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गुरुवार, 19 अगस्त 2021

परमेश्वर का वचन – बाइबल – और विज्ञान – 7

 

मनुष्य का स्वास्थ्य - 2  

परमेश्वर ने न केवल मनुष्य के शरीर की रचना में उसे स्वस्थ बनाए रखने के लिए प्रावधान प्रदान किए हैं, किन्तु साथ ही अपने वचन बाइबल की पुस्तकों में अनेकों ऐसे उपाय भी लिखवाए हैं, जिनके पालन के द्वारा मनुष्य स्वस्थ बन रह सकता है। परमेश्वर ने ये निर्देश हज़ारों वर्ष पहले मनुष्यों को दे दिए थे; वर्तमान में चिकित्सा-विज्ञान इनके महत्व और उपयोगिता को पहचान रहा है, तथा पालन करने के लिए कह रहा है। 

परमेश्वर द्वारा स्वास्थ्य संबंधी दिए गए कुछ निर्देश हैं:

परमेश्वर ने लगभग 3500 वर्ष पहले, अपने लोगों से कहा था कि वे शौच के लिए अपनी छावनी के क्षेत्र से बाहर जाएँ, और सपने साथ मल को ढांपने के लिए उपकरण भी ले जाएंछावनी के बाहर तेरे दिशा फिरने का एक स्थान हुआ करे, और वहीं दिशा फिरने को जाया करना; और तेरे पास के हथियारों में एक खनती भी रहे; और जब तू दिशा फिरने को बैठे, तब उस से खोदकर अपने मल को ढांप देना” (व्यवस्थाविवरण 23:12-13)। हम आज जानते हैं कि मल के प्रदूषित पानी या भोजन सामग्री के खाने से, या उससे दूषित मिट्टी के संपर्क में रहने से कितने ही रोग होते हैं। रोगों की रोक-थाम की योजनाओं में पानी और मिट्टी को मल से दूषित होने से रोके रखने के उपाय सबसे प्राथमिक और महत्वपूर्ण होते हैं। कहा जाता है कि प्रथम विश्व-युद्ध होने के समय तक उतने सैनिक युद्ध से नहीं मरे थे, जितने छावनियों में फैलने वाली बीमारियों से मरे, क्योंकि उन्होंने स्वच्छता के इस सिद्धांत का पालन नहीं किया था।

 

परमेश्वर ने अपने वचन में बताया है कि यौन-संबंध पति-पत्नी के मध्य ही उचित और स्वीकार्य हैं। व्यभिचार, अनेकों के साथ यौन-संबंध रखना, समलैंगिक संबंध, आदि सभी शरीर में रोगों और अस्वस्थता उत्पन्न करते हैं (रोमियों 1:27; 1 कुरिन्थियों 6:18)

 

परमेश्वर ने लगभग 3000 वर्ष पहले अपने लोगों को शुद्ध और अशुद्ध जीव-जन्तुओं की सूची दी थी, अशुद्ध पशुओं को भोजन के लिए निषेध किया था (लैव्यव्यवस्था 11; तथा व्यवस्थाविवरण 14 अध्याय)। जिन पशुओं को भोजन के लिए निषिद्ध किया गया था उनमें सूअर सहित कुछ और जानवरफिर सूअर, जो चिरे खुर का होता है परन्तु पागुर नहीं करता, इस कारण वह तुम्हारे लिये अशुद्ध है। तुम न तो इनका मांस खाना, और न इनकी लोथ छूना” (व्यवस्थाविवरण 14:8), और जलाशयों के तले में रहने वाले जल-जंतु, जिनके चोंयेटे और पंख (scales & fins) नहीं होते, सम्मिलित हैं:फिर जितने जल जन्तु हैं उन में से तुम इन्हें खा सकते हों, अर्थात समुद्र वा नदियों के जल जन्तुओं में से जितनों के पंख और चोंयेटे होते हैं उन्हें खा सकते हो। और जलचरी प्राणियों में से जितने जीवधारी बिना पंख और चोंयेटे के समुद्र वा नदियों में रहते हैं वे सब तुम्हारे लिये घृणित हैं। वे तुम्हारे लिये घृणित ठहरें; तुम उनके मांस में से कुछ न खाना, और उनकी लोथों को अशुद्ध जानना। जल में जिस किसी जन्तु के पंख और चोंयेटे नहीं होते वह तुम्हारे लिये अशुद्ध है” (लैव्यव्यवस्था 11:9-12)। ये जीव-जंतु बहुधा तले पर पड़ी गंदगी खाने वाले होते हैं, जिससे मनुष्यों में बीमारियों के प्रवेश करने का खतरा रहता है। आज कई बीमारियाँ जो पहले जंतुओं में ही होती थीं मनुष्यों में घातक बनकर दिखने लगी हैं, क्योंकि परमेश्वर द्वारा दिए गए शुद्ध-अशुद्ध के नियमों का पालन नहीं किया गया।

