ई-मेल संपर्क / E-Mail Contact

इन संदेशों को ई-मेल से प्राप्त करने के लिए अपना ई-मेल पता इस ई-मेल पर भेजें / To Receive these messages by e-mail, please send your e-mail id to: rozkiroti@gmail.com

सोमवार, 18 अक्तूबर 2021

मसीही विश्वास एवं शिष्यता – 18


मसीही विश्वासी के प्रयोजन (2) 

पिछले लेख में हमने देखा था कि परमेश्वर का कोई कार्य कभी निरुद्देश्य नहीं होता है। वह स्वयं कार्यरत है, और अपने अनुयायियों से भी अपेक्षा करता है कि वे उसके लिए कार्यरत रहें। उसने अपने शिष्यों को उद्धार और मसीही विश्वास का जीवन व्यर्थ गँवाने और निठल्ले बैठने, औरों पर निर्भर होकर रहने के लिए नहीं दिया है। वरन, परमेश्वर ने प्रत्येक उद्धार पाए हुए व्यक्ति के लिए कुछ कार्य पहले से निर्धारित किए हैं (इफिसियों 2:10)। वह चाहता है कि प्रत्येक जन अपने उन दायित्वों को पूरे यत्न के साथ पूरा करे, जिसके लिए उसने अपने शिष्यों को उपयुक्त वरदान भी प्रदान किए हैंऔर जब कि उस अनुग्रह के अनुसार जो हमें दिया गया है, हमें भिन्न भिन्न वरदान मिले हैं, तो जिस को भविष्यवाणी का दान मिला हो, वह विश्वास के परिमाण के अनुसार भविष्यवाणी करे। यदि सेवा करने का दान मिला हो, तो सेवा में लगा रहे, यदि कोई सिखाने वाला हो, तो सिखाने में लगा रहे। जो उपदेशक हो, वह उपदेश देने में लगा रहे; दान देनेवाला उदारता से दे, जो अगुआई करे, वह उत्साह से करे, जो दया करे, वह हर्ष से करे” (रोमियों 12:6-8); और प्रभु के लिए कार्यरत रहने में आलसी न हो, “प्रयत्न करने में आलसी न हो; आत्मिक उन्माद में भरो रहो; प्रभु की सेवा करते रहो” (रोमियों 12:11)

हमने मरकुस 3:13-15 यह भी देखा था कि प्रभु ने जब अपने बारह शिष्य, जिन्हें प्रेरित कहा, नियुक्त किए, तो उनके लिए प्रभु के तीन प्रयोजन थे। प्रभु द्वारा दिए गए क्रम के अनुसार इन तीन प्रयोजनों में से पहला था कि वे शिष्य उसके साथ साथ रहें (मरकुस 3:14)। आज हम इस पहले प्रयोजन, प्रभु के साथ रहने, के बारे कुछ विस्तार से देखेंगे, और आते दिनों में शेष प्रयोजनों का अभी अध्ययन करेंगे।

