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सोमवार, 25 अक्टूबर 2021

मसीही विश्वास एवं शिष्यता - 25


मसीही विश्वासी के गुण (1) - प्रभु के वचनों में बना रहता है 

      पिछले लेखों में हमने मरकुस 3:14-15 से प्रभु के अपने शिष्यों के लिए तीन प्रयोजनों को देखा था, कि शिष्य प्रभु के साथ रहें, और जब तथा जहाँ भी प्रभु उन्हें भेजे, वहाँ जाकर वह प्रचार करें जो प्रभु उन्हें करने को कहे। पहला प्रयोजन प्रभु के साथ रहकर उससे सामर्थ्य प्राप्त करने के लिए है; दूसरा उसकी आज्ञाकारिता और उसके प्रति समर्पण में होकर, अपनी नहीं वरन उसकी इच्छा पूरी करने से संबंधित है; और तीसरा  प्रयोजन उस अधिकार के बारे में है, जो अपने साथ रहने वाले, और अपने आज्ञाकारी शिष्यों को प्रभु देता है। प्रभु के प्रत्येक शिष्य के जीवन में, उसकी प्रभावी और सफल मसीही सेवकाई के लिए, ये तीनों प्रयोजन बहुत महत्वपूर्ण, वरन अनिवार्य हैं।

इन प्रयोजनों के अतिरिक्त, सुसमाचारों प्रभु ने सात ऐसे गुणों को भी बताया जो उसके शिष्यों में पाए जाने चाहिएं। इन गुणों का होना ही किसी व्यक्ति के इस दावे की पुष्टि करेगा कि वह वास्तव में प्रभु यीशु मसीह का शिष्य है। आज हम इन सात में से पहले गुण के बारे में देखेंगे:

1. शिष्य प्रभु यीशु मसीह के वचनों में बना रहता है: प्रभु के वचन को जानना या पढ़ना, और उस वचन में बने रहना, दो भिन्न बातें हैं। वचन में बने रहने का अर्थ है कि प्रभु यीशु का सच्चा शिष्य केवल उस के वचनों को पढ़ता, और जानता नहीं है, वरन उन्हें सीखता, समझता है, और साथ ही उनका पालन करता है, उन्हें अपने व्यावहारिक जीवन में दिखाता है; तथा औरों को भी प्रभु के वचन के बारे में बताता और सिखाता है। इस संदर्भ में कुछ पदों को देखिए:

यूहन्ना 8:31 तब यीशु ने उन यहूदियों से जिन्होंने उन की प्रतीति की थी, कहा, यदि तुम मेरे वचन में बने रहोगे, तो सचमुच मेरे चेले ठहरोगे

यूहन्ना 14:15 यदि तुम मुझ से प्रेम रखते हो, तो मेरी आज्ञाओं को मानोगे

यूहन्ना 14:21 जिस के पास मेरी आज्ञा है, और वह उन्हें मानता है, वही मुझ से प्रेम रखता है, और जो मुझ से प्रेम रखता है, उस से मेरा पिता प्रेम रखेगा, और मैं उस से प्रेम रखूंगा, और अपने आप को उस पर प्रगट करूंगा

यूहन्ना 14:23 यीशु ने उसको उत्तर दिया, यदि कोई मुझ से प्रेम रखे, तो वह मेरे वचन को मानेगा, और मेरा पिता उस से प्रेम रखेगा, और हम उसके पास आएंगे, और उसके साथ वास करेंगे

इन पदों से यह स्पष्ट है कि स्वयं प्रभु यीशु मसीह के कहे के अनुसार, उनका सच्चा शिष्य वही है जो उनके वचन को अपने जीवन में प्राथमिक स्थान देता है, उन में बना रहता है, और उसकी बातों का पालन करता है। यदि कोई यह कहता है कि वह प्रभु से प्रेम करता है, तो यह भी इसी से प्रमाणित होता है कि वह प्रभु के वचन से कितना प्रेम करता है। यदि व्यक्ति परमेश्वर के वचन बाइबल से प्रेम नहीं करता है, तो प्रभु द्वारा यूहन्ना 14:21, 23 में कहे के अनुसार, उसका प्रभु से प्रेम करने का दावा अस्वीकार्य है।

प्रभु क्यों चाहता है कि उनके शिष्य उसके वचन में बने रहें? क्योंकि यदि शिष्य प्रभु में बना नहीं रहे, तो फिर वह प्रभु के लिए फलवंत, उपयोगी भी नहीं हो सकता है :तुम मुझ में बने रहो, और मैं तुम में: जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते। मैं दाखलता हूं: तुम डालियां हो; जो मुझ में बना रहता है, और मैं उस में, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग हो कर तुम कुछ भी नहीं कर सकते” (यूहन्ना 15:4-5)। यदि शिष्य प्रभु के लिए फलवंत नहीं है, प्रभु द्वारा अपने शिष्यों को दी गई महान आज्ञा (मत्ती 28:18-20) का पालन नहीं कर रहा है, तो फिर उसकी शिष्यता व्यर्थ है। 

हम कैसे पहचान सकते हैं कि हम प्रभु के वचनों में बने हुए हैं? दो प्रमुख चिह्न हैं जो यह दिखाते हैं कि हम प्रभु के वचन के साथ केवल एक औपचारिकता नहीं निभा रहे हैं, वरन वास्तव में प्रभु के वचन में बने हुए हैं:

पहला चिह्न है, जो प्रभु के वचन में बना रहता है, वह उसका पालन भी करता है, “पर जो कोई उसके वचन पर चले, उस में सचमुच परमेश्वर का प्रेम सिद्ध हुआ है: हमें इसी से मालूम होता है, कि हम उस में हैं” (1 यूहन्ना 2:5); “और जो उस की आज्ञाओं को मानता है, वह उस में, और वह उन में बना रहता है: और इसी से, अर्थात उस आत्मा से जो उसने हमें दिया है, हम जानते हैं, कि वह हम में बना रहता है” (1 यूहन्ना 3:24) 

और दूसरा चिह्न है, कि उस शिष्य का चाल-चलन और व्यवहार प्रभु के समान होता जाता है,  “सो कोई यह कहता है, कि मैं उस में बना रहता हूं, उसे चाहिए कि आप भी वैसा ही चले जैसा वह चलता था” (1 यूहन्ना 2:6); “तुम मेरी सी चाल चलो जैसा मैं मसीह की सी चाल चलता हूं” (1 कुरिन्थियों 11:1)

यदि आप मसीही विश्वासी हैं, अपने आप को प्रभु यीशु मसीह का अनुयायी कहते हैं, तो प्रभु के सच्चे शिष्य की इस पहली पहचान की कसौटी पर आप कहाँ खड़े हैं? प्रभु का वचन आपके जीवन में क्या महत्व रखता है; क्या स्थान पाता है? और यदि आपने प्रभु की शिष्यता को अभी तक स्वीकार नहीं किया है, तो अपने अनन्त जीवन और स्वर्गीय आशीषों को सुनिश्चित करने के लिए अभी उसके पक्ष में अपना निर्णय कर लीजिए। जहाँ प्रभु की आज्ञाकारिता है, उसके वचन की बातों का आदर और पालन है, वहाँ प्रभु की आशीष और सुरक्षा भी है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

 

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यिर्मयाह 6-8     
  • 1 तिमुथियुस 5