परमेश्वर ने निर्देश दिए थे कि पीने के लिए स्वच्छ जल का ही प्रयोग करना है, और किसी भी मृतक जन्तु से दूषित बर्तन के भोजन अथवा उसके जल को प्रयोग नहीं करना हैऔर यदि मिट्टी का कोई पात्र हो जिस में इन जन्तुओं में से कोई पड़े, तो उस पात्र में जो कुछ हो वह अशुद्ध ठहरे, और पात्र को तुम तोड़ डालना। उस में जो खाने के योग्य भोजन हो, जिस में पानी का छुआव हों वह सब अशुद्ध ठहरे; फिर यदि ऐसे पात्र में पीने के लिये कुछ हो तो वह भी अशुद्ध ठहरे। और यदि इनकी लोथ में का कुछ तंदूर वा चूल्हे पर पड़े तो वह भी अशुद्ध ठहरे, और तोड़ डाला जाए; क्योंकि वह अशुद्ध हो जाएगा, वह तुम्हारे लिये भी अशुद्ध ठहरे। परन्तु सोता वा तालाब जिस में जल इकट्ठा हो वह तो शुद्ध ही रहे; परन्तु जो कोई इनकी लोथ को छूए वह अशुद्ध ठहरे” (लैव्यव्यवस्था 11:33-36)। वर्तमान में चिकित्सा विज्ञान को मनुष्यों में रोग उत्पन्न करने वाले कीटाणुओं की जानकारी होने के बाद परमेश्वर द्वारा 3000 वर्ष पहले कहे गई इस बात का महत्व समझ में आता है। 

परमेश्वर ने रोगों के इलाज के लिए वनस्पति में भी प्रावधान रखे, और मनुष्यों को उसके विषय बताया (यशायाह 38:21; यहेजकेल 47:12; प्रकाशितवाक्य 22:2): “यशायाह ने कहा था, अंजीरों की एक टिकिया बना कर हिजकिय्याह के फोड़े पर बान्‍धी जाए, तब वह बचेगा” (यशायाह 38:21); “और नदी के दोनों तीरों पर भांति भांति के खाने योग्य फलदाई वृक्ष उपजेंगे, जिनके पत्ते न मुरझाएंगे और उनका फलना भी कभी बन्द न होगा, क्योंकि नदी का जल पवित्र स्थान से निकला है। उन में महीने महीने, नये नये फल लगेंगे। उनके फल तो खाने के, ओर पत्ते औषधि के काम आएंगे” (यहेजकेल 47:12)। इसी प्रकार से जैतून का तेल और दाखरस भी घावों के इलाज में प्रयोग किया जाता था (लूका 10:34)। जैतून का तेल त्वचा को स्वस्थ रखता है, और दाखरस में विद्यमान इथाइल अल्कोहल कीटाणुओं को मारता है। 

परमेश्वर ने 3000 वर्ष पूर्व राजा सुलैमान द्वारा लिखे नीतिवचनों में लिखवा दिया था किमन का आनन्द अच्छी औषधि है, परन्तु मन के टूटने से हड्डियां सूख जाती हैं” (नीतिवचन 17:22); तथामन आनन्दित होने से मुख पर भी प्रसन्नता छा जाती है, परन्तु मन के दु:ख से आत्मा निराश होती है” (नीतिवचन 15:13)। परमेश्वर के वचन में 3000 वर्ष पहले लिखे गए इस तथ्य को चिकित्सा विज्ञान आज समझ और मान रहा है; वर्तमान समय की लोगों को सर्वाधिक ग्रसित करने वाली घातक बीमारियाँ, जैसे बढ़ा हुआ ब्लडप्रेशर, हृदय रोग, डायबटीस, निराशा या डिप्रेशन, आदि अशांत और अस्वस्थ मन के कारण ही शरीर पर प्रभाव डालते हैं; और इनके इलाज के लिए मन के प्रसन्न और संतुष्ट होने से बहुत सहायता मिलती है।

 

जिस परमेश्वर ने हमारे नश्वर शरीरों को, जो एक न एक दिन मर ही जाएंगे, स्वस्थ रखने के लिए इतने प्रावधान किए, निर्देश दिए, उसी ने हमारी कभी न मरने वाली आत्मा को सबसे विनाशकारी और अनन्तकाल के लिए परेशानी उत्पन्न करने वाले पाप के रोग से भी बचाव और स्वस्थ रहने का उपाय दिया है। परमेश्वर ने कहा, “यदि हम अपने पापों को मान लें, तो वह हमारे पापों को क्षमा करने, और हमें सब अधर्म से शुद्ध करने में विश्वासयोग्य और धर्मी है” (1 यूहन्ना 1:9)। वह हमसे केवल इतना चाहता है कि हम अपने पाप मान लें और उन पापों से उसके सम्मुख सच्चे मन से पश्चाताप कर लें। उसके आगे हमें उन पापों से शुद्ध करने और हमें परमेश्वर की दृष्टि और मापदंड के अनुसार धर्मी बनाने की ज़िम्मेदारी और कार्य उसका है। स्वेच्छा और सच्चे मन से की गई केवल एक प्रार्थना, “हे प्रभु यीशु, मैं स्वीकार करता हूँ कि मैंने मन, ध्यान, विचार, और व्यवहार में पाप किया है, और आपने मेरे पापों के निवारण के लिए क्रूस पर अपने आप को बलिदान किया और फिर जीवित हो गए। कृपया मेरे पाप क्षमा करें, मुझे अपनी शरण में लें, और मुझे अपना आज्ञाकारी, समर्पित जन बना लें। मेरे जीवन को अपनी इच्छानुसार परिवर्तित कर दें” - आपको पाप के रोग से मुक्त और स्वस्थ कर के परमेश्वर के राज्य में अनन्तकाल के लिए प्रवेश प्रदान कर देगी। चाहे अविश्वसनीय लगे, किन्तु करके देखिए - सच्चे, समर्पित, आज्ञाकारी, मन से, शांत होकर अपने ही अंदर यह प्रार्थना करने से आपका कुछ नहीं बिगड़ेगा, कोई हानि नहीं होगी; यदि कुछ हुआ तो आपका भला ही होगा - पाप से मुक्ति, उद्धार और आशीषों से भरपूर अनन्त जीवन मिलेगा; फिर क्यों डरना? विश्वास के साथ कदम बढ़ाइए, भला ही मिलेगा, कोई हानि नहीं। 