हम पाप और उद्धार से संबंधित लेखों में देख चुके हैं कि पाप के साथ ही मृत्यु ने भी सृष्टि और मानव जीवन में प्रवेश किया। मृत्यु एक ऐसे और स्थाई अलगाव हो जाने को दिखाती है जो मानवीय सामर्थ्य एवं योग्यता से पूर्णतः अपरिवर्तनीय है। यह मृत्यु दो प्रकार से थी - आत्मिक, और शारीरिक। मनुष्य की आत्मिक मृत्यु के कारण वह तुरंत ही परमेश्वर की संगति से दूर हो गया; और शारीरिक मृत्यु के कारण वह मरनहार बन गया। जन्म लेते ही मनुष्य मरना आरंभ कर देता है, और अन्ततः एक समय पर आकर उसका शरीर भी क्षय हो जाता है। प्रभु यीशु ने संसार के सभी लोगों के पापों को अपने ऊपर लेकर, उनकी इस मृत्यु को सभी के लिए सह लिया, और अपने कलवरी के क्रूस पर मारे जाने, गाड़े जाने, और तीसरे दिन मृतकों में से पुनरुत्थान के द्वारा समस्त मानव जाति के हर जन के लिए न केवल पापों की क्षमा और उद्धार का मार्ग बनाकर उपलब्ध करवा दिया वरन उनके लिए मृत्यु को पराजित कर दिया। प्रभु यीशु मसीह पर विश्वास लाते और उसे अपना व्यक्तिगत उद्धारकर्ता ग्रहण करते ही व्यक्ति का परमेश्वर से मेल-मिलाप हो जाता हैक्योंकि बैरी होने की दशा में तो उसके पुत्र की मृत्यु के द्वारा हमारा मेल परमेश्वर के साथ हुआ फिर मेल हो जाने पर उसके जीवन के कारण हम उद्धार क्यों न पाएंगे?” (रोमियों 5:10); अर्थात आत्मिक मृत्यु या परमेश्वर से पृथक हो जाने का निवारण हो जाता है। साथ ही हम मसीही विश्वासियों के लिए परमेश्वर की यह भी प्रतिज्ञा है कि हमारे पुनरुत्थान के समय अथवा प्रभु के दूसरे आगमन के समय हमारे मरनहार शरीर पल भर में प्रभु के अविनाशी शरीर के समान हो जाएंगेदेखे, मैं तुम से भेद की बात कहता हूं: कि हम सब तो नहीं सोएंगे, परन्तु सब बदल जाएंगे। और यह क्षण भर में, पलक मारते ही पिछली तुरही फूंकते ही होगा: क्योंकि तुरही फूंकी जाएगी और मुर्दे अविनाशी दशा में उठाए जाएंगे, और हम बदल जाएंगे” (1 कुरिन्थियों 15:51-52); अर्थात शारीरिक मृत्यु का अभी निवारण तो किया जा चुका है, बस उसका कार्यान्वित किया जाना शेष है, जो प्रभु के निर्धारित समय पर हो जाएगा।

निष्कर्ष यह कि मसीही विश्वास में प्रवेश करते ही, मसीही विश्वासी की परमेश्वर के साथ संगति बहाल हो जाती है। प्रभु की यह कदापि इच्छा नहीं है कि यह संगति फिर से कभी टूटे। इसीलिए वह चाहता है कि उसका प्रत्येक शिष्य, हर अनुयायी उसके साथ ही बना रहे। जब तक हम प्रभु के साथ बने रहेंगे, शैतान द्वारा हानि पहुंचाए जाने से सुरक्षित रहेंगे, क्योंकि शैतान प्रभु द्वारा उसके लोगों के चारों ओर बनाए गए बाड़े को लांघ नहीं सकता है, प्रभु द्वारा निर्धारित सीमा से अधिक प्रभु के जन को छू नहीं सकता हैशैतान ने यहोवा को उत्तर दिया, क्या अय्यूब परमेश्वर का भय बिना लाभ के मानता है? क्या तू ने उसकी, और उसके घर की, और जो कुछ उसका है उसके चारों ओर बाड़ा नहीं बान्धा? तू ने तो उसके काम पर आशीष दी है, ​और उसकी सम्पत्ति देश भर में फैल गई है। परन्तु अब अपना हाथ बढ़ाकर जो कुछ उसका है, उसे छू; तब वह तेरे मुंह पर तेरी निन्दा करेगा। यहोवा ने शैतान से कहा, सुन, जो कुछ उसका है, वह सब तेरे हाथ में है; केवल उसके शरीर पर हाथ न लगाना। तब शैतान यहोवा के सामने से चला गया” (अय्यूब 1:9-12)। किन्तु जो इस बाड़े को लाँघेगा, शैतान उसे डस लेगाजो गड़हा खोदे वह उस में गिरेगा और जो बाड़ा तोड़े उसको सर्प डसेगा” (सभोपदेशक 10:8)। और प्रभु अपने हर जन को शैतान की युक्तियों से सुरक्षित रखना चाहता है। इसीलिए प्रभु चाहता है कि उसके शिष्य उसके साथ ही रहें। इसीलिए प्रभु ने हमें आश्वासन दिया हैतुम किसी ऐसी परीक्षा में नहीं पड़े, जो मनुष्य के सहने से बाहर है: और परमेश्वर सच्चा है: वह तुम्हें सामर्थ्य से बाहर परीक्षा में न पड़ने देगा, वरन परीक्षा के साथ निकास भी करेगा; कि तुम सह सको” (1 कुरिन्थियों 10:13)  

