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मनुष्य का स्वास्थ्य - 1
पिछले लेख में हमने देखा था कि मनुष्य परमेश्वर की उत्कृष्ट रचना है, और मनुष्य की रचना के विषय जिन बातों को विज्ञान ने वर्तमान में जानना आरंभ किया है, वे परमेश्वर ने अपने वचन बाइबल में हजारों वर्ष पहले से लिखवा रखी हैं। आज हम मनुष्य के स्वास्थ्य से संबंधित कुछ बातों को देखेंगे, जिन्हें विज्ञान और चिकित्सा-शास्त्र ने वर्तमान में जानना और मानना आरंभ किया है, किन्तु बाइबल की पुस्तकों में उनके बारे में परमेश्वर ने हजारों वर्ष पहले लिखवा दिया था।
लगभग 1.5 से 2 सदी पहले चिकित्सा की एक विधि थी बीमार व्यक्ति के शरीर में से “गंदा रक्त” निकाला जाता था, जिसके परिणामस्वरूप बहुत से लोग मर गए, जिनमें से एक अमेरिका के सुप्रसिद्ध राष्ट्रपति जॉर्ज वाशिंगटन भी थे, जिनके इलाज के लिए यह पद्धति अपनाई गई थी। विज्ञान को यह वर्तमान में पता चला कि शरीर में रक्त से ही जीवन है। रक्त ही सारे शरीर में ऑक्सीजन तथा पोशाक तत्वों को पहुंचाता है, बीमारियों से लड़ने वाली और संक्रमण को रोकने और मारने वाली कोशिकाओं का स्त्रोत है, तथा उसका शरीर में उपयुक्त मात्रा में होना कितना आवश्यक है। किन्तु परमेश्वर ने अपने वचन बाइबल में यह आज से लगभग 3400 वर्ष पूर्व ही लिखवा दिया था कि रक्त से ही जीवन है, “क्योंकि शरीर का प्राण लहू में रहता है; और उसको मैं ने तुम लोगों को वेदी पर चढ़ाने के लिये दिया है, कि तुम्हारे प्राणों के लिये प्रायश्चित्त किया जाए; क्योंकि प्राण के कारण लहू ही से प्रायश्चित्त होता है।” “क्योंकि शरीर का प्राण जो है वह उसका लहू ही है जो उसके प्राण के साथ एक है; इसी लिये मैं इस्राएलियों से कहता हूं, कि किसी प्रकार के प्राणी के लहू को तुम न खाना, क्योंकि सब प्राणियों का प्राण उनका लहू ही है; जो कोई उसको खाए वह नाश किया जाएगा” (लैव्यव्यवस्था 17:11, 14)।
परमेश्वर ने अपने चुने हुए लोगों, अब्राहम के वंशजों - यहूदियों के लिए खतने की विधि ठहराई थी, “और आठवें दिन लड़के का खतना किया जाए” (लैव्यव्यवस्था 12:3; साथ ही देखें उत्पत्ति 17:12; लूका 1:59)। यह आज से लगभग 4000 वर्ष पूर्व की बात है। विज्ञान की वर्तमान खोजों से पहले यह कोई नहीं जानता था कि रक्त को बहने से रोकने और रक्त का थक्का जमाने के लिए रक्त में जिस रासायनिक पदार्थ, प्रोथ्रोमबिन की आवश्यकता होती है, वह शिशु के जन्म के आठवें दिन सबसे अधिक मात्रा में रक्त में विद्यमान होता है, और फिर उसके बाद रक्त में उसकी मात्रा कम होने लग जाती है। यह तथ्य चिकित्सा विज्ञान को वर्तमान में पता चला है। किन्तु परमेश्वर जो मनुष्य का रचयिता है, उसने अपनी निर्धारित रचना के अनुसार पहले ही कह दिया था कि खतना आठवें दिन हो, जिससे शिशु का रक्त बहना तुरंत ही रुक सके, कोई हानि न हो।
चिकित्सा-विज्ञान संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए रोगी को अन्य सभी से अलग रखने की जिस पद्धति पर आज जोर दे रहा है, रोगी से दूरी बनाए रखने की बात कर रहा है, बार-बार निरीक्षण करके यह सुनिश्चित करने की बात कर रहा है कि संक्रमण समाप्त हो गया तथा रोगी निरोग हो गया है, वह बाइबल में लगभग 3400 वर्ष पहले ही लिख दिया गया था कि संभावित संक्रमण वाले व्यक्ति को भी अन्य लोगों से पृथक रखा जाए “फिर यहोवा ने मूसा से कहा, इस्राएलियों को आज्ञा दे, कि वे सब कोढिय़ों को, और जितनों के प्रमेह हो, और जितने लोथ के कारण अशुद्ध हों, उन सभों को छावनी से निकाल दें; ऐसों को चाहे पुरुष हों चाहे स्त्री छावनी से निकाल कर बाहर कर दें; कहीं ऐसा न हो कि तुम्हारी छावनी, जिसके बीच मैं निवास करता हूं, उनके कारण अशुद्ध हो जाए। और इस्राएलियों ने वैसा ही किया, अर्थात ऐसे लोगों को छावनी से निकाल कर बाहर कर दिया; जैसा यहोवा ने मूसा से कहा था इस्राएलियों ने वैसा ही किया” (गिनती 5:1-5; देखें लैव्यव्यवस्था 13:45-46)।
जो परमेश्वर मुझे और आपको शारीरिक रीति से स्वस्थ रखना चाहता है, और इसके लिए जिसने पहले से ही अपने वचन में विधि और निर्देश दे रखे हैं, वही प्रेमी परमेश्वर पिता आपके आत्मिक स्वास्थ्य की भी चिंता करता है, और आपको आत्मिक रीति से स्वस्थ देखना चाहता है। संसार के हर व्यक्ति के अंदर पाप का रोग है - व्यक्ति चाहे माने या न माने; इसका एहसास करे अथवा न करे। हर व्यक्ति मन, विचार, व्यवहार से किसी न किसी रूप में परमेश्वर की आज्ञाओं का उल्लंघन करता है, और परमेश्वर की आज्ञा का उल्लंघन ही पाप है। यह पाप का रोग सभी को परमेश्वर से दूर रखता है, इस लोक में भी और परलोक में भी। किन्तु जो इस लोक में परमेश्वर के सामने अपने पापों को मान लेता है, परमेश्वर से उनके लिए क्षमा माँग लेता है, वह इस पाप के संक्रमण से मुक्त हो जाता है, वापस परमेश्वर के साथ संगति में बहाल हो जाता है; इस लोक में भी और परलोक में भी।
परमेश्वर प्रभु यीशु से, सच्चे मन, स्वेच्छा, और पाप के बोध के साथ की गई एक छोटी समर्पण की प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु मेरे पापों को क्षमा करें, मुझ पापी को ग्रहण करें, और मुझे अपने प्रति समर्पित तथा आज्ञाकारी व्यक्ति बनाएँ” आपको पाप के रोग से हमेशा के लिए मुक्ति दिला देगा - जो कोई धर्म-कर्म, विधि-विधान-अनुष्ठान कभी नहीं कर सकते हैं।
आज प्रभु परमेश्वर आपको पाप के रोग से स्वस्थ होने का निमंत्रण दे रहा है; समय और अवसर रहते उसके इस निमंत्रण को स्वीकार कर लीजिए, और अनन्तकाल के लिए इस घातक रोग से स्वस्थ एवं निरोग हो जाइए।
Bible and Man’s Health - 1
