्य पर अनिवार्य हो जाता है कि अपने इस स्तर को, अच्छा बनकर अपने अच्छे कर्मों से, बना कर रखे। लेकिन बाइबल में यह बात भी कहीं नहीं लिखी गई है; यह भी शैतानी प्रभाव में आकर मनुष्यों की कोरी कल्पना मात्र है। इसके विपरीत, जैसा की हमने पिछले लेख में देखा है, प्रेरित पौलुस और यूहन्ना के उदाहरण बड़े स्पष्ट और बिना किसी असमंजस के साफ़ दिखाते हैं कि परमेश्वर के उद्धार पाए हुए बच्चों को भी परमेश्वर के अनुग्रह और क्षमा की निरंतर आवश्यकता बनी रहती है। शैतान का यह तर्क उसकी एक युक्ति है मनुष्य को “कर्मों द्वारा धर्मी बनने” की व्यर्थ बात में उलझाने और फंसाने के लिए जिससे वह परमेश्वर और उसके वचन के साथ समय नहीं बिता सके, उस से सीख नहीं सके, और फिर उसके लिए सुसमाचार प्रचार का या अन्य कोई कार्य नहीं कर सके, उसके लिए उपयोगी नहीं बन सके।


    तीसरा, यद्यपि वे लोग जो उद्धार खोया जा सकता है के पक्ष में बोलते हैं, वे अपने दावे के समर्थन के लिए बाइबल में से कुछ पद और खण्ड दिखाते हैं। किन्तु यदि उन पदों और खण्डों का उनके सन्दर्भ में तथा बाइबल के अन्य भागों के साथ मिलाकर अध्ययन किया जाए तो यह प्रकट हो जाता है कि उनके तर्क बाइबल के लेखों की गलत व्याख्या और दुरुपयोग हैं। साथ ही, सम्पूर्ण बाइबल में कहीं पर भी किसी के भी द्वारा उद्धार खो देने का कोई भी उदाहरण नहीं है। क्योंकि यह इतना महत्वपूर्ण तर्क है, जो व्यक्ति के अनन्तकाल के भविष्य को ही बदल देता है, इसलिए यही अपेक्षा रखी जाती है कि परमेश्वर इसके बारे में बिलकुल स्पष्ट होगा, कुछ उदाहरणों के द्वारा उसे दिखाएगा और समझाएगा, इस बात को किसी के द्वारा बाइबल के पदों को उनके सन्दर्भ से बाहर लेकर की गई व्याख्या पर नहीं छोड़ देगा। किन्तु उद्धार के खोए जा सकने के तर्क के विपरीत, हम बाइबल में जो देखते हैं वह है कि सम्पूर्ण बाइबल में परमेश्वर बारंबार यह दिखाता और आश्वासन देता आ रहा है कि यद्यपि वह पाप और बुराई को दंड देगा, अपने लोगों, अपने बच्चों की भी ताड़ना करेगा; और यदि आवश्यक हुआ तो बहुत कठोर होकर घोर ताड़ना भी करेगा; किन्तु कभी भी, किसी भी परिस्थिति में, उन्हें जिन्हें उस ने अपना बना लिया है, न तो छोड़ेगा और न त्यागेगा। यद्यपि परमेश्वर के लोग उसे जवाबदेह हैं, और निश्चय ही उन्हें अपने जीवनों का हिसाब उसे देना होगा, ताकि उनके अनुसार अपने प्रतिफल पाएँ; किन्तु वे कभी भी, किसी भी तरीके से, किसी के भी द्वारा, उससे अलग करके ले जाए नहीं जा सकते हैं।


    इसलिए, किसी भी रीति से देखें, उद्धार खोया जा सकता है प्रचार करने और सिखाने की यह शैतानी युक्ति न तो सत्य है और न ही बाइबल के अनुसार है; चाहे इसे सिखाने वाला कोई भी परमेश्वर का प्रतिबद्ध जन, कलीसिया का प्रमुख व्यक्ति या अगुवा, बाइबल के प्रचारकों तथा शिक्षकों आदि में से कोई क्यों न हो। यह इस बात को दिखाता है कि शैतान अपनी दुष्ट चालों को सफल बनाने के लिए परमेश्वर के धर्मी लोगों का भी अधर्मी रीति से, बाइबल के लेखों और तथ्यों का बाइबल के विपरीत रीति से उपयोग कर सकता है और करता भी है, चाहे उसे परमेश्वर के प्रतिबद्ध लोगों, कलीसिया के प्रमुख लोगों तथा अगुवों, बाइबल के प्रचारकों तथा शिक्षकों आदि के द्वारा ही अपना दुष्ट काम क्यों न करवाना पड़े। अगले लेख में हम पवित्र शास्त्र के लेखों में जोड़ने या घटाने के उदाहरणों से बाइबल के लेखों में फेर-बदल के बारे में देखेंगे।


    यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी प्रभु यीशु के पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु, मैं अपने पापों के लिए पश्चातापी हूँ, उनके लिए आप से क्षमा माँगता हूँ। मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मुझे और मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।” सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।


 

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Altering God’s Word – 11

 

    In the last few articles, to illustrate how Satan induces people to use a Biblical text in an unBiblical way, we have been considering about a very commonly seen and accepted notion amongst Christians, that salvation can be lost and it has to be maintained by being good and doing good works; but Biblically it is absolutely incorrect. To understand why Biblically it is wrong, in the preceding articles we have seen from God’s Word the Bible what it means to be saved or Born-Again, that it is not familial, and how no human work or effort of any kind neither is ever involved, nor contributes in any manner to a person’s salvation. It is purely and totally the work of God’s grace towards the person, as an individual. We then saw the meanings and implications of accepting that salvation can be lost, and how accepting this argument hits at the very basic characteristics of God, at God being God; and is therefore absolutely untenable. Today we will conclude on how Satan misuses Biblical facts and texts inappropriately to convince people into believing that accepting the argument of salvation can be lost is logical and acceptable.


    The basic argument used by Satan is that if salvation is eternal, and can never be lost, then the saved person has now got a ‘license to sin’, since he can sin with impunity, with no fear of any consequences, since his salvation will never be lost. But as we have seen in the previous article, God has nowhere ever said that after salvation man will never be accountable for his deeds. God’s forgiveness for sins is always available, but so is His chastisement for His wayward children. This has been dealt with in some detail in an earlier article on “Eternal Security”, and can be seen from there.


    The second argument that Satan brings is that once being saved, it is now binding upon man that he should maintain this status by being good and doing good. But the Bible does not say this anywhere, it is a figment of man’s imagination under satanic influences. On the contrary, as we have seen in the previous article, the examples of the Apostles Paul and John show very clearly and unambiguously that even the saved children of God continually need God’s grace and forgiveness for their sins. This is just another of Satan’s ploys to drive man into getting entangled in the vanity of “righteousness by works”, instead of spending time with God, His Word, learning from Him, and then working for Him to spread the gospel or in some other manner, and being fruitful for Him.


    Thirdly, although those who argue in favor of salvation can be lost, do show some Biblical verses to substantiate their claims. But if these verses are studied in their context and along with other relevant Bible passages, it becomes clear that their argument is a misinterpretation and misuse of Biblical text. Moreover, there is no example in the whole of the Bible of any one ever losing their salvation. Since this is such a crucial argument, that entirely changes one’s eternal future, it is only to be expected that God would be clearer about this, see to it that there is no ambiguity about it, and illustrate it through some examples, instead of leaving it on someone’s interpretation of some Biblical verses taken out of context. But, on the contrary what we see is that God keeps assuring and illustrating throughout the Bible, that though He will punish sin and iniquity, chastise even in His people, His children; and if required do this with considerable severity; but He will never, under any circumstance, leave nor forsake those whom He has accepted as His own. Though God’s people are accountable to Him and will surely have to give an account of their lives to Him, and receive their rewards accordingly; but they can never, by any means, ever be taken away from Him by anyone.


    Hence, whichever way we look at it, this satanic ploy of preaching and teaching that salvation can be lost is just not true, not Biblical; no matter which God’s committed Believer, Church leader or elder, Bible preacher or teacher may say it. It shows how Satan can misuse God’s people in an ungodly way, and Biblical texts and facts in an unBiblical way, to suit his nefarious purposes; even by getting it done by God’s committed Believers, Church leaders and elders, Bible preachers and teachers, etc. In the next article we will look at examples of alteration of Scriptural text from the Bible itself.


    If you have not yet accepted the discipleship of the Lord, make your decision in favor of the Lord Jesus now to ensure your eternal life and heavenly blessings. Where there is obedience to the Lord, where there is respect and obedience to His Word, there is also the blessing and protection of the Lord. Repenting of your sins, and asking the Lord Jesus for forgiveness of your sins, voluntarily and sincerely, surrendering yourself to Him - is the only way to salvation and heavenly life. You only have to say a short but sincere prayer to the Lord Jesus Christ willingly and with a penitent heart, and at the same time completely commit and submit your life to Him. You can also make this prayer and submission in words something like, “Lord Jesus, I am sorry for my sins and repent of them. I thank you for taking my sins upon yourself, paying for them through your life.  Because of them you died on the cross in my place, were buried, and you rose again from the grave on the third day for my salvation, and today you are the living Lord God and have freely provided to me the forgiveness, and redemption from my sins, through faith in you. Please forgive my sins, take me under your care, and make me your disciple. I submit my life into your hands." Your one prayer from a sincere and committed heart will make your present and future life, in this world and in the hereafter, heavenly and blessed for eternity.


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