प्रभु के साथ बने रहने के और भी लाभ हैं। प्रभु ने कहा हैहे सब परिश्रम करने वालों और बोझ से दबे लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूंगा। मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो; क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूं: और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे। क्योंकि मेरा जूआ सहज और मेरा बोझ हल्का है” (मत्ती 11:28-30)जुआया yoke वह उपकरण होता है जो किसान दो बैलों के द्वारा खेत जोतने के लिए प्रयोग करते हैं; जिसके अगले सिरे पर दो बैलों को साथ जोता जाता है और पिछला सिरे के निचले भाग में हल होता है और ऊपरी भाग किसान के हाथ में नियंत्रण के लिए रहता है। मत्ती 11:28-30 के इस आह्वान के साथ प्रभु अपने विश्वासी जन के साथ, सांसारिकता के भारी जुए के स्थान पर अपने हल्के जुए में होकर जुतना चाह रहा है कि उसके साथ मिलकर, उसकी सहायता करते हुए उसके जीवन भर चल सके। जो प्रभु के साथ जुता रहेगा, वह प्रभु से जीवन की हर बात के लिए शांति, मार्गदर्शन, समाधान, और सहायता भी पाता रहेगा। समस्या तब ही होगी जब मसीही विश्वासी या तो प्रभु के हलके जुए को उतार कर फिर से सांसारिकता के उस भारी जुए में जाकर जुत जाए, जिसमें प्रभु उसके साथ नहीं जुत सकता है, या फिर प्रभु को साथ लिए बिना अकेला ही जुए में लगकर अपनी ही शक्ति और युक्ति से कार्य करने का प्रयास करे।

इसीलिए प्रभु ने अपने शिष्यों से कहातुम मुझ में बने रहो, और मैं तुम में: जैसे डाली यदि दाखलता में बनी न रहे, तो अपने आप से नहीं फल सकती, वैसे ही तुम भी यदि मुझ में बने न रहो तो नहीं फल सकते। मैं दाखलता हूं: तुम डालियां हो; जो मुझ में बना रहता है, और मैं उस में, वह बहुत फल फलता है, क्योंकि मुझ से अलग हो कर तुम कुछ भी नहीं कर सकते” (यूहन्ना 15:4-5)। जब तक हम प्रभु के साथ जुड़े रहेंगे, प्रभु से जीवनदायक सामर्थ्य, बुद्धि और समझ पाते रहेंगे, और उसके कार्यों को भली-भांति करते रहेंगे। जैसे ही हम अपनी सामर्थ्य, बुद्धि और समझ का सहारा लेंगे, अपनी योग्यता पर भरोसा रखने लगेंगे, प्रभु के कहे के अनुसार नहीं, वरन अपनी समझ और इच्छा अथवा किसी अन्य मनुष्य के कहे के अनुसार करने लगेंगे, तभी हम कठिनाइयों और समस्याओं में पड़ने लगेंगे, और हमें हताशाओं तथा कुंठित होने का सामना करना पड़ेगा। प्रभु की अगुवाई में, इस्राएलियों के लाल समुद्र पार करने के समान (निर्गमन 14 अध्याय), असंभव प्रतीत होने वाली बात भी संभव और सहज हो जाएगी; और बिना प्रभु की अगुवाई तथा सहायता के सरल और साधारण लगने वाली बात भी भारी पराजय बन जाएगी, जैसे यहोशू 7 अध्याय में इस्राएलियों के ऐ नगर में पराजय।

नए अथवा पुराने नियम के किसी भी परमेश्वर के जन या भविष्यद्वक्ता, या प्रेरित के जीवन और कार्यों को देख लें; सभी में आपको यही बात मिलेगी - जब तक वे प्रभु की अगुवाई में, प्रभु के कहे के अनुसार, प्रभु की सामर्थ्य और समझ के सहारे कार्य करते रहे, वे हमेशा ही हर परिस्थिति में हर बात पर जयवंत ही रहे; किन्तु जब भी उन्होंने अपनी या किसी अन्य मनुष्य की इच्छा या सलाह के अनुसार कार्य किया, उन्हें अन्ततः पराजय और समस्याएं ही हाथ लगीं, उनके सभी कार्य, सभी योग्यताएं और युक्तियाँ विफल हो गए, कुछ स्थाई और फलदायी नहीं रहा। प्रभु ने हमारी अगुवाई करते रहने की प्रतिज्ञा की हैमैं तुझे बुद्धि दूंगा, और जिस मार्ग में तुझे चलना होगा उस में तेरी अगुवाई करूंगा; मैं तुझ पर कृपा दृष्टि रखूंगा और सम्मत्ति दिया करूंगा” (भजन 32:8)  इसीलिए प्रभु अपने शिष्यों से चाहता है कि वे सब से पहले उसके साथ बने रहने के पाठ को सीखें, और अपनी समझ का सहारा न लें, तब ही शिष्यों के मार्ग सफल होंगे “तू अपनी समझ का सहारा न लेना, वरन सम्पूर्ण मन से यहोवा पर भरोसा रखना। उसी को स्मरण कर के सब काम करना, तब वह तेरे लिये सीधा मार्ग निकालेगा” (नीतिवचन 3:5-6)। उसके साथ-साथ, धैर्य और विश्वास के साथ चलते रहें - न उससे आगे भागने का प्रयास करें और न आलसी होकर उससे पीछे रह जाएं। प्रभु के लिए उपयोगी और आशीषित होने के लिए मसीही विश्वासी को सबसे पहले उसके साथ बने रहने, और प्रभु को निर्देश देने की बजाए प्रभु के कहे के अनुसार करते रहने वाला बनना है। तब ही वह विश्वासी अपने मसीही जीवन में आगे बढ़ने और कार्यकारी तथा परिपक्व होने पाएगा। 