In the previous article, we saw that man is God's masterpiece, and that the things that science has learnt about the creation of man of late, God had them written in His Word, the Bible, thousands of years ago. Today we will look at some things related to human health, which science and medicine have learnt in the recent past and believe, but they were written by God thousands of years ago in the books of the Bible.
About 1.5 to 2 centuries ago, a method of therapy was the removal of "bad blood" from a sick person's body, which resulted in the death of many people, including one of the well-known US President George Washington, for whom this method had been adopted and used for treatment. Science has now come to know that life in the body is there only through the blood. Blood carries oxygen and nutrients throughout the body, is the source of cells that fight disease and prevent and kill infections, and it is very important to have the right quantity and quality of blood in the body. But God got it written in His Word, the Bible, about 3400 years ago, that life is in the blood, "For the life of the flesh is in the blood, and I have given it to you upon the altar to make atonement for your souls; for it is the blood that makes atonement for the soul.' For it is the life of all flesh. Its blood sustains its life. Therefore I said to the children of Israel, 'You shall not eat the blood of any flesh, for the life of all flesh is its blood. Whoever eats it shall be cut off.'” (Leviticus 17:11, 14).
God had ordained circumcision for his chosen people, the descendants of Abraham's — the Jews, to be done on the eighth day of birth, "And on the eighth day the flesh of his foreskin shall be circumcised" (Leviticus 12:3; see also Genesis 17:12; Luke 1:59). This was said about 4000 years ago from today. Before current scientific discoveries, no one knew that the chemical substance in the blood, prothrombin, which is essential to stop the blood from flowing and for clotting of the blood, was present in the blood at its peak value in a person’s lifetime on the eighth day after birth, and then after that its amount in the blood decreases to its ‘normal’ value. Medical science has come to know of this fact now. But God who is the Creator of man, according to His design, had already said that circumcision should be done on the eighth day, so that the bleeding can stop immediately, and there is no harm.
The method that medical science emphasizes upon today to prevent the spread of infection, is to keep the patient isolated from everyone else, for healthy people to keep a distance from the patient, to check by frequent monitoring that the infection is gone and the patient is cured. All of this was written in the Bible about 3400 years ago; that all infected persons and even a person with a suspected infection should be kept separate from all the other people. “And the Lord spoke to Moses, saying: "Command the children of Israel that they put out of the camp every leper, everyone who has a discharge, and whoever becomes defiled by a corpse. You shall put out both male and female; you shall put them outside the camp, that they may not defile their camps in the midst of which I dwell." And the children of Israel did so, and put them outside the camp; as the Lord spoke to Moses, so the children of Israel did" (Numbers 5:1-4; see Leviticus 13:45-46).
The very God who wants to keep me and you physically healthy, and who for this has already given the laws and instructions in His Word about it, the same loving God the Father also cares about your spiritual health, and wants to see you spiritually healthy. There is a disease of sin, present in every person in the world - whether the person believes this or not; realizes it or not. Every person violates God's commandments in one way or the other in mind, thought, behavior; and sin is disobeying God's command. This disease of sin keeps everyone away from God (Isaiah 59:2), both in this world and in the next. But one who in this world, confesses his sins to God, asks God for forgiveness for them, is freed from the condemnation of his sin, is restored back to fellowship with God (1 John 1:9); and is saved in this world as well as in the next.
A short prayer of surrender to the Lord Jesus, made with a sincere heart, voluntarily, and in realization of the state of being in sin, in words like “Lord Jesus forgive my sins, accept me as a sinner, and make me a committed and obedient person to Yourself” Will give you eternal healing and freedom from the disease of sin - which no religion, no ‘good’ deeds, no fulfilling of any or all rites and rituals, religious traditions, etc. can ever do.
Today the Lord God is inviting you to be healed and recover from the disease of sin; Accept this invitation while you have time and opportunity, and be healthy and free from this deadly disease for eternity.
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