 

बाइबल पाठ: यशायाह 55:1-13 

यशायाह 55:1 अहो सब प्यासे लोगों, पानी के पास आओ; और जिनके पास रुपया न हो, तुम भी आकर मोल लो और खाओ! दाखमधु और दूध बिन रुपए और बिना दाम ही आकर ले लो।

यशायाह 55:2 जो भोजन वस्तु नहीं है, उसके लिये तुम क्यों रुपया लगाते हो, और, जिस से पेट नहीं भरता उसके लिये क्यों परिश्रम करते हो? मेरी ओर मन लगाकर सुनो, तब उत्तम वस्तुएं खाने पाओगे और चिकनी चिकनी वस्तुएं खाकर सन्तुष्ट हो जाओगे।

यशायाह 55:3 कान लगाओ, और मेरे पास आओ; सुनो, तब तुम जीवित रहोगे; और मैं तुम्हारे साथ सदा की वाचा बान्धूंगा अर्थात दाऊद पर की अटल करुणा की वाचा।

यशायाह 55:4 सुनो, मैं ने उसको राज्य राज्य के लोगों के लिये साक्षी और प्रधान और आज्ञा देने वाला ठहराया है।

यशायाह 55:5 सुन, तू ऐसी जाति को जिसे तू नहीं जानता बुलाएगा, और ऐसी जातियां जो तुझे नहीं जानतीं तेरे पास दौड़ी आएंगी, वे तेरे परमेश्वर यहोवा और इस्राएल के पवित्र के निमित्त यह करेंगी, क्योंकि उसने तुझे शोभायमान किया है।

यशायाह 55:6 जब तक यहोवा मिल सकता है तब तक उसकी खोज में रहो, जब तक वह निकट है तब तक उसे पुकारो;

यशायाह 55:7 दुष्ट अपनी चालचलन और अनर्थकारी अपने सोच विचार छोड़कर यहोवा ही की ओर फिरे, वह उस पर दया करेगा, वह हमारे परमेश्वर की ओर फिरे और वह पूरी रीति से उसको क्षमा करेगा।

यशायाह 55:8 क्योंकि यहोवा कहता है, मेरे विचार और तुम्हारे विचार एक समान नहीं है, न तुम्हारी गति और मेरी गति एक सी है।

यशायाह 55:9 क्योंकि मेरी और तुम्हारी गति में और मेरे और तुम्हारे सोच विचारों में, आकाश और पृथ्वी का अन्तर है।

यशायाह 55:10 जिस प्रकार से वर्षा और हिम आकाश से गिरते हैं और वहां यों ही लौट नहीं जाते, वरन भूमि पर पड़कर उपज उपजाते हैं जिस से बोने वाले को बीज और खाने वाले को रोटी मिलती है,

यशायाह 55:11 उसी प्रकार से मेरा वचन भी होगा जो मेरे मुख से निकलता है; वह व्यर्थ ठहरकर मेरे पास न लौटेगा, परन्तु, जो मेरी इच्छा है उसे वह पूरा करेगा, और जिस काम के लिये मैं ने उसको भेजा है उसे वह सफल करेगा।

यशायाह 55:12 क्योंकि तुम आनन्द के साथ निकलोगे, और शान्ति के साथ पहुंचाए जाओगे; तुम्हारे आगे आगे पहाड़ और पहाडिय़ां गला खोल कर जयजयकार करेंगी, और मैदान के सब वृक्ष आनन्द के मारे ताली बजाएंगे।

यशायाह 55:13 तब भटकटैयों के स्थान पर सनौवर उगेंगे; और बिच्छु पेड़ों के स्थान पर मेंहदी उगेगी; और इस से यहोवा का नाम होगा, जो सदा का चिन्ह होगा और कभी न मिटेगा।

 

एक साल में बाइबल: 

  • भजन 103-104
  • 1 कुरिन्थियों