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रविवार, 13 अक्टूबर 2013

व्यर्थ व्यस्तता

   एक दिन मैं जब यात्रा के लिए वायुयान में चढ़ने की प्रतीक्षा कर रहा था, एक अजनबी मेरे पास आया और मुझ से वार्तालाप करने लगा। उसने मेरा यह कहना सुन लिया था कि मैं एक पास्टर हूँ। वह मुझ से प्रभु यीशु के साथ हुई उसकी मुलाकात तथा उस मुलाकात से पहले और बाद के जीवन के बारे में बताने लगा। उसने बताया कि कैसे उस मुलाकात से पहले का उसका जीवन पाप और स्वार्थ से भरा हुआ था। मैं बड़ी रुची के साथ सुनता रहा कैसे प्रभु यीशु को समर्पण के बाद उसने अपने जीवन में कई परिवर्तन किए और वह अब कैसे भले कार्यों को करता रहता है। लेकिन एक बात मुझे खटक रही थी, उसका सारा वर्णन इस बात पर था कि उसने प्रभु के लिए और प्रभु के नाम में क्या कुछ किया, कहीं भी उस व्यक्ति ने यह नहीं बताया कि वह अब प्रभु के साथ समय कैसे बिताता है, प्रभु यीशु के साथ अब उसकी संगति कैसी है। इसलिए जब उसने कहा कि, "अगर मैं साफ-साफ शब्दों में कहूँ, तो मुझे लगता था कि इन सब के कारण अब तक मैं अपने आप से बहुत प्रसन्न होने पाऊँगा, लेकिन ऐसा हुआ नहीं है" तो मुझे यह सुन कर कोई अचरज नहीं हुआ।

   इस व्यक्ति की बात से मुझे परमेश्वर के वचन बाइबल में उल्लेख किया गया मार्था का चरित्र स्मरण हो आया। मार्था अवश्य इस व्यक्ति के साथ सहानुभुति रखती। मार्था ने भी एक समय प्रभु यीशु को अपने घर निमंत्रण देकर बुलाया था, और प्रभु के आने पर वह उसकी आवभगत में दौड़-धूप करने लगी, अनेक प्रकार कि तैयारियाँ करने लगी। प्रभु को प्रसन्न करने की उसकी इस सारी प्रक्रिया में उसके पास प्रभु के साथ बैठने और उससे वार्तालाप करने का समय ही नहीं था। लेकिन उसकी बहन मरियम प्रभु के चरणों पर बैठकर प्रभु की बातें सुन रही थी, जो व्यस्त मार्था को बहुत नागवार गुज़रा, और मार्था ने प्रभु से उपेक्षित स्वर में मरियम को डाँटने के लिए कहा। लेकिन प्रभु यीशु ने मरियम का पक्ष लेते हुए मार्था को समझाया।

   हम में से बहुतेरे यही गलती करते रहते हैं, जो तब मार्था और उस समय उस व्यक्ति ने करी थी। हम या तो संसारिक उपलब्धियों के लिए या फिर प्रभु के लिए और प्रभु के नाम में इतना कुछ करने में अपने आप को व्यस्त कर लेते हैं कि हमारे पास समय ही नहीं होता कि हम जान सकें कि प्रभु हमसे चाहता क्या है और वह क्या है जिससे प्रभु हमसे वास्तव में प्रसन्न होगा। हम प्रभु को बेहतर जानने, उससे संगति करने में समय ही नहीं लगाते; बस अपनी ही मनसाओं, योजनाओं और कार्यक्रमों के अनुसार चलते रहते हैं और फिर थके हुए तथा कुँठित अनुभव करते हैं, निराश होते हैं कि क्यों हमारे मन प्रभु में प्रफुल्लित नहीं रहते।

   उस व्यक्ति को जो सलाह मैंने तब दी वही मैं आज आप के साथ भी बाँटना चाहता हूँ; मैंने उससे मार्था को कहे प्रभु यीशु के शब्दों को उद्वत किया: "प्रभु ने उसे उत्तर दिया, मार्था, हे मार्था; तू बहुत बातों के लिये चिन्‍ता करती और घबराती है। परन्तु एक बात अवश्य है, और उस उत्तम भाग को मरियम ने चुन लिया है: जो उस से छीना न जाएगा" (लूका 10:41-42)। यदि आप प्रभु के साथ संगति करने उसके वचन को पढ़ने और उस पर मनन करने के लिए समय नहीं निकाल पाते, तो प्रभु के नाम में या प्रभु के लिए, या फिर सांसारिक उपलब्धियों के लिए आप जो कुछ भी कर रहे हैं वह व्यर्थ व्यस्तता है, अन्ततः उसका फल निराशा और कुँठा ही है, प्रभु यीशु में मिलने वाली शान्ति और आनन्द नहीं। अपनी प्राथमिकताओं पर विचार कीजिए तथा सही प्राथमिकताओं को निर्धारित कीजिए। - रैण्डी किल्गोर


हमारा स्वर्गीय परमेश्वर पिता अपने बच्चों से संगति करने और उनसे वार्तालाप करने को लालायित रहता है।

और मरियम नाम उस की एक बहिन थी; वह प्रभु के पांवों के पास बैठकर उसका वचन सुनती थी। - लूका 10:39

बाइबल पाठ: लूका 10:38-42
Luke 10:38 फिर जब वे जा रहे थे, तो वह एक गांव में गया, और मार्था नाम एक स्त्री ने उसे अपने घर में उतारा। 
Luke 10:39 और मरियम नाम उस की एक बहिन थी; वह प्रभु के पांवों के पास बैठकर उसका वचन सुनती थी। 
Luke 10:40 पर मार्था सेवा करते करते घबरा गई और उसके पास आकर कहने लगी; हे प्रभु, क्या तुझे कुछ भी सोच नहीं कि मेरी बहिन ने मुझे सेवा करने के लिये अकेली ही छोड़ दिया है? सो उस से कह, कि मेरी सहायता करे। 
Luke 10:41 प्रभु ने उसे उत्तर दिया, मार्था, हे मार्था; तू बहुत बातों के लिये चिन्‍ता करती और घबराती है। 
Luke 10:42 परन्तु एक बात अवश्य है, और उस उत्तम भाग को मरियम ने चुन लिया है: जो उस से छीना न जाएगा।

एक साल में बाइबल: 
  • यशायाह 41-42 
  • 1 थिस्सुलुनीकियों 1