इसलिए यदि आप अभी तक अपना जीवन प्रभु यीशु मसीह के नाम में, किन्तु अपनी अथवा अन्य मनुष्यों की ही सामर्थ्य, समझ, और शिक्षाओं अथवा युक्ति तथा योग्यता, के अनुसार जीते रहने का प्रयास करते रहें हैं, तो फिर आपको अपने जीवन में एक आमूल-चूल, एक मौलिक परिवर्तन करने की तात्कालिक आवश्यकता है। समय तथा अवसर के रहते आज ही, अभी ही, इस व्यर्थ एवं निष्फल धारणा एवं मान्यता से निकलकर प्रभु यीशु मसीह की वास्तविक शिष्यता में आ जाएं, और हर समय हर बात के लिए उसके साथ उसकी आज्ञाकारिता में बने रहने को निभाना आरंभ कर लें। कहीं ऐसा न हो कि जब परलोक में आँख खुले तब पता लगे कि आप अपनी ही जिन धारणाओं और मान्यताओं का सारे जीवन बड़ी निष्ठा से निर्वाह करते रहे उससे आपको कोई लाभ नहीं हुआ है, और अब उस गलती को सुधारने का कोई अवसर पास नहीं है; अब तो केवल अनन्तकाल का दण्ड ही मिलेगा। यदि आप अभी भी संसार के साथ और संसार के समान जी रहे हैं, या परमेश्वर को स्वीकार्य होने के लिए धर्म-कर्म-रस्म के निर्वाह की मानसिकता में भरोसा रखे हुए हैं, तो आज और अभी आपके पास अपनी अनन्तकाल की स्थिति को सुधारने का अवसर है। प्रभु यीशु से अपने पापों के लिए क्षमा माँगकर, स्वेच्छा से तथा सच्चे मन से अपने आप को उसकी अधीनता में समर्पित कर दीजिए - उद्धार और स्वर्गीय जीवन का यही एकमात्र मार्ग है। आपको स्वेच्छा और सच्चे मन से प्रभु यीशु मसीह से केवल एक छोटी प्रार्थना करनी है, और साथ ही अपना जीवन उसे पूर्णतः समर्पित करना है। आप यह प्रार्थना और समर्पण कुछ इस प्रकार से भी कर सकते हैं, “प्रभु यीशु मैं आपका धन्यवाद करता हूँ कि आपने मेरे पापों की क्षमा और समाधान के लिए उन पापों को अपने ऊपर लिया, उनके कारण मेरे स्थान पर क्रूस की मृत्यु सही, गाड़े गए, और मेरे उद्धार के लिए आप तीसरे दिन जी भी उठे, और आज जीवित प्रभु परमेश्वर हैं। कृपया मेरे पापों को क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना शिष्य बना लें। मैं अपना जीवन आप के हाथों में समर्पित करता हूँ।सच्चे और समर्पित मन से की गई आपकी एक प्रार्थना आपके वर्तमान तथा भविष्य को, इस लोक के और परलोक के जीवन को, अनन्तकाल के लिए स्वर्गीय एवं आशीषित बना देगी।

एक साल में बाइबल पढ़ें:

  • यशायाह 53-54     
  • 2 थिस्सलुनीकियों 1